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"जादुई
चश्मा, जादुई"!
"आइए ले जाइए, जादुई चश्मा। आपने ऐसा चश्मा न कभी देखा
होगा न सुना होगा।”
"आइए ! ले जाइए। मूल्य केवल २००० रुपये।"
वे चारों इस दुकान पर रुके|
"अबे कौन सा जादू है बे इस चश्मे में ?”
"ऐसी कौन सी जन्नत दिखा देगा बे ये, जो हमें इसके बिना
नहीं दिखती?” वे चारों एक दूसरे की ओर देखकर ठहाका मार कर
हँस दिए।
"साहब, ये दिखाता कम महसूस ज़्यादा कराता है, इसे पहन कर
जिसके भी बारे में सोचो आप उसी के जैसा महसूस करेंगे।"
"साले, क्यों दुनिया को बेवकूफ...
"ला दिखा।" कह्ते हुए एक ने चश्मा लगभग छीन लिया दुकानदार
के हाथों से। बडी शान से चश्मा आँखों पर चढ़ाया और गर्व से
दूसरों की ओर देखा। वे सब हँस रहे थे।
अचानक ही उन सब के चेहरे विद्रूप से होने लगे। अब उसे उनसे
बहुत डर लग रहा था। अचानक वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा। वे
अभी भी उसके इस अभिनय को देखकर हँस रहे थे।
"वाह... वाह ! क्या बात है!"
"गजब का ऐक्टर है साले तू तो...!"
"अबे ! किसकी ऐक्टिंग कर रहा है... (एक गंदी गाली के साथ
बेशर्म हँसी।)"
उसने लपक कर एक की गर्दन पकड़ ली और उस पर घूँसे व थप्प्ड
बरसाने लगा।
जिसकी गर्दन दबोची गई वह पहले तो हँसा पर एक ही क्षण में
उसे लगा कि मामला गम्भीर है और उसने खुद को छुड़ाते हुए उसे
दूर धकेल दिया।
अब तो जैसे वह पागल हो गया था। चीखते और रोते हुए वह
बाकियों पर भी झपटने लगा। उन सब को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
खुद को छुड़ाते और उसे गालियाँ देते हुए उन्होनें उसे ज़मीन
पर गिरा दिया।
अब वह अचानक स्वयं को ही नोचने लगा। भरी सर्दी में पास पड़ी
पानी की बोतल उठा कर खुद पर उड़ेल ली। वह पागलों की तरह
अपना शरीर रगड़ रहा था, जैसे शरीर पर चिपकी हुई गन्दगी उखाड़
फेंकना चाहता हो। अपने मित्रों की ओर देखकर उसने नफ़रत से
थूक दिया। बेबसी से चीख-चीख कर रोने लगा। जैसे उसके शरीर
का एक-एक पौर दुख रहा हो| खड़े होने की ताकत तन में न हो।
वह ज़मीन पर गिरकर छटपटाने लगा। कभी घबराकर अपने हाथों को
ढाल बनाकर खुद को ढकता, कभी हिचकी बाँधकर रोता।
उसकी यह हालत देखकर बाकी सब घबरा गए उन्होंने झट से चश्मा
उसकी आँखों से खींचकर फेंका व उसे उठाकर घसीटते हुए ले
चले। वह अभी भी जोर जोर से रोते हुए खुद को नोच रहा था...
नहीं छोड़ दो मुझे... छोड़ दो मुझे... दया करो!
चश्मा बेचने वाले के मुख पर संतुष्टि के भाव थे।
१ दिसंबर
२०२३ |