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पर्व पंचांग  १४. १. २००८

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
यू.के. से कादंबरी मेहरा की कहानी धर्मपरायण
हवाई जहाज़ से सीढ़ियों की रेलिंग पर दोनों हाथ टेक कर वह धीरे-धीरे एक-एक सीढ़ी नीचे उतरी। रीटा को विश्वास नहीं हुआ कि यह वही संगीता है जो अभी केवल पाँच वर्ष पहले तक नौकरी और गृहस्थी दोनों निबाहती रही है। दिल्ली में पूरे समय के नौकर अब मिलते ही कहाँ हैं। एक बर्तन सफ़ाई वाली लगा रखी थी। शायद अवकाश ले लेने के बाद मानसिकता बदल जाती हो। बेटी की शादी हो गई है। बेटा बाहर चला गया। कोई ज़िम्मेदारी ख़ास बची नहीं है। मन में मान बैठी है कि आराम करने की उसकी उम्र है अब। इससे तो नौकरी ही भली थी। बेकार जल्दी छोड़ दी। ऊँह! रीटा को क्या! चलने दो इसे अपनी रफ्तार पर! इसके कारण वह क्यों थम जाए? इसीलिए जहाज़ पर से उतरने में उसने अपेक्षाकृत अधिक तत्परता दिखाई। पुष्पक की यह एक यादगार उड़ान थी।
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सप्ताह का विचार
एक पल का उन्माद जीवन की क्षणिक चमक का नहीं, अंधकार का पोषक है, जिसका कोई आदि नहीं, कोई अंत नहीं। --रांगेय राघव

 

अभिरंजन कुमार का व्यंग्य
आतंकवाद बड़े काम की चीज़

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आज सिरहाने
रांगेय राघव का उपन्यास- घरौंदा

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क्या आप जानते हैं?
विश्व में मछलियों की कम से कम २८,५०० प्रजातियाँ पाई जाती हैं अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संगठन (आई. यू. सी. एन.) के अनुसार कम से कम ११७३ प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है।   -अमित प्रभाकर

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महेश परिमल का ललित निबंध
कागा रे मोरे बाबुल से कहियो

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मकर संक्रांति के अवसर पर
डॉ. गणेश कुमार पाठक का आलेख
मकर संक्रांति: एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

 

अनुभूति में-
जगदीश श्रीवास्तव, डॉ. शरद सिंह, ज्योत्स्ना मिलन, रमेश चन्द्र शाह  और कृष्ण बिहारी की रचनाएँ

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कलम गही नहिं हाथ
  एक था लखटकिया राजा। लखटकिया यानी जिसके पास एक लाख रुपये हों। बड़े राजों महाराजों के ख़ज़ानों में तो सैकड़ों नौलखे हार होते थे। नौलखे यानी नौ लाख रुपयों के। पर लखटकिया राजा की शान में इससे कोई कमी नहीं होती थी। लखटकिया हुआ तो क्या, था तो वह राजा ही। इतिहास ने करवट ली। हारों का समय गया और कारों का समय आया। नौ लाख वाली कारों के मालिक भी कम नहीं होंगे भारत में, पर लखटकिया राजा की लाज रखी रतन टाटा ने। बने रहें लखटकिया राजा बनी रहे लखटकिया कार!
  हार, कार और बदलता संसार एक तरफ़, हम ठहरे शब्दों के सिपाही सो, सलाम उस पत्रकार को जिसने लखटकिया जैसे प्यारे और पुराने शब्द में फिर से जान फूँकी, नैनो-रानी के बहाने। हिंदुस्तानी चैनलों का इस नन्हीं सी जान पर फ़िदा हो जाना तो स्वाभाविक है लेकिन मध्यपूर्व के अखबार भी रंगे पड़े हैं ढाई हज़ार डॉलर में मिलने वाली दुनिया की सबसे सस्ती कार के किस्सों से। किस्सा तो नैनो के नाम का भी है पर वह फिर कभी...
-पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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