मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


हास्य व्यंग्य


चोरों की हड़ताल
दीपक दुबे


शहर मे चोरियाँ बिल्कुल नहीं हो रहीं है। पता किया तो झात हुआ कि चोर हडताल पर हैं क्योंकि आजकल यहाँ की पुलिस खासकर कोतवाल साहब ज्यादा ही सख्त हैं। इसी सख्ती से रुष्ट होकर आजकल चोर हडताल पर हैं। चोर हड़ताल पर? सुनकर मन में उत्सुकता जागी। जरा पड़ताल की जाये कि आखिर चोर जैसे सभ्य और सुसंस्कृत समाज को क्यों हड़ताल पर जाना पड़ा है। चोरों की माँगें क्या हैं? सारे देश, प्रदेश या फिर केवल शहर में ही यह हडताल है।

शंका का समाधान ढूँढते कई दिन यूँ ही निकल गये किन्तु समाधान ना मिला। इधर चोरी बिल्कुल बंद थी यहाँ तक कि लोगों ने तो अब अपने घरों मे ताले लगाने ही छोड़ दिये थे, बल्कि अब तो वे दरवाजे खुले छोड़कर फिल्म देखने जाने लगे थें। संपूर्ण समाज एक अब भय मुक्त समाज हो गया था। कानून व्यवस्था एकदम पटरी पर थी। अब लोग एक दूसरे को चोर की निगाह से नहीं देखते। ना ही अब कोर्इ्र किसी की दाढ़ी में तिनका ढूँढता। क्योंकि क्या फायदा जब चोर ही नहीं तो तिनका कैसा? चोर चोर मोसेरे भाई भी नजर नहीं आ रहे थे, वे भी सब हड़ताल पर थे।

मगर इस हड़ताल से सबसे बुरा प्रभाव पुलिस पर पड़ा था। वे सब इस हड़ताल से दुखी थे। ये वे पुलिस वाले थे जिनके लिए चोर टकसाल थे। ऊपरी कमाई का हिस्सा ज्यादातर इन्हीं चोरों से उन्हें प्राप्त होता था। फिफ़्टी परसेंट के मार्जिन से खासी कमाई हो जाती थी। किसी दिन चोरों के ज्यादा बड़ा हाथ मारने पर तो लाखों रूपये यूँ ही मिल जाते थे। मगर अब सब बंद हो गया था। आरक्षक से लेकर डीआईजी साहब तक सबको अब मलाई मिलनी बंद हो गई्र थी। यूँ कहें कि कमाई का शीतल झरना बंद हो गया था। पुलिस परिवार भुखमरी की कगार पर आ गये थे। घर मे घरवालियों के ताने बढ़ गये थे, वे अपने पतियों को उकसातीं, चोरों से बात करो ना जी शायद वे मान जायें शहर में सब ओर शांति ही शांति थी। कानून व्यवस्था नियंत्रण में थी। टोटल रामराज्य था फिर भी व्यापारियों का एक वर्ग दुखी था, क्योंकि उनके ताले और तिजोरियों का धंधा मंदा था। लोग इनकी ओर देखते भी नहीं थे।

इधर शहर के नेताओं में भी बैचेनी थी उनके सारे दोस्त जो हड़ताल पर थे। खर्चा पानी का संकट आन पड़ा था। कार्यकर्ता अब बिदकने लगे थे। जब चाय नाश्ता ही नहींतो काहे के नेता? कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूट पड़ा। इधर कोतवाल साहब भी परेशान थे जाहिर है जिस कोतवाल के रहते जितनी ज्यादा चोरियाँ होती हैं उसे ही विभाग मे अच्छा माना जाता है अवार्ड दिये जाते हैं। वैसे ही जैसे कि जिस नेता के राज मे साम्प्रदायिक दंगे ज्यादा होते हैं, वह जितने ज्यादा आदमियों को मरवाता है उसे पब्लिक हाथों हाथ लेती है।

आखिर जब कई दिन यूँ ही गुजर गये तो चोरों ने शहर के अपने आकाओं, नेताओं से संपर्क कर कुछ जुगाड़ करने की गुहार लगाई। चोरों ने अपनी व्यथा बताई। नेताओं ने बडे पुलिस अफसरों से संपर्क साधा। शहर के कोतवाल को बदल दिया गया। चोरों की माँग थी कि उनकी हफता वसूली की दरें भी रिवाईज की जायें क्योंकि सबको देने लेने के बाद उन्हें कुछ नहीं बचता है। इसके लिए एक कमेटी बनाई गई जिसमें नेता, चोरों के एक सरगना और पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया। यह कमेटी अपनी रिपोर्ट एक साल में देगी तब तक पुराने रेट पर हफ्ता वसूली जारी रहेगी।

चोरों ने चोरी करने के लिए और अधिक सुविधाओं की माँग की उन्होंने चोरी के कार्य्र में प्रयुक्त होने वाले यंत्र जेसे टार्च, आरी,हथौडे, नकाब, दस्ताने आदि पर सब्सिडी दिये जाने की माँग की। जिसे मंजूर किया गया। मीटिंग के दौरान पुलिस अधिकारियों ने चोरों के कार्यों की भूरी भूरी प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि सब कलाओं मे चौर्य्र कला अर्थात चोरी की कला सर्वाधिक कठिन है इसलिए हमें इस कला का सम्मान करना चाहिए और इस कला को विलुप्त होने से बचाना चाहिए। हमारे देश में कलाओं को संरक्षण दिया जाता है। इसे भी संरक्षण देना होगा। इतना कहकर उन्होंने चोरों के प्रतिनिधियों से हड़ताल खत्म करने की अपील की। चोरों ने हड़ताल खत्म करने का निर्णय लिया। कहते हैं कि उस दिन शहर में एक हजार से अधिक घरों मे चोरियाँ हुईं कर्इ्र दिन के भूखे शेर की तरह खाली बैठे चोरों ने ताबड़तोड़ चोरियाँ कीं।

१९ मई २०१४

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।