| 
						
						 विवाह 
						बाद सभी मेहमान जा चुके थे। अब घर में सिर्फ परिवार के लोग 
						थे। सीमा नई बहू को लेकर जितनी उत्साहित थी, अब उतनी ही 
						चिंताग्रसित भी हो रही थी। उनका ताल मेल कैसा होगा? बहू 
						बहुत पढ़ी लिखी भी थी। 
 सुबह उसने देखा कि बहू उससे पहले ही रसोई में पहुँच चुकी 
						थी और रामदीन से घर की, लोगों की पसंद की, दिनचर्या की 
						जानकारी ले रही थी। सीमा के आते ही उसने पैर छू लिए और 
						कहने लगी- "माँ जी! आप मुझे एक बार सारे काम समझा देंगी तो 
						मैं वैसे ही करने की कोशिश करूँगी। अब आपके आराम करने के 
						दिन हैं।"
 
 सीमा उसकी ओर देखती ही रह गयी कुछ बोल ही न पाई। उसको 
						अचानक अपने दिन याद आ गए। उसने तो अपनी सास से कभी सीधे 
						मुँह बात तक नहीं की। जब तक सास घर सँभाल सकती थी जैसे 
						तैसे काम चला। पर बढती उम्र में तो उनका घर में रहना 
						मुश्किल हो गया था। रोज रोज पति के कान भर उन्हें 
						वृद्धाश्रम भिजवा कर ही चैन लिया था। अगर बहू को यह बात 
						पता चलेगी तो क्या होगा?
 
 आज उसे पहली बार अपनी भूल का अहसास हुआ। वह अपने कमरे में 
						गयी और सास के चित्र को हाथ में ले रोती हुई पति से बोली- 
						"आप माँ को घर लिवा लाइए मुझे प्रायश्चित करना ही होगा''।
 
                      २३ मार्च २०१५ |