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इतिहास


 
फरवरी महीने का इतिहास
- संदीप कुमार सिंह


फरवरी, साल का इकलौता ऐसा महीना जिसमें होते हैं सबसे कम २८ दिन। हाँ हर चौथे साल २९ फरवरी भी आती है। लेकिन कभी सोचा है क्यों होते हैं फरवरी में सिर्फ २८ या २९ दिन? हो सकता है आप में से कई लोगों ने सोचा भी हो। हमने भी यही सोचा और ढूँढ लाये इसका जवाब। तो आइये जानते हैं क्यों होते हैं फरवरी में २८ दिन, फरवरी महीने का इतिहास में-

फरवरी साल का दूसरा और सबसे छोटा महीना होता है। यह एक मात्र महीना है जो बिना अमावस या पूर्णिमा के भी निकल सकता है। फरवरी का महीना जिसमें पूर्णिमा नहीं थी, वर्ष २०१८ में बीता है और अगली बार ऐसा अवसर वर्ष २०३७ में आएगा। वहीं बिना अमावस के फरवरी का महीना वर्ष २०१४ में बीता था और अब अगली बिना अमावस के फरवरी वर्ष २०३३ में आएगी। यह एकमात्र ऐसा महीना है जो हर छह साल में एक बार और हर ११ साल में दो बार, या तो अतीत में वापस जाता है या भविष्य में आगे जाता है, जिसमें ७ दिनों के पूरे चार सप्ताह होते हैं।

फरवरी का नामकरण

फरवरी का नाम लैटिन शब्द फेब्रू से आया है, जिसका अर्थ है "शुद्ध करना।" महीने का नाम रोमन फेब्रुलिया के नाम पर रखा गया था, जो साल के इस समय होने वाले शुद्धिकरण और प्रायश्चित का एक महीने तक चलने वाला त्योहार था। इस त्यौहार में रोमन लोग फरवरी में मृतकों का सम्मान और शुद्धि के संस्कार करते थे।
बहुत पुरानी बात है उस समय जनवरी और फरवरी नाम के महीनों का कोई अस्तित्व नहीं था। क्योंकि रोमन के लोग शीत ऋतु को महीनों में नहीं गिनते थे। ये महीने तो रोमन शासक नूमा पोम्पिलिअस ने ७१३ ई.पू. ग्रेगोरियन कैलंडर में जोड़े। उस समय एक साल में ३५४ दिन होते थे। रोमन में साम्राज्य में सम संख्या को अशुभ माना जाता था। इसलिए नूमा पोम्पिलिअस ने वर्ष में एक दिन बढ़ा कर विषम यानि कि ३५५ दिन कर दिए। परन्तु यह बात राज ही रह गयी कि फरवरी माह को सम संख्या (२८ दिनों) के साथ क्यों छोड़ दिया गया।

कितने दिन थे पहली फरवरी में

मजे कि बात यह थी कि नूमा पोम्पिलिअस के शासन में फरवरी में २३ या २४ दिन हुआ करते थे। अधिवर्ष में फरवरी महीना २७ दिनों का कर दिया जाता था। और अधिवर्ष भी आज की तरह ४ साल बाद नहीं बल्कि २ साल बाद ही आता था। इतना ही नहीं राज्य में काम करने वाले कर्मचारी इसे अपनी सहूलियत के हिसाब से आगे पीछे भी कर लेते थे।
कब मिला फरवरी को दूसरे महीने का स्थान। फरवरी महीना उस समय से लेकर ४५० ई.पू. तक साल का आखिरी महीना हुआ करता था। यह बदलाव रोमन साम्राज्य के १० लोगों की समिति ने किया। उन्होंने ने फरवरी को दूसरा महीना घोषित किया। तब से लेकर आज तक यह अंग्रेजी वर्ष का (ग्रेगोरियन कैलेंडर का) दूसरा महीना ही होता है। यह भी सवाल उठता है कि क्या कभी फरवरी में ३० दिन होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि हर ४ हजार वर्षों के बाद फरवरी में दो दिन बढ़ जाएँगे और तब फरवरी का महीना ३० दिन का होगा।

जूलियन कैलेंडर में फरवरी

साल में दिनों के कम ज्यादा होने के कारण सारे आयोजन अपने समय से पहले या बाद में आते थे। इसलिए इसके बाद जूलियस सीजर द्वारा प्रस्तावित जूलियन कैलेंडर प्रचलन में आया। जो ४६ ई.पू. में रोमन कैलंडर को सुधार कर बनाया गया था। इसमें ३६५ दिन एक साल में रखे गए। हर चौथा साल अधिवर्ष मतलब ३६६ दिन का होता था। यहीं से शुरू हुआ था फरवरी में २८ दिनों का होना और अधिवर्ष में २९ दिनों का होना।

ग्रेगोरियन कैलंडर

ग्रेगोरियन कैलंडर पोप ग्रेगोरी तेरहवें ने अक्टूबर १५८२ में शुरू किया। यह कैलेंडर जूलियन कैलेंडर जैसा ही था। इसमें फर्क बस इतना था कि १०० से भाग होने वाले वर्ष , जैसे कि १७००, १८००, १९०० और २००० यदि ४०० से भाग होते हैं तो उन्हें अधिवर्ष की तरह गिना जायेगा। इनमें से १७००, १८०० और १९०० ४०० से भाग नहीं होते इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर में ये अधिवर्ष नहीं माने जाते। जबकि जूलियन कैलेंडर में हर चौथा वर्ष अधिवर्ष होता है। जूलियन कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर के इसी अंतर के कारण इन दोनों में १३ दिन का अंतर आ चुका है। वर्ष २१०० में १ दिन का और अंतर बढ़ जायेगा।

क्या है अधिवर्ष का वैज्ञानिक कारण

धरती सूरज का एक चक्कर ३६५ दिन और ६ घंटे में लगाती है। ३६५ दिनों को अलग किया जाए तो ६ घंटे बचते हैं। इन्हीं ६ घंटों को ४ साल तक इकठ्ठा करने के बाद बनते हैं २४ घंटे। २४ घंटे में होता है पूरा एक दिन। यही एक दिन हर चौथे साल फरवरी के महीने में जोड़ दिया जाता है। इस तरह बनता है २९ फरवरी वाला अधिवर्ष।

१ फरवरी २०२३

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