मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


टिकट संग्रह

हस्ताक्षर वाले डाकटिकट
गोपीचंद श्रीनागर


१९८६ में जारी रवींद्रनाथ ठाकुर के हस्ताक्षर वाला डाकटिकट


महापुरुषों के चित्र वाले बहुत से डाकटिकट प्रकाशित होते हैं लेकिन साथ में हस्ताक्षर भी हों ऐसे डाकटिकट बहुत कम होते हैं। इसलिये ऐसे डाकटिकट संग्रहकर्ताओं के लिये अधिक रोचक बन जाते हैं। हस्ताक्षर युक्त ऐसा पहला डाकटिकट ७ मई १९६१ को रवींद्रनाथ ठाकुर की सौवीं जयंती के अवसर पर जारी किया गया था। इस १५ नये पैसे वाले डाकटिकट पर गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर का एक अति भव्य चित्र दिया गया है। गुरुदेव के ये हस्ताक्षर उनके द्वारा खोले गए डाकघर बचत बैंक खाते से मिले थे।

समाज सुधारक तथा आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की मातृभाषा गुजराती अवश्य थी लेकिन राष्ट्रहित में उन्होंने हिंदी को प्रमुखता से अपनाया था और अपनी समस्त पुस्तकों की रचना हिंदी में कर के इसके प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित किया था। ४ मार्च १९६२ को निकले १५ नये पैसे मूल्य एक गेरुए डाकटिकट पर महर्षि हस्ताक्षर हिंदी में किये गए हैं। टिकट के ऊपरी भाग में उनके जन्म १८२४ व निर्वाण १८८३ का वर्ष अंकित है।

विदेशों में घूम घूम कर भारत के सिद्धांतों का प्रचार करने वाले स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रमख शिष्य स्वामी विवेकानंद पर १७ जनवरी १९६३ को निकाले गए १५ नये पैसे वाले लंबे आकार के डाकटिकट पर स्वामी विवेकानंद गौरवपूर्ण चित्र साथ उनके हस्ताक्षर भी दिये गए है। शिकागो के विश्वधर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने अपने विद्वत्तापूर्ण भाषणों और चित्ताकर्षक वेशभूषा से हिंदू धर्म की पताका फहराई थी।

एक समय ऐसा भी था जब मातृभूमि को जल्द से जल्द आजाद कराने की भारतीय युवकों में होड़ लगी हुई थी। नेता जी सुभाषचंद्र बोस ऐसे युवकों के नेता थे। आजाद हिंद फौज बनाकर अंग्रेजों को ईंट का जवाब पत्थर से देने वाले इस भारतीय महापुरुष पर कई डाकटिकट निकाले गए हैं। १५ पैसे के पीले भूरे डाकटिकट, जिसमें उन्हें आजाद हिंद फौज के सेनापति के रूप में दिखाया गया है, उनके हस्ताक्षर भी सम्मिलित किये गए हैं। २३ जनवरी १९६४ को प्रकाशित इस टिकट में उनकी सेना इंडियन नेशनल आर्मी का प्रतीक चिह्न भी प्रदर्शित किया गया है।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर उनकी मृत्यु के बाद १५ पैसे का एक डाकटिकट १२ जून १९६४ को निकाला गया था। इस नीले स्लेटी डाकटिकट पर अपार जनसमूह के साथ ही साथ पंडित जी के हस्ताक्षर हैं। हस्ताक्षर के नीचे उनके जन्म १८८९ तथा निर्वाण १९६४ के वर्ष मुद्रित किये गए हैं।

सरस्वती पत्रिका के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का नाम हिंदी खड़ी बोली के निर्माताओं के रूप में लिया जाता है। उन्होंने अपने जीवनकाल में जो अभूतपूर्व काम किए थे उसका प्रतिफल आज राष्ट्रभाषा के रूप में सबके सामने आ गया है। इस महापुरुष पर भारतीय डाकतार विभाग ने १५ मई १९६६ को १५ पैसे मूल्य का एक भूरा स्लेटी डाकटिकट निकाला था, जिस पर उनके हस्ताक्षर विद्यमान हैं। बायीं ओर तिरछे घुमाकर उनकी जन्म १८६४ तथा निर्वाण १९३८ के वर्ष मुद्रित किये गए हैं।

स्वामी रामतीर्थ (१८७३-१९०६) वेदांत की जीती जागती मूर्ति थे। इनकी वाणी के शब्द शब्द से आत्मानुभूति का उल्लास टपकता था। केवल ३३ वर्ष की अल्पायु में कैसे इन्होंने आत्मज्ञान के प्रकाश से देश विदेश को आलोकित किया, यह एक चमत्कार जैसा है। उनकी पचासवीं वर्षगाँठ के अवसर पर भारतीय डाकतार विभाग द्वारा ११ नवंबर १९६६ को १५ पैसे का डायमंड आकार में एक नीला डाकटिकट निकाला गया था। इस पर स्वामी जी के हस्ताक्षर हिंदी में किये गए हैं। इस टिकट की १५ लाख प्रतियाँ प्रकाशित हुई थीं और कागज के एक पत्र पर ११२ टिकट छापे गए थे। ये सभी टिकट इंडिया सिक्यूरिटी प्रेस ने छापे थे।

स्वामी कांजीवरम नटराजन अण्णादुरै अपनी मातृभाषा तमिल और अँग्रेजी के महापंडित थे। इनके भाषणों को सुनने के लिये अपार जनसमूह उमड़ पड़ता था। श्री अन्नादुरै पहले भारतीय और गैर अमरीकी थे जिन्हें येल विश्वविद्यालय ने छुग फैलोशिप प्रदान की थी। तमिल फिल्मो में भी उच्च स्थान रखनेवाले लोकप्रिय स्वर्गीय अण्णदुरै पर ३ फरवरी १९७० को २० पैसे का एक दुरंगा कत्थई नीला डाकटिकट निकाला गया था। इस डाकटिकट पर तमिल में उनके हस्ताक्षर हैं।

सन १९३० में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित महान वैज्ञानिक स्वर्गीय चंद्र शेखर वेंकटरमन ने विश्व विज्ञान जगत में भारत का नाम रौशन किया। भारत में विज्ञान की प्रगति के लिये उन्होंने सन १९३४ में बंगलुरु में भारतीय विज्ञान अकादमी की स्थापना की थी। २१ नवंबर १९७१ को उनकी पहली बरसी पर २० पैसे मूल्य का भूरा नारंगी डाकटिकट निकाला गया था। इस पर उनके चित्र के साथ साथ उनके हस्ताक्षर भी अमर हो गए हैं।

महात्मा गांधी के आवाहन पर आँध्र केसरी स्वर्गीय टी प्रकाशम अपनी चलती वकालत त्याग कर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। वे भारत के कुशल राजनयिकों में से एक माने जाते हैं। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने आँध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री का पद संभाला था। उन्हें आँध्र केसरी के नाम से भी जाना जाता है। भारत के इस सपूत पर १६ अक्तूबर १९७२ को २० पैसे का एक भूरा टिकट निकाला गया
था। इस डाकटिकट पर उनके हस्ताक्षर तेलुगू भाषा में हैं।

दलितों के मसीहा स्वर्गीय राम मनोहर लोहिया जितने अपने समाजवादी विचारो के लिये प्रसिद्ध थे उतने ही हिंदी के लिये समर्पित थे। संत कवि तुलसीदास की जन्मभूमि राजापुर (बाँदा) पर जुटनेवाला वार्षिक रामायण मेला इन्हीं की प्रेरणा की स्थायी निशानी है। हँसमुख प्रकृति के लोहिया जी पर निकले २५ पैसे वाले कत्थई डाकटिकट पर उनके हिंदी में हस्ताक्षर हिंदी प्रेमियों के लिये प्रेरणा के स्मारक हैं। १२ अक्तूबर १९७७ को जारी इस टिकट पर नाम के साथ उनके जन्म १९१० तथा निधन १९६७ के वर्ष मुद्रित किये गए हैं।

एक शिक्षाविद् के पुत्र स्वर्गीय श्यामा प्रसाद मुखोपाध्याय को विद्वत्ता विरासत में मिली थी। भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामाप्रसाद मुखोपाध्याय का आदर्श वाक्य था- देश सबसे पहले है। भारतवर्ष की जनता उन्हें एक प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में स्मरण करती है और उनकी मिसाल एक कट्टर राष्ट्र भक्त के रूप में दी जाती है। इनका देहांत श्रीनगर की जेल में २३ जून १९५३ को हुआ था। १९०१ में जन्मे इस आदर्शवादी महापुरुष पर ६ जुलाई १९७८ को २५ पैसे का स्लेटी रंग का एक डाकटिकट निकाला गया था जिस पर इनके हस्ताक्षरों को भी प्रकाशित किया गया हैं।

तमिलनाडु में ईवीआर के नाम से प्रसिद्ध स्व. ई वेंकटरामस्वामी एक ऐसे महान सेनानी व देशभक्त थे जिन्होंने सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जोरदार आंदोलन छेड़ा था। इस भारतीय सपूत पर १७ सितंबर १९७८ को निकले २५ पैसे के काले डाकटिकट पर तमिल भाषा किये गए हस्ताक्षर हैं। टिकट पर हिंदी तथा अँग्रेजी में उनके नाम के बाद जन्म १८७९ तथा निर्वाण १९७३ के वर्ष मुद्रित किये गए हैं।

बंगाल में समाजसुधार की जो जबरदस्त लहर ब्रह्मसमाज के रूप में चली थी उसके प्रवर्तकों में राजाराम मोहन राय और महर्षि देवेंद्र नाथ ठाकुर के साथ केशव चंद्र सेन का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। छुआछूत, जाति प्रथा, नारी शिक्षा, मद्य निषेध, स्वदेशी आदि मुद्दों को लेकर चला यह आंदोलन भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो चुका है। नम्रता की मूर्ति केशव चंद्र सेन पर १५ अप्रैल १९८० को जारी किये गए ३० पैसे के इस भूरे डाकटिकट पर उनके हस्ताक्षर भी हैं। दाहिन ओर उनके जन्म १८३८ तथा निर्वाण १८८४ के वर्ष मुद्रित किये गए हैं।

भला आज के युग में स्वर्गीय प्रेमचंद का नाम कौन नहीं जानता। हिंदी का यह प्रसिद्ध कहानीकार
एवं उपन्यासकार भारतीय जनमानस के संवेदनशील चित्रण के लिये विश्वविख्यात है। प्रत्येक भारतीय साहित्यकार के आदर्श इस महान लेखक की रचनाएँ विश्व की हर भाषा में अनूदित हो चुकी हैं। उनकी अनेक रचनाओं पर नाटक तथा फिल्मों का निर्माण हुआ हैं। सीधे सादे प्रेमचंद के ये सरल हस्ताक्षर ३१ जुलाई १९८० को निकले ३० पैसे के कत्थई डाकटिकट पर अंकित हैं।

प्रख्यात गांधी वादी देशभक्त स्वर्गीय नीलमणि फूकन असमिया के जाने माने कवि और पत्रकार हैं।  १९८१ में उन्हें अपने कविता संग्रह कोबिता के लिये असमिया के साहित्य अकादमी का पुरस्कार तथा १९९० में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनके अंतिम कविता संग्रह शतधारा में गाँधी और विनोबा की विचारधारा का प्रभाव देखा जा सकता है। २२ जून १९८१ को जारी किये गए ३५ पैसे के इस कत्थई डाकटिकट पर इनके हस्ताक्षर भी प्रकाशित किये गए हैं। नाम के नीचे उनके जन्म १८८० तथा निर्वाण १९७८ के वर्ष मुद्रित किये गए हैं।

दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर (१८८५-१९८१) गांधीवादी देशभक्त के रूप में जाने जाते हैं। वे सामाज सुधारक, भारतीय विद्याविद, इतिहासविद, शिक्षाविद् तथा पत्रकार थे। साबरमती आश्रम में कुछ समय तक रहकर उन्होंने सर्वोदय नामक पत्रिका का संपादन किया था। बाद में उन्होंने मराठी दैनिक राष्ट्रमत के संपादक मंडल में काम किया। अहमदाबाद में स्थित गुजराती विद्यापीठ की स्थापना में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। काका साहब कालेलकर की स्मृति में २ अक्तूबर १९८५ को जारी ५० पैसे के डाकटिकट पर उनके हस्ताक्षर हिंदी में अंकित हैं।

भारत के नवें  राष्ट्रपति (कार्यकाल २५ जुलाई १९९२ से २५ जुलाई १९९७ तक) डा. शंकर दयाल शर्मा की स्मृति में १७ अक्तूबर 2000 को जारी ३०० पैसे मूल्य के डाकटिकट पर उनके हस्ताक्षर देखने को मिलते हैं। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे भारत के आठवे उपराष्ट्रपति भी थे। इसके अतिरिक्त वे भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री (१९५२-१९५६) रहे तथा मध्यप्रदेश राज्य में कैबिनेट स्तर के मंत्री के रूप में उन्होंने शिक्षा, विधि, सार्वजनिक निर्माण कार्य, उद्योग तथा वाणिज्य मंत्रालय का कामकाज संभाला था। केंद्र सरकार में उन्होंने संचार मंत्री के रूप में (१९७४ से १९७७ तक) भी पदभार संभाला। इस दौरान वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष (१९७२-१९७४) भी रहे।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण (११ अक्तूबर, १९०२ - ८ अक्तूबर, १९७९) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। उन्हें १९७० में इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष के नेतृत्व के लिए जाना जाता है। ११ अक्तूबर २००१ में उनकी स्मृति में जारी किये गए ४०० पैसे के डाकटिकट पर उनके हस्ताक्षर दर्ज हैं।

अंत में उस सहस्राब्दी महापुरुण महात्मा गांघी के संयुक्त स्मारक डाकटिकटों की चर्चा कर देना उचित होगा। इन्हें भारत व दक्षिण अफ्रीका ने मिलकर एक साथ २ अक्तूबर १९९५ में जारी किया था। इन संयुक्त डाकटिकटों पर बाईँ ओर के टिकट पर दक्षिण अफ्रीका में युवा वकील गांधी का चित्र अंकित है। १०० पैसे मूल्य वाले इस टिकट पर गाँधी जी के अँग्रेजी हस्ताक्षर हैं, जबकि दाहिनी ओर गाँधी जी का भारत में प्रचलित महात्मा रूप अंकित है। २०० पैसे मूल्य वाले इस टिकट पर उनके हिंदी हस्ताक्षर देखे जा सकते हैं।

२० दिसंबर २०१०

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।