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पर्यटन

महिमा मोनालीसा और लूव्र संग्रहालय की
विनोद भारद्वाज


लूव्र संग्रहालय रात में (वृहदाकार)


आज की दुनिया में अच्छे कला संग्रहालयों की कमी नहीं हैं। लेकिन दुनिया भर की कालजयी कलाकृतियों के, वास्तविक अर्थों में, 'शाही खज़ाने' को देखने के लिए लूव्र (पेरिस), द प्रादो (मैड्रिड), पिनाकोठेक (म्युनिख), उफ्फीज़ी (फ्लोरेंस) और हर्मिटाज (सेंट पीटर्सबर्ग) का ही हमें सहारा लेना पड़ता है। इस सूची में पेरिस स्थित लूव्र संग्रहालय को कला का सर्वश्रेष्ठ तीर्थ माना जाता है। कला के इतिहास की सबसे मशहूर पेंटिंग 'मोनालीसा' इसी संग्रहालय में मौजूद हैं। पेरिस एक अद्भुत सांस्कृतिक नगरी हैं जहाँ नब्बे से भी अधिक संग्रहालय हैं। पर किसी सच्चे कला–प्रेमी ने लूव्र और 'मोनालीसा' की रहस्यमय मुस्कान को नहीं देखा, तो उसने क्या देखा!

महान इतालवी कलाकार, वैज्ञानिक, लेखक और चिंतक लियोनार्दो द विंची को 'रेनेसां' (पुनर्जागरण) के प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के रूप में पहचाना जाता है। १५०३-५ ई. के दौरान फ्लोरेंस में रहते हुए लियोनार्दो ने 'मोनालीसा' को पूरा किया था। इतालवी रेनेसां में पोट्र्रेट (व्यक्तिचित्र) बनाने की कला को मनोवैज्ञानिक सत्य चित्रित करने का एक नया विस्तार दिया गया था, जिसके लिए कलाकार मुख्य शारीरिक मुद्राओं के अलावा प्रकाश एवं छाया की कला पर अतिरिक्त ज़ोर देता था। इस दृष्टि से लियोनार्दो को अद्वितीय माना गया है।

दास्तान मोनालीसा की

लियोनार्दो ने 'मोनालीसा' पेंटिंग की मॉडल के रूप में फ्लोरेंस की एक २४ साला युवती को चुना था। प्रसिद्ध इतालवी इतिहासकार वासारी के अनुसार यह महिला फ्रांचेस्को देल जार्कोदा नाम के व्यापारी की दूसरी पत्नी थी। इसीलिए इस पेंटिंग को 'ला जार्कोदा' के नाम से भी पहचाना जाता है।

यह एक दिलचस्प बात है कि किसी भी महान पोप, राजा या राजकुमारी का पोट्रेट बनाने से इन्कार कर देने वाले कलाकार ने अपनी सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग की मॉडल के रूप में आखिर एक लगभग अज्ञात व्यापारी की पत्नी को क्यों चुना? लियोनार्दो ने इस महिला के सौंदर्य में एक रहस्य को पहचाना था। वह उसमें साधारण सौंदर्य को नहीं देख रहे थे। कई साल की मेहनत के बात लियोनार्दो ने जब अपनी पेंटिंग में इस 'त्रिपुर सुंदरी' के रहस्य को उतारा, तो वह अपनी कला के परिणाम से संतुष्ट थे।

लियोनार्दो जब अपने जीवन के अंतिम वर्षों में फ्रांस गए, तो इस पेंटिंग को भी अपने साथ ही ले गए। सन १५१९ ई. में फ्रांस में ही उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद 'मोनालीसा' फ्रांस के राजा फ्रांसिस प्रथम के निजी संग्र्रह में पहुँच गई। उन्नीसवीं शताब्दी में नेपोलियन ने इस पेंटिंग को अपने शयन कक्ष में टाXग कर प्रेरणा प्राप्त की थी। बाद में लूव्र संग्रहालय का यह केंद्रीय आकर्षण बन गई। इस पेंटिंग की पृष्ठभूमि का पहाड़ी लैंडस्केप भी बहुत सुंदर और दिव्य है।

लियोनार्दो की जीनियस प्रतिभा को फ्रांस में कितना सम्मान प्राप्त था इसका पता हमें उन्नीसवीं शताब्दी के मास्टर चित्रकार इंग्रे की एक पेंटिंग से चलता है। सढ़सठ वर्षीय लियोनार्दो, राजा फ्रांसिस प्रथम की बाहों में अपनी अंतिम साँसें गिन रहे हैं। लूव्र संग्रहालय में लियानार्दो की दो अन्य अद्भुत कलाकृतियाँ भी हैं – 'वर्जिन ऑफ द रॉक्स' तथा 'द चाइल्ड, द वर्जिन ऐंड सेंट एने'। इन कलाकृतियों को उनकी रहस्यमय कविता, प्रतीकात्मकता और अध्यात्मिकता के कारण कला के इतिहास में विशिष्ट चर्चा प्राप्त है।

कहानी लूव्र की


लूव्र्र संग्रहालय की इमारत मूल रूप से एक मध्यकालीन किला थी। फिलिप अगस्त ने सन १२०० ई. में इसे बनवाया था। सुरक्षा की दृष्टि से पेरिस की सबसे कमज़ोर जगह – लुपारा पर यह किला बनाया गया था। लुपारा को ही बाद में लूव्र नाम मिल गया। चाल्र्स पंचम ने चौदहवी शती में लूव्र को एक शाही महल में बदल दिया। लेकिन बाद में 'सौ साल के युद्ध' के उतार–चढ़ाव, सुख–दुख और अस्थिरता ने लूव्र को अप्रासंगिक स्थल बना दिया। डेढ़ सौ साल तक यह जगह लगभग उपेक्षित रही। पेरिस में जब योद्धा वापस आए, तो इस किले को नया रूप मिलने की लंबी प्रक्रिया शुरू हुई। फ्रांसिस प्रथम ने १५४६ ई. में लूव्र की इमारत को 'रेनेसां' शैली में मूर्तिकक्ष में अथीना की एक मूर्तिरूपांतरित करना शुरू किया। कई शताब्दियों तक इस महल को बदला जाता रहा। १८७१ ई. के एक अग्निकांड में लूव्र के कुछ हिस्सों को भारी नुकसान भी उठाना पड़ा था।

जहाँ तक लूव्र संग्रहालय की बात है, उसका जन्म अठ्ठारहवीं शताब्दी के अंत में ही हुआ। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान इस संग्रहालय को अपनी पहचान मिली। लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज़ हमें यह बताते हैं कि चालीस साल पहले ही लूव्र संग्रहालय की रूपरेखा पर काम शुरू हो गया था।

रेनेसां और संगहालयों का जन्म
 
रेनेसां काल में गिरजाघरों और शाही महलों में धार्मिक तथा राजनीतिक कारणों से महान कलाकारों की कलाकृतियों को सजाया गया था। इसके अलावा अनेक धनी व्यक्तियों ने अपने निजी संग्रह भी बनाए–बढ़ाए। आधुनिक समय की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी हो गया था कि शाही कला–संग्रह को आम लोगों तक पहुँचाया जाए। महान कलाकृतियाँ महान राजाओं तक अगर सीमित रह जाएँगी, तो कलाकारों, कला समीक्षकों, छात्रों और आम कलाप्रेमियों को प्रेरणा और जानकारी कहाँ से मिलेगी। कई ऐसे संग्रह बनाए गए जो कलकारों और कला के छात्रों को सिखाने–पढ़ाने के लिए विकसित किए गए थे।

इटली में ऐसा ही एक प्रसिद्ध संग्रह द मेदीची गार्डेन था जहाँ मिकेलांजेलो जैसे महान कलाकार ने अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। अठ्ठाहरवीं शताब्दी के अंत में लूव संग्रहालय या ब्रिटेन में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में विक्टोरिया ऐंड अल्बर्ट संग्रहालय ने कला के छात्रों की जरूरतों को ध्यान में रख कर ही जन्म लिया था।

समय बदला। मूल्य बदले। निजी संग्रहों को ज़ब्त कर लिया गया या उनका राष्ट्रीयकरण हो गया। पर फ्रांसीसी क्रांति और नेपोलियन की लड़ाइयों ने आधुनिक संग्रहालय की वास्तविक धारणा को विकसित किया। नेपोलियन
की सेनाओं ने कई शहरों को जीत कर वहाँ के कला खज़ानों को अपने कब्ज़े में किया। इससे लूव्र संग्रहालय की नींव पड़ी। धीरे–धीरे कला संग्रहालय राष्ट्रीय गौरव की पहचान बन गये और वहीं दूसरी ओर दुनिया भर की महान कला से गहरे साक्षात्कार का दुर्लभ अवसर प्रेक्षक को मिेलने लगा।

लूव्र का खज़ाना

लूव्र संग्रहालय बहुत बड़ा है और उसके कई हिस्से हैं। ओरिएँटल या मिस्त्र के पुरावशेषों को देखने के लिए ही अच्छा खासा समय चाहिए। मिस्त्र की प्राचीन सभ्यता का प्रामाणिक परिचय पाने के लिए भी लूव्र संग्रहालय प्रसिद्ध है। यूनानी और रोमन पुरावशेषों के भी अद्भुत रूप इस संग्रहालय में देखे जा सकते हैं। 'मीलो की वीनस' लूव्र संग्रहालय का एक अन्य विश्वप्रसिद्ध मूर्तिशिल्प हैं।

लूव्र संग्रहालय के पेंटिंग के संग्रह को विश्व का सबसे 'पूर्ण संग्रह' माना जाता है। संख्या की दृष्टि से यह संग्रह विश्व का नंबर एक संग्रह नहीं हैं पर गुणवत्ता और विविधता की दृष्टि से इसे नंबर एक माना जाता है। स्वाभाविक रूप से इस संग्रह में दो तिहाई हिस्सा फ्रांसीसी चित्रकला का है। पर इटली के महान चित्रकारों की कला के अद्वितीय रूप भी लूव्र में मौजूद हैं।

मिलो की वीनस

इंग्रे, लियोनार्दो द विंची, राफेल, बोताचेल्ली, वेरोनीस, रूबेंस, रेब्रां, डयूरर, गोया आदि फ्रांस, जर्मनी, इटली, हॉलैंड, स्पेन आदि देशों के सभी महान कलाकारों का प्रतिनिधि काम लूव्र में एक साथ देखा जा सकता है। लूव्र में एक खंड रेखांकनों का है और मूर्तिशिल्प का भी एक उल्लेखनीय खंड है। एँतोनिओ केनोवा का मूर्तिशिल्प 'साइक ऐंड क्यूपिड़' या मिकेलांजेलो का 'द डाइंग स्लेव' और 'रिबेल स्लेव' लूव्र के कुछ मास्टरपीस मूर्तिशिल्प माने जाते हैं। १८९३ ई. से कुछ बहुमूल्य चीज़ों और फर्नीचर वगैरह का एक अलग खंड बना दिया गया है।

लूव्र सरीखे विश्वप्रसिद्ध संग्रहालयों को देखने और कलाकृतियों का वास्तविक आनंद उठाने के लिए काफी समय चाहिए। पर अगर किसी के पास समय कम है, तो संग्रहालय की दूकान से ऐसी गाइड बुक मिल जाती है जो फौरन आपको कम से कम समय में अधिक से अधिक मास्टरपीस कलाकृतियों का साक्षात्कार करा दे।

लूव्र का एक मूर्तिशिल्प कक्ष'मोनालीसा' सरीखी महान कलाकृतियों की कथा आप टेप से चुपचाप सुनते हुए पेंटिंग की अधिक गहराइयों में भी जा सकते हैं। लूव्र का अंडरग्राउंड ट्यूब स्टेशन कलाकृतियों के सुंदर पोस्टरों से सजा हुआ है। संग्रहालय के भीतर जाने से पहले ही आप संग्रहालय के रस–रंग का मधुर आनंद उठाने लग पड़ते हैं और तैयार हो जाते हैं कला यात्रा का एक अद्भुत अनुभव पाने के लिए।

(नमस्कार से साभार)

 
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