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					 रात को ही 
					सोचकर सोयी थी कि सुबह आराम से उठूँगी अक्सर रविवार की सुबह 
					देर से ही उठना होता फोन की घण्टी ने अचानक ही नींद से जगा 
					दिया कनफोड़़ू और कर्कश लग रही थी फोन की घण्टी अलसाते हुए सब 
					एक-दूसरे को ताकते प्रतीक्षा कर रहे थे कि कोई रिसीवर उठाने की 
					पहल करे ‘‘देखो तुम्हारा ही होगा’’ कहते हुए मृगांक ने ताकीद 
					दी मैंने अलसाकर और मन ही मन भुनभुनाकर रिसीवर मुँह पर लगाते 
					हुए कहा-‘‘हलो’’..... उधर से कानों में रस टपकाती लड़की की आवाज 
					आयी-‘‘ जी आप पूर्णिमा जी बोल रही हैं मैंने मैंने झल्लाते हुए 
					कहा ‘जी कहिए।’
 उधर से आवाज 
					आयी-‘‘....देखिए सौ लोगों में से आपके नाम का ड्रा निकला है। 
					आपके नाम एक लाख रुपये का इनाम है इसलिए हमने आपको फोन लगाया 
					हैं।’’
 
 मैं सोचने लगी आए दिन सुनते रहते थे कि आजकल कई कम्पनियाँ इनाम 
					के नाम पर आम जनता को बेवकूफ बना रही हैं उस लड़की की बात सुनते 
					ही मैं सतर्क हो गयी मैंने कहा, ‘‘कैसा इनाम?’’ वह समझाते हुए 
					बोली- ‘‘मैडम हमारी कम्पनी लोन देती है और बीमा भी करती है उस 
					कम्पनी के द्वारा कस्टमर को प्रोत्साहित करने के लिये इनाम की 
					योजना रखी गयी है।’’
 
 एक लाख रुपये की रकम 
					सुनकर मन कुछ उत्साहित हो गया।
 उसकी आवाज फिर आयी, ‘‘ मैडम आज रविवार को हमने दस बजे ग्रान्ट 
					होटल में एक मीटिंग रखी है आपको यहाँ आकर कुछ फॉर्मेलिटी पूरी 
					करनी है।’’
 मैं जैसे नींद से जागी, मैने उससे कहा आपका नाम ?
 ‘‘मैं दीपा जादौन’’ उधर 
					से खनकती आवाज आयी।
 शायद मेरी अन्यमनस्कता को भाँप गयी थी फिर से आग्रहपूर्वक 
					बोली-‘‘मैडम! आइये जरूर, नहीं तो आप इस गोल्डन चान्स को खो 
					देंगी।’’ फिर जैसे अपना पासा फेंकती-सी बोली, ‘‘आपके हसबैन्ड 
					किस जॉब में हैं ?’’
 ‘‘जी स्वास्थ्य विभाग में हैं।’’
 सुनते ही जैसे वह खिल गयी ‘‘डॉक्टर हैं ?’’
 मेरा सिक्सथ सेंस चालू हो गया था, आवाज से तो लगता है ये 
					खूबसूरत है।
 मैंने टालने के उद्देश्य से कहा -‘‘जी मैं अवश्य आती हूँ।’’
 सुबह सबेरे फोन की आवाज 
					ने सबको जगा दिया था पति ने मजाकिया लहजे में पूछा-‘‘किस चाहने 
					वाले का फोन आ गया सुबह-सुबह ? बड़ी खिली -खिली लग रही हो ?’’
 मैंने खीझते हुए कहा-‘‘मेरी नींद हराम हो गयी और आपको चेहरा 
					खिला-खिला लग रहा है, आपको दृष्टिदोष हो गया है।’’
 
 घर के कामों में दस ना जाने कब बज गए थे ११ बजे फिर से फोन 
					बजा, फिर वही खनकती आवाज उभरी, ‘‘मैडम हम आपका वेट कर रहे हैं, 
					प्लीज! आइये आप कब तक आ रही हैं।’’ मै सोच रही थी-‘‘ये प्लीज 
					भी अजब बला थी सच मानो, सॉरी और थैंक्यू से भी बड़ी सीधे दिल 
					में उतरती चली गयी उसकी ‘प्लीज’ न जाने किस परेशानी में कम्पनी 
					की सिफारिश कर रही है वह मैंने कहा, ‘‘देखिये जब ये घर आएँगे 
					तब मैं आ पाऊँगी।’’
 
 ‘‘मैडम आप सर का 
					कॉन्टेक्ट नम्बर दे दीजिए, मैं उनसे रिक्वेस्ट कर लूँगी।’’ मैं 
					उसे मोबाइल नम्बर देने में सकुचा रही थी आजकल मोबाइल पर ही 
					रिश्ते बनाना आसान हो गया हैं मैने कहा, ‘‘जी मैं बात करती 
					हूँ, हो सकता है वो किसी मीटिंग में व्यस्त हों।’’
 
 दीपा भी तो यही चाहती थी कि पूर्णिमा ही फोन लगाए पति दुनिया 
					के सब काम छो़ड़ सकता है, बीवी के आग्रह को नहीं पूर्णिमा ये 
					नहीं समझ पायी सहज व सरल स्वभाव वाली, गृहस्थी चलाने वाली 
					महिलाएँ घर की गाड़ी चलाने में तो निपुण होती हैं पर दूरदृष्टि 
					और व्यावसायिक समझ परख वो ही समझ पाती हैं जिन्होंने कार्पोरेट 
					की दुनिया में कदम रख लिया है उनके लिये व्यक्ति सिर्फ प्राणी 
					नहीं वरन उपभोग करने का माद्दा रखने वाला नवसिखिया जीव है जो 
					आसान तरीकों और थोड़े से प्रलोभन से उनके जाल में फँस जाता है।
 मैंने तुरन्त इन्हें फोन 
					लगाया और याद दिलाया कि होटल जाना है।
 
 हम होटल ग्रान्ट में पहुँचे होटल के बाहर ही बैनर लगा था 
					चमक-दमक और साज-सज्जा के साथ अन्दर उस कम्पनी ने आकर्षण की 
					चौपड़ फैला रखी थी घुसते ही एक काउन्टर था, जिस पर एक लड़की बैठी 
					थी, उसके पास दो व्यक्ति पहले से बैठे थे- उनकी भाषा में 
					कस्टमर व्यक्ति की उपमाएँ किस तरह बदल जाती हैं समय और 
					परिस्थिति के हिसाब से व्यावसायिक क्षेत्र में जो कस्टमर है 
					वही जेल की दुनिया में कैदी, अस्पताल में मरीज, वाहन में सवारी 
					और अन्य अनेक जगह अलग-अलग नामों का फरेब ...कस्टमर किसी 
					प्रपत्र को भरने में लगे थे।
 हम लोगों को 
					देखकर उसने हँसते हुए स्वागत किया और कहा-‘‘हलो, आइ एम 
					स्वाति।’’ कहने के साथ ही उसने हाथ आगे बढ़ा दिया उसने मुझसे 
					हाथ मिलाया फिर मृगांक से मृगांक ने भी उतनी ही गर्मजोशी से 
					हाथ मिलाया मैं बारी-बारी से दोनों के चेहरे देख रही थी दाएँ 
					तरफ भी एक बड़ी मेज और कुछ खाली कुर्सियाँ पड़ी थीं छोटे-छोटे 
					काउन्टर बना दिये गए हैं हमें बैठने को कहा गया मेरी नजरें 
					चारों ओर घूम रही थीं, सामने तखत रखकर एक छोटी सी स्टेज भी बना 
					दी गयी थी, शायद उद्घाटन 
					के लिये जो अब तक हो चुका था वहाँ पड़ी कुर्सियों पर दो 
					सूटबूटेड सज्जन बैठे थे, कुछ कागजों में उलझे हुए।
 लड़की ने हमें एक फॉर्म दिया जिसे भरना था... अपना नाम..पता... 
					फोन नम्बर...व्यवसाय आदि।
 औपचारिकता पूरी कर दी थी हमने लड़की ने उस फॉर्म को एक रजिस्टर 
					पर चढ़ाकर एक फाइल में वो फॉर्म रखकर स्टेज पर बैठे सज्जनों की 
					तरफ प्यून से पहुँचवा दिया होटल के पूर्व दिशा की ओर एक बड़ी-सी 
					टेबिल थी, वहाँ एक लड़की जींस और जैकेट पहने बैठी थी कुर्सी पर 
					दो पुरुष और दो महिलाएँ बैठे थे, लगता था दो परिवार हैं
 
 सबका स्वागत करने वाले अलग-अलग थे पुरुषों के लिये ड्रेस कोड 
					था, स्काय ब्लू शर्ट और काली पतलून के साथ लाल रंग की टाई 
					लड़कियाँ जीन्स और जैकेट में चहक रही थीं सब सुन्दर और आकर्षक 
					व्यक्तित्व की धनी अब स्कूलों में भी सुदर्शना टीचर की माँग 
					होने लगी है व्यावसायिकता स्तर पर तो और भी अधिक आकर्षक 
					व्यक्तित्व को प्राथमिकता दी जा रही है डिग्री के साथ सौन्दर्य 
					जैसे योग्यता को प्रमुखता न देकर सिर्फ उपयोगिता के रूप में 
					उपभोक्ता का स्वरूप प्रदान कर दिया गया है। उत्पाद बेचना है तो 
					महिलाओं को काम पर लगा दो।
 
 अब हम लोगों को दीपा 
					जादौन की टेबिल पर बिठा दिया गया था उसने हाथ बढ़ाकर कहा -दीपा 
					जादौन।
 मैंने हाथ मिलाया, फिर मृगांक ने।
 पुरुषों को हाथ मिलाने में बड़ा अच्छा लग रहा था टच थैरेपी जो 
					काम कर रही थी मृगांक के चेहरे के भाव बदल गए थे मैंने ध्यान 
					से देखा तो सकपका गए।
 हँसते हुए उसने हमें बैठने का इशारा किया बैठकर उसने एक कागज 
					पर पेन से कुछ लिखना शुरु कर दिया-‘‘जी सर आपका नाम ?’’
 ‘‘मृगांक ढेंगुला’’
 ‘‘आप शर्मा और ये ढेंगुला क्या लव मैरिज हुयी है?’’
 मैंने सोचा ये मना न कर दें इसलिये तपाक से कहा, ‘‘जी हाँ।’’
 ‘‘आप किस जॉब में हैं?’’
 ‘‘स्वास्थ्य विभाग में।’’
 फिर कुछ याद करती सी बोली - हाँ मैडम ने बताया था।
 पेन कागज पर चलाती हुयी बोली-‘‘ आपको पता है बीमा की कुल कितनी 
					कम्पनियाँ हैं.?’’...थोड़ी देर वह रुकी फिर उत्तर देती हुयी 
					बोली-‘‘कई हैं ...पर उनमें से रजिस्टर्ड केवल ३४ हैं, जिनमें 
					से कुल बीमा कम्पनी १९ काम कर रही हैं। इनमें से १० तो चल ही 
					रही होंगी।’’ उसने ध्यानपूर्वक बारी-बारी से हमारे चेहरे को 
					देखा वह संतुष्ट हो गयी कि हम ध्यान से उसकी बात सुन रहे हैं, 
					उसने फिर से बोलना शुरु कर दिया, ‘‘१० में से आदमी को चोइस 
					करने में परेशानी होगी हम 
					एक ही छत के नीचे आपको गाइड करेंगे और सलाह देंगे।’’
 ‘‘...देखिए आदमी चार सेक्टरों में पैसा इन्वेस्ट करता है... 
					बैंक में, पोस्ट ऑफिस में, शेयर मार्केट में और इन्श्योरेन्स 
					में हमारी कम्पनी पोस्ट ऑफिस को छोड़कर बाकी तीनों सेक्टर में 
					काम कर रही है।’’
 मैंने कहा, ‘‘पर हमें तो यहाँ इनाम के लिये बुलाया गया है ’’ 
					वह बोली, ‘‘मैं उसी बात पर आ रही हूँ।’’
 
 उसने धीरे से अपनी जैकेट की जिप ऊपर चढ़ाई, हम दोनों का ध्यान 
					उस ओर गया, वहाँ गोरे कबूतरों की जुड़वाँ जोड़ी हल्की विभाजक 
					रेखा के साथ दिखाई दे रही थी।शरीर कुलाँचे मार बाहर निकलने का 
					उद्यत है
 उसने समझाना शुरू किया, ‘‘इसके अन्तर्गत मकान निर्माण है, 
					इन्फ्रास्ट्रक्चर हैं हाउसलोन, क्लेम सेटलमेंट, इन्श्यारेन्श, 
					रिटायरमेन्ट पेंशन प्लान भी हैं इसमें टेक्स बेनेफिट भी 
					मिलेगा।’’ कहकर उसने हमारे चेहरों को बारी-बारी से देखा वह 
					जानती है टैक्स बचाने की सोच हर नौकरी वाला रखता है और अन्तिम 
					प्रयास तक उसे बचाए रखने के लिये कई जगह रुपये इन्वैस्ट करता 
					है।
 
 वह बोली-‘‘देखिये आजकल जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं हम घर से 
					निकलते हैं कई आशाओं के साथ... पर लौटना अनिश्चित होता है आज 
					जब हर तरफ आतंक और दुर्घटनाओं का बोलबाला है, हमारा जीवन 
					सुरक्षित नहीं है ऐसी स्थिति 
					में हम तो चले जाते हैं, पर हमारे अपने जो इस दुनिया में अकेले 
					रह जाते हैं उनके लिये आर्थिक व्यवस्था करना हमारी जिम्मेदारी 
					है।’’
 
 अब उसने मृत्यु और दुर्घटना का भय दिखाकर बीमे की बात शुरू कर 
					दी, ‘‘हमारे यहाँ एक्सीडेन्टीयल बीमा होता है, आते-जाते जब कभी 
					हमारे साथ कोई दुर्घटना घटित हो जाए तो हम पैसों के लिये 
					मोहताज नहीं होंगे।’’ तभी घण्टी बजी और दूसरे टेबिल पर अटैण्ड 
					कर रही लड़की ने कहा, ‘‘सब इनके लिये ताली बजाइये इन्हें वी आई 
					पी किट मिल गयी है इसकी कीमत एक लाख रुपये है।’’
 मेरे मन में जिज्ञासा उभर आयी, ‘‘मैंने कहा यह वी आई पी किट 
					क्या है ?’’
 दीपा मुस्कराती है, ‘‘ये एक लाख रुपये की एक्सीडेन्टीयल पॉलिसी 
					है, जिसे कम्पनी चलाएगी आपको सिर्फ छह हजार रुपये वार्षिक 
					किश्त भरना होगा इसमें लाइफ के इन्श्योरेन्स प्लान में ५ 
					वर्षों तक लगातार किश्त भरने पर बीस वर्ष तक रिस्क कवर बनी 
					रहती है इसमें यदि कोई कस्टमर तीन वर्ष तक भी किश्त जमा कर 
					चौथी पाँचवी किश्त जमा न करे तो भी बीमा बना रहेगा उसमें उसे 
					अपना घोषणा पत्र देना पड़ेगा। लेकिन यह तभी सम्भव है जब वह 
					पार्शियल विड्राल करे अर्थात् एक किश्त पहले वर्ष की छोड़कर शेष 
					दो किश्तों का पैसा ब्याज से निकाल सकता है क्लेम में १६
					डॉक्यूमेन्ट लगते हैं 
					अन्य कम्पनी के एजेन्ट वादे तो करते हैं पर उन्हें पूरा नहीं 
					करते।’’ उसकी वाणी में मिठास थी और वह वाक्पटु भी थी।
 
 थोड़ा रुककर वह फिर से बोली, ‘‘सौ रुपये वार्षिक देने पर एक लाख 
					का एक्सीडेंटीयल बीमा हो जाएगा जिसे कम्पनी चलाएगी, पर उसके 
					लिये आपको बीमा करवाना होगा।’’
 मेरा मन व्यग्र हो रहा था कम्पनी की सोची समझी चाल जिसे ग्राहक 
					कम्पनी की मेहरबानी समझ रही है वह दरअसल ग्राहक की जेब का ही 
					पैसा है जो दुर्घटना में मौत पर ही मिलेगा जैसे चलती फिरती 
					जिन्दगी में अर्थी की तैयारी।
 
 एक फोन नम्बर लिखकर उसने कहा, ‘‘हमारी कम्पनी का ये मूल नम्बर 
					है, आप जिस शहर का कोड लगा देंगे वहीं के चेयरमेन से बात हो 
					जाएगी बस आपके हाँ करने की देर है, वैसे भी अब केवल दो वी आई 
					पी ऑफर बचे हैं।उसने गहरे आत्मविश्वास से ‘इनकी’ आँखों में 
					झाँका कुछ देर ये भी उसकी आँखों में डूबते उतराते रहे मैंने 
					कोहनी से इन्हें टच करते हुए इनके सम्मोहन को तोड़ा।
 इन्होंने कहा-‘‘जी देखिये 
					हमें कोई बीमा नहीं कराना हम पहले से ही बीमाधारी हैं।’’
 जिन्दगी के प्रति मोह कितना होता है कि जीते जी मरने के बाद के 
					फायदों के बारे में सोचने लगता है व्यक्ति अपनी जरूरतों में 
					कमी करके,एक-एक पाई जोड़ेगा दुर्घटना की आशंका की पहले से 
					व्यवस्था... जिन्दगी को कितने व्यावहारिक तौर पर देखने लगे हैं 
					हम...एक व्यवसाय और उत्पाद की तरह।
 
 अन्य अटेण्डर लड़कियाँ भी सजी सँवरी घूम रही हैं। पेन्सिल हील 
					पहने खट्-खट् की आवाज लोगों के कानों में समाती जा रही है टाईट 
					जीन्स और जैकेट में वे किसी सुन्दर रोबोट का काम कर रही हैं, 
					जिसके इशारे पर कस्टमर अपना सब, उनके कहे अनुसार दांव पर लगाने 
					का आतुर है स्त्री के मानवीय सौन्दर्य की सहज अनदेखी हो रही 
					हैं उसे सिर्फ देह तक सीमित कर दिया गया हैं
 
 उसने फिर से पासा फेंकते 
					हुए कहा, ‘‘देखिए ! हमारे यहा १८ से २० परसेन्ट इन्टरेस्ट 
					मिलता है फिर प्यून से मुखातिब हुयी, ‘‘जरा इनका ऑफर चैक करना, 
					उसमें क्या इनाम है।’
 
 मैंने मृगांक से कहा, ‘‘कम्पनी इसे कितनी सेलरी दे रही होगी ? 
					उस सेलरी से ज्यादा यह श्रम कर रही है उसे तन्ख्वाह तो अपनी 
					बुद्धि की मिलती है पर देह को शस्त्र के समान प्रयोग में लाने 
					का उसे क्या मेहनताना मिलेगा ? ...स्त्री की नई छवि बनाने 
					बालों ने स्त्री को ‘अतिरिक्त मूल्य’ यानी सिर्फ श्रमिक बनाया 
					है जिसे मजदूरी भी पूरी नहीं मिलती बल्कि मुनाफा मालिकों की 
					तिजोरी में रहता है सिर्फ सुन्दर स्त्री ‘कमेरी’ स्त्री आजाद 
					स्त्री ऐसी सुन्दर और स्वतन्त्र स्त्री जो 
					राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय निगमों का माल, ब्राण्ड और उपभोक्ता 
					सामग्री बेच सके और मालिकों के लिए ज्यादा से ज्यादा मुनाफा 
					कमा कर दे सके, भले ही इस ‘यज्ञ’ में उसे चौराहे पर निर्वस्त्र 
					होना पड़े...।
 
 उसने बात बदलते हुए कहा, ‘‘ मैं ग्वालियर की रहने वाली हू, 
					भाभीजी आप कहाँ की रहने वाली हैं?’’
 अब वो मैडम की जगह भाभीजी कह रही थी उसने मेरी पूरी शिक्षा 
					ग्वालियर की नोट की थी और मुझे ग्वालियर के नाम से द्रवित करना 
					चाहती थी, आखिर मायका सब पर्यटन स्थलों से बड़ा होता है मुझे 
					उसका भाभीजी कहना भला लगा क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से मृगांक 
					उसके भाई थे मानवीय संबंध ब्राण्ड, 
					उत्पाद और कम्पनी की खातिर नवीन रूप और स्वरूप ले रहे थे।
 भाईसाहब आप कहाँ से हैं ?
 लाइये मैं आपका फॉर्म भर दू
 आपका नाम ...पूर्णिमा शर्मा
 वह अब वातावरण को पारिवारिक बनाती जा रही थी।
 आप ग्वालियर में कहाँ हैं,..? कहकर उसने अपने परिवार का परिचय 
					दिया, ‘‘मैं गोले के मंदिर पर रहती हूँ मेरे परिवार में मेरी 
					माँ और दो भाई हैं।’’
 चेहरा देखते हुए उसने फिर से प्रश्न दागा, ‘‘आपकी शादी कब हुयी 
					?’’
 इन्होंने जल्दी से कहा, ‘‘जी १९९३ में’’
 वह बोली, ‘‘मेरी भी सगाई हो गयी है, वो भी आर्मी में है, मैसूर 
					में।’’
 ‘‘हॉल में हल्का संगीत बज रहा था।’’
 ‘‘भाभीजी आपके बच्चे कितने हैं ?’’
 ‘‘दो’’
 ‘‘बड़े का नाम क्या है ?’’
 ‘‘ईशान’’
 ‘‘अरे ये नाम तो ‘तारे जमीं पर’ फिल्म में था।’’
 ‘‘दूसरा बेटा है या बेटी?’’
 ‘‘दूसरी बेटी है आयुषी।’’
 
 अब उसने अन्तिम हथियार फेंका, ‘‘आप लोग रिटायर हो जाएँगे तो 
					मकान की आवश्यकता होगी हर महिला का सपना होता है एक सुन्दर घर 
					में रहने का वह अब मुझे पटा रही थी, उसे गलत फहमी थी कि घर में 
					मेरी चलती है।’’
 थोड़ा रुककर बोली, ‘‘आपका 
					सपना साकार हो सकता है, हम करेंगे आपका सहयोग, हमारी कम्पनी 
					आपको लोन दे सकती है।’’
 
 कोने में बैठे कस्टमर को अटेण्ड करने वाली लड़की ने एक झुनझुना 
					बजाया और कस्टमर पति पत्नी के हाथ उपर उठाकर कहा - एक डील 
					फायनल हो गयी है सब इन्हें बधाइयाँ दें।’’
 
 अब तक मेरे मनोमस्तिष्क पर होमलोन असर करने लगा था मैंने इनसे 
					कहा हम कितने दिन से परेशान हो रहे हैं बैंकों के चक्कर 
					काट-काटकर, लोन पास नहीं हुआ, क्यों न इनसे ही लोन ले लिया जाए 
					?’’
 
 मृगांक को लग रहा था कि 
					नशा मुझपर हावी हो रहा है उन्होंने कहा, ‘‘अरे ये लोग अभी तो 
					लुभावने सपने दिखा रहे हैं बाद में चक्कर लगवाएँगे और ऊपर से 
					इन्टरेस्ट भी ज्यादा लेंगे आज जो कुछ भी कम्पनियाँ दे रही हैं 
					वह बाजार की और अपनी शर्तों पर केवल अपने फायदे के लिये देखने 
					में लगता है कि ग्राहक का फायदा है पर असल में कम्पनी का फायदा 
					होता है इसमें केवल।’’
 
 वे मुझे समझा रहे थे, ‘‘और देखो व्यावसायिक जाल फैलाने के लिये 
					आकर्षक युवा कर्मचारियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। ये सब 
					विषकन्या लग रही हैं, जो अपने कमीशन के फेर में सीधे-सादे 
					ग्राहकों के मनोमस्तिष्क में कम्पनी का जहर फैला रही है। जहाँ 
					एक तरफ आज की स्त्री आत्मविश्वास से भरी है वहाँ क्या स्त्री 
					का काम सिर्फ सजना सँवरना है? 
					ये उत्तेजित मुद्रा में थे 
					कौटिल्य का अर्थशास्त्र की पंक्तियाँ सुनाते हुए बोले-
 बन्धकीपोषकाः परमरूपयौवनाभिः स्त्रीभिः सेनामुख्यानुन्मादयेयुः
 स्त्रियों का पालन-पोषण करने वालों को चाहिए कि वे सुन्दर 
					रूपवती स्त्रियों के द्वारा प्रमुख व्यक्तियों को प्रमादी बनवा 
					दें।
 
 
  मैंने कहा, ‘‘तो फिर बीमा ही करवा लीजिए मैं जोर डाल रही थी 
					दुकान पर जाओ और खाली हाथ वापस आओ तो अच्छा नहीं लगता उत्साह 
					कम हो जाता है और मैं तो कई लोगों को अपने एक लाख रुपये के 
					इनाम के बारे में बता चुकी हूँ, अब मेरे स्वाभिमान का भी तो 
					सवाल है मैंने दलील दी। मृगांक कई उदाहरण देकर समझा रहे थे।
 थोड़ी देर बाद बीमे के उपलक्ष में हमारे लिए भी झुनझुना बजाया 
					जा रहा था ...हमारी समझदारी को विषकन्या ने डँस लिया था।
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