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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से शशिकांत सिंह शशि की कहानी— टोपियों वाला आदमी और बंदर


कथा वहीं से शुरू होती है। टोपियों वाला टोपियाँ बेचने जा रहा था। थक कर, पेड़ के नीचे सो गया। टोपियाँ लेकर बंदर पेड़ पर चढ़ गये। टोपियों वाले ने अपनी टोपी उतार कर उछाली तो बंदरों ने भी टोपियाँ चलाकर मारीं। इस प्रकार टोंपियों वाले को अपनी टोपियाँ मिल गईं। टोपियों वाला तो चला गया लेकिन जाते-जाते उसने बंदरों की ओर इशारा करके एक ऐसी बात कह दी जो उन्हें चुभ गई।
-"बंदर कहीं के। नकलची हो तुमलोग।"

बंदरो में विमर्श शुरू हो गया कि टोपियाँ क्यों वापस की गईं? बच्चे बंदरों ने लीडर बंदर से पूछा-
-"उस्ताद ! टोपियाँ वापस करके हमने अच्छा नहीं किया। हम पर नकलची होने का आरोप लग गया। यह कलंक कभी नहीं मिटेगा। आप तो अनुभवी हैं। आपको ज्ञात है कि आदमी किस प्रकार हमें बदनाम करने की मुहिम पर लगा रहता है। पहले ही उन लोगों ने उड़ा रखा है कि वे हमारे ही वंशज हैं। अब वक्त आ गया है कि हम आदमियों को मुँहतोड़ जवाब दें।"
लीडर मुस्कराया। उसने प्यार से किशोर बंदरों को देखा और फिर अपनी पूँछ को फटकाराता हुआ बोला-
-"पु़त्र, टोपी अत्यंत फसादी चीज होती है। तुमलोग नहीं जानते। हमने सही वक्त पर आदमी की टोपियाँ फेंक दीं। टोपियाँ नहीं देते तो वे कहते कि बंदर लालची होते हैं। टोपियाँ रख लीं। तुम्हें पता नहीं, आदमी इन टोपियों को पहनकर, कितना लड़ते हैं। सबसे बड़े नकलची तो खुद ही होते हैं। एक दूसरे की नकल उतारेंगे लेकिन एक दूसरे के विपरीत दिखने की कोशिश भी करेंगे। एक के सिर पर टोपी यदि काली होगी तो दूसरे के सिर पर उजली। एक यदि अपनी टोपी पर आम लिखेगा तो दूसरा कटहल। आम और कटहल आपस में लड़ेंगे। ये आदमी अत्यंत मुर्ख होते हैं। हमें इन टोपियों से दूर ही रहना है।"

किशोर बंदरों को तसल्ली नहीं हुई। उन्होंने फिर अपनी प्रतिक्रया दी।
-"आप हमें बहला रहे हैं। टोपी पहनकर बंदर भी सुंदर लग सकते थे। आपने हमारी टोपियाँ फिकवा दीं।"
बूढ़ा बंदर समझ गया कि टोपी थोड़ी देर के लिए ही माथे पर चढ़ी लेकिन उसका प्रभाव सिर चढ़कर बोल रहा है। यदि इन्हें अभी नहीं समझाया गया तो टोपी का नशा तो इन्हें ले ही डूबेगा। उसने थोड़ा चिंतन किया और बोला -
-"चलो देखते हैं कि आदमी के ऊपर टोपियों का क्या प्रभाव पड़ता है। मैं वापस आकर तुमलोगों को कहानी सुनाता हूँ। पहले यह तो सबित हो जाये कि नकलची कौन है।"
बूढ़ा बंदर लपकता हुआ गया। टोपियों वाला अभी मुश्किल से कुछ ही दूर गया था। उसने देखा कि एक बूढ़ा बंदर भागता हुआ आ रहा है तो घबराया। पहले तो उसने भागने की कोशिश की लेकिन जब उसने बंदर को मुस्कराते हुये देखा तो रुक गया। बंदर ने आकर उसे लंबी सलामी दी। दोनों हाथ जोड़कर बोला -
- "आप संसार के सर्वश्रेष्ठ जीव हैं। हम आपका अभिनंदन करते हैं। हमारी वजह से आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। यदि आप चाहें तो मैं आपकी सारी टोपियाँ बिकवा सकता हूँ। आप धनवान बन सकते हैं केवल टोपियाँ बेचकर।"
टोपियों वाला आदमी होने के नाते संदेही था। उसने संदेह से पूछा -
-"मुझे क्या करना होगा?"
-"आप मेरे साथ शहर चलें और टोपियाँ बेचें। सबसे पहले सफेद टोपियाँ बेचकर आप धन संग्रह करें। उसके बाद मैं आपको अगले रंग के बारे में बताऊँगा।"

बंदर और टोपियों वाला (सहूलियत के लिए नाम रख लेते हैं मगन भाई ) शहर की ओर चल पड़े। बंदर की सलाह पर बंदा दिल्ली आ गया। उसे बंदर ने बताया कि टोपियाँ पहनने और पहनाने का काम वहाँ खूब चलता है। जब वह पहुँचा तो अन्ना जी का आंदोलन चल रहा था। गहमा-गहमी सी थी। बंदर ने उसे सलाह दी कि दस टोपियों पर लिखवा दो -मैं अन्ना हूँ। उसके बाद देखो। बंदा मान गया। उसने दस टोपियों पर लिखवाया मैं अन्ना हूँ। उसे उम्मीद तो नहीं थी कि कोई खरीदेगा। मगर देखते ही देखते उसने अपनी दसों टोपियाँ रामलीला मैदान में बेच दीं। एक घंटे के बाद उसके पास लोग आने लगे जो उससे "अन्ना" लिखी हुई टोपी माँग रहे थे। उसने आनन-फानन में सैकड़ों टोपियों पर लिखवाया- "मैं अन्ना हूँ" और बेचने लगा। देखते ही देखते सारी टोपियाँ बिक गईं और फिर लोग लाइन में आकर खड़े हो गये। सबको टोपियों की जरूरत थी। बंदर एक पेड़ पर बैठा मुस्करा रहा था। टोपियों वाला अतिरिक्त उत्साह में था। उसने और टोपियाँ बनाईं। सभी बिक गईं। उसने चार बंदे और रख लिये। सबने मिलकर टोपियों पर नाम लिखे। सबकी सब बिक गईं। अब तो यह काम चल निकला। लगभग दस दिनों तक वह दिन दूनी रात चौगुनी टोपियों बेचता रहा। उसके तो वारे न्यारे हो रहे थे। वह बंदर के प्रति आभार बार बार व्यक्त कर रहा था। दस दिनों के बाद उसकी टोपियों की माँग गिर गई। लोगों ने वहीं रामलीला मैदान में ही टोपियाँ उतार कर फेंक दीं। अन्ना जी के आँदोलन का तूफान थम चुका था। लोग अब टोपियों को भी भूल रहे थे। टोपियों वाले ने बंदर से सलाह ली।

- "अब क्या फिर से गाँव-गाँव जाकर टोपियाँ बेचनी पड़ेंगी? अब मगन भाई टोपीवाला गाँव-गाँव जाकर टोपी बेचे शोभा देगा। आप मेरे लिए भगवान के अवतार हैं। कोई सलाह दीजिये मैं क्या करूँ। मेरा धंधा फिर से कैसे चमकेगा?"
बंदर मुस्कराया और बोला -
-"इंतजार करो। एकबार फिर चमकेगा।"
-"कहाँ से चमकेगा? दिल्ली के लगभग सभी लोगों ने तो टोपी पहन ली है। सिर कोई बचा ही नहीं। मैंने इतनी टोपियाँ बेची हैं। मुझे पता है।"
-"यह बात आपकी सही हो सकती है। आपको ऐसा लग सकता है लेकिन अभी अनेक लोग हैं जो टोपी पहनना नहीं चाहते। उनको टोपी पहनाने के बारे में सोचो। वैसे आप आदमियों के बारे में मैं एक बात दावे के साथ कह सकता हूँ कि आप हमसे अधिक नकलची होते हैं। देखना जो लोग अन्ना के नाम की टोपी पहन रहे थे वही दूसरी टोपी भी पहन लेंगे।"

बंदर की भविष्यवाणी सही सबित हुई। शीघ्र मगनभाई टोपी वाले की दुकान एक बार फिर चल निकली। इस बार लोग -"मैं आम आदमी हूँ" की टोपी पहन रहे थे। आम आदमी की टोपी खरीदने वाले वे लोग भी थे जो कल तक अन्ना हूँ की टोपी पहन रहे थे। बंदर ने सुक्ष्म निरीक्षण किया तो पता चला कि लोग दोनों टोपियों को बारी-बारी से पहन रहे थे। आम आदमी वाली टोपी पहन कर राजनीति करते और अन्ना की टोपी पहनकर कहते -"हम राजनीति से दूर ही रहते हैं।" लाइम लाइट प्रेमी ऐसी भी देवियाँ और सज्जन थे जो टोपी बदल-बदल कर देख रहे थे। भविष्यवाणी तो सही सिद्ध हो गई लेकिन बंदर खुद कन्फ्यूज्ड हो गया। उसने मगन भाई से पूछा-
-"आप लोगों में आम आदमी कौन होता है? हममें तो सभी बंदर होते हैं कोई आम या केला बंदर नहीं होता। आप यदि जानते हैं तो मुझे बताने की कृपा करें।"
मगन भाई को अपनी टोपी बेचने से मतलब था। आम आदमी खरीद रहा है या इमली आदमी उससे उन्हें कोई मतलब था नहीं। उन्होंने बुरा मानते हुये कहा-
-"जो झोपड़ी में रहता है, साइकिल से चलता है, दोनों टाइम दाल नहीं खाता, जिसे अंगरक्षक की जरूरत नहीं है, जिसके घर पर इनकम टेक्स के छापे नहीं पड़ते, जो पुलिस से डरता है, जिसकी बेटी दहेज के लिए लंबे समय तक कुँवारी बैठी रहती है, जिसपर सबसे ज्यादा कविताएँ लिखी जाती हैं, जिसके सबसे ज्यादा शुभचिंतक हैं, मैं समझता हूँ वही आम आदमी है। चूँकि बंदरों में ये सारी क्रियाएँ नहीं होतीं अतः कोई आम बंदर नहीं होता।"

बंदर और अधिक कन्फ्यूज्ड हो गया। मगन भाई बंदर की हालत देखकर मन ही मन मुदित हो रहे थे। उन्होंने उसे भँवर से निकाला -
-"चलिए, छोड़िये। आप यह बताइये कि और अधिक टोपी कैसे बिकेगी? दिल्ली में ही टोपी बेचकर मैं कारपोरेट जगत में अपना नाम उज्जवल नहीं कर सकता। मैं भी चाहता हूँ कि मुझे निवेशकों वाला सम्मान प्राप्त हो। मेरे कारण भी शेयर बाजार उछले। आप हमारे निवेश गुरू हैं आप हमें बताइये कि टोपी और कैसे बिकेगी?"
बंदर ने मुस्काराते हुये कहा -
-"आदमी अब टोपी के नाम पर लड़ेंगे। अन्ना वाले, आम वालों से, टोपी के नाम पर तू-तू मैं-मैं करेंगे। उसके बाद और टोपी बिकेगी। तुम आदमियों में तो धर्म के लिए भी ऐसा ही होता है, एक आदमी आता है वह एक धर्म चलाता है। दूसरा आता है वह भी वही धर्म चलाता है लेकिन नाम बदल देता है। दोनों दल वाले लड़ने लगते हैं। नाम हटा दो तो टोपी-टोपी एक समान है उसी प्रकार नाम हटा दो धर्म-धर्म एकसमान है।"

अब घबराने की बारी थी मगन भाई की। वह झुँझला भी गया। उसने चिंतन करना शुरू कर दिया। ज़रा-ज़रा सी बात पर ताने मारता है। यहाँ समस्या यह है कि और टोपी कैसे बिकेगी? टी वी वाला नुस्खा लगाये तो? पहले काली-सफेद फिर रंगीन, उसके बाद ...। उसके बाद टी वी चढ़ गई दीवाल पर। लंबी-चौड़ी दीवालव्यापी टी वी। यदि टोपी के साथ भी वही किया जाये तो। ऐसा हो नहीं सकता। मोबाइल, मोटरसाइकिल और कारों में तो संभव है लेकिन टोपियों में यह संभव नहीं है। अभी चिंतन और अधिक बढ़ता कि एक दल और आ गया दुकान पर।
-"हमें केसरिया रंग की टोपी चाहिए। उस पर हमें अपने नेताजी का नाम लिखवाना है। तुम लिखवा कर दोगे या हम लेकर लिखवा लें।"

मगन भाई की बाँछें खिल गईं। उन्होंने यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि रंग बदलकर टोपी क्यों पहनना चाहते हैं, भाई लोग। उसको इन बातों से क्या मतलब। काली टोपी पहनने वाले लोग केसरिया टोपी पहनने लगे। उसपर नेताजी का नाम। अर्थात एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा। नेताजी की सभाओं में उनके नाम की टोपी पहनने वाले उनके महान समर्थक माने जा रहे थे। बंदर ने यहाँ भी अनुसंधान किया तो पता चला कि नेताजी के नाम वाली टोपी पहनने वाले ही अन्ना जी के नाम की टोपी भी पहन रहे हैं। मंच पर अन्ना जी के हैं लेकिन नीचे आकर नेताजी की टोपी पहन रहे हैं। बंदर हैरान हो गया। यह आदमी तो कमाल का प्राणी होता है। उसमें तो बंदर जितना भी ईमान नहीं बचा। कम से कम एक समय में तो एक ही टोपी लगानी चाहिए। बंदर ने ऐसे भी दो-चार लोगों को देखा जो ऊपर से तो अन्ना की टोपी पहन रहे थे लेकिन अंदर से नेता जी की टोपी थी।

यही हाल आम टोपी वालों का भी था। वहाँ टोपियों की लड़ाई हो गई। आम टोपी फेंककर एक टोपी वाला नई टोपी की तलाश में घुमने लगा। टोपी-टोपी भाई-भाई का नारा दिया जाने लगा। आम टोपी वाले अपने को महान टोपीबाज समझते थे। उधर केसरिया टोपी वाले अपने अलावा सबको देशद्रोही मानते थे। उन्हें लगता कि आम टोपी वाले देशद्रोही हैं। आम टोपी वालों को लगता कि केसरिया टोपी वाले मूर्ख हैं। दोनों ही दल के लोग आकर मगन भाई की दुकान को जलाने की धमकी देने लगे। मगन भाई की शामत आ रही थी लेकिन उसे ज्ञात नहीं था वह टोपियाँ बेचने में मशगूल था। बंदर ने एक दिन समझाया भी कि अब टोपी-युद्ध होगा। भाग लो लेकिन मगन भाई पर नशा तरी था। वह अधिक से अधिक धन कमाने के फिराक में था। माना नहीं। वही हो गया जिसकी आशंका बंदर को थी।

जंतर मंतर पर आम टोपी का धरना था। केसरिया टोपी वाले भी वहीं आ गये। केसरिया टोपी वालों को अपने नेता पर नाज था। उन्होंने आम टोपी के नेता का नाम लेकर गालियाँ दीं। दूसरी ओर वाले भला कब मानने वाले थे। उन्हें भी अपनी आंदोलनधर्मिता पर नाज था। वे हमेशा सड़क पर रहने के लिए ही जाने जाते थे। उन्होंने तमक कर जवाब दिया-
-"आप अपने नेता जी पर ध्यान दो जो दंगों के लिए ही जाने जाते हैं। चायवाला ...चायवाला। जाओ कहीं चाय बेचो।"
-"राखी सावंत...राखी सावंत ...। तुम भ्रष्टाचार की गोद में हो। बाज आओ। चायवाला ही देश की पहली पसंद है। आम के दाम नहीं मिलेंगे। जाओ, पहले राजनीति सीखो। नौटंकी करने से देश नहीं चलता।"

दोनो ही दल के टोपी वाले अपनी टोपियों को ठीक से पहन कर पैंट को ऊपर खिसकाकार और बेल्ट को थोड़ा ठीक से टाइट करके, जूते के फीते को एकबार चेक करके, अगली कार्यवाही के लिए तैयार हो गये। अर्थात लत्तम-जुत्तम की पूरी मुस्तैदी से संभावना बन गई। पुलिस वाले सीटियाँ निकालकर बजाने लगे जिससे यह संदेश जाये कि सरकार मुस्तैद है और कानून को कोई अपने हाथ में न ले। न दूसरे को पकड़ने दे। अभी तैयारी परवान पर चढ़ती इसके पहले ही वहाँ एक दल और आ गया। उसने आते ही मोर्चा सँभाला -
-"नकल पर कितना कूदते हो तुम लोग। यह टोपी की संस्कृति हमारी है। हमारे गाँधी जी ने इसे ही पहनकर अंग्रेजों को देश से बाहर निकाल दिया और देश को आजाद करा दिया। अब इसे लल्लु पंजू भी पहनने लगे। सभी आम और आवाम की बात करने लगे। यह काम हमने आज से सवा सौ साल पहले ही शुरू कर दिया था।"
-"बस परिणाम आज तक नहीं आया।"
भीड़ में से एक प्रोफेशनल फिकरेबाज ने फिकरा कसा। यह कहना कठिन था कि किस टोपी साइड से आवाज आई है। यह आग में घी का परनाला था। तुरंत गाँधी टोपी के पैरोकार तमक कर कूदे-
-"देश में पिछले साठ साल से हमारा शासन है। हमने देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया है।
प्रतिव्यक्ति आय और सेंसेक्स दोनों में उछाल आया है। हमारे ही कारण।"
-"और ...भ्रष्टाचार में भी।"

प्रोफेशनल फिकरेबाजों की कमी नहीं थी। इसबार आवाज नयी थी लेकिन अंदाज वही पुराना था। आग में फिर घी की धार पड़ी। आग भड़क उठी। गाँधी के दल वाले हिंसा पर उतारू हो गये। आम वाले बाम हो गये। नेता-टोपी वाले तो संसार भर में जाने ही जाते थे हिंसा के लिए। बीच सड़क पर देश का फैसला होने लगा। मामला थम जाता लेकिन मीडिया कर्मी आ गये और उन्होंने आते ही फ्लैश चमकानी शुरू कर दी। कैमरे की किलकन ने और जोश भर दिया। टोपियाँ सड़क पर आ गईं। जूते हाथ में आ गये। देश में लाइव टेलिकास्ट होने लगा। मीडिया वाले आज प्रसन्न थे। उन्हें बैठे-बिठाये मसाला हाथ लग गया था। मसाला भी क्या पूरी कड़ाही हाथ लगी थी। बंदर ने मगनभाई के सिर पर चपत मारी और बोला-
-"बोलो, टोपियों वाले! बंदर कौन है? नकलची कौन है? टोपियों के लिए जान कौन देता है? तुमने पूरे बंदर बिरादरी का अपमान किया है। अब आदमियों को टोपी के लिए लड़ते देखो। मैं तो चला अपने नौनिहालों को कथा विस्तार से सुनाने और आगाह करने कि आदमियत से दूर ही रहें। ये हमारे वंशज नहीं हो सकते। नहीं तो कम से कम टोपी फेंक तो देते। लीडरी हम बंदरों से सीखें फिर लीडर बनें।"

 १२ मई २०१४

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