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नगरनामा बुदापैश्त

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इस पतझड़ में आना
असग़र वजाहत


लंदनवासी पंजाबी कवि यानी अमरजीत चंदन,
क्या तुमने कसम खाई है कि तुम जो पत्र लिखोगे उनकी लंबाई तुम्हारी कविताओं से ज्यादा न होगी।
इधर कुछ बदमाशों ने 'पिक्चर पोस्टकार्ड' बनाकर तुम्हारी इस कोशिश में चार चांद लगा दिए हैं। यानी तुम्हारा पिक्चर पोस्टकार्ड मिला। पढ़कर जल गया। खुदा के बंदे, दोस्तों को खत लिखा करो तो पिक्चर पोस्टकार्ड के वजूद को भूल जाया करो और मेरी तरह सफेद कागज के कई पन्ने स्याह कर डाला करो, अब तुम समय का रोना रोने लगोगे। तो समय पर एक शेर सुनो :
वक्त की डोर को थामे रहे मजबूती से
और जब छूटी तो अफसोस भी उसका न हुआ।

तो वक्त के बारे में थोड़ा निर्मम हो जाओ। अगर वक्त को ज्यादा महत्त्व दोगे तो तुम्हारे सिर पर चढ़कर बैठ जाएगा, तबला बजाएगा तब तुम क्या कर लोगे?
जहाँ तक तुम्हारे यहाँ आने की बात है, जब चाहो आओ -
खयाल खातिरे अहबाब चाहिए हर दम
अनीस ठेस न लग जाए आबगीनों को।

वैसे मेरा प्रोग्राम पूछना चाहते हो तो यह है कि शायद मई में जाना पड़े। यह अभी तक साफ नहीं है। बहरहाल तुम अप्रैल तक आ सकते हो, तब यहाँ रंगों की बहार होगी। पिछली बार तुम आए थे तो सर्दियाँ थीं और सिर्फ दो ही रंग थे। काला और सफेद। मैं नहीं कहता कि सिर्फ दो रंग खूबसूरत नहीं हो सकते। लेकिन अगर रंग ही देखने हैं तो यहाँ पतझड़ के समय आओ। जब लंबे जाड़ों के बाद पेड़ों में नए फूल और पत्ते निकलते हैं।

तुमने तो देखा ही है कि बुदापैश्त शायद यूरोप की अकेली राजधानी है जो अपने पहाड़ों के दामन में जंगलों के बड़े-बड़े टुकड़े छिपाए हुए हैं। यह भी शायद पुराने समाजवाद की ही देन है। नहीं तो बुदापेश्त भी लंदन होता। व्यावसायिकता का इतना दबाव होता कि पार्कों को छोड़कर जितनी भी हरित-पट्टी होती उस पर इमारतें खड़ी हो गई होतीं।

पिछले पतझड़ के मौसम में मैंने खासा वक्त बुदापैश्त के अंदर और ईद-गिर्द फैले जंगलों में बिताया, तुम बहुत उत्साहित न हो जाओ इसलिए यह बताना भी जरूरी है कि अकेले -
तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता।
कुछ लोग कहते हैं कि पतझड़ का मौसम उदासी भरा होता है। मुझे तो ऐसा नहीं लगा। यह लगा कि शायद कोई न दिखाई देने वाला कलाकार है, शायद हवा, जो अपने हाथों में रंगों की झोली लिए एक-एक पत्ती और एक-एक फूल को ऐसे रंगों से रंग रही है जिनकी कल्पना करना भी आसान नहीं है। एक-एक पत्ती पर रंगों की ऐसी छटा देखने को मिली कि बयान से बाहर है। जंगल में पेड़ों के बदलते हुए रंग, दूर या पहाड़ के ऊपर से देखने पर ऐसे लगता है जैसे अद्भुत रंगों का बहुत बड़ा कैनवस हो। रंगों और उनके 'शेड' और बदलते हुए प्रभाव को कागज पर लिखना मेरे बस की बात नहीं है। भारतीय राजदूतावास के सेकेंड सेक्रेटरी त्रिपाठी जी के भाई बबलू त्रिपाठी उस जमाने में यहाँ आए हुए थे। उन्होंने उस सुंदरता को अभिव्यक्ति देने का एक तरीका खोज लिया था। रंगों की छटा को देख कर कहते थे -
"अरे यहाँ प्रसाद जी होते (मतलब जयशंकर प्रसाद) तो दसियों 'कामायनियाँ' लिख देते। यहाँ निराला होते तो न जाने कितनी 'संध्या सुंदरियों' की रचना हो जाती।"

बबलू की यह अभिव्यक्ति मुझे बहुत पसंद आई। निश्चित रूप से शहर के इतने अंदर प्रकृति का ऐसा आक्रामक रूप कहाँ देखने को मिलता है! पेड़ों के रंग काले, ऊदे, नीले, कत्थई, गहरे हरे, पीले, नारंगी, कासनी, सुर्ख, गुलाबी हो जाते हैं। अक्सर एक ही पेड़ की पत्तियाँ नीचे की डालों में ऊदी दिखाई देती हैं और ऊपरी हिस्से में लाल। कुछ पेड़ों में तो एक ही पत्ती में तीन-तीन, चार-चार तरह के रंग आपस में मिलते दिखाई देते हैं। कभी तो एक पेड़ में हवा के रूख की तरफ एक रंग दिखाई पड़ता है और उसके विपरीत कोई और रंग। फूल आम तौर पर नहीं रहते लेकिन पत्तियाँ फूलों से ज्यादा खूबसूरत हो जाती हैं। पेड़ों और पत्तियों के इन बदलते हुए रंगों के अनुसार ही शायद जंगलों में ऐसे पेड़ लगाए गए हैं जो तरह-तरह से रंग बदलते हैं। बहार के समय के रंगों को अगर 'कन्वेंशनल' कहा जा सकता है तो पतझड़ के समय के रंग 'नॉन कन्वेंशनल' होते हैं। ऐसे रंग जो शायद कलाकारों की कल्पना में होते हों तो होते हों, और कहीं नहीं देखे जा सकते। जंगल के इन रंगों में पीला रंग ज्यादा नुमाया होता है। खास तौर पर जब तुम जंगल की पगडंडियों पर चलते हो तो दूर तक पीले पत्ते बिछे दिखाई देते हैं। पीले पत्ते वाले पेड़ों के जंगल के नीचे धूप इस तरह आती है कि पीले पत्ते कुछ नारंगी हो जाते हैं। चमकने लगते हैं और धूप की आड़ी-तिरछी किरनें पत्तों के झुरमुट को चीरती नीचे तक आ जाती हैं। तब लगता है कि तुम किसी रहस्यमयी पीली गुफा में चले जा रहे हो। पतझड़ के मौसम में इस तरह के अनेकों चमत्कार होते हैं जैसे जंगल में आप घूम रहे हैं - पेड़ों के पत्तों का रंग गहरा हरा और कत्थई है, अचानक किसी मोड़ पर एक ऐसा पेड़ मिल जाता है जिसके पत्तों का रंग बिल्कुल सुर्ख है - बिल्कुल आतशी सुर्ख।

जहाँ तक शहर का सवाल है, तुम खुद देख चुके हो, लेकिन मेरी आंखों से नहीं देखा। लगभग तीन साल तक इस शहर में इसी दौरान लंदन, पेरिस, विएना, वगैरा घूमने और देखने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि अगर यूरोप में शहर हैं तो बुदापैश्त और प्राग। प्राग देखने से पहले शोरका से बात हुई तो उसने कहा था, "प्राग जरूर आओ, ये शहर नहीं है, जादू है, जादू।" प्राग जादूगर का बसाया नगर है तो बुदापैश्त प्रकृति, यानी सबसे बड़े जादूगर ने बसाया है।
दुनिया के दसियों शहरों के बीच से नदियाँ बहती हैं लेकिन बुदापैश्त के बीच बहने वाली दूना नदी की बात ही कुछ और है, जैसे -
अगरचे शैख ने दाढ़ी बढ़ाई सन की-सी
मगर वो बात कहाँ मालवी मदन की-सी।

दूना नदी शहर का एक ऐसा हिस्सा बन गई है कि वह शहर में आपके साथ-साथ रहती है। उसके एक तरफ ऊँचे हरे पहाड़ों के दरमियान से झाँकते मकान दिखाई देते हैं तो दूसरी तरफ मैदान में बसा हुआ शहर पैश्त है। कोई सौ साल से अधिक पहले दूना नदी के दो किनारों पर बसे ये शहर - यानी पहाड़ों पर बसा बुदा और मैदानी इलाके में बसा पैश्त दो शहर थे लेकिन १८७२ में इन दो शहरों की शादी हो गई थी और बुदापैश्त का जन्म हुआ था। लेकिन अब तक नदी के किनारे पहाड़ों पर बसे शहर को बुदा और दूसरी ओर के शहर को पैश्त कहते हैं। बीच से दूना नदी बल खाती हुई निकल गई हैं। उसके दोनों तरफ दो-दो सड़कें और ट्राम लाइने हैं। दूना इतनी पास लगती है कि तुम आसानी से झुककर उसके कान में कुछ कह सकते हो।

दूना मुझे अजीब रहस्यमयी-सी नदी लगती है। इतने रंग बदलती है कि हैरानी होती है कभी एकदम नीली हो जाती है कभी मटमैली-सी। कभी कुछ लाल-सी और कभी सफेद। कभी शांत, थकी-सी दिखाई देती है तो कभी चंचल और बेचैन। रात में उसके दोनों किनारे पर लगी रोशनियों और रोशन इमारतों की प्रतिच्छाया दूना में इस तरह दिखाई देती है जैसे दूना के अंदर भी एक शहर बसा हो। दिन में भी भव्य इमारतें दूना के अंदर से झाँकती दिखाई देती हैं।

हंगेरियन लोकगीतों में दूना का अपना महत्व है। जो गीत मैंने सुने हैं उनमें कहीं वह निर्मम ठंडी हवाओं का स्रोत है तो कहीं प्रेमिका कहती है कि उसका प्रेमी छलांग मारकर दूना पार कर लेता है और उसके पास आता है लेकिन आजकल तो दूना पर सात पुल हैं। जैसा कि तुमने देखा है, ये पुल लंदन पर बने पुलों जैसे निम्न कोटि के नहीं हैं। लंदन के सिर्फ एक पुल 'टावर ब्रिज' को छोड़ कर बाकी तो लगता है, भारतीय इंजीनियरों ने बनाए हैं। बुदापैश्त में दूना पर बने सातों पुलों का अपना-अपना चरित्र है। उन पर हंगेरियन कवियों की कविताएँ हैं और वे पुल शहर और लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा हैं। 'चेन-ब्रिज' जिस पर रात में रोशनियाँ होती हैं, उसके बारे में यहाँ एक रोचक किस्सा सुनाया जाता है। सुनो! लेकिन सुनने से पहले यह बता दूँ या शायद तुमने देखा हो, पुल के दोनों तरफ दो-दो पत्थर के शेर अपने मुँह खोले बैठे हैं। पुलों के शुरू में इस तरह के पत्थर के शेर खड़े करना शायद पुरानी यूरोपीय परंपरा है क्यों कि भारत में भी मैंने कुछ पुराने पुलों में ऐसे शेर देखे हैं। खैर जनाब, तो अब सुनिए किस्सा!

कहते हैं कि जिस आर्कीटेक्ट-इंजीनियर ने यह पुल डिज़ाइन किया था उसका दावा था कि पुल का डिजाइन आदि इतना 'परफ़ेक्ट' है कि कोई उसमें किसी तरह का खोट नहीं निकाल सकता। यानी आर्कीटेक्ट महोदय अपनी पीठ बार-बार ठोक रहे थे और फूलकर इतने कुप्पा हो गए थे कि बस एक छोटी-सी पिन की जरूरत थी उनकी हवा निकालने के लिए। यह काम किया एक बच्चे ने। वह अपनी माँ की उँगली पकड़े पुल पार कर रहा था। उसने मुँह खोले, दहाड़ते हुए शेर को देखा और माँ से कहा - "देखो-देखो अम्मा, शेर के मुँह में तो जबान नहीं है, कहते हैं, बच्चे द्वारा यह सामान्य गलती निकाले जाने पर आर्कीटेक्ट महोदय ने पुल से कूदकर दूना में खुदकुशी कर ली थी।
वैसे दूना जानें भी खूब लेती है। हंगरी में आत्महत्या की दर काफी ऊँची है। क्यों हैं? यह तो कोई समाजशास्त्री ही बता सकता है जिनकी यहाँ कमी नहीं है लेकिन दुर्भाग्य से मैं नहीं हूँ। तो खैर, पुलों पर से दूना में कूदकर जान देना यहाँ खुदकुशी करने का प्रचलित तरीका है। दूना पर बने एक पुल 'मारग्रेट पुल' पर हंगेरियन कवि यार्नोश अरन्य (१८१७-१८८२) की प्रसिद्ध कविता 'पुल का उद्घाटन' का यही विषय है। जिन लोगों ने दूना में डूबकर आत्महत्याएँ कर ली थीं वे पुल पर वापस आ जाते हैं।

कभी-कभी आत्महत्या करने वाले तमाशा भी कर देते हैं। एक अन्य पुल जिसे 'फ्रीडम ब्रिज' कहते हैं, उसके ऊपर आसनी से चढ़ा जा सकता है। कुछ आत्महत्या करने वाले ऊपर चढ़ जाते हैं। ऊपर पहुँचकर हिम्मत छूट जाती है। न तो कूद कर आत्महत्या कर पाते हैं और न उतर पाते हैं। सिर्फ चीख़ने लगते हैं। तब फायर ब्रिगेड आती है और अच्छा-खासा तमाशा हो जाता है। मज़ेदार बात यह है कि यहाँ के कानून में आत्महत्या जुर्म नहीं हैं।

खैर, तो बात हो रही थी दूना की। अगर मैं कवि होता, जैसे कि तुम हो, तो कह सकता था कि दूना शहर की प्रेमिका है जो उसकी गोद में इठलाती रहती है, मचलती रहती है, कभी रूठती और मनती है और प्रेमी उसे बहलाता रहता है। कभी प्रेमिका उसे सहलाती है और शहर उसकी आंखों में अपनी तस्वीर देखता है।

लेकिन मैं यह सब नहीं लिख सकता, पर 'दूना प्रेमिका और शहर प्रेमी' पर याद आया कि दिल्ली में किसी ने मुझसे पूछा था कि तुम्हें बुदापैश्त के सामाजिक जीवन में या लोगों के व्यवहार में क्या ऐसा लगा जो पसंद आया। पसंद तो पता नहीं क्या-क्या आया लेकिन मैंने बताया कि मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया कि सार्वजनिक स्थानों, बसों, ट्रामों, मेट्रो और ट्रालियों वगैरा में जब प्रेमी और प्रेमिकाएँ साथ-साथ जाते दिखाई देते हैं तो आमतौर से प्रेमिकाएँ अपने प्रेमियों की अतिरिक्त चिंता करती या प्रेम जताती दिखाई पड़ती हैं।

मान लो कि एक लड़का और लड़की बस में साथ बैठे हैं तो तुम देखोगे कि लड़की लड़के की तरफ प्यार से देख रही है, चूम रही है, उसके बालों पर हाथ फेर रही है, उसके कपड़े ठीक कर रही है और लड़का बाहर देख रहा है। हमारे यहाँ इसका बिल्कुल उल्टा है। कारण दो समाजों के बीच जो अंतर हैं, वही हैं।

हंगेरियन लड़कियाँ कितनी सुंदर होती हैं, तुम देख चुके हो। तुमने कहा भी था कि पश्चिमी यूरोप में लड़कियां आमतौर पर 'अनएप्रोचेबल' लगती हैं जबकि हंगेरियन लड़कियों को देखकर ऐसा नहीं लगता। हंगेरियन लड़कियों की सुंदरता का राज मुझे यह बताया गया कि हंगेरियन लोग मूलत: एशियाई हैं। दसवीं शताब्दी में ये लोग मध्य एशिया में कहीं से यहाँ आए थे। बर्बर और घुमक्कड़ किस्म के लोग थे। एक जमाना था कि पश्चिमी यूरोप के चर्चों में ये प्रार्थनाएँ होती थीं कि ईश्वर, तू हमें हंगेरियन (हून) लोगों के तीरों से बचा। वह जमाना बीत गया। ये सब अपने बादशाह इश्तवान (९७०-१०३८) के ईसाई होने के बाद ईसाई हो गए। फिर यह देश तुर्कों के अधिकार में आ गए। फिर हब्सवुर्ग साम्राज्य का हिस्सा बन गया। तो कहने का मतलब यह है कि एशियाई और यूरोपीय सम्मिश्रण हंगेरियन जाति की विशेषता बन गया। यह तो सब ही जानते हैं कि जब दो रंग मिलते हैं तभी अच्छा रंग बनता है। यही सम्मिश्रण इनके व्यवहार और जीवन में भी दिखाई देता है। शादी करना, घर बसाना, बच्चे पैदा करना आधुनिक से आधुनिक लड़की का स्वप्न होता है। इसके साथ-साथ पश्चिमी संस्कृति की उन्मुक्तता भी काफी है लेकिन पारिवारिक रिश्ते पश्चिमी यूरोप और अमेरिका के मुकाबले यहाँ ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।

लेकिन प्यारे, हंगेरियन लड़कियों या औरतों की जिंद़गी बाहर से देखने में जितनी मुक्त और आकर्षक दिखाई देती है उतनी है नहीं। यहाँ लोग कहते हैं, हंगेरियन औरत का जीवन युवावस्था में प्रेम (आमतौर से कई) फिर शादी, एक या दो बच्चे और फिर तलाक और फिर पूरा एकाकी जीवन। यानी उम्र बढ़ने के कारण प्रेमी भी नहीं मिल पाता। पति तो पहले ही अलग हो चुके हैं, बच्चे भी अपना-अपना रास्ता नापते हैं, अब बचती है ढलती उम्र और अकेलापन। एक मित्र ने हंगेरियन औरतों पर एक लतीफा सुनाया। अगर तुम अट्ठारह-बीस साल की लड़की से कहो कि उसके लायक तुम किसी लड़के को जानते हो तो पहला सवाल यह करेगी कि देखने में कैसा है? अगर तुम यही बात पच्चीस-तीस साल की लड़की से करो तो पूछेगी कि उसके पास पैसा कितना है और अगर यही तुम चालीस साल की औरत से कहोगे तो कहेगी, कहाँ है?

यहाँ का समाज भी एक तरह से पुरूष प्रधान समाज है। अभी हाल में ही किसी हंगेरियन मित्र ने कहा कि उनके देश में हाल-फिलहाल एक महिला राजदूत बन गई है। फिर यह पूछा कि क्या भारत में औरतें इस तरह के पदों तक पहुँच पाती हैं?

खोजबीन करने तथा महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर कुछ पढ़ने का बाद यह स्पष्ट हुआ कि महिलाओं को इस देश में आमतौर से महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद आदि नहीं मिल पाते। उन्हें छोटे-मोटे काम ही दिए जाते हैं। घरेलू हिंसा - आकाशवाणी की भाषा में गृह-कलह की घटनाएँ भी घटती रहती हैं। औरतों और मर्दों के बीच फर्क को यहाँ का एक मुहावरा दिलचस्प तरीके से सामने लाता है। मुहावरा है - 'शैतान से थोड़ा ही कम सही लेकिन है तो आदमी।' तो जनाबे शैतान यहाँ भी दनदना रहे हैं। पिछली सरकार ने जनाबे शैतान के काम को सरल और वैधानिक बना दिया है। वेश्यावृत्ति और समलैंगिक संबंध अब यहाँ कानूनी तौर पर अपराध नहीं हैं। सेक्स की दुकानों और टॉपलेस बारों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। रात में यहाँ का रेडलाइट एरिया नियॉन लाइटों से लिखे सेक्स और टॉपलेस के बोऱ्डों से जगमगाता रहता है। लेकिन अभी सेक्स यहाँ वैसा उद्योग नहीं बन सका है जैसा पेरिस में हैं।

बुदापैश्त एक माने में रात का शहर है। जब तुम आए थे तो सर्दियों की वजह से रातें ठंडी थीं। अगर गर्मियों में आओ तो देख सकते हो कि दूना के दोनों तरफ की इमारतें - खासतौर पर बुदा पहाड़ पर बने चर्च और महलों की जगमगाती छवि कुछ ऐसा आभास देती है जैसे काले आसमान में एक चमकता मध्ययुगीन शहर उड़ता चला जा रहा हो। 'चेन ब्रिज' को पूरी तरह रौशन कर दिया जाता है जो दूना नदी के गले में पड़े हीरों के हार जैसा लगता है। रात में अगर दूना नदी के किनारे वाले सबसे ऊंचे पहाड़ 'गैलियत हिल' पर चढ़कर देखो तो हवा में उड़ता रहस्यमय मध्यकालीन शहर और दूना के गले में पड़ा हार और अधिक स्पष्ट दिखाई देता है।

'गैलियत हिल' का भी एक दिलचस्प किस्सा है। जब हंगेरियन ईसाई नहीं थे तो बहुत से ईसाई प्रचारक यहाँ उनके धर्म परिवर्तन के लिए आया करते थे। उन्हीं के गैलियत (९८०-१०४६) नाम के एक इतालवी प्रचारक भी थे। वह आए और उन्होंने बताया कि उनका भगवान शक्तिमान है, आदि-आदि और फिर कहा कि हंगेरियन लोगों को चाहिए कि उनके भगवान को मानें। हंगेरियनों ने उनसे कहा कि 'यदि तुम्हारा भगवान सब कुछ कर सकता है तो उसे मान लेंगे। लेकिन तुम्हें इसका प्रमाण देना होगा। हम लोग तुम्हें लकड़ी के एक बड़े से ड्रम में बंद कर के पहाड़ के ऊपर से लुढ़काएंगे, तुम्हारा ईश्वर यदि सब कुछ कर सकता है तो तुम्हें बचा लेगा और हम सब ईसाई हो जाएँगे। यदि तुम मर गए तो हम ईसाई नहीं होंगे, अब पता नहीं संत गैलियत इस परीक्षा के लिए तैयार हुए या नहीं। लेकिन उस जमाने के बर्बर हंगेरियन लोगों ने जैसा कहा था वैसा ही किया। परिणामस्वरूप संत गैलियत की मृत्यु हो गई। हंगेरियन ईसाई नहीं हुए लेकिन सम्राट के होने के बाद जब पूरा देश ईसाई हो गया तो उस पहाड़ का नाम 'गैलियत पहाड़' रख दिया गया जिस पर से संत को लुढ़काया गया था। आज उस पहाड़ पर उनकी एक विशाल प्रतिमा देखी जा सकती है जिस पर रात में रोशनी की जाती है और शहर के एक बड़े हिस्से से आप उसे देख सकते हैं।

रातें इसलिए भी सुंदर लगती हैं कि रात में देर तक सड़कों पर चहल-पहल रहती है। अकेली लड़कियां बड़ी बेफिक्री से टहलती-घूमती या आती-जाती दिखाई पड़ती है। जहाँ तक 'लॉ एंड आर्डर' का सवाल है, अब तक यानी पूँजीवाद के आगमन के समय भी बना हुआ है लेकिन यह पुराने समाजवादी दौर का ही प्रभाव है। अब अपराध बढ़ रहे हैं लेकिन वैसे नहीं, जैसे तुम्हारे देश में या मेरे देश में हैं। यहाँ अखबारों में छपता रहता है कि हंगेरी में 'अंडरवर्ल्ड' या अपराध जगत मजबूत हो रहा है लेकिन वे सब या तो रूसी लोग हैं या उक्रेनियन। कुछ अखबारों में मजाक और व्यंग्य जैसे स्वर में यह भी छपा कि 'देखिए, हम हंगेरियन लोग कैसे हैं! हमारे अपराधी तक अपने देश में अपराध जगत का निर्माण नहीं कर सकते, उसके लिए मुक्त बाजार है।'

हंगरी या बुदापैश्त में अपराधों पर समाजवादी शासन के दौरान जो सख्त रोक लगी थी उसने अपराधियों का सफ़ाया कर दिया था। अब आयात हो रहे हैं। हंगेरियन लोग, अगर तुम मुझसे कसम दिलाकर भी पूछोगे तो भी यही कहूँगा कि बहुत सीधे और शरीफ लोग हैं। आम हंगेरियन धोखा देना तक नहीं जानता। वे ईमानदार लोग हैं। कुछ 'रिजर्व' लग सकते हैं पर परिचय के बाद वह भाव खत्म हो जाता है। मुझे यहाँ एक बार बैंक में चार सौ डॉलर फालतू दे दिए गए। फिर वैसे ही फोन किया गया कि आपको चार सौ डॉलर फालतू दे दिए गए हैं। आप लौटा दीजिए।

सीधेपन के बावजूद हंगेरियन लोगों और यहाँ के समाज में मैंने पाया कि अच्छे खासे लोग 'एंटी सेमैटिक' हैं यहूदियों के खिलाफ एक दबी हुई भावना हैं। क्यों हैं? उसका पता लगाने की भी मैंने अपने तौर पर कोशिश की है। सुनो, कहना यह है कि यहूदी इतने संगठित हैं तथा एक-दूसरे का इतना ध्यान रखते हैं कि अक्सर फ़ैसले सही नहीं हो पाते। बताया जाता है कि यदि एक संगठन में यहूदी ऊंचे पदों पर होते हैं तो पूरे संगठन में यहूदियों को भर देते हैं। यह काम इतने निर्मम ढंग से किया जाता है कि दूसरे लोग अपमानित महसूस करते हैं। कहते हैं कि हंगेरियन मीडिया तथा बौद्धिक जगत पर भी यहूदियों का कब्जा है तथा उसमें किसी यहूदी के दाखिल होने और ख्याति पाने की संभावनाएँ जितनी अधिक हैं उतनी अन्य हंगेरियन लोगों की नहीं हैं।

यही कारण है कि मैंने यहाँ कुछ लोगों को यहूदियों का विरोध पाया। हद यह है कि कुछ इस हद तक आ गए हैं कि हंगेरियन यहूदियों को हंगरी से बाहर निकाल देने की बात कहते हैं। इस पर अन्य कुछ लोगों का कहना है कि यदि हंगरी से यहूदी बुद्धिजीवियों को निकाला गया तो यहाँ तो कोई बुद्धिजीवी न बचेगा। यहूदियों के खिलाफ ही नहीं बल्कि जिप्सियों, अरबों तथा चीनियों के विरूद्ध भी वातावरण बनाने का प्रयास हो रहा है। अंध-राष्ट्रवादी शक्तियाँ यहाँ उतनी तो नहीं जितनी कुछ अन्य देशों में, पर फिर भी उभरकर सामने आ रही हैं। राजनीति और समाज में उनकी आहटों को सुना जा सकता है।

भारतीय मूल के जिप्सियों या रोमा लोगों से मिलने तथा उन्हें देखने-समझने के मैंने कुछ प्रयत्न किए हैं जिसका हाल-अहवाल किसी अगले पत्र में लिखूँगा। अभी लिखने का मन नहीं है क्यों कि पड़ोस के किसी फ्लैट से कुत्ते की रोने की चीत्कार की आवाज़ें आ रही हैं। कोई अपने कुत्ते को फ्लैट में बंद करके चला गया है। कुत्ता बहुत जोर-जोर से रो रहा है। वैसे आमतौर पर यहाँ कुत्तों के साथ मानवीय या अति-मानवीय व्यवहार की परंपरा है।

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