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ललित निबंध

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शीशम कितना मनोहारी
- डॉ. विद्युल्लता


शीशम नाम ही कितना पारदर्शी अहा! जब भी सोचती हूँ शीशम, तो किसी भूले बिसरे प्रेम के नायक के नाम की याद मन पर छा जाती है। हर दिन किसी सड़क, गली मोहल्ले में नाजुक, छोटे मोटे शीशम के पेड़ों से नाता पड़ ही जाता है। मई के महीने में असंख्य छोटी फलियों के भार से लदा शीशम अपने आप में गदबदाया रहता है अभी कुछ दिनों पहले ही होली के आसपास अपने नन्हे फूलों की मंद खुशबू से बौराए शीशम से एक तेज हवा का झोंका यों मिला कि सारे महीन फूल जमीन पर लोटपोट होते दिखाई देने लगे।

शीशम बहुत कम हष्ट पुष्ट दिखाई पड़ेंगे। अपनी छरहरी काया से आकाश की ओर मुँह करके लहराते हुए हमेशा मस्त मूड में दिखलाई पड़ते हैं। शीशम इन मायनो में भी भाग्यशाली हैं कि अपनी मस्तमौला प्रवृति के कारण वे हर जगह आसानी से पनप जाते हैं, हर तरह की मिटटी को आत्मसात कर लेने की क्षमता ही शीशम को बेशकीमती बनाती है, शीशम नाम ही अद्भुत है मानो शीशे सा पारदर्शी। ये झूठ भी नहीं, इसकी कच्ची हरी पत्तियाँ और फलियों से आर पार देखा जा सकता है, पर सावधान इसकी नाजुक पत्तियाँ शाख से बिछुड़ते ही मुरझा जाती हैं।

वृक्षों की सारी सदाशयता समेटे शीशम कितना मनोहारी है जरा अपने आस पास हो तो इसे निहारें- अपने गुणों के कारण आयुर्वेद में लोकप्रिय, असाध्य रोगों में रामबाण की तरह कारगार है यह। पर हमेशा ही शीशम के साथ भेद भाव किया गया, इसके गुणों को इतनी लोकप्रियता नहीं मिली जितनी कुछ अन्य वृक्षों को। चंदन, पीपल, बड़, सेमल, सागौन, मंदार या अन्य वृक्ष और उनके औषधिय गुणों का जैसा बखान किया गया वैसा शीशम को नसीब नहीं हुआ। शीशम की खेती करने वाले जानते हैं की शीशम कितना महँगा और बहुउपयोगी है। इसका तेल, पत्तियों का रस, छाल का अर्क सभी रोंगो में सफल इलाज़ है। शीशम के एक पेड़ से २५ से ५० घन फ़ीट लकड़ी पाई जाती है बायोकल्चर तकनीक से इसके पौध को ५ से १० साल में एक बड़े पेड़ के रूप में तब्दील किया जा सकता है।

अफगानी शीशम और लाल शीशम अपने मजबूत होने का खुद प्रमाण है। सागौन से ज्यादा और दुगुनी कीमत के बावजूद शीशम मुझे भोले भंडारी की तरह लगता है, जिसे खुद अपने मूलयवान होने का अहसास नहीं। शीशम सुनती हूँ तो बचपन में माँ का वो चौड़े पाट वाला ऊँचा भरा-पुरा पलंग याद आता है जिसके सिरहाने के हिस्से में तराशकर कुछ नक्काशी की गयी थी। उस वक़्त भी पलंग की ४० बरस उम्र रही होगी, माँ की जाने कितनी सिसकियों खुशियों हँसी ठहाकों का शीशम गवाह है, जिस पर बेंगाली ठकुराइन की तरह माँ अपने खुले गीले बालों को फैलाकर सुख की नींद सोती थीं। बाद में वह पलंग बरामदे में आ गया था, माँ के बाद पुराना करार दिया गया वह शीशम का पलंग जो मुझे खूब पसंद था पिछले बरस भी आँगन में अपनी पीठ पर पापड़ की सौंधी सुगंध लिए मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

फिर घर बदला... मायका छूटा... शीशम की खूबियों से वाक़िफ़ हो चुकी थी... विरासत में मेरे हिस्से एक डायनिंग टेबिल आया विशुद्ध वजनदार जो आज तक अपनी चम चम काया के साथ मेरे भोजन को सुस्वादु बनाता है। कितनी बार सोचती हूँ इसे बदल लूँ किसी नए डायनिंग टेबिल में, ये सम्भव नहीं और कितना प्रेम है इससे मुझे ये मैं ही जानती हूँ, इसके बेशकीमती होने से ज्यादा इसका उपकार हमारे जीवन में है।

शीशम उपकारी है, भव्य है, इसकी भव्यता इसके नीचे पल भर खड़े हो कर ही पता चलती है, देखो कितने प्रेम से शीतलता प्रदान करता है। प्रेम में शीशम के आईने को देखा था एक बार... शीशम सामने आये तो इतिहास में चित्रित अनारकली का वो शीशम के आकर्षक फ्रेम में मढ़ा हुआ अंडाकार दर्पण कौन भूल पाएगा जिसमे दुपट्टा ओढ़े लजाते हुए खुद को देखती अनारकली और पीछे से मुगल नायक का झाँकना.. कितना सुखद रहा होगा... शीशम गवाह होगा उनके सकुचाए प्रेम और मिलन और विरह का।

पिता के सिरहाने रक्खा वो शेर के पंजों की तरह मुड़ी हुई टाँगों वाला टेबिल जिस पर उनकी किताबें और दवाइयाँ रखी होती थी, कैसे भूलूँ। पर सोचो ना कभी तुम भी पेड़ रहे होंगे, तुम्हारी भी एक काया होगी, तुम भी लहराते झूमते होगे, मनुष्य के उपयोग में तुम्हारी काया बदल गई, फिर भी तुम खुश हो, अपने जीवन में निरंतर समय के साथ रूप और रहवास बदल रहे हो, ये एक तपस्या ही है शीशम। पर तुम एक वफादार दोस्त हो जब इस कड़ाके की धूप में ४५ डिग्री तापमान पर कई कठोर मजबूत पेड़ों के भी पसीने छूट जाते हैं तब तुम झूमते, लहराते भरी दुपहरिया राग भीमपलासी तन्मयता से गाते मिलते हो। "नि सा ग म प नि सा, स नि ध प म प ग म रे सा" तुम मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए... शीशम तुम मेरे नायक हो, शीशम तुम मेरा प्रेम हो शीशम तुम मेरा अभिमान हो, तुम सतत फूलो फलो ये दुआ हमेशा रहेगी।

१ मई २०१९

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