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हास्य व्यंग्य

कामरेड की लंगोट
-- जवाहर चौधरी


वो कामरेड हैं या नहीं हैं इस मुद्दे पर विद्वानों और जानकारों में लंबे समय से मतभेद चले आ रहे हैं। लेकिन बावजूद मतभेदों और विरोधों के जैसे तमाम चीज़ें बनी रहतीं हैं वैसे ही उनकी कामरेडियत बनी हुई है। अब बनी हुई है तो बनी हुई है, सैंकड़ों की बनी रहता है। कोई नई बात तो है नहीं कि मीडिया के पेट में मरोड पड़े। अपने यहाँ राजा है, कोई राजकुमार है तो कोई प्रिंस पुकारा जाता है लेकिन क्या कोई उनका खानदान खंगालता है। बहरहाल, आप भी हमारे कामरेड को कामरेड ही मान लें, इसमें आपका भी कुछ नहीं जाएगा और मेरा भी।

हाँ तो कामरेड को अचानक अमेरिका जाने का मौका मिल गया। वैसे कामरेड कभी खुश होते नहीं हैं लेकिन वे हुए, बोले, ''देश ने अब काफी तरक्की कर ली है और कामरेड़ों तक को मौके मिलने लगेंगे। हमें इंतज़ार करना चाहिए। अमेरिका गरीबी से भले ही चिढ़ता हो पर गरीबों से नहीं। उसे पता है कि गरीब सबसे अच्छी प्रजा होते हैं यों देखा जाए तो उनमें बोलने की ताकत नहीं होती, लेकिन बोलना पड़े तो 'अन्नदाता की जय हो, माई-बाप अमर रहें, गॉड सेव द किंग' वगैरह ही बोलते हैं, और बहुत अच्छे से बोलते हैं। इसीलिए अमेरिका दुनियाभर के गरीबों की मदद करता है। एक रस्साकशी-सी चल रही है, दुनिया भर के लोग अमेरिका में घुसना चाहते हैं और अमेरिका पूरी दुनिया में। अधिक सफलता अमेरिका को ही मिल रही है।

आप लोग भी कहोगे कि अमेरिका की हाँके जा रहा है। बात तो कामरेड की हो रही थी। तो भईया, कामरेड बोले, ''यार बताना मत किसी को, अमेरिका जाने को मिल रहा है।... अमेरिका के सपने रोज़ आते हैं पर जाने के मौके बार-बार नहीं आते हैं।.. यू नो...।'
'दादा ये हुआ कैसे?' जिसे भी मौका मिलता है उससे यही पूछने का चलन है।
'भगवान ने सुन ली यार... समझो भाग्य से छींका टूट पड़ा।' कामरेड ने जेब में रखी डायरी से भगवान का चित्र निकालकर माथे पर लगाते हुए कहा।
''लेकिन अमेरिका को तो हम लोग कोसते हैं! विश्व का गुंडा, दुनिया का दादा, ग्लोबल चौधरी वगैरह...।' हमने फटी आँखों से उन्हें देखते हुए पूछा।
'कहने का क्या है यार।.. कहते तो हम भी भगवान को भी हैं लेकिन कोई देख नहीं रहा हो तब मंदिर भी जाते हैं पूरी श्रद्धा से। दूसरे शहर जाकर यज्ञ-अनुष्ठान सब करवाते ही हैं... फिर अमेरिका को लेकर क्या है! 'कामरेड ने पत्ते खोले।
'प्रतिबद्धता...! प्रतिबद्धता ब्रह्मचारी की लाल लंगोट है जिसे रोज़ाना धोकर बाहर रस्सी पर सुखाना काफी है ताकि लोग देख लें और मान लें कि बंदा ब्रह्मचारी यानी प्रतिबद्ध है। संसार में माना जाना महत्त्वपूर्ण है, होना नहीं। जो माने जाते हैं वही महान होते हैं, जो सिर्फ़ होते हैं उनका नाम नगर निगम के जन्म-मृत्यु रजिस्टर के अलावा कहीं दर्ज़ नहीं होता है।'
'ये क्या कह रहे हो कामरेड।... चलो माना... लेकिन तुम्हे पता है वो लोग हिंदुस्तानियों को एयरपोर्ट पर ही नंगा करके देखते हैं...! कामरेड की दलीलों से हम चौक रहे थे।
'नंगा करके देखते हैं?' इस बार कामरेड ज़रा-सा गंभीर हुए।
'देखेंगे क्या... शायद लंगोट ही।... वो भी सुना है उतरा लेते हैं।'
'फिर तो कोई दिक्कत नहीं है... लंगोट तो मैं यहीं छोड़ जाने वाला हूँ बाहर रस्सी पर सूखती हुई... वैसे भी वहाँ लंगोट का क्या काम।'
'है क्यों नहीं! लंगोट अमेरिका का राष्ट्रीय परिधान है। वहाँ आदमी-औरतों जो पहनते हैं वो लंगोट से बड़ा शायद ही होता है।'
'कन्फ्यूज़ मत करो यार, वो उनकी लंगोट है... प्रगति की लंगोट। हमारी लंगोट हमारी है, प्रतिबद्धता की लाल लंगोट। जब झंडो की कमी पड़ती है तो हम इनका भी इस्तेमाल करते हैं।' कामरेड ने लगभग डाँटते हुए जवाब दिया।
'सुना है वो हर हिंदुस्तानी को एक्सरे मशीन के आगे भी खड़ा करते हैं।'
'तो क्या हुआ यार! गरीब देश से कोई आता है तो यह देखना ज़रूरी हो जाता है कि कहीं टीबी-ईबी वाला तो नहीं है।'
'वो ये देखते हैं कि इसके पेट में क्या है...।'
'फिर तो भूख देखते होंगे... अमीरों के देश में जाओ तो हमेशा खा-पीककर जाना चाहिए।'
'हमारे मंत्री तो भरे पेट होते हैं... उन्हें भी नंगा करते हैं, एक्सरे होता है।'
'उन्हें मंत्री जी... बाल की खाल मत निकालिए। सारे मंत्री बुरे नहीं होते हैं कुछ मौका देने वाले भी होते हैं।'
'अच्छा कामरेड, आपकी दाढ़ी का क्या होगा?'
'वहीं जो लंगोट का होगा... उसे भी यहीं छोड़ जाऊँगा... डस्टबिन में।'

एक दिन कामरेड सचमुच चले गए। सुना है अपने साथ सूट-टाई, परफ्यूम, पाउडर-क्रीम, शेविंग किट, कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे और स्थानीय उद्योगपतियों द्वारा दिए गए डॉलर्स ले गए हैं।
घर के बाहर रस्सी पर उनका सुखा हुआ लाल लंगोट लगातार सुख रहा है।

२३ मार्च २००९

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