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लघुकथाएं

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियाँ के अंतर्गत इस अंक में प्रस्तुत है रविशंकर श्रीवास्तव की लघुकथा - 'गति सीमा'
स आदमी ने नयी मारूति एस्टीम कार ख़रीदी थी, और शौक में निकल पड़ा था हाइवे में ड्राइव का मज़ा लेने। कार नयी थी, नया-नया शौक था, अतः वह उसे ज़रा ज्यादा ही तेज़ी से चला रहा था।

 थोड़ी ही देर में पुलिस के गश्ती वाहन ने तेज़ी से, और गति सीमा से ज्यादा तेज़ वाहन चलते देख उसे रूकने का इशारा किया। मगर उसने सोचा - मेरी नयी मारूति एस्टीम का पीछा वे पुलसिए अपनी खठारा जीप से क्या खाक कर पाएंगे। अतः वह और भी तेज़ी से अपनी गाड़ी भगाने लगा।

मगर ऐसा लगता था कि पुलिस वाले भी उसे हाथ से जाने देना नहीं चाहते थे। अतः वे भी उसी तेज़ी से लगे रहे। अंततः उस आदमी ने सोचा कि अपनी नयी गाड़ी को अंधाधुंध चला कर कहीं ठोकने के बजाए पुलिस को समर्पण करना ही उचित होगा। उसने अपनी गाड़ी धीमी की और किनारे लगा दी।

इंसपेक्टर गुस्से से उबलता हुआ आया और देखा कि गाड़ी नयी है और चालक भी संभ्रांत और शौकीन। उसे किसी अपराध और स्मगलिंग इत्यादि के आसार भी नहीं दिखे तो उसने कहा, 
"अब ज़रा जल्दी से अपनी गाड़ी तेज़ चलाने और रूकने का इशारा करने पर भी नहीं रूकने के बारे में एक अच्छी सी सफाई पेश कर दो नहीं तो तुम और तुम्हारी नयी गाड़ी दोनों को लाकअप में बंद कर दूंगा।"
उस आदमी ने बिना अटके उतर दिया, 
"जनाब मेरी सास पिछले हप्ते से खो गई है और मैंने समझा कि आपने उसे ढूंढ लिया है और मुझे वापस देने जा रहे हैं।"

"नयी गाड़ी के लिए ढेरों बधाइयां, जाओ मौज करो", इंसपेक्टर ने कहा।

 
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