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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के अंतर्गत इस बार गाँव से कुमार गौरव अजीतेन्दु की लघुकथा- बँसवारी


करमू भैया उदास मन से बँसवारी में लेट गये। ढलता सूरज धुँधलके के लिए रास्ता बनाने में लगा था। दोपहर से जारी खोने-पाने की उधेड़बुन ने करमू के अंदर हलचल मचा रखी थी। आज तीसरे बेटे मोहन की भी नौकरी एक अच्छी प्राइवेट कंपनी में हो गयी और वो चला गया। बाकी के दोनों बड़े भाइयों की ही तरह महीना कोई ज्यादा तो नहीं पर हाँ इतना था कि खुद को और अपने बीवी बच्चों को पाल ले जोड़-चित करते। मौका तो खुशी का था लेकिन घर का एकदम खाली सा होना उनको बहुत अखर रहा था।
वही दिन याद आने लगे जब १०-१० रुपये बाँस बेचकर घर का खर्च निकाला था। चार बड़े भाइयों ने सारी जमीन-जायदाद आपस में बँटिया ली। बाबा और गाँव-समाज के कारण एक खेत और पुश्तैनी मकान का कुछ हिस्सा मिल गया। पहले तो सब्जियाँ उगाया करते थे, मंगला (उनकी पत्नी) के आने के बाद जब अपना परिवार बन गया तो खर्चे बढ़ गये। एक दोस्त की बात याद आयी जो अगरबत्ती बनाने की फैक्ट्री में काम करता था। उसने बताया कि मालिक लाखों का बाँस खरीदते हैं हरसाल। बस ये ही धुन ऐसी चढ़ी कि करमू भैया ने भी बाँस की खेती शुरु कर दी और सब्जियों के खेत ने बँसवारी का रूप ले लिया। उस समय किसी अगरबत्ती कंपनी के मालिक का तो ऑर्डर कभी मिला नहीं पर हाँ, आस-पास के लोगों के घर शादी-ब्याह या बाकी कार्य-प्रयोजनों में उनकी ही बँसवारी के बाँस जाने लगे। गाँव की इकलौती बँसवारी जैसे सबकी दुलारी हो गयी। सुखदेव, रंजीत और मोहन तीनों भाई उसी में खेलते तो बड़े हुए।
इन्ही ख्यालों में डूबे थे कि मंगला उनको खोजती वहाँ आ गयी
"अरे लो, ईहाँ बैठे हैं, अभी मोहना का फोन आया था। ठीक से पहुँच गया है दिल्ली। आपसे बतियाना चाहा त आप घर में मिले नहीं, रात को फिर करेगा"
"अच्छा फोन किया था, बात भी नहीं हो पाया, चलो थोड़ी देर में हम ही लगायेंगे" करमू भैया उठ के बैठ गये
"एतना परेशान काहे लग रहे हैं? तबीयत त ठीक है न?"
"हँ रे, तबीयत त एकदम ठीक है लेकिन बाले-बच्चा से न घर बनता है अब ओहि सब अपन-अपन काम में बाहर चल गया त पूरा घर भाँय-भाँय कर रहा सो ईहाँ आ गये"

मंगला का भी चेहरा थोड़ा उदास हो गया। बाँसों के झुरमुट से टिकी बैठ गयी चुपचाप।
"अरे अब तू भी मत मुँह लटका ले, अभी तो खुशी-खुशी बेटे से बात कर के आयी"
"हाँ जी, अब अपने स्वार्थ के लिए उनको अपने पास रखना भी तो ठीक नहीं न, अच्छा है पढ़-लिख के अपने-अपने काम देखें सब, अच्छा हाँ मोहना बोल रहा था कि अगले महीने की ५ तारीख तक पैसे भेजना शुरु कर देगा। तनख्वाह मिलनी शुरु हो जायेगी तबतक"
"नहीं-नहीं" करमू भैया हड़बड़ा से गये "मना कर देना एकदम, चाहे छोड़ो हम ही कह देंगे, अरे १५-१८ हजार की नौकरी में हमको भी भेजने लगा तो खुद क्या खाएगा शहर की डाईन महँगाई के आगे। सुखदेव और रंजीत से भी कभी एक पैसा नहीं लिया इसी कारण। इससे कैसे ले लें?"
"बात तो सही कह रहे हैं जी लेकिन कबतक काम करेंगे? उमर बुढ़ा गयी अब" मंगला ने थोड़ा चिढ़ाते हुए कहा
"हा हा हा अरे पगली चिंता काहे करती है? ई बँसवारी है न? हमको अबतक पाल गयी तो आगे भी पाल लेगी। तोहर नैहर तरफ एक ठो अगरबत्ती कंपनी था, याद है न?"
"हाँ जी याद त है, काहे?"
"उहीं से कल पहलीबार हमको आर्डर आया है बाँस के लिए, उ लोग जहाँ से मँगाते थे कोई दिक्कत हो गयी है उनको सो इसबार हमको बोला, पूरा एक लाख का सप्लाई देना है। मनोहर बाबू का लड़का कोई बीमा कंपनी के पेंशन योजना के बारे में बता रहा था। ई लाख रुपिया वहीं लगा देंगे दो महीने बाद हमारी भी पेंशन शुरु हो जायेगी सरकारी नौकरी जैसी। लगाना पाउडर आउर क्रीम बैठे-बैठे हा हा हा" करमू भैया मंगला को प्यार से चपत लगाके हँसते हुए बोले
"धत हम लगाएँगे पाउडर" मंगला शर्मा गयी "आप ही ले आइएगा नया जींस पैंट अपने लिए हा हा"
"हा हा हा चल-चल अब घर चल, मोहना को फोन भी करना है" करमू भैया खड़े होते हुए बोले। उनका मन अब काफी हलका हो चुका था।

२९ जून २०१५

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