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नगरनामा शिरडी

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साईं का साधना स्थल- शिरडी
--योगेश पांडे
 


महाराष्ट्र के छोटे से गाँव शिरडी के बीचो बीच स्थित साई बाबा का साधना क्षेत्र और समाधि मंदिर श्रद्धा का केन्द्र बना हज़ारों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। भक्तों की बढ़ती भीड़ और मेले में लोग इस विश्वास से शामिल होते हैं कि समाधि मंदिर में माथा टेकने से मुँह माँगी मुरादें पूरी होती हैं।

शिरडी माझे पंडरपुर नाम से पावन तीर्थ शिरडी आज विश्व विख्यात हो चुका है। इस धरती की धूलि का कण कण अति दिव्य अनुभव का साक्षी है। संतों की पावन धरती महाराष्ट्र का जिला अहमदनगर। तालुका कोपरगाँव का छोटा सा गाँव शिरडी कोलहल भरे क्षणों में बारहों मास आनंदमयी भक्ति के लहराले सागर में बदल चुका है। समाधि मंदिर गुरु स्थान, बावड़ी द्वारकामाई, परायण कक्ष, प्रसादालय, दृष्टि जिस ओर भी घूमती है, साईंभक्तों का उमड़ता पारावार दीखता है। परिसर के समीप पहुँचते ही विलक्षण अनुभूति होती है। जिसे केवल वही प्राप्त कर पाता है जो यहाँ तक आ सका। हर क्षण होता है श्रद्धा और सबूरीमय शिरडी का। काकड़ आरती से लेकर शेजारती तक प्रातःकालीन और रात्रि आरती प्रत्येक क्षण अति दिव्य आनंद के स्रोत में डूबे क्षण हैं।

आओ साईं पधारो

19वीं सदी के अंतिम चरण में आओ साईं पधारो कहा था खंडोबा मंदिर महालसापति ने और उस फ़कीर का अभिनंदन किया था जो एक बारात के साथ शिरडी आया था। बारात लौट गई थी किंतु फकीर वहीं शिरडी में रुक गया और दीनों पर प्रेम की वर्षा करने वाले उस साधारण से दिखने वाले फ़कीर ने वर्षों तक अपने दैवी चमत्कारों की आभा से यह संकेत किया था कि वह प्रकाश कोई साधारण प्रकाश न था अपितु यह तो वह दिव्य प्रकाश था जो संपूर्ण जड़ चेतन में व्याप्त है। असंख्य रूप है समाधिलीन उस शक्ति के जो कभी शिरडी स्थित नीम के पेड़ से, कभी अखंड धूनी से, कभी द्वारकमयी की दीपमालिका से और कभी समाधि मंदिर की करुणामयी दृष्टि से सबको खींचने वाली दिव्य मूर्ति से सारे वातास को थरथरा देती है। खींचती है अपनी ओर उन्माद मन प्राण दौड़ते हैं उसी ओर एक रहस्यमय अस्तित्व व्यक्त और अव्यक्त के बीच झीना किंतु अविरल अखंड तादात्म्य। जीवन के सारे अहं को क्षार कर जीवन की सार्थकता का सार है यह पावन धाम शिरडी
। जिसकी छाया में आकर सारे संताप शांत हो जाते हैं।

आरती की बेला

ब्रह्म महूरत काकड़ आरती की बेला और साईं के मंगल स्नान का पुण्य क्षण आधी रात से ही भक्तों की भीड़ दूर दूर तक पंक्ति बद्ध प्रतीक्षारत है। द्वार खुलने की आतुर प्रत्याशा में हाथों में गुलाब के पुष्प और गुलाब जल है, आराध्य के मंगल स्नान के लिए समर्पण को, मंदिर के द्वार बंद हैं अंतर्मन आकुल है कब द्वार खुलेंगे और भोर की पहली चेतना के साथ महान चेतन का साक्षात्कार होगा। ठीक पाँच बजे मंदिर खुलने की प्रक्रिया के साथ उठा उठा सकल जना की ध्वनि के साथ सारे वायुमंडल को सिहरा देने वाली भूपाली की गूँज फैल जाती है। प्रतीक्षा का बाँध टूट पड़ने को है। प्रथम दर्शन पाने की अभिलाषा में। बिलकुल आगे जाने की व्याकुलता से भरे भक्त दौड़ते हैं कि कहीं बाहर न रह जाएँ जो भीतर जा पहुँचे हैं भाव विभोर हैं। समाधि मंदिर के बाहर जो जहाँ हैं वहीं रुक गए हैं। कोई पिछले द्वार की सीढ़ियों पर खड़े हैं और बंद दरवाज़ों की ओट से ही दर्शन पा रहे हैं। कुछ भक्तगण यत्र तत्र अनेक स्थानों पर लगे दूरदर्शन के माध्यम से ही उस भव्य दृश्य को देख तृप्त हैं। वर्षानुवर्षों से भोर के पहले क्षण से आधी रात्रि तक अनेक दृश्यों के ऐसे ही क्रम हैं किंतु मंगल स्नान के पुण्य क्षण निराले ही हैं।

साधना का अंतिम सोपान

शिरडी का समाधि मंदिर बाबा की दैहिक साधना का अंतिम सोपान है जहाँ साईं के सगुण साकार रूप की दिव्य छवि अंकित है। समाधि मंदिर से लगी द्वारकामयी मस्जिद है। बाबा के जीवन काल की जागृत प्रतीक। यहाँ गोधूलि बेला में झिलमिलाती दीप शिखाएँ मानो प्रतिदिन बाबा की स्मृति में दीपावली मनाती हैं। समाधि मंदिर के दाहिनी ओर गुरु स्थान है। यहीं वह नीम का पेड़ हैं जिसकी छाया तले उस दिव्य शक्ति ने जागृत स्वप्न सुषुप्ति और तुरीपावस्था से साक्षात्कार किया। द्वारकामाई के समीप ही बावड़ी है। जहाँ बाबा हर दूसरे दिन रात्रि विश्राम के लिए जाते थे। प्रति गुरुवार आज भी शिरडी में पालकी का भव्य दृश्य भक्त गणों को भाव विभोर कर देता है। शिरडी धन्य है उस दिव्य विभूति के अस्तित्व से जो महासमाधि में लीन होने के बाद भी वैसी ही साक्षात प्रतीत होती है जैसी साईंनाथ के जीवनकाल में थी। भक्तों की सुविधा के लिए संस्थान द्वारा यहाँ सुव्यवस्थित प्रबंधन हैं। अपार जन समूह को अनुशासित करने का क्रम हो या प्रसादालय में सहस्रों लोगों के भोजन की व्यवस्था हो और अथक दूर दूर से आने वालों के लिए ऐच्छिक आवास व्यवस्था का प्रसंग सभी कार्यों में मानो साईंनाथ ही अपने भक्तों की सहायता करते दीखते हैं।

परमधाम शिरडी श्री स्थान है। महाराष्ट्र की संत परंपरा का विलक्षण और दिव्यआनंद धरा धाम है यह। कलियुक के अवतार माने जाने वाले साईंनाथ का लीला क्षेत्र है शिरडी। अहं को जलती धूनी में लोबान की तरह जलाकर वातावरण में सुगंधि फैलाती यह शिरडी मन प्राणों को अत्यंत दिव्य स्पर्श से जगाती है। मनुष्य के रूप में परमात्मा तुम्हारे सामने है। तुम मेरा नाम लो मैं तुम्हारा नाम लूँगा जैसे वचन कहने वाले साईं नाथ की शिरडी जाति धर्म वर्ग भेद से परे अनन्य प्रेम की भूमि है जिसकी धूलि स्पर्श से मनुष्य जन्म सार्थक हो जाता है।

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