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पर्व पंचांग ३. ३. २००८

इस प्ताह महिला दिवस विशेषांक में
समकालीन कहानी के अंतर्गत भारत से
सुधा अरोड़ा की कहानी एक औरत तीन बटा चार
एक बीस बरस पुराना घर था। वहाँ चालीस बरस पुरानी एक औरत थी। उसके चेहरे पर घर जितनी ही पुरानी लकीरें थीं।
तब वह एक खूबसूरत घर हुआ करता था। घर के कोनों में हरे-भरे पौधे और पीतल के नक़्क़ाशीदार कलश थे। एक कोने की तिकोनी मेज़ पर ताज़े अखबार और पत्रिकाएँ थीं। दूसरी ओर नटराज की कलात्मक मूर्ति थी। कार्निस पर रखी हुई आधुनिक फ्रेमों में जड़ी विदेशी पृष्ठभूमि में एक स्वस्थ - संतुष्ट दंपति के बीच एक खूबसूरत लड़की की तस्वीर थी। उसके बगल में सफ़ेद रूई से बालों वाले झबरैले कुत्ते के साथ एक गोल मटोल बच्चे की लैमिनेटेड तस्वीर थी। घर के साहब और बच्चों की अनुपस्थिति में भी उनका जहाँ-तहाँ फैला सामान साहब की बाकायदा उपस्थिति की कहानी कहता था।

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सप्ताह का विचार
नारी की करुणा अंतरजगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं।
-- जयशंकर प्रसाद

 

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वीरेंद्र जैन का व्यंग्य
लेखक पत्नी संवाद

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डॉ. सतीशराज पुष्करणा की लघुकथा
कुमुदिनी का फूल

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क्या आप जानते हैं?
कैनेडा में महिलाओं की औसत आयु ८०.६ वर्ष है, जो पुरुषों की औसत आयु से सात वर्ष अधिक है।

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दीपिका जोशी "संध्या" की पड़ताल
महिलाएँ- कुछ तथ्य कुछ आँकड़े

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बृजेश शुक्ला का आलेख
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

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अनुभूति में- राजेंद्र गौतम, शशि जोशी,  हरेंद्र सिंह नेगी, दिव्यांशु शर्मा और नरेश शांडिल्य की रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ
महिला दिवस की बात होती है तो यह चर्चा होती है कि महिलाएँ कहाँ-कहाँ पिछड़ी हैं। पिछड़ेपन के कारण क्या है, और इन्हें कैसे दूर किया जाए। किसी समस्या को देखने का यह एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण है, जिसका विश्लेषण सहज है, अनुसरण कठिन।
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समाज में तो यही देखा जाता है कि किस क्षेत्र में महिलाएँ सफल हैं, सब अपनी बेटियों का उसी ओर भेजना पसंद करते हैं। सत्तर के दशक में आम समझ यह थी कि लड़कियों के लिए चिकित्सा या अध्यापन का व्यवसाय ही बढ़िया है। लड़कियों का पत्रकार बनना लोगों को अटपटा महसूस होता था। मेरी सास को इस बात से काफी ठेस पहुँची थी कि मेरे ऑफ़िस में मेरे सिवा और कोई भी महिला नहीं थी। मेरे लिए उनको यह समझाना कठिन था कि यह अपमान की नहीं गर्व की बात है।
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आज मीडिया में हर जगह महिलाएँ हैं। शायद आज वे जीवित होतीं तो इस बात पर गर्व कर सकतीं। समय के साथ दुनिया बदलती है। अगर आपकी बेटी समय से कुछ पहले बदलना चाहे तो उसकी मदद करें।  -पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

 

 

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