अभिव्यक्ति
में जैनेन्द्र कुमार
की रचनाएँ
इतिहास में
प्रेमचंद का गोदान: यदि मैं लिखता
कहानियों में
तत्सत
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जैनेन्द्र कुमार
जन्म- २ जनवरी १९०५ को अलीगढ़ के
कौड़ियागंज गाँव में।
शिक्षा- प्रारंभिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल में हुई। मैट्रिक की परीक्षा
इन्होने पंजाब से पास की। उच्च शिक्षा काशी विश्वविद्यालय में हुई। सन १९२१ में
पढ़ाई छोड़कर ये असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गए।
कार्यक्षेत्र- दो वर्ष तक इन्होंने अपनी माता की सहायता से व्यापार किया जिसमे
इन्हे सफलता भी मिली। पर इनकी रूचि लेखन की ओर ही अधिक थी। नागपुर में इन्होने
राजनैतिक पत्रों में संवाददाता के रूप में भी कार्य किया। उसी वर्ष तीन माह के लिए
इन्हे गिरफ्तार किया गया। दिल्ली वापस लौटकर इन्होने व्यापार से स्वयं को अलग कर
लिया।
हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कथाकार, उपन्यासकार तथा निबंधकार
जैनेन्द्र कुमार, हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक
के रूप में मान्य हैं। वे अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की
निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की
चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं। उनके उपन्यासों में
घटनाओं की संघटनात्मकता पर बहुत कम बल दिया गया मिलता है। चरित्रों की
प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं के निर्देशक सूत्र ही मनोविज्ञान और दर्शन का आश्रय लेकर
विकास को प्राप्त होते हैं।
इस अनूठे साहित्यकार का निधन २४ दिसंबर १९८८ को हुआ।
प्रकाशित कृतियाँ-
उपन्यास-
परख-(१९२९), सुनीता (१९३५), त्यागपत्र (१९३७), कल्याणी (१९३९), विवर्त (१९५३),
सुखदा (१९५३), व्यतीत (१९५३), जयवर्धन (१९५६)
कहानी संग्रह-
फाँसी (१९२९), वातायन (१९३०), नीलम देश की राजकन्या (१९३३), एक रात (१९३४), दो
चिड़ियाँ (१९३५), पाजेब (१९४२), जयसंधि(१९४९),जैनेंद्र की कहानियाँ (सात भाग),
जैनेंद्र कुमार की कहानियाँ (२०००)
निबंध संग्रह-
प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात,साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच विचार, काम प्रेम और
परिवार, ये और वे।
संपादित ग्रंथ-
साहित्य चयन (निबंध संग्रह-१९५१), विचार वल्लरी (निबंध संग्रह-१९५२)
सह लेखन-
तपोभूमि (उपन्यास, ऋषभचरण जैन के साथ-१९३२)
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