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संस्मरण

रात के १ बजे विमान पारामारिबो, सूरीनाम की राजधानी के हवाई पट्टी पर उतरा। लैंडिंग बुरी नहीं थीं। नन्हा-सा देश जो अभी विकास की ओर उन्मुख हो रहा था, स्वागत करता हुआ लगा। झमाझम बारिश, और लहलहाती हरियाली में सोंधेपन की महक! गर्मी अपनी शि त पर! साथ में ठंडी फुहार। मस्ताने वाला समां! सामने सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का विशाल बैनर हिन्दी में लगा हुआ था। देखकर रोमांच हो आया। भारत से बाहर सात समंदर पार भारतवंशियों ने अपनी भाषा और संस्कृति की थाती किस तरह बचा कर रखी है। सारा समां भारतीय परिवेश का! 'जै श्री राम' और 'जै श्री कृष्ण' जैसे रसभरे मध्ययुगीन अभिवादनों से आवभगत हो रहा था हमारा। सभी बड़ी चहक के साथ हिन्दी और भोजपुरी बोल रहे थे।

हमारे अतिरिक्त सात-आठ और लोग हवाई जहाज से उतरे जिनके हाव भाव से लग रहा था कि वह लोग भी 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' में सम्मिलित होने आए हैं। सभी अपने आप में व्यस्त थे। परिचय का समय नहीं था। दूर-भाष पर सक्सेना जी की बात भारतीय उच्चायुक्त महामहिम श्री ओम प्रकाश जी से हो चुकी थी। उन्होंने हमें आश्वासन दिया था कि हमें श्री कृष्ण मंदिर के आवास पर हाइकमीशन की गाड़ी पहुँचा देगी। हम आश्वस्त थे। परिमारिबों का एयरपोर्ट शहर से ४० मील दूर है।

सुबह के तीन बज रहे थे। हमें अपने मेज़बान की फिक्र थी। वह हमारी प्रतीक्षा में बैठे रात काली कर रहे होंगे। चार बजे सुबह हम श्री कृष्ण मंदिर के आवास पर पहुँचे। पंडित श्री हलधर मथुराप्रसाद जी तथा उनके पुत्र श्री कृष्ण मथुराप्रसाद जी सहन में खड़े हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। अभी भी बारिश हो रही थी। सड़क पर पानी के चहबच्चे चमक रहे थे।

पंडित जी के भव्य एवं विनम्र व्यक्तित्व तथा विशाल मंदिर और भवन से हम लोग अत्यंत प्रभावित हुए। लग रहा था उनका यह विशाल आवास रामायण और कल्याण में चित्रित महलों की भव्य परिकल्पना है। द्वार पर ही एक ओर बृहत कुंड में विशालकाय शिवलिंग के दर्शन हुए। शिवलिंग के बाई ओर कुंजन-बन में राधा-कृष्ण की मनोरम जोड़ी सुंदर वैजंती माला पहने दर्शन दे रही थी।

सुंदर विशाल सहन में बैठे हम लोग थोड़ी देर पंडित जी से बातें करते रहे। शीघ्र ही हमारे चेहरे पर आए थकान को देख कर पंडित जी ने हमें हमारे रहने का स्थान दिखाया। इतना सुंदर भवन! इतनी कुशल व्यवस्था। हमारी सुविधा की हर चीज़ कमरे में रखी हुई थी। जिनकी सेवा हमें करनी चाहिए वे हमारी सेवा कर रहे हैं। हमारे मन में बार-बार यह विचार आ रहा था। पंडित जी संभवत: हमारे मन में उठ रहे विचारों को समझ गए, बोले, 'अतिथि देवो भव:, आप लोगन हमरे लिए ईश्वर स्वरूप हैं। आप संकोच तनिकौ नहि करै।' पंडित जी से बातें करते हुए हमें एक पल भी ऐसा नहीं लगा कि हम कभी अपरिचित थे। उनका स्नेह ही ऐसा था।

बातों-बातों में पता चला पंडित जी ने अब अवकाश ग्रहण कर लिया है। अब उनके पुत्र श्री कृष्ण मथुराप्रसाद जी पंडिताई करते हैं। दूसरे दिन हमें पंडित जी का प्रवचन सुनने का विशेष सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रवचन से पूर्व सूरीनामी बाल-गोपालों ने भारतीय पारंपारिक परिधान में फूल, अक्षत, रोली और आरती से भगवान की अभ्यर्थना की। मंदिर में असंख्य द्वीप जल रहे थे। मदिर-मदिर संगीत बज रहा था। धूप बत्ती की सुगंध आध्यात्मिक वातावरण बना रहा थी। बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन प्रेममग्न तन्मय बैठे हारमोनियम और सिन्थेसाइज़र के ऑर्केस्ट्रा पर भजन कीर्तन और प्रवचन सुन रहे थे। हम भी उनके साथ भाव विभोर हो उठे। हमारे साथ भारत से आए कई अतिथि भी कुर्सियों पर विराजमान थे। भारत से आए एस.एन.गोस्वामी जी ने गीता-प्रवचन किया। सूरीनाम की जनता गदगद हो उठी। भारत से आया विद्वान! अद्भुत! गोस्वामी जी ने उस दिन वस्तुत: गुरूदेव जैसे वस्त्र धारण किए हुए थे। अद्भुत विद्वत्तापूर्ण था उनका प्रवचन। गोस्वामी जी स्वयं चकित थे अपने प्रवचन पर। संभवत: आस्था, श्रद्धा और विश्वास का अपना अलग संसार होता है।

जलपान पर बात-चीत के मध्य पंडित जी ने हमें बताया वह उच्च कुल के सनातन-धर्मी कर्म-कांडी पंडित हैं। उन्हों ने कई शास्त्रार्थ भी जीते हैं। सूरीनाम में कर्म-काण्ड का बहुत महत्त्व है। नीचे हॉल के बगल में पंडित जी की पंडिताई की दुकान हैं, उसमें जन्म से लेकर मरण तक के सारे संस्कारों के लिए पूजा-हवन आदि के सामान और पुस्तकें करीने से सजी हुई हैं। पंडित जी ने स्वयं कर्मकाण्ड और भजन की असंख्य पुस्तकें लिख रखी है। पुस्तकें भारत में ही छपती हैं।

सूरीनाम मंदिरों का देश हैं। धर्म का बहुत महत्व है। लोगों ने अपने घरों में भी देवी-देवताओं के मंदिर बना रखे हैं। हर घर के बाहर बाँस के डंडों पर झंडे लगे हुए हैं। जिसके घर जितने झंडे लगे हैं उसने उतने ही यज्ञ और पूजा कराए हैं। झंडों के लाल, पीले, नीले रंग बताते हैं, परिवार किस देवता के उपासक हैं।

पंडित जी शाम को अपने बैठक में रखे हुए अमेरिकन गद्दीदार झूले पर हमें अपने पास बैठा लेते हैं और कैरेबियन फलों को हमें स्नेह से खिलाते हुए बताते हैं,-
'अब समय बदल गइल बाय है आज के लरकिन आधुनिक होय गये हैं। अब इहाँ प्रेम विवाह होत है। जाति और नस्ल के भेदभाव खतम होई गइल। औरतन ज्यादा पढ़त-लिखत हैं उहैं ज्यादा काम-काज़ करत हइन। लरिका लोगन के बाहर जाए के और घूमन का सउक है। लोग बच्चन के पढ़न के खातिर हालैण्ड भेजत हैं। ज्यादातर लड़कन हुएं रह जात हैं। भारत की तरह इहाँ भी ब्रेन ड्रेन होई रहा है। खेती बाड़ी में लोगन के रूचि नाही है।' उनके चेहरे पर चिंता उभर आती थी।

पारामारिबो, सूरीनाम की राजधानी हरा-भरा उत्तर प्रदेश का कोई छोटा शहर जैसा लगता है। वहीं, जैसे पब्लिक प्रापर्टी की देख-रेख में किसी को कोई रूचि नहीं हैं, न सरकार को न जनता को। सूरीनाम की उपजाऊ मिट्टी का कोई उपयोग नहीं हो रहा। लोग खेती-बाड़ी की ओर से उदासीन हैं। अंदर गाँवों में नशीले पदार्थों की खेती होती है। सूरीनाम नदी बहुत बड़ी है, सारे सूरीनाम में बहती हैं। खूब चौड़ा पाट है उसका। बारिश खूब होती है। आम के वृक्ष आम से लदे हैं। सूरीनामी आम नहीं खाता है। हमें खाने में किसी भी दिन आम या आमरस नहीं मिला। पेड़ों पर लटकते गुदाज़ आम मुझे ललचाते हैं। मैं अक्सर शाम को पेड़ पर लटकते आमों को तोड़ लाती हूँ। आम स्वादिष्ट रसीले और मीठे हैं। फिर यहाँ लोग फलों का राजा आम क्यों नहीं खाते मेरे मन में सवाल उठता है?

शाम को पंडित जी और उनके बेटे पंडित कृष्ण जी हमें पारामरिबों के सभी दर्शनीय स्थलों से परिचित कराते हैं। शहर, बाज़ार सूरीनाम नदी, उस पर बना अद्वितीय अर्ध गोलाकार पुल और वह घाट भी दिखाया जहाँ पहली बार 'माई-बाप' नाव से इस अनजान देश में उतरे थे। उस तट को सूरीनामी पवित्र मानते हैं और अब वहाँ 'माई-बाप' यानी प्रथम स्त्री-पुरूष की मूर्ति स्थापित की गई है।

माई-बाप' की मूर्ति

एक दिन मैंने पंडित जी से पूछा,
'आप भारत जाते होंगे? कैसा लगता है वहाँ? पंडित जी के चेहरे पर हल्की सी उदासी झलकी, पर मुस्करा कर बोले,
'अच्छा लगता है, हमरे पूर्वजन का देस है। हमको भारत से बहुत लगाव है। पर हुँआ भी बहुत बदलाव है। हम उनकी ही प्रजाति हैं पर हम लोगन का हुआं कोई पूछत नाहीं। ई सम्मेलन का आयोजन होई रहा है बाकि हमलोगन के केहूँ पूछत नाही है। बस थोरे राजनीतिक पहुँचवाले लोगन इ सम्मेलन से जुरे हैं। वैइसे सच पूछा जाए तो हम लोगन बहुत काम कर सकत रहें। लोगन का अपने घर ठहराइ सकत रहें। सूरीनामी लोग मिल कै ढ़ाई तीन सौ लोगन को खाना नि:शुल्क खवाय सकत है। हमरे 'अपना घर' संस्था में ही २५-३० लोग ठहर सकत हैं। अइसई अउरो संगठन हैं। बकि हम लोगन से कोहु कछु मदद नाही चाहत हैं।' पंडित जी किंचित असंतोष से बात पूरी करते हैं। ऐसा ही होता है जब किसी कार्य को सुगठित रूप से एक्सप्लोर करते हुए नहीं किया जाता है।

सूरीनाम में अब तेज़ी से गहमा-गहमी और चहल-पहल शुरू हो गई है सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के कार्यक्रम तेजी से आकार लेने लगे हैं जगह-जगह बैनर और पोस्टर कार्यक्रम की सूचना दे रहे थे स्थानीय लोगों में विश्व हिन्दी सम्मेलन की सुगबुगाहट तो उतनी नहीं हैं पर सूरीनामी सरकार ने जो ५ जून को राष्ट्रीय छुट्टी का दिन घोषित कर दिया है इसलिए पूरा सूरीनाम १३० वर्ष पूर्व आए अपने पूर्वजों के दिन की वार्षिकी को धूम-धाम से मनाना चाहता है।

आज ४ जून है हाई कमीशन में बड़ी सरगर्मी है खूब ज़ोर-शोर से तैयारियाँ हो रही है भाग-दौड़, गहमा-गहमी है गाड़ियाँ हाइ-कमीशन से एयरपोर्ट और एयरपोर्ट से होटलों के चक्कर लगा रही है जत्थे के जत्थे अतिथि आ रहे है विदेश मंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी भी अपने शिष्ट मंडल के साथ आ चुके हैं तकरीबन सभी बड़े होटल भर चुके हैं पंडित जी के पास राष्ट्रपति के महल से निमंत्रण आया है किन्तु सम्मेलन के आयोजकों ने उन्हें निमंत्रण नहीं भेजा है पंडित जी कुछ कहते नहीं हैं पर उनके स्वाभिमान पर चोट लगी है।

राष्ट्रपति-महल जाने के लिए पंडित जी और उनके पुत्र अपने पारंपारिक परिधान धारण करते हैं उनका भव्य व्यक्तित्व महाभारत-टी.वी. सीरियल के राजदरबार से आए कुलगुरू जैसा लगता है हम पल भर को उन्हें देखते ही रह जाते हैं हम पंडित जी के साथ, तोरण, बिजली के लट्टुओं, रंग बिरंगे फूलों और झंडों से सजे राष्ट्रपति-महल के प्रमुख द्वार पर पहुँचते हैं।

फूलों, लताओं, आम और प्रहरी से खड़े खजूल और पम के बीच बना राष्ट्रपति का भव्य महल किसी कहानी किस्से में पढ़े परी महल से कम नहीं लग रहा है चारों तरफ रोशनी का सैलाब बिखरा हुआ है आसमान में खिले चाँद-तारे और नीचे पानी के फौहारे और मखमली हरी घास परिवेश को रोमानी बना रहे हैं रंगीन और आकर्षक समा है महल में पारामारिबो के सभी महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व तथा भारत एवं विदेशों से आए राज़दूत, शिष्टमंडल और अतिथियों का जमघट लग रहा है लोग जोड़ों और टोलियों में आ रहे हैं अतिथियों ने मन पसंद आकर्षक वस्त्राभूषण धारण कर रखे हैं।

राष्ट्रपति श्री वेनेत्शियान, अपनी पत्नी और अंगरक्षकों के साथ हॉल में खड़े अतिथियों से हाथ मिलाते हुए अत्यंत विनम्र और सौजन्य से हर किसी से कुछ-न-कुछ मनोरंजक बात कर सिर हिलाते हुए हँस देते अतिथि निहाल हो जाते, थोड़ी ही देर में स्वागत समारोह शुरू होता है ऱाष्ट्रपति श्री वेनेत्शियान के साथ भारत के विदेश मंत्री श्री दिग्विजय सिंह के नैतृत्व में आए भारतीय शिष्टमंडल एवं विश्व भर से पधारे हिन्दी सेवियों का भावभीना स्वागत सूरिनाम के राष्ट्र-गान से होता है राष्ट्रपति भावपूर्ण शब्दों में सूरीनाम की धरती पर पहुँचे भारतीयों का भावात्मक विवरण देते हुए सूरीनाम और भारत के प्रगाढ़ संबंधों का उल्लेख करते हैं तथा सफल विश्व हिन्दी सम्मेलन के लिए शुभकामनाएँ देते हुए अतिथियों को स्वादिष्ट भोजन एवं मदिरा के लिए निमंत्रण देते हैं।

पाँच जून की सुबह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है पारामारिबो के सूरीनाम नदी का तट मीलों दूर तक तरह तरह के भारतीय परिधान पहने हज़ारो सूरीनामी और सातवें विश्व सम्मेलन के प्रतिनिधियों से खचाखच भरा हुआ है प्रथम प्रवासी भारतीय, युवा पती-पत्नी की सजीव मूर्ति पर आज राष्ट्रपति तथा भारत के विदेश-मंत्री बाजे-गाजे के साथ माल्यार्पण करेंगे 'लालारूख जहाज' के आगमन की वार्षिकी जो है सूरीनामी भी अत्यंत आनंद और उत्साह से इस पर्व को मना रहे हैं सूरीनामी सरकार ने ५ जून को 'राष्ट्रीय उत्सव दिवस' की संज्ञा देकर देश में छुट्टी की घोषणा कर दी है युवा, बालक, वृद्ध सब उत्सव के अनुकूल अपने पूर्वजों द्वारा पहनी गई वेशभूषा धारण कर १३० वर्ष पूर्व के उस यादगार दिन को सजीव करने का यत्न कर रहे हैं शोभा यात्रा नाव और सड़क दोनों पर निकल रही है उधर ढोल, शंख, घंटी और राम धुन के साथ सड़क पर लोग झांकियाँ और जुलूस निकाल रहे हैं इधर ९१ वर्षीय श्रीमती इतवारिया रामदीन धीरे-धीरे जुलूस के साथ 'कलकत्ता से आइल जहाज' पवनिया धीरे बहो, नाना-नानी बैठल हमार, पवनिया धीरे बहो, सूरीनाम पहुँचल जहाज, पवनिया धीरे बहो' गातें हुए माई बाप के मूर्ति को पुष्प-हार चढ़ा कर आरती उतारती है देखती हूँ, लोगों की आंखें नम हो रही हैं लोग भावुक हो रहे हैं अरे! यह क्या चित्रा मुद्गल और मृदुला सिन्हा, और कई और भारत से आई महिला और पुरूष साहित्यकार भी उनके साथ सुर में सुर मिला कर गाते हुए जुलूस के साथ चल रहे हैं पद्मेश, अशोक चक्रधर, कमल किशोर गोयंका, सुरेश ऋतुपर्ण जी तथा अन्य लोग फोटो खींचने में व्यस्त हैं भारतीय और सूरीनाम के प्रेस रिपोर्टर इधर-उधर दौड़-भाग रहे हैं सबके कान राष्ट्रपति के संदेश सुनने के उत्सुक हैं भव्य, आकर्षक, आनंदमय और महत्त्वपूर्ण उत्सव जो है।

कतार के कतार स्टाल और दुकाने सजी हुई है खाना-पीना भी चल रहा है लोग यहाँ-वहाँ झुंड़ों में खड़े बतिया रहे हैं कुछ लोग ज़मीन पर दरी बिछा कर परिवार के साथ बैठ पिकनिक का आनंद ले रहे हैं मनचले अपनी प्रेमिकाओं का प्रेम दुलार कर रहे हैं कुछ लोगों ने बच्चों को कंधे पर बैठा लिया है सज़ावटी 'लाला रूख' नाव से उतरते माई-बाप और उनके साथ आए पुरातन परिधान में गठरी-मोटरी, तुलसी, गंगाजली कड़ा-छड़ा, धोती-कुर्ता पहने, बाजे-गाजे के साथ गीत गाते सूरीनामी पूर्वज का स्वांग भरे लोग आकर्षण का केन्द्र बन जाते हैं जैसे बिजली चमकती हो न जाने कितने कैमरे क्लिक कर उठते हैं तालियों के तुमुल ध्वनि से वातावरण गूँज उठता है।

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