चित्रलेख

    


आकाश में घुलने लगा सवेरा
बादलों का नन्हा सा छौना
रंगों में डूबा
ज़रा सा स्र्का
और चल दिया
नयी दिशा की ओर
भरता हुआ कुलांचें
झाड़ियों ने उठा दीं अपनी
वत्सल बाहें
खुशियों की तरह
फैलने लगे रंग
दिन उगने लगा धीरे धीरे

 

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