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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
अपर्णा
की लघुकथा- परियाँ


जन्नत का दरवाजा खुला...

दो परियाँ आईं, नन्हीं नफीसा को देख कर मुस्कराईं और फूलों को उसके ऊपर डालकर उसका स्वागत किया। सामने खिलौनों के ढेर लगे थे। टाफियाँ, चाकलेट, रंगीन फ्राकें, सब उसके लिये सजाई गई थीं। पर उनमें से एक भी चीज उसके मासूम उदास चेहरे पर खुशी की एक किरण भी न ला सकी थी, अलबत्ता दो आँसू मोती से और ढुलक आये उसके सेब जैसे लाल गालों पर...

परियाँ और दूत भी रो पड़े थे उसकी हालत देखकर... लड़खड़ाते हुये चलती हुई नसीफा गिरने ही वाली थी कि सबकी माँ मरियम ने उसे सीने से लगा लिया और बोली-
"आजा मेरी बच्ची मुझे माफ कर दे, तुझे धरती पर इसलिये नहीं भेजा था... तुझे कितना सताया है दुनिया वालों ने... चल तुझे मैं जन्नत के उस महल में रखूँगी जहाँ तेरे जैसी प्यारी मासूम बेटियाँ सब भूलकर
परियाँ बन जाती हैं फिर कभी उस नापाक धरती पर नहीं जातीं।"

१ सितंबर २०१८

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