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हास्य व्यंग्य

पागलपन के पक्ष में
-वीरेंद्र जैन


हे भावी आत्महत्यारो!, आत्महत्या मत करो, क्यों कि उसका परिणाम देखना सम्भव नहीं होता। ऐसा अंधा काम ठीक नहीं। इस प्रयास में वैसे तो अधिकांश बहादुर असफल हो जाते हैं, जो बाद में देख पाते हैं कि असफलता सदैव ही उपहास का पात्र बनाती है। लोग पीठ पीछे कहते है कि साले को मरना- वरना तो था नही एक कुप्पी मिट्टी की तेल और खराब कर दिया। आत्महत्या में असफल हो जाने के बाद जो फजीहत होती है उसे देखकर तो लगता है कि आत्महत्या ही कर लेना चाहिए। यह फजीहत पिछले असफल प्रयास की पृष्ठभूमि से ज्यादा ठोस कारण देती है।

वैसे न तो मैं कानून विशेषज्ञ की तरह यह बता रहा हूँ कि यह अपराध है और एक पवित्र व महान देश के महान नागरिकों को अपराध नही करना चाहिए और ना ही किसी उपदेशक की तरह इस वीर कर्म को कायरता कह कर भटकाने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरा तो पूरी विनम्रता के साथ यह कहना है कि जब आत्महत्या के विकल्प मौजूद हैं तो उन्हें भी आजमा कर देखो। आत्महत्या तो दाल बराबर घर की वो मुर्गी है जिसे बर्ड फ्लू भी नहीं हुआ है।

आत्महत्या करने से अच्छा है पागल हो जाना। पागल आदमी का पिछला जीवन समाप्त हो जाता है और इस तरह पागल हो जाने व आत्महत्या करने में केवल एक जान चले जाने से ज्यादा का फर्क नहीं है। बेचारे यम के दूतों को इमरजेंसी काल की तरह एम्बुलेन्स जैसे- भैंसों को लेकर अचानक भागना पड़ता होगा कि यार उसने अपनी आत्मा वक्त से पहले ही बाहर निकाल कर फेंक दी अब वह पड़ी हुई है। उनके पास कोई काम नहीं है सो ऐसी हरकतें करते रहते हैं अब अचानक ऑड टाइम पर आना पड़ रहा है। दूसरे ये आत्मा चीज ही ऐसी है जैसा कि गीता में कह गए हैं कि न यह नष्ट होती है, न आग में जलती है न पानी में डूबती है और आदमी के शरीर में से भी वैसी की वैसी निकल आती है। आत्मा न हुयी पालीथिन हो गयी। यम का दूत ऐसे ही कुड़ कुड़ाता हुआ आता होगा और आत्मा को इस तरह घसीट कर ले जाता होगा कि वह परमात्मा से मिलने लायक ही न बचती होगी।

इसलिए भैया पागल हो जाने में ऐसा कोई खतरा नहीं। आत्मा भी जहाँ की तहाँ और जीवन भी बदल गया। परसों तक आपका नाम पंडित राम भरोसे शुक्ला था पर कल से लोग आपको ' पागल शुक्ला ' कह कर उल्लिखित करेंगे। अब न खाने की चिंता न कमाने की। एक बार पागल हो गए तो इज्जत के जाने का डर हमेशा के लिए खत्म हो जाता है क्योकि यह इज्जत तो पागल होते ही ऐसे चली जाती है कि दुबारा वापिस आने और फिर चले जाने का क्रम ही समाप्त हो जाता है।

मध्यप्रदेश के मंत्री और अफसर भले ही कुछ भी कहते रहें, पर, भूख से मरने वालों में हमेशा वे लोग ही पाए जाते हैं जो पागल नहीं होते। पागल हो जाने पर आदमी ठाठ से जिन्दा रहता है। आपने किसी पागल को कभी भूखों मरते नही देखा होगा।

पागल आदमी कहीं भी सो सकता है कुछ भी पहिन सकता है। वह न वेजेटिरियन होता है न नानवेजटेरियन और न एगीटेरियन। न वह स्वाद का गुलाम होता है और ना ही किसी डाइटीशियन से पूछकर कैलोरी विटामिन और मिनरल्स लेता है, फिर भी ऐसा करने वालों से अधिक चुस्त दुरूस्त रहता है।

वैसे वह फिलॉसफर भी समझा जा सकता है और कवि भी । प्रेमी भी समझा जा सकता है और विद्रोही भी। उसे न नौकरी की जरूरत होती है न दुकान की। उसे न रेल में टिकिट लेने की जरूरत होती है और न रिजर्वेशन की। उसे कोई जेल में बन्द नही कर सकता। वह सारे देवी देवता अवतार तीर्थकर पैगम्बर सबको समान रूप से गाली दे सकता है इसलिए वह सर्वधर्म समभावी है और धर्म निरपेक्ष भी है। जब वह मंदिर की मूर्ति तोड़ देता है या मस्जिद में पेशाब कर देता है तो कोई दंगा नही होता अपितु नुकसान की भरपाई करते हुए भक्त कहते है कि वह तो पागल है। पागल का काम सिगरेट के बिना भी चल जाता है और शराब के बिना भी।

पागल को न हेयर स्टाईल की चिन्ता होती है न कपड़ों पर प्रेस कराने की। वह जूता और चप्पल दोनों एक साथ पहिन सकता है क्योंकि उसके भी दो पैर होते हैं तथा ऐसा ही एक जोड़ वह अपने आश्रयस्थल पर और रखे रहता है। वह देश में रहता है पर संकीर्ण राष्ट्रवाद से मुक्त होता है। वह वोट नहीं दे सकता है और न चुनाव में उम्मीद्वार हो सकता है इसलिए उसका नेता बनने और स्टिंग आपरेशन में फँसने का कोई खतरा नही रहता। उसे वोट माँगने वाले भी परेशान नहीं करते। वह बिना पैसे लिए सवाल पूछता रहता है।

दर असल आदमी इन्ही छोटी मोटी टुच्ची चीजों के कारण आत्महत्या के लिए छटपटाने लगता है जिसके प्रयास में कभी कभी उसकी जान भी चली जाती है पर पागल हो जाने पर वह इस संकट से मुक्त हो जाता है। जिन लाखों किसानों ने पिछले वर्षो में आत्महत्या कर ली हैं वे अगर मुझसे मिल लेते तो उन्हें मरने की जरूरत नहीं पड़ती और तो और कोई उनसे कर्ज वसूलने भी नही जा पाता।

पागल होने के लिए केवल थोड़ी सी बेशर्माई ही चाहिए, फिर तो वह कितने भी कपड़े उतार फेंके पर कोई कुछ नहीं कहता। कैसा भी पागल हिन्दी फिल्मों की हीरोइनों से अधिक ही कपड़े पहने रहता है।

इसलिए इस देश के पेड़ पौधों की रक्षा और जमीन को कब्रिस्तान बनाने से बचाने के लिए आत्महत्या न करें और पागल हो जाएँ।

४ जुलाई २०११

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