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पर्यटन
गेट वे ऑफ इंडिया तथा नया व पुराना ताज होटल— गेट वे ऑफ इंडिया के बड़े चित्र के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें।

माया नगरी मुंबई

—विभा प्रकाश श्रीवास्तव


मुंबई स्वप्न प्रदेश है। यहाँ का तीव्र गति से भागता जीवन, फिल्मों की चमक–दमक और सौम्य–सुखद मौसम पर्यटकों को हर समय आमंत्रित करता रहता है क्योंकि, यहाँ न तो झुलसा देनेवाली लू चलती हैं और न ही दाँत बजानेवाली सर्दी पड़ती है। महाराष्ट्र की यह राजधानी मुंबई सात द्वीपों से मिलकर बनी है, जिसका क्षेत्रफल ६०३ किलोमीटर है। भारत के हर धर्म और हर कोने के लोग यहाँ सद्भावपूर्वक रहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से भी मुंबई का अपना विशेष स्थान है। यहाँ पर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और बंदरगाह काफी बड़ा और सुंदर है। कपड़ा उद्योग का तो यह प्रमुख केन्द्र ही है।

भारत–भूमि पर प्रवेश करने के प्रवेश–द्वार के रूप में प्रसिद्ध है यहाँ का 'गेट वे आफ इंडिया'। पहले यहाँ पर बंदरगाह था, जो केवल ब्रिटिश गवर्नर और अमीरों के उतरने के लिए था। दिसम्बर, १९११ में इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम और रानी मेरी भारत आये थे। इसी अवसर की यादगार के रूप में यह प्रवेश द्वार बनाया गया था और इसका उद्घाटन तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड रीडिंग ने किया था। आज इस द्वार के सामने दो भव्य प्रतिमाएँ लगी हुई हैं, जिनमें से एक घोड़े पर सवार छत्रपति शिवाजी की है, दूसरी स्वामी विवेकानंद की।

जॉर्ज पंचम बनने से पहले 'प्रिंस ऑफ वेल्स' पहली बार सन् १९०५ में भारत आये थे, उस समय उन के हाथों यहाँ संग्रहालय की इमारत का शिलान्यास किया गया था, जो प्रिंस आफ वेल्स म्यूजियम के नाम से जाना गया। संग्रहालय की गुंबदवाली भव्य इमारत सोलहवीं शताब्दी की कलाकृति का नमूना है। इस संग्रहालय में कला, शिल्पकला और प्राकृतिक इतिहास आदि अनेक विभाग हैं। आजकल इस संग्रहालय का नाम छत्रपति शिवाजी संग्रहालय है। इसी के पास प्रसिद्ध जहाँगीर आर्ट गैलरी की इमारत है। सर जहाँगीर कावस जी कला के संरक्षक थे। उनकी याद में निर्मित है यह कला वीथिका।

संग्रहालय के पास ही मुंबई यूनीवर्सिटी की इमारत है। उसी के अहाते में २६० फुट ऊँचा पांच मंज़िला 'राजाबाई टावर' है, जिसे १९वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध व्यापारी प्रेमचंद रामचंद्र ने अपनी माता 'राजाबाई' की याद में बनवाया था। टावर में ऊपर जाने के लिए गोल घूमती हुई सीढ़ियाँ हैं। ऊपर से पूरे शहर का विहंगावलोकन किया जा सकता है। राजाबाई टावर के बड़े चित्र के लिए यहाँ क्लिक करें।

फ्लोरा फाउंटेन या हुतात्मा चौक तथा समीपवर्ती दर्शनीय स्थल

फ्लोरा फाउंटेन चौक मुंबई का एक दर्शनीय स्थल है, जिसका निर्माण यहाँ के गवर्नर सर बारतले फेरी की स्मृति में किया गया था। इसे मुंबई का हृदय कहा जाता है। इस चौक के चारों ओर बैंक, बीमा कंपनियों तथा सरकारी दफ्तरों की ऊँची–ऊँची इमारते हैं। चौक के मध्य में एक भव्य फुव्वारा है। फुव्वारे के पास ही एक किसान और मजदूर की प्रतिमा है, जो संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के शहीदों की स्मृति में बनायी गयी है। उन शहीदों की स्मृति में इस चौक का नाम बदलकर 'हुतात्मा चौक' कर दिया गया है। हुतात्मा चौक या फ्लोरा फउंटेन — बड़े चित्र के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें
फ्लोरा फाउंटेन जिसे अब हुतात्मा चौक के नाम से जाना जाता है।
हुतात्मा चौक के पास ही विदेश संचार भवन की २५० फुट ऊँची १६ मंजिली भव्य इमारत है। इसकी रचना अपने ढंग की निराली है। इसके द्वारा विदेशों से समाचार आदान–प्रदान के साथ अंतरिक्ष उपग्रहों के साथ भी संपर्क साधा जाता है। यहीं पर बनी छह मंजिल की एक भव्य इमारत 'सचिवालय' हैं, जिसमें महाराष्ट्र सरकार के प्रशासकीय कार्यालय है। सचिवालय के पास ही आकाशवाणी और जीवन बीमा निगम की भव्य इमारत 'योगक्षेम' हैं। सचिवालय के पास ही सामने की ओर समुद्र को पाटकर जो जमीन तैयार की गयी है, उस पर मुंबई का नया रूप तैयार हुआ है। यहाँ पर २० से २४ मंजिलों की अनेक इमारतें हैं। इसमें से एयर इंडिया, एक्सप्रेस टावर, निर्मल मफतलाल सेंटर आदि की इमारतें प्रमुख हैं। समुद्र के किनारे बनी इन इमारतों की शान ही निराली है।

पहला रेल स्टेशन

विक्टोरिया टर्मिनस भारत का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन है। देश के तमाम हिस्सों से यहाँ गाड़ियाँ आती–जाती हैं। स्टेशन के दो हिस्से हैं। एक, लोकल गाड़ियों के लिए और दूसरा, देश के विभिन्न भागों के लिए जाने वाली रेल गाड़ियों के लिए। यहीं पर मध्य रेलवे का प्रधान कार्यालय है। इटालियन गाथिक पद्धति की बनी यह इमारत सन् १८८८ में तैयार हुई थीं। यहीं से भारत की पहली रेल सन् १८५३ में चली थीं।

विक्टोरिया टर्मिनस के सामने ही गोल गुंबदवाली बड़ी इमारत म्युनिसिपल कार्पोरेशन की है। इसका निर्माण १९०३ में हुआ था। यह इमारत गौथिक स्थापत्य कला के अनुरूप बनी है। विक्टोरिया टर्मिनस से डॉ. दादाभाई नौरोजी रोड़ पर आगे क्राफ्र्ड मार्केट हैं, जिसको नया नाम महात्मा ज्योतिबा फूले मार्केट है। यह शहर का सबसे बड़ा मार्केट है।

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उन हाल के पास ही रिजर्व बैंक की भव्य इमारत है और उसके सामने भारत सरकार की टकसाल, जिसमें सिक्के ढाले जाते हैं। रेलवे स्टेशन विक्टोरिया टर्मिनस के बड़े चित्र के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें।

गले का हार है मरीन ड्राइव

नरीमन प्वाइंट से चौपाटी की तरफ चलने पर एक तरफ समुद्र का दृश्य और दूसरी तरफ एक ही आकार की ऊँची–ऊँची इमारतें हैं। यहाँ की दृश्यावली बड़ी ही आकर्षक है। इस सड़क का नाम मैरीन ड्राइव है। यह सड़क अर्धचंद्राकर है। इसे रात के समय मालाबार हिल्स से देखने पर ऐसा लगता है मानों किसी सुंदरी के गले का हार जगमगा रहा हो। मैरीन ड्राइव और चौपाटी के बीच, चर्नी के स्टेशन के पास ही तारापोरवाला मछलीघर है, जहाँ दुनिया के सभी हिस्सों में मिलनेवाली तरह–तरह की मछलियों को रखा जाता है। मरीन ड्राइव के बड़े चित्र के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें।

चौपाटी का एक अलग ही आकर्षण है। यह स्थान समुद्र के किनारे खुली रेतीली जमीन है। यह सबसे लोकप्रिय भ्रमण स्थल है। रविवार के दिन शाम को लोगों की भीड़ यहाँ एक मेले का रूप ले लेती है। चौपाटी की चटपटी भेल बहुत प्रसिद्ध है। चौपाटी पर ही लोकमान्य तिलक और सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमाएँ लगी हुई हैं।

हैंगिंग गार्डन यहाँ का एक अन्य आकर्षण स्थल है। मालाबार हिल्स के ऊपर दक्षिणी मुंबई को जलपूर्ति के लिए बनी विशाल पानी की टंकी के ऊपर तीन फुट मिट्टी डालकर यह उद्यान तैयार किया गया है। अब उसका नाम बदलकर सर फिरोज शाह मेहता उद्यान रख दिया गया है। इसी उद्यान के पास ही कमला नेहरू पार्क है। इस पार्क का मुख्य आकर्षण 'बुढ़िया का बूट' नामक लगभग २० फुट ऊँचा एक जूता है।

समुद्र तट पर स्थिति श्री महालक्ष्मी मंदिर और हाजी अली की दरगाह भी दर्शनीय है। महालक्ष्मी मंदिर और हाजी अली की दरगाह भी दर्शनीय है। महालक्ष्मी मंदिर में आदि – माता महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की तीन मूर्तियाँ हैं। मंदिर के पास ही पहाड़ी पर हाजी अली की दरगाह है, जहाँ पहुंचने के लिए समुद्र के किनारे–किनारे एक पक्का रास्ता है, जो समुद्र में ज्वार के समय पानी में डूब जाता है। दादर स्थित शिवाजी पार्क मैदान के बीच शिवाजी रंग मंदिर अपना ऐतिहासिक महत्व रखता है। यहाँ पर बड़ी–बड़ी सभाएँ होती हैं और मराठी रंगमंच के नाटक आयोजित किये जाते हैं।

वसई किला यहाँ का ऐतिहासिक स्थल है। १०वीं शताब्दी के आरंभ में सुल्तान बहादुर शाह के शासनकाल का यह किला सन् १५३४ में दूसरे प्रदेशों के साथ पुर्तगालियों के अधिकार में चला गया था। पुर्तगालियों ने इस किले के अंदर शहर की रचना की। सन् १७३९ में मराठी के पराक्रमी सेनापति चिमाजी अप्पा ने कई दिनों के घोर युद्ध के बाद इस पर अपना अधिकार जमा लिया। सन् १८१६ में पूना की संधि में यह किला अंग्रेजों के अधिकार में चला गया। आज भी विशाल क्षेत्र में फैले हुए किले के भग्नवावशेष देखने लायक हैं।

एलिफैंटा में शिव की प्रतिमाएलीफेंटा की गुफाएँ

गेट वे ऑफ इंडिया से लगभग ११ किलोमीटर दूर एक छोटे से टापू पर एलीफेंटा की गुफाएँ हैं। जहाँ गेट वे ऑफ इंडिया से मोटर बोट द्वारा पहुंचा जाता है। छठी शताब्दी में हिंदू राजा द्वारा निर्माण करायी गयीं इन गुफाओं में ब्रह्मा, पार्वती, नटराज शिवाजी की विभिन्न मुद्राओं में विशाल मूर्तियाँ हैं। सबसे उल्लेखनीय मूर्ति 'महेश मूर्ति' है जो त्रिमूर्ति शिव की है और छह मीटर ऊँची मूर्ति है।

जुहू के बीच के समीप इस्कान द्वारा स्थापित 'हरे राम रहे कृष्ण मंदिर' भी दर्शनीय हैं। इसके अलावा मुंबा देवी मंदिर, गांधी संग्रहालय, मनोरी वीच, कान्हेरी गुफाएँ, जामा मस्जिद, अफगान चर्च, स्टॉक एक्सचेंज , नेहरू प्लेनेटोरियम, रानी बाग, माउंट मेरी चर्च, फैंटासी लैंड, एस्सल वल्र्ड, पवई लेक, रेसकोर्स, बृजेश्वर गर्म पानी का कुंड, संजय गांधी उद्यान आदि दर्शनीय स्थल हैं।

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