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व्यक्तित्व

 

अभिव्यक्ति में विष्णु प्रभाकर की रचनाएँ

साहित्य संगम में
विक्रमोर्वशी

 

श्री विष्णु प्रभाकर

जन्म तिथि-
२० जुलाई १९१२; सरकारी दस्तावेज़ों और प्रमाणपत्रों में २१ जून १९१२ को गांव मीरापुर जिला मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश में।

कार्यक्षेत्र-
पश्चिम उत्तर प्रदेश में। छोटी आयु में ही वे मुज़फ़्फ़रनगर से हिसार (हरियाणा) आ गए थे जो पहले पंजाब में था। गाँधी जी के जीवनादर्शो से प्रेम के कारण उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ तथा आजादी के दौर में बजते राजनीतिक बिगुल में उनकी लेखनी का भी अपना एक उद्देश्य बन गया था जो आजादी के लिए संघर्षरत थी। अपने लेखन के दौर में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र, अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, किन्तु रचना के क्षेत्र में उनकी अपनी एक अलग पहचान बनी।

१९३१ में हिन्दी मिलाप में पहली कहानी दीवाली के दिन छपने के साथ ही उनके लेखन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज आठ दशकों तक निरंतर सक्रिय है। नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से वे शरत चन्द्र की जीवनी आवारा मसीहा लिखने के लिए प्रेरित हुए जिसके लिए वे शरत को जानने के लगभग सभी सभी स्रोतों, जगहों तक गए, बांग्ला भी सीखी और जब यह जीवनी छपी तो साहित्य में विष्णु जी की धूम मच गयी। कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी विधाओं में प्रचुर साहित्य लिखने के बावजूद आवारा मसीहा उनकी पहचान का पर्याय बन गयी। बाद में अ‌र्द्धनारीश्वर पर उन्हें बेशक साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला हो, किन्तु आवारा मसीहा ने साहित्य में उनका मुकाम अलग ही रखा।

प्रमुख कृतियां -
उपन्यास- ढलती रात, स्वप्नमयी।
नाटक- हत्या के बाद, नव प्रभात, डॉक्टर, प्रकाश और परछाइयाँ, बारह एकांकी, अशोक
कहानी संग्रह- संघर्ष के बाद
उपन्यास- आवारा मसीहा , अर्धनारीश्वर , धरती अब भी घूम रही है , क्षमादान, दो मित्र, पाप का घड़ा, होरी, पंखहीन नाम से उनकी आत्मकथा तीन भागों में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है।

उपलब्धियाँ-
पद्म भूषण, अर्धनारीश्वर उपन्यास के लिये भारतीय ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी सम्मान, देश विदेश में अनेकों सम्मान।

 
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