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हास्य व्यंग्य


नया नौ दिन
- भावना सक्सेना


नया साल ज़िंदगी की डायरी का वह नया कोरा कागज है जिसपर अगले वाले ३६५ दिनों में बहुत कुछ लिखा जाता है। कुछ हम लिखते हैं तो कुछ आप लिखा जाता है। बहुतों का मानना है कि यदि पहला दिन अच्छा गुजरे तो आने वाले सभी दिन अच्छे होंगे या फिर जो पहले दिन करो वही साल भर होता रहेगा। अब तक तो हमने ऐसा होते हेखा नहीं, अधिकतर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में साल का पहला दिन अवकाश होता है लेकिन वह पूरे वर्ष अवकाश रखती हों ऐसा तो नहीं, मान्यताएँ जो भी हों बहरहाल हम सब की कोशिश यही होती है कि कुछ विशेष करें कुछ अच्छा करें। कुछ यह प्रयास थोड़ा कम करते हैं और कुछ जरा ज्यादा...

अब अपने शर्मा जी को ही देख लो उनका नया साल पिछले कुछेक सालों से बड़ी नई नई अदाओं के साथ प्रवेश कर रहा है। २०१३ की बात है कि उनके सुपुत्र का कॉलेज में पहला वर्ष था, चलन के अनुसार जितना उत्साहित सुपुत्र था उतने ही उत्साहित शर्माजी थे। होनहार का कॉलेज के दोस्तों के साथ पार्टी का प्रोग्राम था, उदारवादी पिता बच्चों पर सख्ती के पक्षधर नहीं थे, उनकी स्वयं की पीढ़ी नए पुराने के द्वंद्व से उलझ कर जी रही थी, उन्होंने एक आदर्श पुत्र और एक अच्छा पति व पिता होने के सारे तमगे तो हासिल किए पर वह खुद हमेशा उलझे रहे। इसलिए नहीं चाहते थे कि बच्चों के सामने ऐसी उलझन आए। उन्होंने हमेशा यह माना कि संस्कार सही हों तो समझ अपने आप आ जाती है।

खैर वह तो कहानी ही और है, शर्मा जी ने साहबजादे को पार्टी में जाने की अनुमति के साथ बढ़िया नए कपड़े बड़ी खुशी से दिलाए, चूक यह हो गई कि दुकानदार ने भुगतान के बाद जब डेबिट कार्ड लौटाया तो वह बिल के साथ सुपुत्र ने सँभाल लिया, शर्मा जी अपने होनहार को नए सूट में देख गदगद हो रहे थे, डेबिट कार्ड की ओर ध्यान न गया। ऐसा पहले भी हुआ था, बस इसके बाद जो हुआ वह नया था। पार्टी कॉलेज के पास ही एक रेस्तराँ में थी, जवान जोश में शायद सुपुत्र ने कार्ड बढ़ा दिया होगा। शुभकामना संदेस इतने आ रहे थे कि मोबाइल पर जब डेबिट की सूचना आई तो उन्होंने गौर न किया। पहली तारीख की सुबह जब शर्मा जी ने मित्रों को शुभकामनाएँ देने के लिए फोन उठाया सोचा मोबाइल के संदेस भी देख लें, वे स्वयं संदेस न भेजकर बात करने के पक्ष में रहते थे, अरे भई सिर्फ रीत न निभाओ, हालचाल भी ले लो। एक एक कर संदेस पढ़कर पत्नी को सुना रहे थे तभी एकाएक बीच में आया संदेस देखकर उनके हाथों के तोते उड़ गए, संदेस था – “ आपके खाते से बिल सं. ... के भुगतान के लिए ३५००० रु. काटे गए हैं। सेवा प्रयोग करने के लिए धन्यवाद” मोबाइल बेचारा बस गिरते गिरते बचा! साहबजादे अल सुबह लौटे थे सो गहरी निद्रा में थे। खैर बाद में उनके पास कोई स्पष्टीकरण हो ऐसा भी न था, बस तीन दिन सॉरी पापा सॉरी पापा की रट लगाए रहे, पापा बेचारे करते तो क्या, खैर एक सांत्वना थी कि बच्चे को अपनी भूल का एहसास है। यही नया क्या कम था। और कसूर सारा लड़के का तो न था, वह खुद ही अपना कार्ड सँभाल कर रखते तो ऐसा क्यों होता।

अगले साल बिटिया कॉलेज में थी, शर्मा जी एकदम सतर्क रहे, क्रेडिट कार्ड तो इस बार बैंक के लॉकर में रख दिया था। दूध का जला छाछ भी फूँकता है, बिटिया को थीम पार्टी का आमंत्रण था, खुशी थी कि बिल विल का झंझट न होगा और शर्माजी बेटा-बेटी में फर्क करने वालों में थे नहीं, बेटे को मना नहीं किया तो बेटी को क्यों करते। यह और बात हुई कि जब तक बिटिया पार्टी में रही शर्माजी पार्टीस्थल की सड़क के मोड़ पर चोरों की तरह खड़े रहे और बमुश्किल गश्त पर घूम रहे हवलदार को समझा पाए कि वह वहाँ क्यों जमे हुए हैं, लड़की का पिता था बेचारा सहानुभूति से समझ गया...नई बात होते होते रह गई कि वह हवालात जाने से बचे। हाँ नया साल जरूर नए ढंग से आया...सुनसान सड़क पर अकेले!

पिछले साल उन्होंने सोचा क्यों न ऐसा कुछ करें कि बच्चे इस बार घर में रहें, अर्धांगिनी से सलाह ली, बच्चों से राय-शुमारी की, नतीजा यह कि अपने बच्चों के साथ साथ रिश्तेदारों पड़ोसियों के हमउम्र व दोनों बच्चों के मित्रों को भी आमंत्रित किया गया। सब व्यवस्था बच्चों ने कर ली थी, काफी खर्च हुआ पर बच्चे घर पर रहे यह क्या कम था। खाना-पीना नाच गाना...ज्यों-ज्यों घड़ी का काँटा आधी रात यानी ग्यारह बजकर साठ मिनट की तरफ़ बढ़ा नाच और गाने की लय तेज़तर होती गई, वह भी मगन हो आनंद लेते रहे, बेटे ने उनका हाथ पकड़ नाचने को उठाया तो मना न कर सके, खुश थे बच्चे और उनके दोस्त इतनी तवज्जो दे रहे हैं। भावोद्वेग में थो कि अचानक न जाने क्या हुआ वह अपने को सँभाल न पाए। होश आया तो अस्पताल में थे। कुछ खास न था, उत्तेजना और थकान के कारण मूर्छित हुए थे, पर सब बेहद घबरा गए थे। हाँ उन्हें अस्पताल का बिल न भरना पड़ा क्योंकि चार दिन पहले ही सरकारी घोषणा हुई थी – वह अखबार अब तक उनके पढ़ने की मेज पर था जिसमें खबर थी - शहरवासियों के लिए खुशखबरी है। स्वास्थ्य विभाग नए साल पर लोगों को निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएँ देने जा रहा है। इतना ही नहीं सभी प्रकार के टेस्ट भी निशुल्क किए जाएँगे। तसल्ली हुई चलो सरकार के नए प्रयास का लाभ उठाने में पहले रहे।

इस बार देख रहे हैं कि बच्चे अपने अपने दोस्तों के साथ नए साल की तैयारी में है...नया साल मनाने को घर में बस वह और उनकी अर्धांगिनी रह जाएँगे, अर्धांगिनी प्रातः जल्दी उठ वंदना प्रार्थना से नया साल शुरु करने के पक्ष में थी और करती भी थी, रात्रि चाहे कितने बजे बिस्तर पर पहुँचें भोर की किरन उनसे जीत न पाती थी। सो शर्माजी कमर कस कर तैयार हैं इस बार वह करने को जो भोर की किरन न कर पाई है। आखिर उनकी माँ भी तो यही करती थी और शास्त्रों में भी यही लिखा है।

२९ दिसंबर २०१४

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