मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


साक्षात्कार



तस्वीरें बोलती हैं
दिल्ली की जानीमानी फोटोग्राफर सर्वेश के साथ
एक बातचीत


सर्वेश अपने कैमरे के साथ
 


सर्वेश देश की गिनी–चुनी महिला फोटोग्राफरोंमें से एक हैं। लगभग प्रत्येक पत्रिका और समाचार पत्र ने सर्वेश के चित्रों को अपने पृष्ठों पर स्थान दिया है। झारखंड की कोयला खानों की गहराई से लेकर कारगिल की ऊंचाइयों तक सर्वेश का कैमरा घूमता रहता है। जोखिम उठाना सर्वेश का स्वभाव है। जब भारतीय सैनिक कारगिल की ऊंची चोटियों पर हथियारों से घुसपैठियों को सबक सिखा रहे थे, तब सर्वेश अपने कैमरे में उन रणबांकुरों के कारनामों को कैद कर रही थी।

सर्वेश कहती हैं, "फोटोग्राफी करते हुए मुझे ग्यारह साल हो चुके हैं। आज प्रेस फोटोग्राफर के रूप में मेरी अलग पहचान है। देश के प्रतिष्ठित अखबारों और पत्रिकाओं में मेरे फोटोग्राफ छपते हैं। मैंने उत्तरकाशी भूकंप, सीतामढ़ी दंगे, पॅलेस ऑन व्हील और कारगिल युद्ध को कवर किया है। कारगिल युद्ध की फोटोग्राफी प्रतियोगिता में मुझे भारत सरकार का सांत्वना पुरस्कार मिला। कारगिल का अनुभव मेरे लिए अविस्मरणीय है। मेरे द्वारा खींचे गए उत्तरकाशी भूकंप के पचास और कारगिल के 100 फोटोग्राफ छप चुके हैं।

मैं करीब–करीब पूरा हिन्दुस्तान घूम चुकी हूं। अपने स्कूटर से दो–तीन बार पहाड़ों पर ग्यारह हजार फुट की ऊंचाई तक सैर कर चुकी हूं। पहाड़, झरने और समुद्र मुझे बहुत आकर्षित करते हैं। साल में छह महीने तो मैं घूमती ही रहती हूं, एक जगह टिक कर बैठना मुझे अच्छा नहीं लगता। जहां भी जाती हूं, मेरा कैमरा साथ होता है। यही तो है मेरा सच्चा हमदम और दोस्त।

आज मैं अपने पैरों पर मजबूती से खड़ी हूं। शूटिंग का शौक रखती हूं। निशानेबाजी में ब्रांज और गोल्ड मेडल जीत चुकी हूं। ट्रेकिंग बहुत करती हूं। प्रकृति से मुझे प्यार है। जहां जाने का मन होता है, जरूर जाती हूं। मैं बहुत मेहनत करती हूं और ईश्वर के सिवा किसी से नहीं डरती।

सत्रह हजार फुट से भी ऊपर पहाड़ पर चढ़ चुकी हूं। तस्वीरें खींचने के लिए मैं करीब सारा हिन्दुस्तान घूम चुकी हूं। पैदल तो पता नहीं कितना किलोमीटर घूम चुकी हूं। फोटोग्राफी करती हूं तो पैदल ही घूमना चाहिए। फोटोग्राफी के दौरान बहुत सारी घटनाएं हुई हैं जो भुलाए नहीं भूलती है। एक बार मैं हिमाचल में ट्रेकिंग कर रही थी। हम चन्द्रखैनी पास को क्रास कर रहे थे कि बर्फ में मेरा पांव फिसल गया मेरे हाथ में पहाड़ का एक कोना आ गया और मैं लटक गयी। चिल्लाने लगी बचाओ और रोने लगी। रो–रो कर कह रही थी कि अब मैं पहाड़ों पर ट्रेकिंग नहीं करूंगी। मुझे बचा लो।

मेरे साथियों ने गाइड को बुलाया। उसने अपना हाथ दिया और मेरा हाथ पकड़ कर ऊपर उठाया। उसने किसी तरह बचाया। मेरी जान में जान आयी। रोती भी जा रही थी और हंस भी रही थी क्योंकि एक लड़का मेरी नकल कर रहा था, "मुझे बचाओ मैं पहाड़ी पर नहीं आऊंगी।" नीचे देखा तो बहुत खाई थी अगर गिर जाती तो . . .यह घटना करीब 14 हजार फीट की है। कुल्लू घाटी में उसके बाद मैंने टे्रकिंग नहीं छोड़ी बल्कि उससे भी ज्यादा ऊंचाई पर गयी। रूप कुंड और हेम कुंड जो कि बहुत ज्यादा ही कठिन टे्रकिंग है।

बिहार के जंगलों में नेतरहाट में 30 किलोमीटर पैदल चल कर मैंने जिस झरने की फोटो खींची वह भी कभी नहीं भूलूंगी। लोग झरने को ज्यादातर ऊपर से ही देखते हैं पर मैं उत्सुकतावश नीचे जंगलों में चली गई। रास्ता भी नहीं था। जंगल में भालू और नक्सलवादियों का डर था कि हमला ना कर दे। भगवान का शुक्र है कि कोई नहीं मिला। जब मैंने लोअर घाघरी फॉल की फोटो खींचीं तो मंत्र–मुग्ध हो गयी।

मैं भारत में कई फोटो प्रदर्शनियां लखनऊ, दिल्ली, मेरठ, बरेली, भोपाल और मैसूर में लगा चुकी हूं। लोगों ने इन्हें सराहा भी है। आज मुझे इस बात का संतोष है कि मेरे कार्य की हर जगह सराहना होती है। मुझे कई संस्थाएं सम्मानित कर चुकी हैं और वे मिसाल के तौर पर मुझे पेश भी करती हैं।

इस लेख में प्रकाशित सभी तस्वीरे सर्वेश की भाषा बोलती हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि यह भाषा कलम से नहीं कैमरे से लिखी गयी है। इस इबारत में भारत की स्त्रियों, दलितों और बालिकाओं की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं की एक कभी न खत्म होने वाली दास्तान है। इस दास्तान में जिंदगी की मुसीबतें हैं, उनसे छुटकारा पाने का संकल्प और साहस है, एक नई दुनिया बनाने का सपना है। कुल मिलाकर यह दास्तान उन सब की, उन सब के लिए है जो इस देश की बेहतरी का सपना
देखते हैं।"

सर्वेश के खींचे हुये कुछ फोटो—

 
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।