मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
दुर्गेश ओझा की लघुकथा- जिद्द


छोटे पर समझदार पप्पू को लेकर उसके माता-पिता मेले के लगभग हर दूकान पर घूम चुके। पप्पू बार-बार चाबी वाले स्कूटर की माँग करता रहा, लेकिन हर बार उसको ‘ना’ के साथ एक ही जवाब मिलता रहा, ‘बेटा, ले दूँगा। थोड़ा धीरज धरो। आजकल तू बहुत जिद्दी हो गया है।’

...मेला पूरा होने की तैयारी में था, पर पप्पू की इच्छा अभी भी पूरी नहीं हुई थी। आखिरकार मेले से घर की तरफ लौटते समय एक गरीब लारी वाला दिखने पर पप्पू गिड़गिड़ाया, ‘पप्पा, ये सादा सस्ता स्कूटर तो मुझे ले दो।’

‘बेटा, ये तो बिल्कुल बेकार है। ऐसा खिलौना नहीं लेते बेटा।’

‘तो फिर पप्पा, ये छोटी सी, अच्छी वाली मोटरकार तो अब मुझे दिलवा दो।’

‘बेटा, तुझे अच्छी, इससे भी बढ़िया मोटरकार बाद में दिलवाऊँगा। इस वक्त ज्यादा किचकिच मत कर। इन दिनों तू बहुत जिद्दी होता जा रहा है।’

अब पप्पू से रहा न गया। वह फूट-फूट कर रो पड़ा और सिसकते स्वर में बोल उठा, ‘जि....जिद्द मैं.......मैं कर रहा हूँ कि...कि....आप......?’

...और पति-पत्नी भौचक्के-से एक दूसरे को देखते ही रह गए।

७ जनवरी २०१३

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।