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हास्य व्यंग्य

किस्सा टैक्स का
महेशचंद्र द्विवेदी


टैक्स लगाना ओर टैक्स बचाना दोनों बड़े तिकड़म के हुनर हैं। महँगाई और टैक्स दो जुड़वाँ बहिनें हैं जो दोनों ही वित्तमंत्री के इशारे पर नाचती हैं - वित्तमंत्री चाहें तो इन्हें हौले-हौले ओडिसी-सा नचाए और चाहे तो कथक के तराने की तत्कार पर नचाए। ये इस नाच से हुई आमदनी से सरकारी ख़ज़ाने को भरती हैं। ये दोनों ही भरपूर जवानी में इंसान की कमर तोड़ देने की कुव्वत रखती हैं, इसीलिए इनकी मार सहे कुछ दिलजलों ने इन्हें सरकार द्वारा कानूनी लूट का नाम दिया है। इस रिश्ते से वित्त मंत्री को सरकारी लुटेरा कहना उनके साथ कोई बड़ी बेइंसाफ़ी नहीं होगी।

इस लूट की मार अवाम सहता जाए और आह भी न भरे, इसलिए नए-नए टैक्स लगाते वक्त अक्सर वित्त मंत्री चील जैसी चालाकी, जेबकतरे जैसी सफ़ाई और बेवफ़ा पतुरिया जैसी बेरुखी से काम लेते हैं। हालाँकि इस लूट की ज़िम्मेदारी वित्त मंत्री के सिर थोपी जाती है लेकिन सच यह है कि उसकी नकेल राजा (आजकल काबीना) के हाथ रहती है और वित्त मंत्री उनकी इच्छा के अनुसार अजीबोग़रीब क़िस्म के टैक्स लगाते रहते हैं,  कुछ लाजवाब नमूने पेश करने से बात और साफ़ हो जाएगी।

अमेरिका की टेक्सस रियासत में स्ट्रिप-क्लब (कपड़े-उतार-नाच के क्लब) बड़े लोकप्रिय हैं। इस साल से वहाँ हर ग्राहक पर पाँच डॉलर का टैक्स यह बताकर लगाया गया है कि इससे होने वाली आमद को बलात्कार की शिकार औरतों की मदद के लिए खर्च किया जाएगा। मुझे सरकार द्वारा बताई गई इस वजह में बड़ी दम लगती है और इसकी जानकारी होने के बाद मेरी निगाह में टेक्सस की सरकार की इज़्ज़त बहुत बढ़ गई है। साफ़ है कि जब कपड़े-उतार-नाच ज़्यादा लोग देखेंगे तो बलात्कार के केस ज़्यादा होंगे ही और फिर ज़्यादा औरतों को मदद की ज़रूरत भी पड़ेगी।

इसके विपरीत शिकागो में लगाए गए इस टैक्स की वजह मैं आज तक नहीं समझ पाया हूँ कि सोडा को जार से सीधे गिलास में डालकर खरीदिए तो ९ फ़ीसदी टैक्स भरिए और बोतल में ख़रीदिए तो सिर्फ़ ४ फ़ीसदी टैक्स दीजिए। बस एक बात मेरी हिंदुस्तानी समझ में ज़रूर आ रही है कि हो न हो बोतल बनाने वाली कंपनियों ने शिकागो की सरकार को खुश कर दिया होगा और उनकी बोतलों की बिक्री बढ़ाने के लिए सरकार ने बोतल वाले सोडा पर कम टैक्स लगाया होगा।

गुज़रे ज़माने में लगाए गए टैक्स आजकल के टैक्सों से कम अजूबा नहीं होते थे। अठारहवीं सदी में इंग्लैंड में मरदों द्वारा विग पहनने का बड़ा रिवाज़ था, इसलिए वहाँ के राजा विलियम पीटर ने विग पाउडर पर टैक्स लगा दिया था। नतीजा यह हुआ कि उन्नीसवीं सदी के आते-आते बेचारे मर्दों ने जनानियों को लुभाने का अपना यह शौक ही छोड़ दिया। रूस के पीटर्यकुम ने घर में खिड़कियों की तादाद पर टैक्स लगा दिया था- मुझे लगता है कि खिड़की से आने वाली ठंडी हवा से उसे गठिया का दर्द सताता होगा।

पुराने ज़माने में चीन में चाऊ राज्य में किसानों को उतना ज्य़ादा टैक्स देना पड़ता था जितनी दूरी से वह अपनी फसल बेचने लाता था- यानी कि बेचारे दूर दराज़ के देहातियों पर दोहरी मार पड़ती थी। रोम में गुलामों को आज़ाद करने पर उनके मालिकों को उन गुलामों की कीमत के हिसाब से सरकार को टैक्स भरना पड़ता था। शादी की उम्र हो जाने पर कुँआरा रहने पर रोम में जूलियस सीज़र ने, रूस में पीटर दी ग्रेट ने, मुसोलिनी ने इटली में और स्पार्टा के राजाओं ने भारी टैक्स लगाए थे, स्पार्टा में तो कुँआरा रहना कामदेव की ऐसी तौहीन समझा जाता था कि कुँआरे मियाँ को टैक्स भरने के अलावा हर साल एक बार कड़ाके की सर्दी में पूरी तरह नंगा होकर सरेआम बाज़ार में घूमना पड़ता था और अपने कुँआरेपन की खिल्ली उड़ाने वाला एक गाना भी गाना पड़ता था। अजीबोग़रीब टैक्सबाजी के पुरलुत्फ़ खेल में अब वर्ल्ड हेल्थ और्गेनाइज़ेशन भी कूद पड़ी है और कई मुल्कों पर दबाव बना रही है कि वे अपने यहाँ मोटापा-टैक्स लगाएँ।

अगर मुल्क के वजीरे खज़ाना टैक्स लगाने में उस्ताद होते हैं तो उसे बचाने वाले भी कम नहीं होते हैं। हमारे नेता करोड़ों की आमद को प्रेमोपहार बताकर टैक्स से छूट पा रहे हैं और अमेरिका में चैस्टी लव नाम की एक स्ट्रिपर ने अपने वक्ष को बढ़ाने के आपरेशन को बिज़नेस एक्सपेंस बताकर टैक्स से छूट पा ली है। दोनों मामलों के वकीलों का दावा है कि फैसला लेने वालों ने हर 'पहलू' का बड़ा मुकम्मल मुआइना करने के बाद ही ऐसा फ़ैसला लिया है।

२८ अप्रैल २००८

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