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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
कुंती मुकर्जी
की लघुकथा- अंगूर का स्वाद


एक दिन मैंने बाग में तोते को अंगूर खाते देखा। मुझे बचपन की पढ़ी लोमड़ी और अंगूर की कहानी याद आ गयी।
मैंने उससे पूछा- "कहो तोते मियाँ, अंगूर कैसे हैं?"
"बहुत मीठे हैं।" तोते ने तुरन्त जवाब दिया। तभी तोते की चोंच से लगकर एक अंगूर मेरे हाथ पर गिरा। मैंने भी अंगूर को चखा। अंगूर खट्टा मीठा, मिला जुला बेहद रसीला निकला।

इसी बीच तोता फुदक कर जब दूसरी डाल पर बैठा तो उसके पंजे के आघात से कुछ और अंगूर जमीन पर गिरे।
झुककर एक को उठाते हुए मैंने पूछा- "कहो, तुम कौन हो?
लोमड़ी तुमको खट्टा बोलती है। तोता तुमको मीठा कहता है- लेकिन तुम तो मुझे रसीले लगते हो।"
अंगूर ने मुस्कराकर बड़ी अदा से कहा- "मैं भाव हूँ।"
मैंने तुरन्त कहा_"कैसे?" तब अंगूर ने समझा कर कहा-
"लोमड़ी के लिए मैं अप्राप्य था, सो उसके मन में मेरे प्रति खटाई का भाव जागा।
तोते के पंजे में मैं दबा था और सहज प्राप्त था, अतः उसके लिए मैं मीठा था।"
"और मेरे लिए तुम कैसे हो?" मैंने अंगूर को अपनी बात पूरी करते देख झट से पूछा।
"तुम्हारे पास रसना है इसीलिये तुमने खट्टे मीठे का फर्क बताकर मेरे रसीले होने का सामंजस्य बिठाया।"
अंगूर के जवाब से अभिभूत होकर मैंने गप से अंगूर को मुँह में डाल लिया।

१ सितंबर २०१८

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