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निबंध

फुटबॉल की दुनिया में
—अर्बुदा ओहरी


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खेलों की बात हो तो लोकप्रिय खेल फुटबॉल की बात निकलना लाज़मी है और अगर फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप की बात करें तो यकीन के साथ कह सकते हैं कि इन दिनों फुटबॉल अपना करतब हर जगह दिखा रहा है फिर चाहे बच्चों के खिलौने हों या बाज़ार और मीड़िया, हर जगह फुटबॉल उछलता ही नज़र आ रहा है। फुटबॉल का तो धमाल इतना ज़बरदस्त है कि आजकल बच्चे बूढ़े सभी के दिमाग़ पर वर्ल्ड कप का फितूर छाया हुआ है। फुटबॉल खिलाड़ी इन दिनों "हीरो" की तरह छाए हुए हैं और हों भी क्यों नहीं किसी और खेल आयोजन ने विश्व की लोकप्रियता को इतना नहीं खींचा जितना कि फीफा वर्ल्ड कप ने।

वैसे तो फुटबॉल को अठ्ठारहवीं शताब्दी से पहले से ही खेला जा रहा है पर पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच १८७२ में स्कौटलैंड और इंग्लैंड के बीच खेला गया। उस समय फुटबॉल को ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड के बाहर यदा–कदा ही खेला जाता था। १९०८ में फुटबॉल को ग्रीष्म ओलंपिक में कार्यकारी रूप से प्रतियोगिता के रूप में मान्यता मिल ही गई और फुटबॉल एसोसिएशन द्वारा इसका आयोजन किया जाने लगा। १९३० में युरूगए में पहली फुटबॉल प्रतियोगिता आयोजित हुई जिसे फीफा "फेडरेशन इंटरनेशनल फुटबॉल एसोसिएशन" ने आयोजित किया था। तब से लेकर आज तक फीफा की लोकप्रियता और गौरव निरंतर बढ़ा ही है। वर्ल्ड चैंपियन बनाने के लिए विश्व की श्रेष्ठ फुटबॉल टीमों की साथ में प्रतियोगिता कराने का विचार फीफा के अध्यक्ष 'जूल्स राइमट' का था। इस बात का श्रेय देने के लिए वर्ल्ड कप ट्राफ़ी पर जूल्स राइमट का नाम भी खुदा हुआ होता है।

१९३० के बाद हर चार वर्ष बाद इस खेल का आयोजन किया जाने लगा। १९३४ में इटली को मेज़बानी करने का अवसर मिला और उसके चार साल बाद १९३८ में फ्रांस में इसका आयोजन हुआ। फिर द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो गया और इस दौरान फीफा वर्ल्ड कप आयोजन को बारह साल का लंबा अवकाश मिल गया। तब तक यह आयोजन क्रमशः यूरोप और अमेरिका में ही होता था पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मई १९९६ में कोरिया्रजापान को सन २००२ के आयोजन के लिए मेज़बानी करने का सौभाग्य मिल गया। युरूगए, इटली और फ्रांस के अलावा यह खेल ब्राज़ील, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, चीली, इंग्लैंड, मैक्सिको, वेस्ट जर्मनी, अर्जेन्टिना, स्पेन, कोरिया्रजापान में खेला जा चुका है। इस वर्ष यह आयोजन जर्मनी की ज़मीन पर हो रहा है।

फीफा वर्ल्ड कप जितना फुटबॉल प्रेमियों को आकर्षित करता है उतना ही चोरों को भी करता है। वर्ल्ड कप ट्राफ़ी के साथ भी कुछ दिलचस्प कहानियाँ जुड़ी हुई हैं और यदि फुटबॉल कप की बात हो तो उनका ज़िक्र होना तो स्वाभाविक है। जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था तब फीफा के इटली के उपाध्यक्ष, डा.ओटोरिनो बारासी, ने पूरे युद्ध के दौरान ट्राफ़ी को जूतों के एक डिब्बे में बंद करके अपने पलंग के नीचे छुपा कर रखा और ऐसा करके उन्होनें ट्राफ़ी को दुश्मनों के हाथ लगने से भी बचा लिया। १९६६ में लंदन में यह कप एक प्रदर्शन के दौरान आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गया तब सभी सकते में आ गए पर कुछ ही दिनों बाद 'पिकल' नामक एक कुत्ते ने दक्षिण लंदन में कहीं झाड़ियों के पीछे मिट्टी में इसे गड़ा हुआ पाया। इस घटना के बाद, १९८३ में, एक बार फिर रहस्यमय तरीके से कप चोरी हो गया और इस बार तो चोरों ने रियो डी जनेरियो में कप को पिघला कर हमेशा के लिए नष्ट कर दिया। ब्राज़ील तब तक तीन बार विजेता घोषित हो चुका था। १९७० में मेक्सिको में जब तीसरी बार ब्राज़ील ने कप जीता था तब उसे स्थाई तौर पर कप को रखने का गौरव भी प्राप्त हो गया। परंतु जब १९८३ में कप चोरी हो गया तब ब्राज़ील फुटबॉल एसोसिएशन ने मूल कप का प्रतिरूप बनाने का आदेश दे दिया।

मूल ट्राफ़ी क़रीब ३५ से.मी. लंबी थी और उसका वजन करीब ३.८ किलो था। वह ट्राफ़ी सोने और चाँदी की बनी हुई थी जबकि उसका आधार "लेपिस लाजुली" नामक मूल्यवान पत्थर से बना था। आधार के चारों तरफ़ सोने की एक–एक पतरी लगी हुई थी जिस पर ट्राफ़ी का नाम और साथ ही १९३० से १९७० तक ९ विजेता खिलाड़ियों के नाम खुदे हुए थे। वर्तमान ट्राफ़ी ३६ से.मी.लंबाई की है और क़रीब ४.९ किलो वजनी है। यह ट्राफ़ी मूल ट्राफ़ी से आकार में थोड़ी भिन्न है। इसके आधार पर भी विजेताओं के नाम जड़े हुए हैं और कहा जाता है कि इसके आधार पर २०३८ तक के वल्र्ड कप चैंपियनशिप के विजेताओं के नाम आ सकते हैं।

वर्ल्ड कप को अपना लक्ष्य बना कर सभी खिलाड़ी बेहतरीन प्रदर्शन के लिए बहुत मेहनत करते हैं। यही एक ऐसा खेल है जो आख़िरी मिनट तक बड़ा ही रोचक बना रहता है। खिलाड़ियों की चुस्ती और स्फूर्ति खेल के आख़िरी समय तक बरकरार रहती है। ९० मिनट के इस खेल के लिए सोचिए खिलाड़ी कितना परिश्रम करते हैं। इसी के संदर्भ में ब्रिटेन के बाथ विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ केन ब्रे अपनी किताब "हाऊ टू स्कोर : साइंस एंड द ब्युटिफुल गेम" में लिखते हैं कि 'सफल खिलाड़ी वही है जो बिना थके ९० मिनट तक खेल सके।' फुटबॉल खिलाड़ी को खेलते समय मैदान में बहुत भाग दौड़ करनी पड़ती है। पहली बार इसी विषय को लेकर १९७६ ब्रिटेन के लिवरपूल जान मूरिस विश्वविद्यालय में अध्ययन किया गया और यह निष्कर्ष निकाला कि फुटबॉल के खेल में सर्वाधिक मेहनत मिडफिल्डर को करनी पड़ती है। एक मिडफिल्डर ९० मिनट में ९.८ कि.मी. भाग लेता है जबकि एक स्ट्राइकर ८.४ कि.मी.और सेंटरबैक डिफेंडर ७.८ कि.मी.तक दौड़ता है। यह तो जानकर और भी आश्चर्य होगा कि गोलकीपर एक सीमित दायरे में ही हरकत कर सकता है पर फिर भी ९० मिनट में ४ कि.मी. भाग लेता है।

इतनी मेहनत वाला खेल है तभी तो लोकप्रिय भी है। अब तक की सर्वश्रेष्ठ टीम ब्राज़ील की मानी जाती है, ब्राज़ील अब तक पाँच बार वर्ल्ड कप जीत चुका है। ब्राज़ील के खिलाड़ियों के बारे में तो यहाँ तक कहा जाता है कि वे फुटबॉल को बड़े ही कलात्मक ढंग से खेलते हैं, वे मैदान में फुटबॉल के साथ नृत्य करते हैं और साथ ही साथ विपरीत टीम के खिलाड़ियों को भी अपने इशारे पर नचाते हैं। ऐसी आक्रामक टीम से इस बार भी कई अपेक्षाएँ हैं। दूसरे स्थान पर इटली और जर्मनी का नाम आता है जिन्होंने तीन बार फीफा वर्ल्ड कप में जीत हासिल की है। हंगरी ने १९५४ में वर्ल्ड कप के एक ही मैच में सबसे ज़्यादा २७ गोल करके अपना नाम दर्ज कराया। १९८२ में हंगरी ने ई आई साल्वेडोर को १०-१ के स्कोर से हराया जो कि गोल में सबसे ज़्यादा अंतर का रिकार्ड है और सिर्फ़ हंगरी ही ऐसी टीम है जिसने १० या इससे अधिक गोल एक वर्ल्ड कप में बनाए हैं।

यदि व्यक्तिगत रिकार्ड की बात करें तो सबसे पहले गर्ड मूलर का नाम आता है जिन्होंने १४ गोल के साथ विश्व कप के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है। पेले को १९५४ में वल्र्ड कप जीतने वाले सबसे कम उम्र खिलाड़ी के रूप में जाना जाता है जबकि सबसे ज़्यादा उम्र के खिलाड़ी का रिकार्ड कैमरून के रॉबर्टो रोजर मिल्ला का है, जिन्होंने १९७४ के विश्वकप में ४२ वर्ष की उम्र में खेला था। सबसे ज़्यादा बार विश्वकप में खेलने वाले हैं मैक्सिको के एंटोनियो कार्बाजल और पश्चिम जर्मनी के लोथार माथायस। इन दोनों ने पाँच-पाँच बार विश्व कप के खिलाड़ियों में अपना नाम दर्ज करवाया है। सबसे जल्दी गोल ठोंकने का रिकार्ड हाकन सुकूर का है जिन्होंने २००२ में तुर्की और दक्षिण कोरिया के मैच में ग्यारहवें सेकेंड में पहला गोल दाग कर यह रिकार्ड बनाया। इन रिकार्डों के अतिरिक्त १९८४ में दर्शकों ने भी एक नया रिकार्ड बनाया जब युनाइटेड स्टेट में सबसे ज़्यादा तादाद में लोगों ने मैच देखा। ऐसा अनुमान है कि लगभग ६८,९९० से ज़्यादा की दर से दर्शक प्रत्येक मैच में मौजूद रहे थे। इसीलिए कहा जाता है कि फीफा का हर आयोजन एक इतिहास बन जाता है।

इस वर्ष जर्मनी में चल रहे फीफा कप को जीतने के लिए सभी टीमों ने कड़ी मेहनत की है। जर्मनी में ९ जून से ९ जुलाई तक १२ स्थानों पर ६४ मैच खेले जा रहे हैं और इस बार ३२ टीमें इस प्र्रतिस्पर्धा में भाग ले रही हैं। कई खिलाड़ियों से भी इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है जैसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ फारवर्ड माने जाने वाले ब्राज़ील के खिलाड़ी रोनाल्डो, लिवरपूल मैन नाम से जाने जाने वाले इंग्लैंड के माईकल ओवन, फ्रांस के जादेन, स्पेन के गोल्डन ब्वाय यानि राऊल और पुर्तगाल के फिगो, ये कुछ ऐसे फुटबॉल खिलाड़ियों के नाम हैं जिन पर इस वर्ष सभी फुटबॉल प्रेमियों की नज़र टिकी हुई है। ऐसा अनुमान है कि इस वर्ष जर्मनी में ३.२ मिलियन दर्शक मौजूद रहेंगे। खेल की व्यवस्था और दर्शकों की सुविधा के साथ–साथ चोरों से ट्राफ़ी को बचाने के भी पुख्ता इंतज़ाम यहाँ किए गए हैं।

इतने सारे इंतज़ामों के बावजूद कंप्यूटरों पर एक नयी मुसीबत आ पड़ी है। जर्मन भाषा में इंटरनेट पर मौजूद बेनवारम, जसरान, रांचनेग नामक वायरस को तहलका मचाने से कोई नहीं रोक पा रहा है। यह वायरस विश्व कप स्पर्धा का मुफ़्त टिकट प्रिंट करने के बारे में बताता है और जैसै ही आप टिकट प्रिंट करना शुरू करते हैं यह आपके कंप्यूटर पर कब्ज़ा कर लेता है। इसलिए मुफ़्त में फुटबॉल के टिकट प्रिंट करने वाली साइट से सावधान रहें। कुछ और भी बातें हैं जो फुटबॉल प्रेमियों को आश्चर्य में डाल सकती हैं जैसे कि विश्व के साठ प्रतिशत फुटबॉल पाकिस्तान के सियालकोट नगर में बनते हैं और फुटबॉल नाम का एक मादक पेय भी होता है जिसमें फर्नेट ब्रांका नाम की मदिरा में फेंटी हुई क्रीम का गोला डाल कर परोसा जाता है।

इस वर्ष भी फुटबॉल को लेकर इस तरह की रोचक घटनाएँ रोज़ जारी हैं। रोज नये रेकार्ड बन रहे हैं पर फुटबॉल फैन नंबर एक का रिकार्ड मैनोलो एल डेल बांबो के नाम ही जाएगा जो फुटबॉल के लिए अपनी दीवानगी की वजह से परिवार और कारोबार से भी हाथ धो बैठे हैं। मैनेलो पिछले सात विश्वकप से उस टीम का हौसला बढ़ा रहे हैं जिसने कभी कोई बड़ी कामयाबी हासिल नहीं की। उन्हें स्पेन के किसी भी मैच में बारह नंबर वाली लाल कमीज़ पहने ताबड़तोड़ बांबो 'एक प्रकार का ढोल' बजाते हुए देखा जा सकता है।

यह तो ९ जुलाई को बर्लिन में ही स्पष्ट होगा कि किसका नाम ट्राफ़ी पर शोभित होगा पर तब तक हम और आप फुटबॉल से जुड़ी मज़ेदार बातों के साथ रोज़ ही वर्ल्ड कप का आनंद लेते रहेंगे।

१ जुलाई २००६

  
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