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व्यक्तित्व

अभिव्यक्ति में रमणिका गुप्ता की रचनाएँ

कहानी
ओह ये नीली आँखें


 



 

 

रमणिका गुप्ता  

जन्म- २२ अप्रैल, १९३०, सुनाम (पंजाब);

शिक्षा- एम.ए., बी.एड.।

कार्यक्षेत्र- बिहार/झारखंड की पूर्व विधायक एवं विधान परिषद् की पूर्व सदस्या। कई गैर-सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से सम्बद्ध तथा सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक कार्यक्रमों में सहभागिता। आदिवासी और दलित महिलाओं-बच्चों के लिए कार्यरत। कई देशों की यात्राएँ। विभिन्न सम्मानों एवं पुरस्कारों से सम्मानित।

प्रकाशित कृतियाँ-
कविता संग्रह- पातियाँ प्रेम की, भीड़ सतर में चलने लगी है, तुम कौन, तिल-तिल नूतन, मैं आजाद हुई हूं, अब मूरख नहीं बनेंगे हम, भला मैं कैसे मरती, आदिम से आदमी तक, विज्ञापन बनता कवि, कैसे करोगे बंटवारा इतिहास का, प्रकृति युद्धरत है, पूर्वांचल : एक कविता-यात्रा, आम आदमी के लिए, खूँटे, अब और तब तथा गीत-अगीत।
उपन्यास- सीता, मौसी।
कहानी-संग्रह- बहू-जुठाई।
आत्मकथा- हादसे।
साक्षात्कार संग्रह- साक्षात्कार।
स्त्री विमर्श- कलम और कुदाल के बहाने, दलित हस्तक्षेप, निज घरे परदेसी, साम्प्रदायिकता के बदलते चेहरे।
दलित चेतना पर- साहित्यिक और सामाजिक सरोकार, दक्षिण-वाम के कटघरे और दलित-साहित्य, असम नरसंहार एक रपट, राष्ट्रीय एकता, विघटन के बीज (गद्य-पुस्तकें)।
अन्य- छह काव्य-संग्रह, चार कहानी-संग्रह एवं बारह विभिन्न भाषाओं के साहित्य की प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन सम्पादन। शरणकुमार लिंबाले की पुस्तक दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्रा का मराठी से हिन्दी में अनुवाद। इनके उपन्यास मौसी का अनुवाद तेलुगू में पिन्नी नाम से और पंजाबी में मासी नाम से हो चुका है। जहीर गाजीपुरी द्वारा उर्दू में अनूदित इनका कविता-संकलन- 'कैसे करोगे तकसीम तवारीख को' प्रकाशित। इनकी कविताओं का पंजाबी अनुवाद बलवीर चन्द्र लांगोवाल ने किया जो बागी बोल नाम से प्रकाशित हो चुकी है।

सम्प्रति : सन् १९८५ से युद्धरत आम आदमी (त्रौमासिक हिन्दी पत्रिका) का सम्पादन।

संपर्क- ramnika01@hotmail.com

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