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                  | स्वाद और 
					स्वास्थ्य |  
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					स्वास्थ्य के 
					लिये उपयोगी नींबू   क्या आप जानते हैं? 
						
							|  | २० 
							अगस्त अंतरराष्ट्रीय नींबू दिवस है।
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							अमेरिका को नींबू से परिचिय कराने का श्रेय क्रिस्टोफर 
							कोलंबस को जाता है।
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							विश्व के नींबू उत्पादक देशों में भारत का नाम सबसे 
							ऊपर है। |  |  
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								नीबू का सेवन हर मौसम में किया जाता है। यह बदलते 
								मौसम के अनुरूप अपने गुणों को समायोजित कर मौसमी 
								दोषों को दूर करता है। नीबू शरीर के अंदर फैले विष 
								को नष्ट करता है। इसमें विटामिन सी का भण्डार है 
								जिससे यह स्कर्वी रोग का निवारण करता है तथा 
								एनिमिया रोग को दूर करने में सहायक होता है। 
								विभिन्न रोगों से बचने, स्वास्थ्य और शक्ति 
								प्राप्त करने में यह उपयोगी है। नीबू रक्त को 
								शुद्ध करता है तथा त्वचा को स्वस्थ, कांतिमय बनाता 
								है।
 रूपाकार-
 नीबू छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है। इसकी 
								शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा 
								पत्तीदार होता है। फूल की कली छोटी और मामूली 
								रंगीन या बिल्कुल सफेद होती है। नीबू गोल या 
								अंडाकार होता है। छिलका पतला होता है, जो गूदे से 
								भली भाँति चिपका रहता है। पकने पर यह पीले रंग का 
								या हरापन लिए हुए होता है। गूदा पांडुर हरा, 
								अम्लीय तथा सुगंधित होता है। कोष रसयुक्त, सुंदर 
								एवं चमकदार होते हैं। यह एक बारहमासी पौधा है यानि 
								इसमें साल भर फल लगते रहते हैं। एक पेड़ साल भर 
								में २२५ किलो ग्राम से २७० किलोग्राम नींबू 
								उत्पादन करता है।
 
 इतिहास-
 माना जाता है कि मूलरूप से नींबू का उत्पादन भारत 
								में हुआ बाद में यह चीन तथा म्याँमार तथा 
								पूर्वोत्तर एशिया के अन्य देशों में गया। १४९३ में 
								अपनी दूसरी विश्व यात्रा के समय यह पहले पहल 
								अमेरिका पहुँचा। जहाँ हाइती द्वीप में क्रिस्टोफर 
								कोलंबस ने इसका पहला पौधा लगाया और इसका परिचय एक 
								फल के रूप में करवाया। वर्ष २००७ की गणना के 
								अनुसार विश्व के कुल नीबू का १६ प्रतिशत भाग भारत 
								में उत्पन्न होता है, जो विश्व में सबसे अधिक है। 
								मैक्सिको, अर्जन्टीना, ब्राजील, चीन एवं स्पेन 
								अन्य मुख्य उत्पादक देश हैं। वर्ष २००३ में इतिहास 
								में सबसे बड़ा नींबू उगाया गया। इसका भार ५.२६५ 
								किलो था और इसकी परिधि २९ इंच थी। यह १३.७ इंच 
								ऊँचा था। (२०१३ के गिनीज वर्ल्ड रेकार्ड के 
								अनुसार)
 
 रासायनिक तत्व-
 १०० ग्राम नीबू में अनुमानित निम्न तत्व पाये जाते 
								है: जल- ८५.० ग्राम, प्रोटीन- १.० ग्राम, वसा- ०.९ 
								ग्राम, रेशा- १.७ ग्राम, कार्बोज- ११.१ ग्राम, 
								केल्शियम- ७० मि.ग्रा., फॉस्फोरस- १० मि.ग्रा., 
								लौह तत्व- ०.३ मि.ग्रा., थियोमीन- ०.०२ मि.ग्रा., 
								रिबोफ्लेविन- ०.०१ मि.ग्रा., नियासिन- ०.०३ 
								मि.ग्रा., विटामिन सी- ३९ मि.ग्रा., ऊर्जा- ५७ कि. 
								कैलोरी। इसके अतिरिक्त नीबू में ए, बी और सी 
								विटामिनों की भरपूर मात्रा है-विटामिन ए अगर एक 
								भाग है तो विटामिन बी दो भाग और विटामिन सी तीन 
								भाग। इसमें -पोटेशियम, लोहा, सोडियम, मैगनेशियम, 
								तांबा, फास्फोरस और क्लोरीन तत्त्व तो हैं ही, 
								प्रोटीन, वसा और कार्बोज भी पर्याप्त मात्रा में 
								हैं। विटामिन सी से भरपूर नीबू शरीर की रोग 
								प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही एंटी आक्सीडेंट 
								का काम भी करता है और कोलेस्ट्राल भी कम करता है। 
								नीबू में मौजूद विटामिन सी और पोटेशियम घुलनशील 
								होते हैं, जिसके कारण ज्यादा मात्रा में इसका सेवन 
								भी नुकसानदायक नहीं होता। रक्ताल्पता से पीडि़त 
								मरीजों को भी नीबू के रस के सेवन से फायदा होता 
								है। यही नहीं, नीबू का सेवन करने वाले लोग जुकाम 
								से भी दूर रहते हैं। एक नीबू दिन भर की विटामिन सी 
								की जरूरत पूरी कर देता है।
 
 उत्पादन-
 नीबू, लगभग सभी प्रकार की भूमियों में सफलतापूर्वक 
								उत्पादन देता है परन्तु जीवांश पदार्थ की अधिकता 
								वाली, उत्तम जल निकास युक्त दोमट भूमि, जिसकी 
								गहराई २-२.५ मी.या अधिक हो, आदर्श मानी जाती है। 
								भूमि का पी-एच ६.५-७.० होने से सर्वोत्तम वृद्धि 
								और उपज मिलती है। भारत में यह हिमालय की उष्ण 
								घाटियों में जंगली रूप में भी उगता हुआ पाया जाता 
								है तथा मैदानों में समुद्रतट से ४,००० फुट की 
								ऊँचाई तक पैदा होता है। इसकी कई किस्में होती हैं, 
								जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ 
								फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। 
								कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही 
								अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू 
								सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके उत्पादन के स्थान 
								मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, 
								महाराष्ट्र हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर 
								प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं।
 
 घरेलू प्रयोग-
 नीबू का रस, गुलाब जल तथा ग्लिसरीन तीनों को समान 
								भाग में लेकर शीशी में भर लें। रात को सोने से 
								पूर्व चेहरे तथा हाथ-पैरों पर लगाएँ। इससे त्वचा 
								में निखार आता है। कैसा भी चर्म रोग हो, उस स्थान 
								पर नीबू का रस लगाने से या नीबू को पानी में 
								निचोड़कर धोने से लाभ होता है। नीबू को प्रातः 
								नियमित पानी में निचोड़कर पीने से चर्म रोग दूर हो 
								जाते हैं। एक चम्मच गर्म दूध पर जमने वाली मलाई 
								में नीबू निचोड़कर चेहरे पर लगाने से मुँहासे दूर 
								हो जाते हैं। गर्म पानी में नीबू निचोड़कर पीने से 
								रक्त शुद्ध होता है। अपच, आफरा, पाचन प्रणाली के 
								वायु संचय, उदर पीड़ा, मिचली, कै एवं कब्ज में लाभ 
								मिलता है। गर्म पानी में नीबू निचोड़कर स्नान करने 
								से खुजली मिटती है।
 आँखों के नीचे काले दागों पर दूध की मलाई में नीबू 
								का रस मिलाकर लगाने से दाग साफ हो जाते हैं। सिर 
								में नीबू के रस की मालिश करने से बालों का पकना, 
								गिरना रुक जाता है तथा जुएँ भी समाप्त हो जाती 
								हैं। गला बैठ गया हो अथवा गले में सूजन या ललाई हो 
								तो ताजे या गर्म पानी में नीबू निचोड़कर उसमें नमक 
								डालकर गरारे करने से लाभ होता है। ताजे पानी में 
								नीबू निचोड़कर कुल्ले करने से दाँतों के रोग ठीक हो 
								जाते हैं। नीबू के उपयोग से फूले हुए मसूढ़े ठीक हो 
								जाते हैं तथा मुँह की दुर्गन्ध तक दूर हो जाती है। 
								निचोड़े हुए नीबू को दाँतों पर रगड़ने से दाँत साफ, 
								सुन्दर व चमकदार होते हैं
 
 सावधानी -
 गले में टांसिल, पेट में अल्सर तथा अम्ल की अधिकता 
								वाले रोगी को नीबू का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 
								नींबू में उपस्थित सिट्रस ऐसिड का दाँतों से 
								ज्यादा संपर्क होने से दांत संवेदनशील हो जाते 
								हैं। अगर नींबू पानी पीना भी है तो उसे हमेशा 
								स्ट्रॉ से पिएं, जिससे पानी दांतों को न छुए। 
								ऐसिडिटी की समस्या है तो, नींबू का सेवन एकदम बंद 
								कर दें क्योंकि इसमें उप्थित ऐसिड सीने में जलन 
								बढ़ा सकता है। कई बार लोग खाना पचाने के लिए नींबू 
								के रस का सेवन करते हैं क्योंकि इसका ऐसिड पाचन 
								में मदद करता है। लेकिन पेट में ज्यादा ऐसिड हो 
								जाने की वजह से पेट खराब हो सकता है। नींबू को 
								हमेशा खाने में मिलाकर ही खाएँ। नींबू में अम्ल का 
								स्तर अधिक होने के अलावा उसमें ऑक्सलेट भी होता 
								है, जो कि ज्यादा सेवन से शरीर में जा कर क्रिस्टल 
								बन सकता है। ये क्रिस्टलाइज्ड ऑक्सलेट, किडनी 
								स्टोन और गॉलस्टोन का रूप ले सकते हैं।
 
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								मार्च २०१७ |  |