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37–साहित्य समाचार

अभिव्यक्ति टीम यू के में 

लंदन 28 जून, यू .के . हिंदी समिति द्वारा ब्रिटेन की प्रेस्टन यूनिवर्सिटी के मिडिलसेक्स कैम्पस में प्रवासी लेखकों द्वारा रचित चार पुस्तकों के लोकार्पण का भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। ये पुस्तकें थीं शारजाह की पूर्णिमा वर्मन का कविता संग्रह ‘वक्त के साथ’,  बाथ के मोहन राणा का कविता संग्रह ‘इस छोर पर’ तथा बर्मिंघम की शैल अग्रवाल  का कविता संग्रह ‘समिधा’ व कहानी संग्रह ‘ध्रुवतारा’। कार्यक्रम में भारतीय उच्चायोग के सचिव समन्वय, श्री पी . सी . हलदर मुख्य अतिथि थे। भारत के मूर्धन्य साहित्यकार पद्मश्री डा श्यामसिंह शशि ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। विशिष्ट अतिथि के रूप में भारत से पधारे पूर्व सांसद पद्रमश्री श्री शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव;

चित्र में बाएं सेःतीन कविता संग्रह मोहन राणा का 'इस छोर पर', पूर्णिमा वर्मन का 'वक्त के साथ', शैल अग्रवाल का 'समिधा' और कथा संग्रह 'ध्रुवतारा'

विशाखापटनम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, पूर्व सांसद तथा केन्द्रीय हिंदी समिति के सदस्य पद्म श्री डा लक्ष्मी प्रसाद; लखनऊ के पूर्व नगरपौर डा दाऊ जी गुप्त, कंप्यूटर विशेषज्ञ श्री विजय कुमार मल्होत्रा एवं कैनेडा से पधारे ओकनगन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, कंप्यूटर विशेषज्ञ तथा अभिव्यक्ति व अनुभूति जाल पत्रिकाओं के परियोजना निदेशक श्री अश्विन गांधी ने इस कार्यक्रम को अपनी उपस्थिति से गरिमा प्रदान की।

पुस्तकों का लोकार्पण श्री पी .सी . हलदर के कर कमलों द्वार सम्पन्न हुआ। श्री हलदर ने प्रवासी भारतीय लेखकों व साहित्य कर्मियों को बधाई देते हुए कहा कि विदेशों में बढ़ता हुआ हिंदी लेखन व प्रकाशन विश्व में हिंदी के विस्तार का परिचायक है। उन्होंने हिंदी के विकास के प्रति कार्यरत यूके हिंदी समिति की सराहना की और उपस्थित कवियों की कविताओं को उद्धृत करते हुए कहा कि ये कविताएं प्रवासी भारतीयों की अपनी अस्मिता और भारत के साथ उनके जुड़ाव को रेखांकित करती हैं। 

डा श्याम सिंह शशि ने भारत से बाहर लिखे जाने वाले साहित्य की सराहना करते हुए कहा कि यदि भारतीय साहित्य के इतिहास में प्रवासी भारतीयों के लेखन को शामिल नहीं किया गया तो वह अधूरा रह जायेगा।  इन्हीं विचारों के साथ वे आजकल विश्व भ्रमण कर विभिन्न देशों में लिखे जा रहे हिंदी साहित्य पर शोध कर रहे हैं तथा विश्व हिंदी साहित्य के इतिहास को लिखने की योजना पर काम कर रहे हैं। उन्होंने विश्व साहित्य को एक मंच पर लाने और उसको विश्व के हर कोने मे सुलभ कराने के लिये अभिव्यक्ति व अनुभूति पत्रिकाओं की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि इन पत्रिकाओं ने हिंदी साहित्य के इतिहास को महत्वपूर्ण दिशा दी है और ये आगे चल कर ये मील का पत्थर साबित होंगी।

विशिष्ट अतिथि तेलुगू व हिंदी के विद्वान डा लक्ष्मी प्रसाद ने इस अवसर पर कहा कि हिंदी–प्रदेशों के पाठ्यक्रम में गैर हिंदी भाषियों और प्रवासी भारतीयों द्वारा रचित साहित्य को स्थान दिया जाना चाहिये। उन्होंने हिंदी की दुर्दशा के लिये हिंदी के प्राध्यापकों तथा प्रशासनिक अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया जो हिंदी भाषी होते हुए भी अंग्रेज़ी में कार्य करते हैं।    

दूसरे सत्र में श्री विजय कुमार मल्होत्रा ने कंप्यूटर पर हिंदी एवं भारतीय भाषाओं पर हो रहे शोध एवं उपलब्धियों से लोगों को परिचित कराया। उन्होंने बताया कि माइक्रोसाफ्ट एक्स पी द्वारा किस प्रकार हिंदी के परिवेश में पूरी तरह काम कर ई–गवर्नेंस व ई–लर्निंग के लिये हिंदी का उपयोग किया जा सकता है। 

कनाडा के श्री अश्विन गांधी ने पावर पॉइंट प्रस्तुति में अभिव्यक्ति व अनुभूति जाल पत्रिकाओं को प्रारंभ करने की पृष्ठभूमि के संबंध में बताया और जानकारी दी कि किस प्रकार विश्व हिंदी साहित्य को एक स्थान पर प्रस्तुत करने का उनका स्वप्न साकार हुआ। श्री शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने अपने भाषण में प्रवासियों द्वारा हिंदी के प्रचार व प्रसार की 

अश्विन गांधी अभिव्यक्ति व अनुभूति पत्रिकाओं के विषय में पावर पॉइंट प्रस्तुति करते हुए

सराहना करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति व अनुभूति की टीम ने जाल पत्रिकाएं प्रकाशित करके न केवल भाषा व साहित्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है अपितु नवीनतम तकनीक के साथ हिंदी को जोड़ कर इसे विश्व व्यापी बनाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कार्य किया है। जन जन की भाषा को जन जन तक पहुंचाने में इन पत्रिकाओं से बड़ी मदद मिलेगी।

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