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कलम गही नहिं हाथ  

 

 

 

अति की भली न धूप

गरमी के मौसम ने दस्तक दे दी है और विश्व के बहुत से देशों में सुख का मौसम शुरू हो गया है। कहते हैं कि सर्दी के बादलों से ढँके आकाश और छोटे दिनों के कारण जब ठंडे देशों में सूरज की रोशनी नहीं मिलती तो अनेक लोगों को दर्द, थकान और अवसाद की अनुभूति होती है। उनके लिए ग्रीष्म ऋतु वह सुहावना समय है, जब चित्त खुशी से भरा रहता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सूरज का प्रकाश हमारे मस्तिष्क में एंडोरफ़ीन और सेरोटोनिन के निर्माण की प्रक्रिया को बढ़ा देता है। एंडोरफ़ीन में थकान और दर्द से लड़ने की स्वाभाविक शक्ति होती है इसलिए सूरज की रोशनी ठीक-ठाक न मिले तो थकान और दर्द बढ़ जाते हैं। सिरोटोनिन का असंतुलन हमारे मन में अवसाद पैदा करता है। सूरज के प्रकाश से इसमें संतुलन आते ही हमें सब कुछ अच्छा लगने लगता है।

सूरज का प्रकाश हमारे जीवन का आवश्यक तत्त्व है और सर्दियों की दोपहर में रोज़ कुछ देर धूप सेंकने से रात में अच्छी नींद आती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि धूप की पर्याप्त मात्रा लेने से रात में हमारे शरीर में मेलाटोनिन की मात्रा बढ़ जाती है। मेलाटोनिन वह हारमोन है जो शांतिपूर्ण नींद में सहायक होता है और बूढ़े होने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है। सूर्य का प्रकाश शरीर के अनेक हारमोनों का संतुलन बनाने में सहायक होता है जिससे अनेक शारीरिक व मानसिक परेशानियों को दूर किया जा सकता है। धूप में निहित सूरज की पैराबैंगनी किरणें स्वाभाविक एंटीसेप्टिक का काम करती हैं। वे हवा, पानी और त्वचा सहित दूसरी अनेक सतहों पर पनपने वाले अनेक विषाणु, जीवाणु, फफूँद, कवक, खमीर, और दमकियों को स्वाभाविक रूप से नष्ट कर देती हैं। त्वचा पर नियमित रूप से धूप दिखाने से मुँहासे, फोड़ों, जोड़ों के दर्द त्वचा की एलर्जी, सोरेसिस और खुजली में आराम देखा गया है। धूप पीलिया का भी प्रभावशाली इलाज है। कुछ अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि धूप स्तन, बड़ी आँत और प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में सहायक है। मालूम नहीं इस विषय पर भी शोध हुए हैं या नहीं कि जिन देशों में सूर्य की रोशनी अधिक होती है, दिन बड़े होते हैं, बादल शायद ही कभी दिखाई देते हैं और वर्षा लगभग नहीं होती वहाँ के लोगों में अधिक रोशनी और धूप का क्या प्रभाव पड़ता है। इमारात की धूप यूरोप जैसी निरापद नहीं है। इसकी तेजी त्वचा और आँखों को गहरा नुक्सान पहुँचाती है। दोपहर के तेज़ तापमान में बिना एअरकंडीशंड सवारी के घर से निकल पड़ना मौत का कारण बन सकता है।

आज जब पर्यावरण के लगातार बिगड़ने से धरती की ओजोन परत में पैराबैंगनी किरणों को छानने की शक्ति कम हुई है, धूप से त्वचा के जल जाने, चकत्ते पड़ जाने और खुजली होने के लक्षण सामान्य सी बात है। बहुत कम आयु में बाल सफ़ेद हो जाने और आँखों में मोतियाबिंद हो जाने की शिकायतों का कारण भी धूप की तेज़ी को माना गया है। इनसे सुरक्षा के लिए जहाँ एक ओर सन शील्ड क्रीमों की बड़ी शृंखला बाज़ार में है वहीं यू वी किरणों को रोकने वाले काले चश्मों का प्रयोग भी आम हो गया है। तरबूज़, दही और खीरे के दैनिक सेवन को भी महत्त्व दिया गया है। कुल मिलाकर यह कि धूप से प्रेम रखना सभी परिस्थितियों में सबके लिए समान रूप से उचित नहीं ठहराया जा सकता,  दादा कबीर भी तो कह गए हैं- अति की भली न धूप...

पूर्णिमा वर्मन
१२ अप्रैल २०१०
 

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