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हास्य व्यंग्य

मूँछ, नाक और मनोबल
स्नेह मधुर


हर इन्सान के चेहरे पर नाक होती है। शरीफ और पढ़े लिखे लोग इस नाक को अपनी इज्जत बताते हैं। वैसे जानवरों की भी नाक होती है लेकिन जानवरों की नाक इनसानी नाक की तरह जब तब कटती नहीं रहती है। यह शोध का विषय हो सकता है कि इंसान को अपनी नाक कटने से अधिक पीड़ा होती है या जेब कटने से-  या फिर इंसान की जेब और नाक में किस तरह का संबंध है? इंसान की नाक उसकी प्रतिष्ठा का प्रतीक कब और कैसे बन गई यह भी शोध का विषय हो सकता है। शरीर के किसी भी अंग पर हमला हो या किसी का चारित्रिक पतन हो जाए लेकिन बोलचाल की भाषा में इसे प्रतिष्ठित व्यक्ति की नाक कटना ही कहा जाता है। यहाँ तक कि लोग घृणा मिश्रित स्वर में कहने लगते हैं कि देखो उसने अपनी नाक कटा डाली।

कहने को तो यह कहा जा सकता है कि इंसान क्या जानवरों के पास तक नाक होती है। लेकिन अपने देश में राजनीतिज्ञ नाम का एक प्राणी होता है जिसके पास नाक नहीं होती। क्या आपने कभी सुना है कि किसी नेता की नाक कट गई नाक तो उसी की कट सकती है जिसकी जेब भी कट सकती हो। जेब काटने वालों की नाक भला कैसे कटेगी। लेकिन आप मानें या मानें, पुलिस वालों के पास भी नाक होती है जो इंसानों और जानवोरों की नाक से भिन्न होती है। एक फर्क यह भी है कि पुलिस वालों की नाक जब तब कटती नहीं रहती और उनकी जेब तो कैर कभी कटती ही नहीं। या इसे यूँ भी कहा जा सकता है कि उनकी नाक कट ही नहीं सकती क्यों कि उनकी नाक स्थूल नहीं होती है। इंसान की नाक टेलीविजन का वह मानिटर है जिस पर तन और मन में हो रहे परिवर्तनों को देखा जा सकता है। टेलीविजन पर दो क्रिकेट टीमों के बीच खेल के उतार चढ़ाव को देखकर उत्साही लोग कह रहे थे कि फलां टीम ने अपने देश की नाक कटा दी या फलां टीम ने अपने देश की नाक ऊँची कर दी। पुलिस वालों की नाक मैनहोल का ढककन होती है जिसको ऊपर से देखकर भीतर बहने वा
ले पदार्थ का अंदाजा लगाने में गड़बड़ी हो सकती है।

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लिस और इंसान के पास एक ही चीज़ कामन होती है। वह है मनोबल। यह मनोबल बड़ा क्षणभंगुर होता है। जरा सी हवा बदली नहीं या सामने वाले ने घूर कर देखा लिया नहीं कि कच्च की आवाज के साथ टूट जाता है। कभी कभी मुझे लगता है कि मनोबल के नीचे पानी की लहरें थपेड़े देने लगें तो यह ऊपर उठने लगता है। कभी कभी मुझे लगता है कि मनोबल हौज में भरे पानी में तैरती नाव है। पानी भर दिया तो यह मनोबल ऊपर उठने लगता है। पानी निकाल दिया तो मनोबल बैठ गया।

अखबारों में अकसर खबरें छपती हैं कि पुलिस की नाक के नीचे ही राहजनी हो रही है। तस्करी हो रही है। पुलिस की नाक अखबार वालों की नजर में नाक नहीं ढक्कन है, दरवाजा है, दरवाजे पर लटकता ताला है। तालाबंद किया और भीतर कुछ भी हो रहा हो इससे किसी को कोई मतलब नहीं होना चाहिये। अगर इंसान की नाक उसके चरित्र का आईना है तो पुलिस की नाक वह फ्रेम है जिसमें कारीगर शीशा लगाना भूल गया अब कोई क्या कर लेगा।

नाक के नीचे आमतौर पर मूँछें पाई जाती हैं। अगर मूँछें नहीं हैं तो नाक के नीचे सीधे उदरस्थ कर लेने वाला मुँह मिलेगा। मूँछें बड़ी खतरनाक चीज होती है। जिसकी जितनी भयानक मूँछें होती हैं उसे उतना ही खतरनाक मान लिया जाता है। भले ही वह चूहा देखकर रजाई में घुस जाए। बिना मूँछवाले किसी व्यक्ति के सामने बैठकर कोई मूँछवाला अगर नाहक ही अपनी मूँछों को ऐंठने लगे तो साहब बिना चाकू तमंचे के ही दंगा हो जाएगा। सामने वाले की आँखों में अपनी आँखें डालकर अपनी मूँछों पर उँगलियाँ फेरना बिला घोषणा के युद्ध का ऐलान है। अगर मूँछों पर उँगलियाँ फेरने वाला साथ में मुस्कुराता जा रहा हो तो यह मुस्कुराहट सीजफायर नहीं बल्कि आग में घी का काम करेगी। मेरे एक मित्र कहते हैं कि मूँछों पर उँगलियाँ फिराते हुए मुस्कुराना वैसा ही है जैसे किसी देश पर कब्जा करने के बाद वहाँ के लाल किले
जैसी ऐतिहासिक इमारत पर झंडारोहण करना।

मूँछ नाक और मनोबल का आपस में क्या संबंध है किस अदृश्य जोर से ये बँधे हैं, यह समझना जैसे टेढ़ी खीर है। तीनों में दोस्ती या दुश्मनी का कोई रिश्ता जरूर है। संभवतः वे इंटरनेट जैसी किसी प्रणाली से जुड़े हों जिसकी खोज करना अभी बाकी है। लेकिन ऐसा क्यों होता है कि पुलिस वालो की बड़ी बड़ी मूँछें देखकर बिना मूँछ वालों का मनोबल तत्काल गिर जाता है। जैसे जेठ की दोपहरी में अचानक ओला गिरने से तापमान गिर जाता है। किसी तरह से शरीफ लोगों की नाक ऊँची होती देख पुलिस वालों का मनोबल पहाड़ के शीर्ष से लुढ़के पत्थर की तरह गिरने लगता है। जब किसी पुलिस वाले की मूँछें नीते की तरफ झुकती हैं तो शरीफ लोगों की नाक ऊँची हो जाती है और जब किसी शरीफ व्यक्ति की नाक कटती है तो पुलिस वालों का मनोबल बोतल से निकले हुए जिन्न की तरह बढ़ने लगता है... हा... हा... हा...।

किसी गरीब को सताने, जमीन से गैर कानूनी रूप से बेदखल कर देने, अपराधियों के साथ मिलकर साजिश रचने और हजार गुनाह करने बाद भी अपने पद पर बने रहने पर भी पुलिस का मनोबल क्यों बढ़ता है और यदा कदा किसी मामले में फँस जाने पर फरजी मुठभेड़ का मामला खुल जाने पर या शरीफ लोगों को अपमानित करने के मामले में दंडित हो जाने पर उनका सिर शर्म से क्यों नहीं झुकता है। उनका मनोबल क्यों गिरने लगता है। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि पुलिस के मनोबल और शरीफ लोगों की नाक में सीधा संबंध हो जाए, यानी समानुपाती। अर्थात शरीफों के सम्मान की रक्षा करने पर पुलिस का मनोबल बढ़े, उनकी नाक और मूँछें दोनो ऊपर उठ जाएँ। काश ऐसा हो सकता।

१ अगस्त २०११

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