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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
कैनेडा से अश्विन गाँधी की कहानी- दिले नादान


गुरुवार, जून महीने की ग्यारह तारीख। शाम के छः बजे का समय। अविनाश लेक्चर शुरू करने की तैयारी में था। आज का विषय था- कंप्यूटर प्रोग्राम का विकासीकरण। क्लास पूरी भरी नहीं थी। कुछ और विद्यार्थियों के इंतज़ार में अविनाश इधर उधर की बातें कर रहा था। जो विद्यार्थी आ चुके थे उनमें से एक थी लीसा जोहन्सन और दूसरी थी बोनी ब्राउन। दोनों उम्र में बड़ी। करीब पैतालीस साल की। दोनों रजिस्टरर्ड नर्सें युनिवर्सिटी के चौथे साल में और डिग्री की कंप्यूटर ज़रूरतें पूरी करने के लिये अविनाश का कंप्यूटर लीटरसी कोर्स ले रही थीं। दोनों सब के साथ साथ पढ़ रही थीं और साथ ही स्नातक बननेवाली थीं। बोनी क्लास में ज्यादा नहीं बोलती मगर लीसा दोनों का बोल लेती।

"हमारे सोशीअल स्टडीज़ की क्लास के लिये हमें जेन्डर इस्युज़ पर सर्वे करना जरूरी है। क्या हम यहाँ इस क्लास में कर सकते हैं?" लीसा अविनाश से पूछ रही थी।

"ठीक है, सात बजे मध्यांतर के आस पास ठीक रहेगा। किस बात का सर्वे है?"

"हमारे सोशीअल स्टडीज़ के क्लास का समापन प्रोज़न्टेशन से होनेवाला है। मेरा और बोनी का प्रोजेक्ट है- पुरूष और स्त्री की सोच में विभिन्नता और उसका स्वास्थ्य से नाता। हम चाहेंगे कि आप भी इस सर्वे में शामिल हों। किसी को अपना नाम लिखने की ज़रूरत नहीं। सिर्फ फार्म पर ये ही बताना होगा कि आप पुरूष हैं या स्त्री।" लीसा ने मौका पाते ही सारे क्लास को सर्वे के लिये तैयार कर दिया!

"वाह! क्या बात है! मज़ा ही मज़ा! सोशीअल इस्युज़, जेन्डर इस्यूज़। चर्चे पर चर्चे! कंप्यूटर की बातें जो कभी सूखी, शुष्क और नीरस हो जाती हैं उसका कोई अवकाश नहीं वहाँ! ऐसू चर्चा में तो मुझे भी मज़ा आता! प्रोफेसर कौन है?" क्लास पूरा भर नहीं गया था, अविनाश ने मस्ती में बात आगे बढ़ाई।

लीसा को खुला मैदान मिल गया।
"प्रोफेसर है अमान्डा स्मिथ। अविनाश, क्यों ना आप भी प्रोज़न्टेशन में आएँ? शायद आप भी कुछ जेन्डर इस्युज़ पर कह सकते हैं। पूरब की संस्कृति से आये हैं, पच्छिम में बरसों रहे हैं तो आप जो भी कहेंगे वो बड़ा रोचक रहेगा। प्रोज़न्टेशन अगले सप्ताह शुक्रवार को है।"

"नाम तो पहचाना सा मालूम होता है मगर याद नहीं कि कहीं मुलाकात हुई हो। मेरा प्रोज़न्टेशन में आना और किसी तरह से भाग लेना, उसका निर्णय तो केवल अमान्डा ले सकती है। अमान्डा की क्लास है और वो तय कर सकती है कि क्लास को क्या लाभदायक हो सकता है। प्रोफेसर स्मिथ दिखने में अच्छी है?" अविनाश ने मजाक जारी रखी।

"हाँ! बिलकुल! क्या आप किसी को खोज रहे हैं? क्लास में वहाँ और भी महिलाएँ हैं जिनकी खोज जारी है। आप को प्रोज़न्टेशन में ज़रूर आना चाहिये!" लीसा का उत्साह और बढ़ गया।

"हाँ, मैं खोज में हूँ और नहीं भी। अपने काम में व्यस्त रहता हूँ, गली गली ढूँढने का तो समय नहीं! ओह लीसा, तुम तो बड़ी चतुर दिखायी देती हो, क्या मैं तुम्हें अपना एजेंट बना दूँ?" अविनाश लीसा की बातो में आ गया था और गहरे पानी की ओर कदम उठा रहा था।

"कभी प्यार हुआ है, अविनाश?"

क्लास में सन्नाटा छा गया। सब के कान अविनाश का जवाब सुनने को तत्पर हो उठे। लीसा की ओर से गोलीबार हुआ था और अविनाश की अवस्था घायल सी थी। खुल्ले क्लास में निजी जिंदगी के चर्चे होने वाले थे। आगे बढ़ना मुश्किल था और पीछे हटना भी।

"हाँ, प्यार हुआ है और अब भी है। मुझे कुदरत से अनहद प्यार है। देखो लीसा, अमान्डा से बात कर लेना और पूछ लेना कि अविनाश की प्रोज़न्टेशन में हाज़िरी वो पसंद करेगी या नहीं।" लीसा जिस प्रकार का जवाब चाहती थी वो अविनाश ने नहीं दिया। निजी प्यार प्रकरण बंद होना था और कंप्यूटर के क्लास में कंप्यूटर की बातें शुरू करनी थी।

"अगर खोज में मेरी मदद चाहते हो तो बताना होगा कि आप को क्या चाहिये और आप की जरूरतें क्या हैं?" लीसा हार माननेवाली नहीं थी। लीसा की बंदूक से एक और गोली छूटी। इन्टरव्यू आगे बढ़ा।

"आधी जिंदगी बिता चुका हूँ, एक शादी से दो बच्चे हुये जो अब बड़े हैं और अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं। मैं अब अकेला अपने काम में व्यस्त और मस्त रहने की कोशिश करता हूँ। मैं कोई पच्चीस साल की युवती के साथ तो घूमने जाना नहीं सोच सकता!" अविनाश ने अपनी जरूरत की थोड़ी सी झलक दिखा दी।

"सोशीअल स्टडीज़ की प्रोफेसर स्मिथ अगर पीएचडी है तो वो पच्चीस साल की नहीं हो सकती, ज़रूर उम्र में बड़ी होगी!" क्लास के एक जवान लड़के ने कह दिया। ऐसा मनोरंजक लेक्चर तो कभी नहीं हुआ था! किसी को कंप्यूटर पढ़ना नहीं था।

अविनाश की व्यथा बढ़ रही थी। क्लास का समय निजी बातों में जा रहा था और वो ठीक नहीं था।
"लीसा, आज का क्लास जब खतम हो जाये तब रुक जाना। हम कुछ बात कर लेंगे।"
एक प्रकरण बंद हुआ और अविनाश ने कंप्यूटर की बात शुरू की। भारी हृदय से क्लास ने कंप्यूटर की स्टडी शुरू की।

लेक्चर आठ बजे खतम हुआ। लीसा इंतज़ार कर रही थी।
"लीसा, ये सब खोज और एजंट वाली बात मजाक में हुई थी। तुम गंभीरता से तो नहीं ले रही, ठीक?"

"बिलकुल गंभीर हूँ। हम अमान्डा से शुरूआत करेंगे!" लीसा ने ऐलान किया और अपनी राह पर चल दी।

सोशीअल स्टडीज़ की स्नातक बननेवाली लीसा अविनाश की सोशीअल समस्यायें दूर करने जा रही थी। जिस आत्मविश्वास से लीसा ने एजेंट की कार्यवाही शुरू कर दी वो अज़ीब थी। अविनाश चकित हो गया और कुछ भयभीत भी। कहीं ये लड़की तमाशा ना बना दे! शनिवार और रविवार की छुट्टी थी। आशंका पीछे रह गई और अविनाश सपने देखने लगा। हाथों में हाथ, आँखों-आँखों से बात। समंदर का किनारा, परबत की घाटियाँ, बगीचे के फूल। गीत और संगीत। हँसना-हँसाना, प्यार करना। जिंदगी का सुहाना सफर! अविनाश के सपनों की दुनिया में कुछ खलल भी हुआ। बीती हुई जिंदगी सामने उमड़ आई। एक लंबी शादी, दो सुंदर बच्चे मगर फिर भी सपने साकार ना हो सके। कोशिशें कामयाब नहीं रहीं। सहमति से शादी के बंधन तोड़े। कुछ साल से अकेले रहते हुए अविनाश ने दर्द को भूलाने खुद को युनिवर्सिटी के कामों में डूबो दिया। फिर भी सुहाने सफर के सपने आते रहे। सपनों ने पीछा नहीं छोड़ा।

सोमवार, जून महीने की पन्द्रह तारीख़ शाम के छः।
"अमान्डा से बात हुई?" क्लास शुरू करने के पहले कुछ एकांत मिला तो अविनाश ने लीसा को पूछ लिया।
लीसा को समय नहीं मिला था या एजेंट का काम गंभीरता से नहीं लिया था।
"हमारे सोशीअल इस्युज क्लास के सब लेक्चर तो पूरे हो गये हैं। आज कोई लेक्चर नहीं था। अब मात्र प्रोज़न्टेशन रह गया है जो आगामी शुक्रवार पर है। पढ़ाई के अलावा मैं दो पार्ट टाइम काम भी करती हूँ। रजिस्टरर्ड नर्स हूँ और अस्पताल में कॉर्नर का काम भी करती हूँ। शनिवार और रविवार मेरे लिये काफी व्यस्त रहते हैं। मैं कल फोन से अमान्डा को मिलने की कोशिश करूँगी।" लीसा ने उत्तर दिया।
"ठीक है. लीसा, ये मेरा कार्ड रख लो।" अविनाश ने अपना युनिवर्सिटी का बिज़निस कार्ड दे दिया। कार्ड पर घर का जूना फोन नंबर जो था वो सुधार कर अविनाश ने नया फोन नंबर हाथ से लिख दिया था। नये घर में आने के बाद अविनाश ने घर का फोन नंबर फोन बुक में जाहिर नहीं किया था।

मंगलवार-
"अविनाश, फोन आया?" लीसा ने क्लास में दाखिल होते हुये ही पूछा।
"फोन तो अब तक नहीं आया, लीसा।"
"कहाँ थे? फोन के नज़दीक क्यों नहीं थे? मेरी अमान्डा से लंबी बात हुई। मैंने आप के घर का फोन नंबर दिया है। फोन का इंतज़ार करो!" एक ही साँस में लीसा ने कह दिया। लीसा ने भगीरथ कार्य हासिल किया था और काफी आवेश में दिख रही थी।
अविनाश तो पूरा भीग गया। अनायास बारिश की झड़ी हुई! पूरी बस्ती में लीसा ने अविनाश की खबर ले ली।
"बहुत अच्छा किया, लीसा। क्लास जब खतम होगी तब हम कुछ और बात कर लेंगे। यहाँ अब तो हम ओर बात नहीं कर सकते. अगर ऐसा मैं ने किया तो मेरी इस नौकरी से छुट्टी हो जायेगी!" अविनाश ने बात बंद की। क्लास निराश हो गई। अविनाश और अमान्डा की सीरियल जो अच्छी चल रही थी!
लेक्चर के बाद की लेब साढ़े नौ बजे पूरी हुई। सब चले गये, लीसा पीछे रूकी हुयी थी। अविनाश और लीसा एक खाली क्लासरूम की ओर चल दिये।
"आज क्लास में 'फोन का इंतज़ार करो' बोल दिया तुम ने, बिजली सी गिर पड़ी थी मुझ पर।"
"हाँ, मुझे मालूम है। क्या करूँ मैं? मैं तो सीधा दिमाग में जो आता है वो बोल देती हूँ। फिर भी आप ने बड़ी कुशलता से संचालन किया।"
"ठीक है लीसा, क्या बात हुई अमान्डा से? क्या अमान्डा की खोज जारी है?"
"मेरी अमान्डा से लंबी बात हुई। वो खुशदिल नज़र आ रही थी और आप प्रोज़न्टेशन में शामिल हो वो बात भी उसको पसंद आई। आप को वो तुरंत ही फोन करनेवाली थी। आप की उम्र की है और उसका पति इस दुनिया में नहीं है। अमान्डा एक बड़ी प्रतिभाशाली महिला है। और डिटेल तो मैं नहीं दे सकती। कुछ बातें तो निजी रहेंगी।
"अच्छी बात है लीसा। ये जो मेरी एजेंट बन बैठी हो, मैं तुम्हारा विश्वास कैसे करूँगा? मुझे तुम्हारे बारे में और तुम्हारे परिवार के बारे में तो कुछ जानना ज़रूरी होगा। अगले दिन कह रही थी कि तुम्हारा एक बेटा चार साल पहले मेरे क्लास में था। कितने बच्चे हैं तुम्हारे? तुम्हारा पति क्या काम करता है?"
"मेरे तीन बेटे हैं। जो आप के साथ था वो सब से छोटा। मेरे पति सिविल इंजीनियर हैं और अपनी कम्पनी चलाते हैं।"
लीसा ने ओर कुछ बातें भी कहीं। अविनाश ने कुछ अपनी जिंदगी की बातें बताईं। बातों-बातों में एक घंटा गुज़र गया।
"अब हमें चलना चाहिये लीसा, शायद अमान्डा ने मेरे घर की आन्सरिंग मशीन पर संदेसा छोड़ा हो। मैं कल अमान्डा से फोन पर बात कर लूँगा।" अविनाश और लीसा ने एक दूसरे की बिदा ली।

घर आते आते ग्यारह बज गये। दरवाज़ा खोलते ही अविनाश की प्रथम दृष्टि आन्सरिंग मशीन पर पडी। लाल बत्ती टिमटिमा नहीं रही थी। क्या मशीन पर रेकार्ड किया हुआ अभिवादन अमान्डा को पसंद नहीं आया होगा? अविनाश थोड़ा हताश हुआ मगर सुबह होते ही अमान्डा को फोन करने की सोच ली।

बुधवार, जून महीने की सत्रह तारीख।
सुबह के नौ बजे अविनाश ने युनिवर्सिटी का नंबर जोड़ा। प्रोफेसर अमान्डा स्मिथ की लाइन माँगी। प्रोफेसर अपनी आफिस में नहीं थी। संदेसा छोड़ना था। अविनाश ने पूरी तैयारी की थी। पहले कदम पर कोई भूल नहीं करनी थी।
"अमान्डा, मैं अविनाश कपूर। याद नहीं कि हम पहले कभी मिले हैं। शायद आप ने मुझे युनिवर्सिटी के बगीचे में चक्कर मारते हुए देखा हो। एक विशिष्ट सशक्त खूबसूरत इन्सान! लीसा जोहन्सन ने, जो आप के क्लास में है और मेरे क्लास में भी, मेरी कंप्युटर क्लास में जेन्डर इस्युज़ पर सर्वे किया। मेरी सोशीअल इस्युज़ में रूचि बढ़ा दी। बड़ी चतुर है ये लीसा! बोलने लगी कि मैं उसके प्रोज़न्टेशन में हाज़िर रहूँ। मैंने सोचा कि अगर हम अपनी दोनों क्लास के लिये साथ साथ कुछ कर सकें तो दोनों क्लास को लाभ हो सकता है और मुझे आप से मिलने का बहाना भी मिल जायेगा! क्या कहती है आप? मेरा लोकल है ३७७७ और मेरे घर का नंबर है २५०७७७८। बाय!"

दुपहर के डेढ़ बजे फोन की घंटी बजी। पहली बार अविनाश ने अमान्डा की आवाज़ सुनी। आवाज़ मीठी और मनोहर थी। गेस्ट लेक्चरिंग के विचार का विनिमय हुआ। सोशीअल इस्युज़ क्लास के कोई लेक्चर बचे नहीं थे और कंप्युटर लीटरसी क्लास के दो लेक्चर बचे थे। एक आज शाम छः बजे था और एक कल की शाम के छः बजे।

"आज और कल के लिये कंप्युटर लीटरसी क्लास का विषय है- कंप्युटर प्राइवेसी, सिक्युरिटी और एथिक्स। सोशीअल इस्युज़ से जुड़ता हुआ विषय है। आप अगर आ सकती हैं तो क्लास को बड़ा लाभ हो सकता है। हाँ, नोटिस तो छोटी है मगर आप किसी भी शाम चुन सकती है। क्या आप आ सकेंगी?" अविनाश ने प्रस्तावना की।

"हाँ, आप ठीक कहते हैं, नोटिस छोटी है। मेरा बेटा शहर में आया है। मुझे शाम का समय उसके साथ बिताना होगा। शायद हम कभी कॉफी पर मिल जा सकते हैं और कुछ भविष्य के प्रोजेक्ट की प्लान कर सकते हैं।" अमान्डा ने सोच कर जवाब दिया।
"ठीक है तो फिर मैं आप को फोन करूँगा।" अविनाश ने बात खतम की। कोई बीस मिनट बात चली और बात मैत्रीपूर्ण रही।

शाम के छः बजे अविनाश ने क्लासरूम में प्रवेश किया। लीसा राह ही देख रही थी।
"अमान्डा से बात हो गई अविनाश?"
"हाँ, लीसा। अच्छी बात हुई।"
लीसा को जवाब से संतोष नहीं हुआ और बात आगे बढ़ाई।
"कॉफी की डेट तय हुई कि नहीं? मुझे मात्र ये जानना है कि मैं सफल हुई कि नहीं।"
लीसा का बरताव अविनाश को बिलकुल पसंद नहीं आया फिर भी शांति से जवाब दिया।
"लीसा, मैं और कुछ बता सकता हूँ मगर क्लास पूरा होने के बाद एकांत में बताऊँगा।"
क्लास पूरी हुई तब अविनाश लीसा को खोज रहा था। लीसा रुकी नहीं थी।

गुरुवार, जून महीने की अठारह तारीख।
सुबह के सवा आठ बजे थे। अविनाश ने अमान्डा के घर फोन करने का निर्णय लिया। अगले दो दिनो में अविनाश ने कुछ खोज कर ली थी। अमान्डा ने डॉक्टरेट केलिफोर्निया से प्राप्त की है। युनिवर्सिटी में अमान्डा अविनाश के जितनी ही सीनियर है और शहर की फोनबुक में सिर्फ एक ही अमान्डा स्मिथ है।

"हेलो अमान्डा, सोचा कि सुबह सुबह आप से कुछ बात कर लूँ।"
"जरूर, क्यों नहीं? क्या सोच रहे हो?" अमान्डा ने मीठी मधुर आवाज़ से पूछा।
अविनाश ने क्या और कैसे बात करना था उसकी पहले से तैयारी की थी।
"एक बड़ी तेज़ सोच आई। वैसे तो बहुत सी सोचें आती हैं मगर कुछ कभी बेहतर रहती हैं! देखें, आप को कैसी लगती है। मुझे सोच आई कि क्यों न मैं आप की क्लास के प्रोज़न्टेशन में हाज़िर रहूँ? लीसा और बोनी ने तो मुझे अपने प्रोज़न्टेशन में हाज़िर रहने का निमंत्रण दिया है। लीसा तो कह रही थी कि मुझे सब प्रोज़न्टेशन में हाज़िर रहना चाहिये। मेरे खयाल से दूसरे सब प्रोज़न्टेशन में हाज़िर रहना तो उचित नहीं हो सकता अगर पूरे क्लास को आगे से पता नहीं। क्या कहती हैं आप? क्या लीसा और बोनी के प्रोज़न्टेशन में मेरा उपस्थित होना ठीक रहेगा?"

"अगर लीसा और बोनी को मंज़ूर है तो मुझे भी मंज़ूर। आप ठीक कहते हैं। दूसरे सब लोग घबरा जा सकते हैं अगर आगे से नहीं बताया तो, और मुझे तो कोई अवसर नहीं मिला आगे से बताने का। मैं अब भी प्रोज़न्टेशन का शेड्यूल बना रही हूँ। लीसा और बोनी के प्रोज़न्टेशन का कौन सा समय आप पसंद करेंगे? मैं कुछ एडजस्टमेंट कर सकती हूँ।"
"अमान्डा, मैं आप को पूरे का पूरा सच बता देता हूँ। इस प्रोज़न्टेशन के बहाने तो मैं आप से जल्दी से जल्दी मिलने के लिये उत्सुक हूँ!" अविनाश ने फोन पर सहमत होती हुई दबी हुई हँसी सुनी और आगे कहा-
"क्या आज आप अपनी ऑफिस में होंगी? क्या मैं आप को ऑफिस पर मिलने आ सकता हूँ? हम कुछ शेड्यूल की बात तब कर सकते हैं।"
"हाँ, जरूर। आज शहर में मुझे एक अपॉइंटमेंट है। ऑफिस में कुछ काम करना है और फिर दुपहर में घर पर कुछ मार्किन्ग करने की योजना बना रही थी। मैं कोई साढ़े ग्यारह के आस पास ऑफिस में हो सकती हूँ। क्या वो समय ठीक रहेगा आप को?" अमान्डा भी मिलने के लिये उत्सुक रही।

"जरूर, साढ़े ग्यारह बजे, आप की ऑफिस, बाय!" अविनाश ने फोन रख दिया। अविनाश का दिल धड़क रहा था। सत्रह साल के युवक की भाँति! तड़पता दिल जाग उठा था। बरसों बाद आज दिले दर्द की दवा करने जा रहा था। याद नहीं कब उसने हाथों में हाथ लिये बगीचे की सैर की। बगीचे की सैर जहाँ हरियाली को हिस्से हिस्से में बाँटती हुई लंबी सी डगर हो, फूलों की महक हो, साथी हो और जहाँ कहे बिना बहुत सा कहा जा रहा हो। आज अविनाश अमान्डा को बगीचे की सैर का न्योता देगा।
अविनाश अपनी ऑफिस पर सवा ग्यारह बजे पहुँचा। अमान्डा की ऑफिस पर फोन जोड़ा। अमान्डा आ गई थी।
"थोड़ी देर में मिलते हैं।" अविनाश ने कह दिया।

अविनाश दूसरी मंज़िल से नीचे उतरा। कुछ समय था तो टहलने लगा।
रिचर्ड अपनी कार पार्क कर के आ रहा था। रिचर्ड बुकस्टोर का मेनेजर था और अविनाश का अच्छा दोस्त था।
"अरे! अब भी तुमने सिगरेट नहीं छोड़ी?" रिचर्ड ने मजाक में पूछ लिया। रिचर्ड और उसकी बीबी ने थोड़े समय से सिगरेट पीना छोड़ दिया था और जब भी मिलता तब कितने पैसे बच गये उसकी बात करता।
"मैं ने तुम्हें नहीं छोड़ा, रिचर्ड! सिगरेट तो मेरे यार जैसी है! बहुत लंबी यारी है। यार को कैसे छोड़ता?" अविनाश की बात सुन कर रिचर्ड हँस दिया और बुकस्टोर की ओर चल दिया।
अमान्डा की ऑफिस का दरवाज़ा खुला था। अमान्डा फोन पर किसी से बात कर रही थी और खुले दरवाज़े से सुनाई दे रही थी। जैसे ही बात खतम हुई कि अविनाश ने दरवाज़े में कदम रखा।

"हेलो अमान्डा! मैं अविनाश।" अमान्डा अपनी जगह से खड़ी हुई। स्मित भरा सत्कार किया और दोनों ने हाथ मिलाये। अमान्डा ने कुरसी दिखाई और अविनाश ने बैठक ली। दोनों पहली बार मिल रहे थे। अविनाश तो देखता ही रह गया! प्रोफेसर की प्रतिभा थी। चश्मे नाक की मध्य पर टिके हुए थे और पतली काया तो तीस साल की युवती को शर्मा दे जैसी थी। जरूर यह महिला रोज़बरोज़ योगा बोगा करती होगी! अमान्डा कुछ कहे जा रही थी और अविनाश खयालों में खोया खोया सा था। जब अमान्डा ने कल के प्रोज़न्टेशन का शेड्यूल दिखाया तब अविनाश धरती पर आया। कोई आठ प्रोज़न्टेशन थे। शेड्यूल कड़ा ओर ठसाठस दिख रहा था।

"एक दिन में आठ प्रोज़न्टेशन! समय का नियन्त्रण रखना मुश्किल हो सकता है।" अविनाश ने अपने अनुभव की बात बताई।
"मैं ने कार्ड के साइन बनाये हैं। पीछे से ऊँचा कर देती हूँ और वह समय बता देता है।" अमान्डा ने अपनी नियन्त्रण रखने की तरकीब बताई।
"लीसा और बोनी का प्रोज़न्टेशन ग्यारह से साढ़े ग्यारह तक है और ग्यारह बजे के पहले पंद्रह मिनट विराम का समय है। अगर आप चाहे तो मैं कुछ समय बदल सकती हूँ।" अमान्डा ने शेड्यूल की बात जारी रखी।
"समय मेरे लिये बिलकुल ठीक है। विराम के समय आ जाऊँगा।" अविनाश ने सहमति व्यक्त कर दी।
अविनाश को शेड्यूल के अलावा निजी बात करनी थी। अमान्डा की आँखों से आँख मिलाई फिर आँखें झुका कर हलकी सी आवाज़ में कहा. "और मैं ने सोचा मैं खूबसूरत!"
"अरे, ये तो कुछ खुशामद हो रही है!" अमान्डा ने हँसते हुए कहा।

"एक और अविनाश के दिमाग से जन्मी हुई बढ़िया सोच। मेरे क्लास का आखिरी इम्तहान सोमवार की शाम पर है। छः से साढ़े सात तक। इम्तहान के बाद क्लास ने पार्टी रखी है। आठ बजे शहर में है। मुझे तो जाना होगा। अगर आप मुक्त हो सकती हैं और मेरे साथ चल सकती हैं तो मुझे बहुत खुशी होगी।"
"कुछ सोचना होगा। मेरे सब बच्चे अनायास शहर में आ गये हैं। मैं आप की आन्सरिंग मशीन पर संदेसा छोड़ दूँगी।"
बात अच्छी चल रही थी। कोई बीस मिनट से बात जारी थी। अविनाश को कहीं जाना नहीं था। कोई जल्दी नहीं थी। क्यों ना बात आगे आगे बढ़ती रहे? अविनाश को बगीचा याद आ गया। अमान्डा के साथ बगीचे की सैर। कल्पना को साकार करने अमान्डा का सहकार जरूरी होगा। अविनाश प्रस्ताव करने जा ही रहा था कि अमान्डा ने ज़ाहिर किया-
"मुझे अब जाना होगा! एक बजे शहर में मीटिंग है। मुझे कुछ तैयारी करनी होगी।"
"हाँ, जरूर। कल मिलते हैं तो फिर।" अविनाश खड़ा हुआ। स्मित सहित हाथ मिलाये और बिदा ली।

साथ वाली बगीचे की सैर आज नहीं होने वाली थी! फिर भी बगीचा तो था! उदासी को स्मित से उड़ाता हुआ अविनाश अपनी राह चल दिया।

शुक्रवार, जून महीने की उन्नीस तारीख।
प्रोज़न्टेशन दो सौ ग्यारह नंबर के क्लासरूम में था। अविनाश जब पहुँचा तब ग्यारह बजने में दस मिनट बाकी थे। आगे का प्रोज़न्टेशन हो रहा था। विराम नहीं हो रहा था। शायद अमान्डा की कार्ड साइन का असर जबरदस्त नहीं रहा! अविनाश ने खलल पहुँचाना ठीक नहीं समझा। थोड़ी देर के बाद जब वापिस आया तब क्लास विराम में थी। कुछ कुरसियाँ खाली थीं लोग आ जा रहे थे और कुछ लोग खड़े खड़े बातें कर रहे थे। अविनाश ने अमान्डा को एक जगह देखा और उसकी ओर चला। अमान्डा ने स्मित से सत्कार किया। लीसा ने दूर से दोनों को देखा तो नज़दीक आई और बोली-
"आप दोनों का मुझे एक दूसरे से परिचय कराना चाहिये।" लीसा को अपनी एजंट की भूमिका याद आ गई।
"धन्यवाद लीसा। हम मिल चुके हैं!" अमान्डा ने लीसा की बोलती बंद कर दी। लीसा को अगले दिन क्या हुआ उसका कुछ पता नहीं था।

बोनी घबराई हुई दिख रही थी। अगला प्रोज़न्टेशन लीसा और बोनी का था। नज़दीक आई और पूछने लगी. "यह विराम का समय है ना? क्या मैं काफी लेने जा सकती हूँ?" अमान्डा ने नियन्त्रण रखने की कोशिश में सारे क्लास को पूछा- "क्या किसी को ज्यादा विराम चाहिये?" शायद किसी ने सुना नहीं। क्लास की मनोदशा विराम में थी! एक मिनट गुज़र गया और बोनी को कोई जवाब नहीं मिला। विकल और व्याकुल बोनी अविनाश की ओर देखने लगी। अविनाश ने इशारे से कह दिया- "जाओ, काफी ले कर आओ!"

अब लीसा की बारी आई। जैसे ही अविनाश से आँख मिली तो कहने लगी- "क्या मैं दो मिनट के लिये आप से एकांत में बात कर सकती हूँ?" लीसा ने जवाब का इंतज़ार किये बिना क्लास के बाहर की ओर जाना शुरू कर दिया। साथ वाली सैर होने वाली थी, शायद बगीचे की नहीं! अविनाश कैसे रूक सकता? अविनाश ने अमान्डा से क्षमा चाही और लीसा के पीछे चल पड़ा। बिल्डिंग से बाहर निकलते ही लीसा ने कहना शुरू किया- "बोनी की स्थिति अच्छी नहीं है। प्रोज़न्टेशन के समय बेहोश हो जा सकती है। अलग अलग तरीके से मुझे बता रही है कि आप की हाज़िरी उसके लिये शुभ नहीं होगी। माफ करना मगर आशा है कि आप समझ सकेंगे। क्या आप अमान्डा से क्षमा ले सकते हैं और हमारे प्रोज़न्टेशन में हाज़िर न रहने का कर सकते हैं? आप फिर बाकी के सब प्रोज़न्टेशन के लिये आ सकते हैं।"

"मैं समझ सकता हूँ लीसा। प्रोज़न्टेशन करना और व्याकुल होना कोई नई बात तो नहीं। जरूर, मैं अमान्डा से माफी माँग लूँगा। जहाँ तक दूसरे प्रोज़न्टेशन हैं, मैं वहाँ हाज़िर नहीं रह सकता। दूसरे लोग भी मेरी हाज़िरी से व्याकुल हो सकते हैं और अमान्डा को आगे से सब को बताने का मौका तो नहीं मिला था।"
क्लास की ओर वापिस चलते समय लीसा फिर से एजंट बन गई और कहने लगी- "आप को क्लास के अंदर आना चाहिये और अमान्डा से और सब से हिल मिल कर थोड़ी देर बातें करनी चाहिएँ!"

क्लास में अब भी विराम जारी था। एक जगह चर्चा हो रही थी। तीन चार लोग अमान्डा को घेरे हुए खड़े थे। अविनाश वहाँ पहुँच गया। अभी अभी जो प्रोज़न्टेशन पूरा हुआ था उसकी बात हो रही थी। अविनाश ने ध्यान से बातें सुनी और बीच-बीच में कुछ प्रश्न भी कर दिये। जब चर्चा बीच में रुकी हुई थी तब अविनाश ने अमान्डा को थोड़ा सा दूर खींच कर लीसा वाली बात बताई- "मैं हाज़िर नहीं रह सकता। मुझे जाना होंगा।"
अमान्डा ने कुछ बिजली की गति से सोच लिया। जो भी सुने उसके लिये ऊँची आवाज़ से क्लास में घोषणा की।

"मुझे एक जरूरी फोन करना होगा। दस मिनट में वापिस लौटूँगी। अविनाश, जरा मेरे साथ चलना।"
अमान्डा ने अपनी चलन शुरू की। अविनाश पीछे पीछे चल दिया। फिर से साथ वाली सैर होने वाली थी, शायद बगीचे की नहीं! अविनाश कैसे रुक सकता? अमान्डा की ऑफिस की ओर साथ साथ चल दिये। आधे रस्ते पहुँचे तब अविनाश ने बिदा ली- "अमान्डा, प्रोज़न्टेशन में मेरे हाज़िर रहने के शकुन शुभ नहीं थे। खैर, सोमवार को तो पार्टी है। मैं आप के फोन का इंतज़ार करूँगा।"
बगीचा दूर से दिख रहा था। उदासी को स्मित से उड़ाता हुआ अविनाश अपनी राह चल दिया।

शनिवार और रविवार।
अविनाश ने काम में व्यस्त रहने की कोशिश की। अपनी क्लास का आखिरी इम्तहान भी तैयार करना था। मन नहीं लग रहा था। अमान्डा को घर पर फोन करने का सोचा। फिर सोचा कि फोन करना ठीक नहीं रहेगा। इंतज़ार ही करना होगा। नज़र बार बार फोन पर जाती रही मगर घंटी नहीं बजी।

सोमवार, जून महीने की बाईस तारीख।
अविनाश चार बजे अपनी ऑफिस पर पहुँचा। छः बजे इम्तहान शुरू होने वाला था। ऑफिस के फोन पर कोई संदेसा नहीं था। कोई पन्द्रह मिनट हुए होंगे और मशीन की लाल बत्ती टिमटिमाने लगी। अमान्डा ने बात करनी नहीं चाही थी, सिर्फ संदेसा छोड़ना चाहा था। संदेसा छोटा था, अविनाश के क्लास की पार्टी में आना अजीब सा लगेगा और वह नहीं आ सकेगी। अविनाश को अच्छा नहीं लगा। संदेसे से बात खतम नहीं होगी। मुँह से बात करनी होगी। अविनाश ने अमान्डा का घर का नंबर जोड़ा। अमान्डा की बेटी ने फोन उठाया और थोड़ी देर में अमान्डा फोन पर आई।
"मुझे अभी अभी संदेसा मिला, अमान्डा।"
"हाँ, मैं ने सोचा कि जैसे आप का मेरे प्रोज़न्टेशन में आना ठीक नहीं रहा वैसे मेरा आप की पार्टी में आना ठीक नहीं होगा।"
"खैर! शायद आप ठीक सोचती हैं। अगले कुछ दिनो में कॉफी के लिये मिलना चाहोगी?"
"मेरे सब बच्चे शहर में आये हुए हैं। बहुत लेखन कार्य भी सर पर है। अभी मिलना ठीक नहीं होगा। शायद अगली टर्म में हम अपनी क्लासों के बीच साथ साथ कुछ कर सकते हैं।"
"अच्छी बात है अमान्डा। आप की ग्रीष्म सुहानी रहे।" अविनाश ने बात पूरी की। एक कहानी समाप्त हुई।

शाम के पाँच बजे थे। इम्तहान एक घंटे के बाद था। ऑफिस की खिड़की से युनिवर्सिटी का बगीचा दिख रहा था।... वो ही बगीचा जो अविनाश का दूसरा घर था... दूसरा ऑफिस था... विराम का स्थल था... कुदरत से मिलाप था... चिंतन का धाम था... हर प्रश्न का जवाब था!

उदासी को स्मित से उड़ाता हुआ अविनाश अपनी राह चल दिया। वो ही हरियाली, वो ही डगर, कदम पे कदम। अविनाश के कानो में गूँज हुई-

चलता रे तू चलता रे
दिले नादान
तू चलता रे
रूकना नहीं
घबराना नहीं
बढ़ता चल तू चलता रे!

२० अप्रैल २०१५

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