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परिक्रमा लंदन पाती

एक था राजा

—शैल अग्रवाल

क था राजा, एक थी रानी, दोनों मर गए खतम कहानी।

शायद याद होगा आपको भी जब बचपन में यह कहानी हम एक दूसरे को खेल के मैदान और खाली समय में अक्सर सुनाया करते थे और फिर एक दूसरे की खिजलाहट पर जी खोलकर हंसा भी करते थे।  विश्वास मानिए बहुत अच्छे थे वे दिन क्योंकि ये डरावनी कहानियां राजा–रानी के मरने पर खतम हो जाया करती थी।  पर आज के इस युग में तो राजा कितना भी अच्छा हो या बुरा, न उसके मरने पर कोई कहानी खतम होती है नाही कोई बात क्योंकि उनके उत्तराधिकारियों में से कोई न कोई पुनः सत्ता हथिया लेता है और फिर न तो त्रासित जनता का संघर्ष ही पूरा हो पाता है और ना ही उसकी मनचाही बात।

जी हां अनजानी या आण्विक लड़ाइयों के भय से भी नहीं – जीवन और मृत्यु दोनों को दांव पर लगाकर भी नहीं।  इस बात को शायद आज की इस इक्कीसवीं सदी के भुक्तभोगियों से ज्यादा कौन समज पाएगा – – एक विद्रोही और आतंकवादी के जाते ही कूचखास की तरह तुरंत ही दूसरा कोई आतंकवादी पैदा हो जाता है और जाने कितने वियतनाम, कम्बोडिया, चिली और अफगानिस्तान आग में धधकते रह जाते हैं बस एक जलता हुआ नासूर बनकर।  

वैसे भी शान्ति की अनवरत तलाश में लगे इस विश्व में अब न तो कोई जीवन ही व्यक्ति के अपने हाथों में रह गया है और ना ही उसकी अपनी मौत।  मैं किसी सैनिक–शासन की नहीं, वरन विकसित गणतंत्र पद्धति से चल रहे संपन्न और खुशहाल इस पाश्चात्य समाज की भी बात कर रही हूं।  जहां पर दर्द से तड़पते कुत्ते बिल्लियों पर तो तरस खाकर उन्हें मौत के मुंह सुला दिया जाता है पर इन्सानों को नहीं।  कुछ इसी तरह की परेशानी से मुक्ति पाने के लिए हाल ही में यहां ब्रिटेन के 72 वर्षीय रेज क्विन ने स्विटजरलैंड में जाकर एक महंगी क्लीनिक में जहरीले इंजेक्शन के सहारे अपनी असह्य जिन्दगी से मुक्ति पाई क्योंकि यहां ब्रिटेन में स्वेच्छा से मौत का कारण गैरकानूनी है।  इस तर्क के पक्ष और विपक्ष दोनों में ही कई गहरी दलीलें दी जाती हैं कहा जाता है कि लालची और अवसरवादी इसका दुरूपयोग करेंगे—  जो शायद सही भी हैं क्योंकि जीवन से खेलने का हक किसी को भी नहीं देना चाहिए, फिर वह चाहे अपना ही क्यों न हो।  पर जरूरत पड़ने पर असह्य होने पर हमारे ऋषि–मुनि भी स्वेच्छा से इस नश्वर शरीर का परित्याग करते ही थे।  समय आने पर सरयू नदी के किनारे श्री राम ने भी अपने नश्वर शरीर को छोड़ा ही था।  समस्याएं वही पुरानी और अनंत काल से चली आ रही हैं।  बस नए संदर्भों की वजह से दृष्टिकोण बदल जाता है।  पर आज भी जीवन के अन्य अनगिनत पहलुओं की तरह यह भी हर जिन्दगी की एक  व्यक्तिगत जरूरत है और इसे समाज, सरकार, चिकित्सक या उनसे जुड़े अन्य संबन्धी आदि को बहुत सोच–समझकर, मरीज विशेश की स्थिति और मनोदशा समझकर जिम्मेदारी और सहृदय से निभाना चाहिए।  चन्द मरीजों के आधार पर अध्ययन करके कानून बनाकर नहीं।  ऐसे निर्णय लेना व्यक्तिगत अधिकारों का अपहरण और शोषण ही कहलाएगा, जरूरत बस इतनी सतर्कता की है कि यदि संभव हो तो किसी भी तरह के दुरूपयोग को रोका जा सके।

इन्द्रजाल की बात–खिड़की से हम आप, करीब–करीब सभी परिचित हैं।  वर्चुअल रीयैलिटी के बारे में भी हम सभी जानते हैं और कैसे इस मायाजाल में खोया जा सकता है कभी न कभी हम सभी ने जाना और महसूस किया है।  आज के इस कम्प्यूटर, विडियो और टेलिवीजन के युग में यह उड़ान किसी न किसी रूप में कभी न कभी हम सभी ने ली है।  एक ऐसी उड़ान जो हमें बैठे–बैठे ही बाहर की दुनिया से जोड़ देती है।  कहीं भी आने–जाने की स्वतंत्रता देती है और मित्र, परिचित, सम्बन्धी सभी को पलभर में ही सामने लाकर बिठा देती है।  सुलभ यह निकटता जहां एक तरफ एकाकियों के लिए एक नयी तरह का मनोवैज्ञानिक आसरा बनती जा रही है वहीं दूसरी तरफ तरह–तरह के दुरूपयोग का साधन भी।  रोज नई वेब साइट्स बनती जा रही हैं।  ई कॉमर्स व्यापार की दुनिया में आज एक सशक्त माध्यम बन चुका है।  सामान की खरीद–फरोख्त से लेकर हर तरफ की जानकारी इसके सहारे चुटकियों में हासिल की जा सकती है।  जहां शिक्षा, संचार, साहित्य और विज्ञान, हर दिशा में इसके सदुपयोग हो रहे हैं वहीं अपराधी और विक्षिप्त मानसिकता के लोगों के हाथों में यह इंद्रजाल एक खतरनाक औजार भी बनता जा रहा है।  युवतियों के नग्न और उत्तेजक चित्रों के साथ–साथ बच्चों और नाबालिगों के चित्रों का शर्मनाक दुरूपयोग इन्द्रजाल के यौन बाजार में इतना बढ़ गया है कि यहां ब्रिटेन में हाल ही में कई गिरफ्तारियां भी हुई और कुछ अति सभ्य समझे जाने वाले पढ़े–लिखे प्रतिष्ठित नागरिकों का परदा–फाश तक हुआ।  कानून बना कि अब ऐसी वेव–साइट विजिट करने वालों को गिरफ्तार किया जाएगा क्योंकि यह एक घिनौनी मानसिकता वालों का स्वस्थ मानस को रौंदकर आगे बढ़ता एक भद्दा और अवैध कदम है।

हाल ही इन्द्रजाल की इस उड़ान ने अमेरिका में एक और खतरनाक मोड़ लिया जब एक वर्चुअल रीऐलिटी के चैटरूम में कई लोगों के सामने शेखी मारते हुए एक किशोर नवयुवक ने जो कि मादक द्रव्यों का सेवी था और छद्म नाम से ही जाना जाता था, मित्रों के उकसावे में आकर बारबार ओवर डोज लेकर 4 घंटे में ही अपने को इस लायक भी नहीं रखा कि बगल के कमरे में बैठकर क्रोस वर्ड पजल करती अपनी मां से सहायता तक मांग पाए और उसकी मौत का यह खेल वेब–कैम के सहारे उसके कथित मित्रों ने शुरू से अन्त तक देखा।  वे दर्शक उसके लिए कुछ भी न कर पाए क्योंकि उन्हें उसका सही नाम पता या टेलिफोन नं• कुछ भी नहीं पता था।  उनका परिचय बस इन्द्रजाल पर ही हुआ था और वे सभी मादक द्रव्यों के व्यसनी थे।  अखबार में यह खबर इन्द्रजाल पर पहली आत्महत्या करके छपी पर समझ में नहीं आता कि इसे हत्या कहा जाए या आत्महत्या – –?

एक और उड़ान ऐसी ही गुत्थियों में उलझी टुकड़े–टुकड़े हो हमारी आंखों के आगे बिखर गई और सात चमकते सितारे उसकी गर्त में विलुप्त हो गए।  कहते हैं जब कोलंबिया नामके इस अंतरिक्ष यान ने धरती से उड़ान भरी थी और बीस सेकेंड बाद ही इनसुलेशन शील्ड का 20 इंच का फोम का टुकड़ा टूटकर उसके बाए पंख से टकरा गया था उसी पल में यान का अभागा भविष्य निर्धारित हो चुका था।  वैज्ञनिकों के पास अब बस दो ही रास्ते थे या तो इसे अंतरिक्ष में भटकने के लिए छोड़ दिया जाए जबतक कि इसका पेट्रोल और ऑक्सीजन रहे और बाद में यह खुद ही कहीं विलुप्त हो जाए, पर ऐसा करने से कई महीने तक भटकता यह यान हर सुबह शाम एक भटकती प्रेतात्मा सा दिखाई देता और उसमें बैठे अपनों की तकलीफों को यह सह पाना उस घूमती समाधि को बर्दाश्त कर पाना इतना आसान नहीं होता।  दूसरा रास्ता यह था कि तुरंत ही मिशन को रोककर वापस बुला लिया जाए पर धरती की ऊपरी सतह से पुनः प्रवेश का यह खतरा तब भी उतना ही घातक और जानलेवा ही था – – दोनों ही तरह से इन ऐस्ट्रोनॉट्स के बचने की कोई भी उम्मीद नहीं थी।  दूसरा यान भेजकर टूटी शील्ड को रिपेयर कर पाना भी संभव नहीं था क्योंकि हर टाइल विशेष आकार और सटीक फिटिंग की थी और नासा के पास न तो इतना समय था, ना ही पैसा और ना ही इस तरह की तकनीकी विशेष जानकारी – (वैसे भी लगातार बजट के कटते रहने से कई असंतुष्ट वैज्ञानिक आगामी दुर्गटना की संभावनाओं से डरे अपना इस्तीफा दे चुके थे।)  निश्चय ही आखिरी पल में मरम्मत का यह प्रयास निरर्थक और खतरनाक ही ज्यादा था और सात विलक्षण व्यक्तित्व हमारी आंखों के आगे हंसते–हंसते मौत के मुंह में चले गए।

मरने से चौबीस घंटे पहले आठ वर्षीय पुत्र की मां एस्ट्रोनॉट लौरेल क्लार्क का अपने परिवार के नाम भेजा गया आखिरी ई मेल उल्लास और उत्साह से भरा हुआ था और उनकी भावनाओं की संतुष्ट अभिव्यक्ति कर रहा था।  भाव कुछ इस तरह से थे – –
'अपनी शानदार और सुन्दर पृथ्वी के बाहर और ऊपर से आप सबको संबोधित करना मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा है।  मैंने यहां कई अविस्मरणीय दृश्य देखे हैं – – प्रशांत महासागर के ऊपर तेजी से फैलता यह कड़कती बिजली का उजाला और चमकता आकाश।  उसके नीचे जगमग औस्ट्रेलिया महाद्वीप के शहर।  धरती के ऊपर टिका सुन्दर नया चन्द्रमा।  विस्तृत अफ्रीका के रेगिस्तान और केप हॉर्न पर बनी रेत की सुरंगें।  उंचे पहाड़ों से फूटकर बहती आती निर्झर नदियां, अपना रास्ता खुद ढूंढ़ती और बनाती हुई।  हमारे अपने इस सुन्दर गृह को दिए घाव और धब्बे।  जीवन का अटूट स्पंदन–आदमियों की एक लम्बी कतार उत्तरी अमेरिका से चलकर अमेरिका के मध्य होकर दक्षिणी अमेरिका तक जाती हुई और फिर एक बार फिरसे इस अपनी सुन्दर नीले रंग की पृथ्वी पर पीला चंद्रमा चुपचाप धंसकर आराम से बैठता हुआ।  अपना फूजी पहाड़ तो यहां से बस एक छोटे–से फोड़े सा ही दिखता है।  एक बार मैं उन सबका बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होंने मेरे इस सपने को सच करने में वर्षों मेरा साथ और सहारा दिया।

मुझे उम्मीद ही नहीं विश्वास भी है कि जब–जब हम इस पृथ्वी के ऊपर से घूमें होंगे तब तब हमारी इस हर्ष और उल्लास की लहर ने आपको भी पुलकित किया होगा।
आप सबको बहुत–वहुत प्यार के साथ –  आपकी अपनी लौरेल'

जहां आज हम सबकी आंखों में अपने उन बिछुड़ों की चन्द मीठी यादें हैं –  उनके साहस और आत्म–बलिदान के लिए आभार है –  उनके संतप्त परिवार के लिए सहानुभूति, नमन व सहयोग का भाव है, कुछ विक्षिप्त दिमागों के खुसपुस उद्गार भी सुनाई दे रहे हैं और ब्रिटेन में स्व–प्रस्थापित अबू हमजा अल माजरी को एक बार फिर से देश से बाहर निकालने की मांगों ने जोर पकड़ लिया है जब उन्हें यह कहते हुए सुनेंगे कि अल्लाह ने कोलम्बिया नामके इस यान को इसलिए नष्ट किया क्योंकि यह इस्लाम धर्म के खिलाफ एक त्रिकोणी संगठन लिए हुए था।  यह इसलिए दुर्घटनाग्रस्त हुआ क्योंकि इसमें एक अमेरिकन क्रिस्चियन, एक भारत में जन्मी हिन्दू और एक इजराइल में पैदा ज्यू, एक साथ बैठे हुए थे।  उनके अनुसार यान का यूं टुकड़े–टुकड़े होना अल्लाह की तरफ से एक चेतावनी थी क्योंकि अंतरिक्ष में उड़ान लेने वाले पहले ज्यू इलान रेमों जो पेशे से एक फाइटर पायलट भी रह चुके हैं, की मौत टेक्सस के उस हिस्से में ही जाकर क्यों हुई जिसका नाम पैलेस्टाइन है?

संतप्त विश्व अभी यान के टूटे मलबे को ढूंढ़ने और पहचानने में ही लगा है और इस तरह की उत्तेजक और बेमतलब बातें – ये बस मन को क्षुब्ध करने वाली ही हैं।  सुनने में आया है कि यान के टुकड़ों, मुख्यतः बीस हजार सिरैमिक टाइल्स के टुकड़ों के साथ, काले अंधेरे रोते आकाश के नीचे एक नाजुक हाथ अभी भी अपने नारंगी रंग के अंतरीक्ष सूट में लिपटा सड़क के किनारे पड़ा मिला – साथ में जांग की हड्डी, खोपड़ी और धड़ भी मिले जो कि जांच के लिए डोवर एयर फोर्स बेस में पहुंचा दिए गए।  कहते हैं साथ में यान का लैंडिंग गीयर का भी एक हिस्सा मिला।

पूरा विश्व शोकग्रस्त है पर हर भारतवासी की आंखों में कहीं एक गर्व की चमक है।  वे अपनी लाडली बेटी कल्पना चावला को विदा कह रहे हैं।  आंसू स्वाभाविक हैं पर होठों पर संतुष्ट और दीप्त मुस्कान उसके व्यक्तित्व सी जगमग है – वही तो हैं जिसने अंतरिक्ष योजना में भारत को भी एक पहचान दे दी है।  कलकत्ते जैसे भावुक शहर ने अपनी प्रार्थनाओं के साथ गुलाब के फूल चढ़ाकर कल्पना चावला को विदा दी।

मानवता की भलाई के लिए त्याग और बलिदान होते ही रहेंगे और लोग उन्हें मनचाहे अर्थ, संदर्भ और नाम भी देते ही रहेंगे – – अपना दर्द, अपनी झल्लाहट, अपना प्यार अपने–अपने तरीके से व्यक्त करेंगे।  सच की तलाश में बिछुड़ों का गम हो सकता है, हमें उनकी मौत को हत्या या आत्महत्या जिस भी रूप में देखने को विवश करे पर इतना तो निश्चित है कि वे हमारे हृदय और इतिहास में ही अमर हो गए हैं और मानवता उनकी और उनके त्याग की सदैव ही आभारी रहेगी।  राजा महाराजा तो अपने राज–पाट के साथ एक–एक करके विलुप्त हो जाते हैं पर कर्मवीर, साहसी जननायक और साथी नहीं।  समाज उन्हें स्मारकों सा धो पोंछकर युगों तक मन में सजाकर रखता है।

अब राजा या महाराजा, धर्म और सत्ता के अधिकारी ही खुदको समझते हैं और अपनी प्रजा या अनुयाइयों को भांति–भांति से बहलाते और फुसलाते भी रहते हैं पर हमें उनकी उलटी–सीधी कहानियों को सत्ता का मद समझकर भूल जाना चाहिए – – जो सारमय और सार्थक है वही विवेक और शान्ति से लेना चाहिए।  बाकी सब तो बस एक कहानी ही है – और हम जानते हैं कि कैसे भी शुरू हो, हर कहानी को कभी न कभी तो खतम होना ही पड़ता है।

फरवरी 2003

 
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