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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
कुमार शर्मा 'अनिल' की लघुकथा- नव वर्ष का स्वागत


दिसंबर के अंतिम सप्ताह के प्रारंभ में ही घर में इस बात की योजनाएँ बनने लगी थीं कि ३१ दिसंबर की रात नववर्ष का स्वागत किस प्रकार किया जाए। पिछले कुछ वर्षों से नववर्ष मनाने की अलग अलग योजनाएँ बनने लगी थीं, क्यों कि जवान होते बेटा बेटी अपने-अपने तरीकों से अपने मित्रों के साथ पार्टी करना चाहते थे और पत्नी चाहती थी कि सपरिवार रात किसी होटल में पार्टी कर जश्न मनाया जाए, जबकि मेरा मत था कि फालतू होटलों में पैसे खर्च करने की बजाय घर में रहकर पार्टी की जाए और रात टेलीविजन देखते हुए पूरा परिवार साथ रहे।

"फिर तो ये केवल पापा की पार्टी होगी", बड़ा बेटा विद्रोही स्वर में बोला। उसे पूरा विश्वास था कि मैं इस रात जरूर ड्रिंक करूँगा जैसा कि हर पार्टी में इतने बरसों से करता रहा हूँ। पत्नी उससे सहमत थी क्यों कि वह जानती थी कि मैं यदि ड्रिंक कर लूँ तो कभी घर के बाहर नहीं निकलता। सत्रह बरस की बेटी की घर में इतनी चलती नहीं थी कि वह दूसरों की योजनाएँ बदल सके। उसे अपनी सहेलियों के लिये उपहार बधाई कार्ड और शाम की पार्टी के लिये एक हजार रुपए से मतलब था। रात नौ दस बजे तक उसे पार्टी से वापस आ जाना था और उसके बाद जो भी योजना बने उसमें वह शामिल हो सकती थी। अम्मा क्योंकि बहुत ज्यादा बीमार चल रही थीं इसलिये अकेले उन्हें घर छोड़कर पूरी रात होटल में जश्न मनाना संभव नहीं था, जैसा हम प्रत्येक वर्ष करते थे।

बीमारी के कारण गाँव से इलाज कराने जबसे अम्मा हमारे साथ रहने आई थीं तब से आर्थिक तंगी के कारण वीक एंड पर हमने घर से बाहर घूमना बंद कर दिया था। अम्मा के लिये इस छोटे से फ्लैट में एक कमरा रिजर्व हो जाने से जगह की तंगी होने लगी थी और दोनो बच्चे व पत्नी मौका मिलने पर यह जतलाने से चूकते भी नहीं थे। अम्मा के महँगे इलाज के कारण यह संभव नहीं था कि कोई बड़ा मकान किराये पर लिया जा सके। जब मैंने तय किया कि दोनो बच्चे अपने मित्रों के साथ शाम पार्टी कर लें और रात का खाना चारों एक साथ किसी होटल में खाएँ और नव वर्ष प्रारंभ होने पर रात बारह बजने से पूर्व घर वापस लौट आएँ तो बुझे मन से सभी ने इसे स्वीकार कर लिया। अम्मा के प्रति उनकी चिढ़ को मैं जानता था और अम्मा भी मन ही मन यह समझती थीं। नव वर्ष हो या बच्चों के जन्मदिवस अम्मा ने उपहार तो क्या बधाई भी कभी नहीं दी क्यों कि वह इन्हें इस तरह मनाने में विश्वास ही नहीं करती थीं। अतः इस सेलिब्रेशन की योजना में अम्मा का कहीं कोई जिक्र नहीं हुआ।

३१ दिसंबर की शाम तय कार्यक्रम के अनुसार बेटा बेटी सीधे उसी होटल में पहुँच गए जहाँ हमें डिनर करना था। हमेशा की तरह सभी ने एक दूसरे के लिये उपहार लिये थे जो सीक्रेट थे और रात ही एक दूसरे को देने थे। रात्रिभोज के बाद जब घर पहुँचे तो हम सभी सन्नाटे में आ गए क्यों कि घर का मुख्यद्वार पूरा खुला हुआ था और टेलीविजन पर नए वर्ष के कार्यक्रम ऊँची आवाज में चल रहे थे। टेलीविजन हमारे बेडरूम में था और अम्मा कभी कभार ही टेलीविजन देखती थीं। दौड़ते हुए हम बेडरूम में पहुँचे तो अम्मा रजाई ओढ़े लेटी हुई थीं। उन्होंने वही रेशमी साड़ी पहनी हुई थी जो मेरे विवाह वाले दिन पहनी थी। रजाई उठाई तो देखा अम्मा का मुँह और आँखें खुली हुई थीं। उनके प्राण पखेरू उड़ चुके थे। नववर्ष के हमारे सीक्रेट उपहार अभी सीक्रेट ही थे किंतु अम्मा ने.....

२६ दिसंबर २०११

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