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कलम गही नहिं हाथ   

 दुबई के भंडारे फ्रिज

विश्व के जिन देशों में अत्यधिक अमीर लोग रहते हैं, वहाँ भी गरीब लोगों की भी कमी नहीं, ऐसे गरीब जो दो वक्त का भोजन भी न जुटा सकें। दुबई रईसों का शहर माना जाता है लेकिन यहाँ भी बहुत से लोग गरीबी में फँस जाते हैं। विदेश से काम करने आए हुए लोग जिनकी नौकरी छूट गयी और अन्य कोई मदद उपलब्ध नहीं। अचानक अस्वस्थ पड़ जाने से जिनका काम बंद हो गया ऐसे लोगों के लिये जीवन यापन कठिन हो जाता है विशेष रूप से तब जब भीख माँगना अपराध की श्रेणी में आता है और जिसके लिये जेल जाने की सज़ा हो।

दुबई का प्रशासन इन सब परेशानियों से अवगत है और ऐसे लोगों को भोजन कराने के लिये उन्होंने विशेष रूप से सार्वजनिक फ्रिजों की स्थापना की है। इन फ्रिजों में अधिकतर टिन में बंद खाना रखा जाता है। फ्रिज के अंदर पकी हुई तूना के डिब्बे, दूध, आइस्क्रीम, अंडे दही, मक्खन, ब्रेड और पानी आदि होते हैं।  ये फ्रिज आकार में काफी बड़े होते हैं और इनके दरवाजे पारदर्शी होते हैं ताकि लोग देख सकें कि इनके भीतर क्या है। कुछ ऐसे लोग जो बहुत व्यस्त हैं और जिनके पास भोजन के लिये घर जाने का समय नहीं वे भी इनका लाभ उठा सकते हैं। ये फ्रिज आमतौर पर अस्पतालों, सुपर-मार्केटों आदि के पास लगाए जाते हैं।

दुबई में यह परंपरा काफी पुरानी है। रमजान के महीने में व्यक्तिगत रूप से लोग अपने घरों के बाहर ऐसे फ्रिज लगाते थे। लेकिन दुबई की रहने वाली फिकरा येल ने जब लगभग तीन वर्षों तक अपने घर के बाहर एक फ्रिज लगाया तो २०१६ में इससे प्रेरित होकर, २९ वर्षीय ऑस्ट्रेलियाई महिला सुमैया सैयद ने जून की शुरुआत में एक परियोजना शुरू की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रमजान के पवित्र महीने में कोई भी भूखा न रहे। उनका विचार रेफ्रिजरेटर को आसानी से सुलभ स्थानों पर रखना था - जैसे कि बरामदे या गैरेज में - और उन्हें भोजन और पेय पदार्थों के साथ स्टॉक करना था जो कि रमज़ान का पालन करने वाले कर्मचारी अपना उपवास तोड़ने के लिये उपयोग कर सकते हैं। उनकी इस पहल के बाद, शहर भर के निवासी इस तरह के फ्रिज स्थापित करने और उसमें भोजन के लिये उपयुक्त भरने के लिये करने के लिये एक साथ आए और रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान गरीबों और भूखों को भोजन और पेय उपलब्ध कराने में मदद की। बाद में इनमें से बहुत से फ्रिजों को कभी हटाया नहीं गया और ये सालभर जरूरतमंदों के काम आते रहे।

शेयरिंग फ्रिजों की बढ़ती संख्या को स्थापित करने के लिये आयोजकों ने जो नक्शा बनाया है, वह बताता है कि यह परियोजना शारजाह और अबू धाबी सहित अन्य इमाराती शहरों तक फैल गई है। संयुक्त अरब इमारात में लगभग ५० लाख कम वेतन पाने वाले प्रवासी कामगार हैं, जिनमें से अधिकांश दक्षिण एशियाई हैं, जो भयावह परिस्थितियों में रहते हैं। इन फ्रिजों से विशेष रूप से दिन की कठिन गर्मी में काम करने वाले माली, सुरक्षा गार्ड और निर्माण श्रमिकों को लाभ पहुँचता है, जिनमें से कई १०० डिग्री फ़ारेनहाइट (३७ डिग्री सेल्सियस) से अधिक तापमान में बाहर काम करते हैं।

धीरे धीरे इस तरह की बहुत सी संस्थाएँ सामने आईं और एक इंटरेक्टिव मानचित्र जारी किया गया जिससे पता चलता है कि आप कहाँ पर दान कर सकते हैं और कहाँ से भोजन और पेय ले सकते हैं। साथ ही गूगल मैप पर भी इन फ्रिजों की लोकेशन चिह्नित की गयी। आयोजकों का कहना है कि यहाँ दान करने के लिये कोई बहाने न खोजें इसे अपने जीवन का उद्देश्य बनाएँ। इस प्रकार लोगों को प्रेरित करती हुए ये संस्थाएँ फ्रिज के लिये भोजन और पेय एकत्रित करती हैं। पका हुआ ताजा भोजन इन फ्रिजों में नहीं रखा जाता। इसका एक कारण यह है कि ताजा भोजन निश्चित समय के बाद खराब हो जाता है।

फ्रिज एक दिन में सैकड़ों लोगों को खाना खिलाते हैं। सामुदायिक फ्रिज वाली इस परियोजना को भारी सफलता प्राप्त हुई। वर्तमान में लगभग २५,००० से अधिक लोग इससे जुड़े हैं और २०२२ के मानचित्र के अनुसार केवल दुबई में ८८ फ्रिज स्थित थे, जो पूरे शहर के विभिन्न स्कूलों, टावरों और विलाओं में फैले हुए थे। यह कार्यक्रम विशेष रूप से पूरे रमज़ान के दौरान जारी रहा। बाद में काफी फ्रिज हटा दिये गए। इसके बावजूद बहुत से फ्रिज साल भर जरूरतमंदों के भोजन की जरूरत को पूरा करते रहे। वर्ल्ड फूड दिवस १६ अक्टूबर को भी इमारात में हर जगह इन फ्रिजों की उपस्थिति देखी जा सकती है।

वर्ष २०२३ में शहर भर में १७० से अधिक फ्रिज स्थापित किए गए थे, जिससे ब्लू कॉलर श्रमिकों को गर्मियों के दौरान खाने और पीने के लिये बहुत कुछ मिल सके। फ्रिज के लिये आवश्यक भोजन में जूस, सोडा, दूध, लाबान (एक प्रकार की नमकीन लस्सी) और पैकेज्ड खाद्य पदार्थ शामिल हैं। फल और सब्जियाँ भी पसंदीदा में से हैं - हालाँकि पका हुआ भोजन नहीं रखा जाता। मैनेजर ऐनी मुलकाही ने कहा कि इस साल रमज़ान के पहले दिन २० नये फ्रिज बाहर रखने के लिये तैयार हैं, लेकिन वह यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि वे हमेशा स्टॉक में रहें।

यह सब कुछ हमारे देश में चलने वाले लंगरों जैसा हैं लेकिन एक विशेष अंतर यह है कि हमारे यहाँ सार्वजनिक भंडारों या लंगरों में ताजा खाना परोसने की परंपरा है। शायद विश्व में ताजे खाने वैसी परंपरा किसी भी देश में नहीं जैसी हमारे देश में है। ऐसा तो नहीं हो सकता कि उन्हें ताजे खाने का महत्व और डिब्बाबंद खाने के दुष्प्रभाव की ठीक से जानकारी न हो। शायद उनका विचार यह है कि भूखे रहने की तुलना में डिब्बाबंद खाना बेहतर विकल्प है।

पूर्णिमा वर्मन
१ अक्टूबर २०२३

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