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हास्य व्यंग्य

 

समाजसेवा
-अंतरा करवडे


आइए आपको मिलाते हैं मिसेस खनूजा से। खानदानी महिला है और इन दिनों चूँकि बच्चे कॉलेज जाने लगे हैं और घर में तीन नौकर और लग गए हैं, सो मिसेस खनूजा समाजसेवा के लिए थोड़ा वक्त निकाल लेती हैं। अब क्लब में जाना है तो आपको मालूम ही होगा कि ग़रीबों की सहायता के लिए मीटिंग हो तो कांथा-वर्क की साड़ी चल जाती है। फिर विकलांगों को कैलीपर्स बाँटते समय कोई तनछुई या पोचमपल्ली स्टाईल की पहनो तो पेपर में फ़ोटो बड़ी अच्छी आती है। और अनाथालयों या वृद्धाश्रमों में फल-वल बाँटना हो तो मारबल शिफॉन या मैसूर सिल्क में से कोई भी चल जाती है। अब ऐसा है कि मिसेस खनूजा को भी इन दिनों क्लब की फ्रेंड्स के साथ यहाँ-वहाँ आने जाने के कारण ऐसी बातों का थोड़ा बहुत ज्ञान हो ही गया है। और इसी के चलते पिछले दिनों उन्होंने एक आलीशान दूकान से मैसूर सिल्क की सात साड़ियाँ उठा ली क्यों कि क्लब की आनेवाली मीटिंग में उन्हें कोई ज़िम्मेदारी का काम जो मिलने वाला था। अब इतनी बड़ी समाजसेवा हो तो सेवा करने वाली महिला कुछ लगनी भी तो चाहिए ना?

और लीजिए वो शुभ दिन आ ही गया। क्लब की मीटिंग थी। मिसेस खनूजा ने सुबह बस पनीर परांठे के साथ मक्खन और क्रीम डले फलों का हल्का-फुल्का नाश्ता लिया था सो खाने का समय होने तक हल्की-सी भूख की हरकत होना लाज़िमी था। लेकिन वे अध्यक्ष महोदय, बस बोले ही चले जा रहे थे। आख़िर ये भी तो ध्यान रखना चाहिए कि आज हमें खुद अपने हाथों से खाना लेकर खाना है। कितना तो एनर्जी लॉस होगा इस प्रोसेस में। लेकिन ये हैं कि बस ग़रीबों के लिए चंदा और सहायता जैसे बड़े-बड़े शब्द बोले जा रहे हैं। अपनी मिसेस खनूजा को तो ग़रीबों के लिए चंदे की जगह पनीर पसंदे और सहायता की जगह रायता सुनाई देने लगा था। फिर अध्यक्ष महोदय ने कहा कि बस एक बात और कहूँगा और अपनी मिसेस खनूजा ने सुना कि बस केक आपको पेश करूँगा और पल भर को उनकी बाँछे खिल गई। लेकिन हाय रे किस्मत! अध्यक्ष महोदय ने लंबी-चौड़ी लिस्ट पढ़नी शुरू कर दी कि किसे कौन से प्रोजेक्ट पर काम करना है।

अपनी मिसेस खनूजा तो बैठे-बैठे ही तय कर चुकी थी कि टोमेटो सूप के रंग-ढंग कुछ ठीक नहीं है, वे तो क्रीम ऑफ वेजीटेबल सूप ही लेंगी। और स्टार्टर में चिली पनीर और वेज कोफ्ते चलेंगे। तभी उन्हें लगा जैसे सब उन्हीं की ओर देख रहे हैं। सभी ने उन्हें देखकर तालियाँ बजानी शुरू कर दी और थोड़ी देर बाद उन्हें समझ में आया कि उन्हें अगले महीने के प्रोजेक्ट का सब्जेक्ट दे दिया गया है। उनके लिए काम करने का विषय था "कुपोषण"। अब मिसेस खनूजा किसके सामने जाकर रोएँ कि उन्हें तो इस विषय का अर्थ ही नहीं मालूम। उन्होंने नवरत्न भूषण जैसा पुलाव चखा था, लेकिन कुपोषण जैसी बला का तो नाम भी नहीं सुना था। ख़ैर उन्हें ज़्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं पड़ी क्यों कि एक तो उन्हें ये काम अपनी एक सहेली मिसेस चंद्रा के साथ करना था और दूसरे अब लंच के लिए ऑफिशियल अनाउंसमेंट हो गई थी।

मिसेस चंद्रा ने मिसेस खनूजा को खुद ही ढूंढ़ निकाला और मिसेस खनूजा जान ही नहीं पाई कि कब उन्होंने उनके साथ अपना मॉकटेल ख़त्म कर वॉटरमेलन जूस की ओर जाना शुरू कर दिया। दरअसल ये दोनों की पहली मुलाक़ात जो ठहरी। फिर थोड़ी जान पहचान करने के लिए साथ खाना-पीना भी ज़रूरी है। इसलिए दोनों ने पहले प्लेटें ली और सलाद लेकर इत्मीनान के साथ "कुपोषण" पर चर्चा करने के लिए राउंड टेबल पर बैठ गई।
"देखो मुझे लगता है कि कुपोषण पर बातचीत करने के लिए हमें थोड़ा बहुत भूख और ग़रीबी का भी स्टडी कर लेना चाहिए यू नो!" मिसेस खनूजा ने कहा और मशरूम टिक्का मुँह में डाला।
"अरे हाँ हाँ! क्यों नहीं! हमारे यहाँ जो काम वाली बाइयाँ वगैरह आती हैं ना, उनके हसबैंड सारा रुपया ड्रिंक्स में उड़ा देते हैं। ऐसे में बेचारी कितना काम करेंगी ना? लेकिन आपने देखा मिसेसे खनूजा, वो लाइव रोटी के स्टॉल पर जो दुबली पतली-सी लड़की बैठी है। कितना धीमा हाथ चला रही है। मेरा तो बस कॉर्न सलाद और चेरी स्टार्टर ख़त्म हुआ कि मैं तीन चार बटर फुलका और पनीर दो प्याज़ा लूँगी। थोड़ा-सा नवरतन कोरमा और हल्का-सा मंचूरियन का पिंच। वो क्या है कि मुझे रोटी ज़्यादा सूट नहीं करती ना! मैं तो बस चावल पर ही ज़िंदा हूँ।" ये कहती हुई मिसेस चंद्रा सीधे रोटी के स्टॉल पर गई जहाँ पर बटर के नए पैकेट खोले जा रहे थे।

अब मिसेस चंद्रा के साथ इतनी बातचीत में अपनी मिसेस खनूजा को ये तो समझ में आ गया कि कुपोषण यानी शरीर को जितना चाहिए उतना पोषण न मिलना। लेकिन अभी भी इसको लेकर थोड़ी शंका थी मन में। सो उन्होंने सोचा कि क्यों न अगले दिन मिसेस चंद्रा को लंच पर बुलवाकर कुपोषण पर चर्चा कर ली जाए। उन्होंने मिसेस चंद्रा से पूछा। अब मिसेस चंद्रा तो जैसे उधार ही बैठी थी। उन दोनों ने मिलकर पहले लंच का मेनू तैयार किया। मिसेस चंद्रा को रोटी सूट नहीं करती इसलिए मुगलई परांठे और कश्मीरी नान बनेगी और तिरंगा पुलाव बनेगा। फिर दोनों एक दूसरे को अपनी-अपनी सब्ज़ियों की पसंद बताने लगीं कि कैसे मिसेस खनूजा को शादी के बाद से कोफ़्ते पसंद नहीं आते और मिसेस चंद्रा को खीर पसंद नहीं है। खैऱ सब्ज़ियाँ डिसाइड हुई कि बेक पालक और मेथी मटर मलाई बनेगी। फिर दोनों को ही लगा कि ये खाना तो बड़ा सादा-सा है तब दोनों एक साथ बोल पड़ीं, "बेक्ड़ वेजीटेबल" और साथ-साथ हँस पड़ीं। डेज़र्ट के लिए पनीर रबड़ी तय हुई और सलाद के लिए बंदगोभी का चुनाव हुआ।

"लेकिन मिसेस खनूजा! ये लंच वगैरह तो ठीक है थोड़ा बहुत कर ही लेंगे आपके घर पर लेकिन ये जो कुपोषण है ना! इसके कारण तो जानने बड़े ज़रूरी है।" और मिसेस चंद्रा ने दही बड़े पर ताव मारा।
"सच कहती हैं आप मिसेस चंद्रा। अब मुझे ही देखिए ना! लंच के नाम पर बस चिली पनीर चखा और चना मसाला को छुआ, दाल मखनी को देखा और वेज कटलेट्स तो बस दो चार ही लिए होंगे। मेरा तो पूरा ध्यान बस अपने सब्जेक्ट पर ही लगा हुआ है। कुपोषण, कुपोषण। अरे ज़रा मेरे फ्रूट कस्टर्ड में जैली डालना तो। और आपका क्या कहना है?"
"देखिए मिसेस खनूजा हमें सोचना तो पड़ेगा ही। लेकिन क्या है ना कि मैं एक दस पंद्रह मिनिट देर से आऊँ तो बुरा मत मानना। वो क्या है कि मेरी खाना बनाने वाली बाई ने कल इन्हें परोसने में देर कर दी थी। अब हुआ बस इतना कि उसका सात महीने का बच्चा भूख से रो रहा था। इसलिए मैंने उसे काम पर से हटाकर नई बाई रख ली है। अब नई बाई से काम लेना कितनी मेहनत का काम है ये तो आप जानती ही हैं। लेकिन ये तो सही है कि कुपोषण कहाँ-कहाँ है ये भी हमें मालूम करना होगा।"

और मिसेस खनूजा और मिसेस चंद्रा अपने खाद्य पुराण में से कुपोषण के कारण ढूँढ़ती रहीं। महीने भर तक एक दूसरे के यहाँ लंच डिनर पर मिलती रही। पहले मेनू डिसाइड होता, फिर रेसिपी शेयर होती, फिर खाना खाते-खाते कुपोषण पर चर्चा होती। आज उन दोनों ने अपना प्रोजेक्ट सबमिट कर दिया है और इसी खुशी में दोनो परिवारों का एक गेट टुगेदर डिनर है और इस समय दोनों महिलाएँ होटल में बैठकर मेनू डिसाइड कर रही है। दोनों के चेहरे पर आत्मविश्वास की मुस्कान है कि आख़िर इतनी मेहनत के बाद उन्हें मालूम हो ही गया है कि कुपोषण के क्या कारण हैं।

९ सितंबर २००६ 

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