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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
संकलित लघुकथा- परिणाम


एक बार एक पिता अपने पुत्र के कमरे के बाहर से निकला तो देखा, कमरा एकदम साफ़। नयी चादर बिछी हुई और उसके उपर रखा एक पत्र। इतना साफ़ कमरा देखकर पिता अचम्भित हो उठा। उसने वो पत्र खोला। उसमे लिखा था-

प्रिय पिता जी
मैं घर छोड़कर जा रहा हूँ। मुझे माफ करना। आपको मैं बता देना चाहता हूँ मैं दिव्या ( वर्मा अंकल की बेटी ) से प्यार करता था लेकिन दोनों परिवारों की दुश्मनी को देखते हुए मुझे लगा आप सब हमारे रिश्ते के लिए तैयार नहीं होंगे।

दिव्या आपको या मम्मी को पसंद नहीं क्योंकि वो शराब पीती है। लेकिन आप सब नहीं जानते शराब पीने वाला कभी झूठ नहीं बोलता। मैं सुबह जल्दी इसलिए निकला क्योंकि मुझे उसकी जमानत करनी थी, वह रात कुछ दोस्तों के साथ चरस पीती पकड़ी गयी थी और सबसे पहले उसने मुझे फोन किया। क्या ये प्यार नहीं?

वो आपको और मम्मी को गालियाँ देती रहती है उसको सास ससुर पसंद नहीं इसलिए हम सबके लिये यही अच्छा है हम अलग रहें। रही बात मेरी नौकरी नहीं है तो उसका भी इंतज़ाम दिव्या ने कर लिया है। उसने मुझे पॉकेट मारना सिखा दिया। उपर से उसके दोस्तों का अपना ड्रग्स सप्लाई का बिज़नस भी है। वो भी सीख ही लूँगा।

अपनी लाइफ तो सेट है पापा। बस आपका आशीर्वाद चाहिए।
आपका प्यारा बेटा
सुमित।

पेज के अंत में लिखा था कृपया पृष्ठ पलटें।
पिता ने अपने काँपते हाथों से पत्र पलटा तो उस पर लिखा था।

"चिंता न करो सामने वालों के यहाँ मैच देख रहा हूँ। बस ये बताना था कि मेरे रिजल्ट से भी बुरा कुछ हो सकता है। इसलिए थोड़े में संतोष करो। पास की मेज पर रिजल्ट रखा है। साइन कर देना कॉलेज में जमा करना है।

१ जुलाई २०१६

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