| 
          कलम गही नहिं हाथ  
  
            
            
            
          हाय गजब! कहीं तारा टूटा 
                  तारों को ऊपरवाले ने होशियार हाथों 
                  से आसमान में चिपकाया है वे टूटते नहीं लेकिन जब टूटते हैं तो 
                  लोगों का दिल भी लूटते हैं। तारों का टूटना लोगों को कभी डराता 
                  है तो कभी आकर्षित करता है लेकिन खगोल-वैज्ञानिकों के लिए यह 
                  अध्ययन की वस्तु है। वे तारों के टूटने का समय पहले से जानकर 
                  उनके विषय में जानने के लिए तरह-तरह के उपकरणों से लैस होकर कर 
                  घंटों प्रतीक्षा करते हैं। ऐसा ही एक दिन था इमारात में विगत १२ 
                  अगस्त को जब लगभग १०० तारा-प्रेमी दुबई ऐस्ट्रोनॉमी ग्रुप के 
                  नेतृत्व में, आधी रात के बाद गहराते अंधेरे में तारों की बरसात 
                  देखने शहर से दूर रेगिस्तान के लिए निकले। शहर से दूर इसलिए कि 
                  दुबई की तेज़ रोशनी आकाश तक को इतना उजला बनाती है कि रात में भी 
                  तारे दिखाई नहीं देते।  
                  रात एक बजे यह कारवाँ "दुबई हत्ता 
                  मार्ग" पर "मरगम" के शांत कोने में पहुँचा। अगस्त का महीना 
                  इमारात के लिए मौसम की दृष्टि से सुखद नहीं होता। बेहद गर्मी, 
                  उमस और हर समय रेत के तूफ़ान का डर- ऐसे में रेगिस्तान पर्यटकों 
                  और रेत-खेलों के शौकीनों के लिए भी बंद होता है, लेकिन आज का दिन 
                  विशेष था इसलिए सुरक्षा के विशेष प्रबंधों के साथ 
                  खगोल-वैज्ञानिकों और तारा-प्रेमियों का यह दल यहाँ आ पहुँचा। 
                  विशेष इसलिए कि सन २५८ के बाद से हर साल अगस्त के महीने में जब 
                  पृथ्वी पर्सियस के स्विफ़्ट ट्यूटल धूमकेतु की धूल के बादलों के 
                  बीच से गुज़रती है तब खुले काले आकाश में तारों की बरसात का 
                  अनोखा दृश्य देखने को मिलता है। हालाँकि तारों की बरसात जुलाई 
                  में शुरू हो चुकी थी लेकिन स्पष्ट दृश्य और साफ़ मौसम को ध्यान 
                  में रखते हुए १२ अगस्त के दिन का चुनाव किया गया। "मरगम" पहुँचते ही हवा 
                  कुछ चंचल हो उठी और ठहरे हुए धूल के कण जहाँ तहाँ समाने लगे पर 
                  आसमान शांत था और धीरे से उगते हुए चाँद ने सबको आकर्षित कर 
                  लिया। सदस्यों ने रेत पर अपने-अपने स्थान ग्रहण किए और टेलिस्कोप 
                  की नज़र आसमान की ओर मोड़ दी। दुबई ऐस्ट्रोनॉमी ग्रुप के अध्यक्ष 
                  हसन अहमद हरीरी ने तारों की अंतहीन दुनिया का परिचय दिया जबकि 
                  सबकी आँखें दूरबीन से नज़दीक खींचे गए आसमान पर टिकी रहीं।
                   
                  अचानक एक तेज़ रोशनी चमकी और लकीर 
                  खींचती हुई गुम गई। आकाश पर आँखें गड़ाए लोगों में प्रसन्नता की 
                  लहर दौड़ गई। फिर एक और रौशनी... फिर एक और... रुक रुक कर यह 
                  दृश्य बनता तो रहा लेकिन जिस तारों की बरसात का सपना लेकर लोग 
                  यहाँ पहुँचे थे वह लुका-छिपी ही खेलती रही, खुलकर सामने नहीं आई। 
                  समय बीतने लगा कुछ लोग १८० डिग्री दृश्य के लिए लेट गए। सहसा 
                  हल्की हवा शुरू हुई, शायद यह तेज़ हो जाने वाली थी। कुछ लोग 
                  लोगों ने सुरक्षा की दृष्टि से कारों में चले जाना ठीक समझा पर 
                  कुछ सर्जिकल मास्क पहन मैदान में डटे रहे। धीरे-धीरे रेत, हवा और 
                  चाँदनी ने लोगों के आराम को छीनना शुरू किया तो गिने चुने 
                  बहादुरों को छोड़कर अधिकतर लोगों ने मैदान छोड़कर चले जाने में 
                  ही खैर समझी। कुल मिलाकर इस साल तारे तो टूटे पर हाय गज़ब! कहने 
                  को लोग तरसते ही रह गए। कोई बात नहीं अगस्त तो अगले साल फिर 
                  आनेवाला है। फ़िलहाल, आँखों देखे हाल के लिए प्रस्तुत है इस घटना का
                  
                  एक छोटा वीडियो टुकड़ा गल्फ़ न्यूज़ के सौजन्य से। 
          पूर्णिमा वर्मन१७ अगस्त २००९
 
 
           पुनः - डॉ. सुषम बेदी के 
          पूर्व-घोषित कहानीसंग्रह का पीडीएफ डाउनलोड 
      २४ अगस्त के अंक में दे रहे 
          हैं।पू.व.
 |