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प्रकृति और पर्यावरण


अद्भुत फूल चम्पा
-डॉ राकेश कुमार प्रजापति


चम्पा का वृक्ष दक्षिण- पूर्व एशिया (चीन, मलेशिया, सुमात्रा, जावा और भारत में प्राकृतिक रूप से) पाया जाता है। चम्पा का मूल उत्पत्ति स्थान भारत में पूर्वी हिमालय तथा अन्य पड़ोसी देशों में इंडोनोशिया को माना जाता है। चम्पा निकारगोवा और लाओस देशों का राष्ट्रीय फूल है। चम्पा के वृक्षों का उपयोग घर, पार्क, पार्किग स्थल और सजावटी पौधे के रूप में किया जाता है।

भारतीय संस्कृति में-

चम्पा के खूबसूरत, मन्द, सुगन्धित हल्के सफेद, पीले फूल अक्सर पूजा में उपयोग किये जाते हैं। चम्पा का वृक्ष मन्दिर परिसर और आश्रम के वातावरण को शुद्ध करने के लिए लगाया जाता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक कहावत है कि ’’चम्पा तुझमें तीन गुण-रंग रूप और वास, अवगुण तुझमें एक ही भँवर न आयें पास’’।
रूप तेज तो राधिके, अरु भँवर कृष्ण को दास, इस मर्यादा के लिये भँवर न आयें पास।।
चम्पा में पराग नहीं होता है। इसलिए इसके पुष्प पर मधुमक्खियाँ कभी भी नहीं बैठती हैं, लेकिन इसके बीज पक्षियों को बहुत आकर्षित करते हैं। कहा जाता है, कि चम्पा को राधिका और कृष्ण को भँवर और मधुमक्खियों को कृष्ण के दास-दासी के रूप में माना गया है। राधिका कृष्ण की सखी होने के कारण मधुमक्खियाँ चम्पा के वृक्ष पर कभी नहीं बैठती हैं। चम्पा को कामदेव के पाँच फूलों में गिना जाता है। देवी माँ ललिता अम्बिका के चरणों में भी चम्पा के फूल को अन्य फूलों जैसे- अशोक, पुन्नाग के साथ सजाया जाता है। पुन्नाग प्रजाति के फूल का सम्बन्ध भगवान विष्णु से माना जाता है। रविन्द्रनाथ टैगोर ने इसे अमर फूल कहा है। चम्पा का वृक्ष वास्तु की दृष्टि से सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। इसी कारण दक्षिणी एशिया के बौद्ध मंदिरों में ये बहुतायत से पाए जाते हैं।

विदेशी संस्कृति में-

बांग्लादेश में इसके पुष्प को मृत्यु से जोड़ा जाता है। अनेक स्थानीय लोक-मान्यताओं में चम्पा का भूत-प्रेत और राक्षसों को आश्रय प्रदान करने वाला वृक्ष माना जाता है। इसकी सुगन्ध को मलय लोक कथाओं में एक पिशाच से सम्बन्धित माना गया है। फिलीपीन्स में, जहाँ इसे कालाचूची कहते हैं इसे मृत आत्माओं से संबंधित माना गया है,  इसकी कुछ प्रजातियों को कब्रिस्तानों में लगाया जाता है। फीजी आदि द्वीप समूह के देशों में महिलाओं द्वारा इसके फूल को रिश्ते के संकेत के रूप में कानों में धारण किया जाता है। दाहिने कान में पहनने का मतलब रिश्ते की माँग और बाँये कान में पहनने का मतलब रिश्ता मिल गया है।

विभिन्न भाषाओं में चम्पा के नाम-

भारतीय भाषाओं में देखें तो चंपा को मराठी में सोनचम्पा, तमिल में चम्बुगम या चम्बुगा, मणिपुरी में लिहाओ, तेलगु में चम्पानजी, कन्नड चम्पीजे, बगाली में चंपा, शिंगली सपु,  उड़िया में चोम्पो,  इण्डोनेशियाई में कम्पक, कोंकणीं में पुड़चम्पो, असमिया में तितान्सोपा तथा संस्कृत चम्पकम् कहते हैं। विदेशी भाषाओं में अंग्रेजी में इसे प्लूमेरिया अल्बा या फ्रेंजीपानी, स्पैनिश में चम्पका, बर्मी में मवाक-सम-लग, चीनी में चाय-पा, थाई में चम्पा या खोओ तथा फ्रेंच इलांग- इंलग कहते हैं।

वानस्पतिक विवरण-

चम्पा मैग्नोलिशिया परिवार का उष्ण-कटिबन्धीय झाड़ियों और छोटे पेड़, पौधे जगत में ९५ (अरब) वर्ष पहले अस्तित्व में आया। चम्पा की लगभग ४० प्रजातियाँ उष्ण-कटिबन्धीय और उपउष्ण-कटिबन्धीय क्षेत्रों में पायी जाती हैं। इसके सदाबहार वृक्ष सामान्यतः १८ से २१ मी. लम्बे होते हैं। इसकी खुशबू अत्यन्त मादक होती है। इसके पौधों को बोनसाई के रूप में बनाकर घर के भीतर के वातावरण को सुगन्धित किया जाता है। इसके वृक्ष अर्धपर्ण पाती छोटे से मध्यम आकार के होते है। पेड़ की छाल, सतह चिकनी, भूरे रंग की सफेद भीतरी छाल रेशेदार होती है। पत्तियाँ, सामान्य पूर्ण और गोले के आकार में व्यवस्थित होती हैं। पत्तियाँ डण्डलों से मुक्त होती हैं। पेड़ फूल और फल वर्ष भर देते है। फूलों का परागण कीटों (बीटल) द्वारा होता है। जो पराग (दलपुंज) से निकलता है। कीटों के लिए उपयुक्त आहार होता है।

वैज्ञानिक परिचयः-

वानस्पतिक जगत में मैग्नोलेशिया फूलों के वृक्षों का एक परिवार है। जिसमें २१० फूलों की प्रजातियों में चम्पा एक फूल है। मैग्नोलेशिया नाम फ्रेंच वानस्पतिक शास्त्री पियरे मैग्नोल’ के नाम पर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार के फूल वाले वृक्ष मधुमक्खियों से पहले की उत्पत्ति के हैं, और इनमें परागण का कार्य भृंग कीटों द्वारा होता है। भृंग कीटों से फूलों को हानि होने से बचाने के लिए फूल बहुत मजबूत होते हैं। इस परिवार के पुष्पों में दल एवं दलपुंज में अन्तर नहीं होता। इस प्रकार के फूलों और चम्पा के वृक्ष को पहले चार्ल्स फ्लूमियर ने १७०३ में प्लूमिरेसि वानस्पतिक परिवार में वर्णित किया था। लेकिन बाद में फ्लूमेरेसि परिवार के सारे सदस्यों को मग्नोलेशिया परिवार में सम्मलित कर लिया गया है।

चंपा की प्रमुख प्रजातियाँ-

चंपा को पंखुरियों के आकार आधार पर दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है माइकेलिया जिसकी पंखुरियाँ लंबी और नुकीली होती हैं तथा प्लूमेरियि जिसकी पंखुरियाँ चौड़ी और गोल होती हैं। माइकेलिया प्रजाति की चंपा के पाँच प्रमुख प्रकार हैं।

  • माइकेलिया आइनिया जो गुलाबी रंग का होता है और इसका उत्पत्ति स्थान चीन और वियतनाम माना जाता है।

  • माइकेलिया अल्बा जो सफेद रंग का होता है, यह एशिया में सबसे अधिक पाया जाता है और सजावटी पौधे तथा महँगे इत्र के लिये प्रसिद्ध है।

  • माइकेलिया चम्पाका पीला, सफेद जिसका मूल स्थान दक्षिण एशिया है, इसे जोयट्री, के नाम से भी जाना जाता है।

  • माइकेलिया डीलटसोपा मीठा चम्पा मूल रूप से पूर्वी हिमालय का झाड़ीनुमा वृक्ष है, यह अधिकतम ३० मीटर ऊँचा होता है और इसमें बंसत में फूल निकलते हैं।

  • माइकोलिया किगो क्रीम, जिसके फूल हल्के बेंगनी होते हैं यह एक प्रकार की वन्य झाड़ी है जिसका दूसरा नाम पोर्टवाइन है।

प्लूमेरिया प्रजाति की चंपा के पाँच या छह प्रमुख प्रकार माने गए हैं, जिसमें से चार बहुतायत से मिलते हैं-

  • प्लूमेरिया अल्बा जो सफेद रंग का होता है और इसका भीतरी भाग हल्के और गहरे पीले रंग का होता है। यह प्रमुख रूप से एशियाई प्रजाति है तथा दक्षिण एशिया में बहुतायत से पाया जाता है।

  • प्लूमेरिया ऑब्टूसा जो मूल रूप से अमेरिकी प्रजाति है लेकिन सुंदर और सुगंधित फूलों के कारण विश्व भर में उगाई जाती है। इसका फूल सफेद होता है लेकिन केन्द्र में हल्का पीला छोटा सा आकार देखा जा सकता है। इसकी पंखुरियाँ एक दूसरे से अलग और थोड़ी दूर दूर होती हैं।

  • प्लूमेरिया पुडिका पनामा, कोलम्बिया और वेनेजुएला का निवासी है। इसकी पंखुरिया नर्म और हल्की त्वचा वाली होती है। रंग सफेद और केन्द्र हल्का पीला होता है। इसकी एक विकसित प्रजाति थाईलैंड में पाई जाती है जिसका रंग गुलाबी होता है और रंग के आधार पर इसे पिंक पुडिका भी कहते हैं।

  • प्लूमेरिया रूब्रा लाल रंग का होता है। प्रमुख रूप से मेस्किको का निवासी यह पेड़ समशीतोष्ण या उष्ण जलवायु में सभी जगह बहुतायत से पाया जाता है। यह सात से आठ मीटर तक ऊँचा होता है और इसमें वसंत तथा गर्मियों के मौसम में सफेद से लाल तकर अनेक छवियों के सुगंधित फूल खिलते हैं।

भारतीय चम्पा के चार प्रमुख प्रकार हैं-

१. सोन चम्पाः-

  • सोन चम्पा एक लम्बा सदाबहार वृक्ष है। इसकी मूल उत्पत्ति स्थान भारतीय हिमालय या दक्षिण पूर्व एशिया एवं चीन है। इसके फूल पीले या सफेद रंग के अत्यन्त खुशबू वाले होते है। इसका अधिकतम रूप से उपयोग लकड़ी या सजावटी पौधे के रूप में किया है। इसकी प्रजातियाँ पीले से नारंगी रगों में पायी जाती है। इसके अन्य नाम देव चम्पा, गोल्डन चम्पा, ईश्वर चम्पा, आदि है। इस फूल को महिलाओं और लड़कियों द्वारा अपने बालों में सौन्दर्भ आभूषण एवं प्राकृतिक इत्र के लिए प्रयोग किया जाता है। कमरे को सुगन्धित करने के लिए इसके फूल को पानी से भरे पात्र में डालकर रखा जाता है। नयी दुल्हन के माला और विस्तर को सजाने के लिए इसके फूलों का प्रयोग किया जाता है। इस पौधो को ’जोय’ इत्र वृक्ष’’ के नाम से जाना जाता है।

    इसका तेल चन्दन के तेल की तुलना में एक अलग तरह से बनाया जाता है। इसे एक शान्त और अँधेरे कमरे में चमड़े की बोतल में संग्रहीत किया जाता है। इसका तेल शरीर की गर्मी को दूर कर देता है। यह चन्दन के तेल की तुलना में ज्यादा असरदार और ठण्डा होता है। सोन चम्पा के फूलों का औषधीय और कास्मेटिक दोनों रूपों में उपयोग किया जाता है। वस्त्रों को रँगने में पीले फूलों का उपयोग होता है। अपच और ज्वार में फूलों का अर्क लेते हैं। सिर,आँख,नाक, कान की बीमारी, सुजाक गुर्दे की बीमारी गढ़िया, चक्कर आना सिरदर्द, में तेल बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है गुलदस्ता सजाने में इसकी पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। ताजा नरम पत्तियों को पानी में कुचल कर ऐन्टीसेप्टिक लोशन बनाया जाता है। पत्तियों का रस भी पेट दर्द में प्रयोग होता है।

    फूल और पत्ती के अलावा इसकी छाल भी उपयोगी है। इसे उत्तेजक और ज्वर हटाने वाली औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। आन्तरिक ज्वार को दूर करने के लिए इसके छाल को काढ़े के रूप में प्रयोग करते हैं। छाल को दालचीनी के साथ प्रयोग करके मिलावट के रूप में प्रयोग किया जाता है। पैरों की दरारों में बीज और फल का प्रयोग होता है। पेट फूलना और पेट के कीड़ों में चम्पा के फूल उपयोगी हैं।

२. नाग चम्पा:-

  • नाग चम्पा के फूल पीले या गुलाबी रंग के होते हैं। नाग चम्पा का एक परंपरागत इतिहास है। भारत और नेपाल के हिन्दू और बौद्ध मठों में नाग चम्पा की खुशबू को बनाने की विधि को गुप्त रखा जाता था। तथा प्रत्येक मठ की एक अलग अपनी सुगन्ध बनाई जाती थी। अध्यात्मिक ज्ञान में पश्चिमी देशों की रुचि बढ़ने से नाग चम्पा के पुष्प के बारे में रुचि अन्य देशों में फैलने लगी। जिससे सुगंध के कारण चम्पा वर्षों बाद भी दूसरे देशों में भी सबसे लोकप्रिय जाना जाता है। अध्यात्मिक ध्यान प्रयोजनों में नाग चम्पा की खुशबू ध्यान की गहराई को और बढ़ा देती है।

    नाग चम्पा भारत में सदाबहार पवित्र वृक्ष के रूप में मन्दिरों और आश्रमों में लगाया जाता है। यह हिन्दू देवता विष्णु का प्रतीक माना जाता है। यह फूल अति सुन्दर मादक खुशबू से भरे होते हैं। फूल की पखुड़ियाँ सॉप के फन के सामान होती हैं इसलिए इसे नाग चम्पा कहते हैं। नाग चम्पा की धूप संगीत प्रेमियों के संगीत का हिस्सा है। इसमें रासायनिक रूप से बेन्जीन, एसीटेट, लैक्टोन, लोवान,बेन्जीऐट मिथाइल आदि तत्व मौजूद होते हैं। नाग चम्पा के विभिन्न धूप ब्राण्ड भी हैं। जैसे- धूनी नाग चम्पा, गोलोक नाग चम्पा, सत्यसाईं बाबा नाग चम्पा, शान्ति नाग चम्पा, तुलसी नाग चम्पा, हेम चम्पा आदि।

३. कनक चम्पाः-

  • कनक चम्पा के वृक्ष को खुशबू के साथ-साथ खाने की थाली के पेड़ के रूप में जाना जाता है। इसके पत्ते ४० से.मी. तक लम्बे होते हैं। तथा दुगनी चौड़ाई के होते हैं। यह वृक्ष ५० से ७० फिट की ऊँचाई तक बढ़ सकता है। भारत के कुछ भागों में इसके पत्ती का प्रयोग बर्तन की जगह किया जाता है। फूल कलियों के अन्दर बन्द होते हैं। कलियाँ पाँच खण्डों में बटी होती हैं। छिले केले की तरह दिखाई देती हैं।

    प्रत्येक फूल केवल एक रात तक रहता है। मधुर और सुगन्धित होने के कारण चमगादड़ इन फूलों की तरफ आकर्षित होते हैं। पत्ते, छाल चेचक और खुजली की दवा बनाने में इस्तेमाल होते हैं। इसके वृक्ष की लकड़ी से तख्त बनाये जाते हैं। यह वृक्ष पश्चिमी घाट और भारत के पर्णपाती जगलों में पाया जाता है। समुद्री खारा पानी इसके लिए अत्यन्त उपयुक्त होता है।

४. सुल्तान चम्पाः-

  • सुल्तान चम्पा दक्षिणी भारत, पूर्वी अफ्रीका,मलेशिया और आस्टेªलिया में समुद्र तटीय क्षेत्रों में सालों साल से पाये जाते हैं। इनकी ऊँचाई ८ से २० मी. तक होती है। यह वृक्ष घना और चमकदार अण्डाकार पत्रों से युक्त होता है। इसके सफेद सुगन्धित पुष्प धीमी गति से बढ़ते हैं जो मई से जून तक आते हैं। इसके केन्द्र में पीले पुंकेसर की मोटी पर्त होती है। यह वृक्ष तराई जंगलों में अच्छी तरह बढ़ता है। इसकी अन्दरूनी क्षेत्रों में मध्यम ऊँचाई पर खेती की जाती है।

    इसको अलेकजेन्द्रिया लारेल वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पेड़ चक्रवात के लिए प्रतिरोधी होते हैं। इसके फल हल्के हरे रंग के गेंदे के आकार के होते हैं। इस वृक्ष को लोक कथाओं में भगवान शिव से सम्बन्ध माना जाता है। यह शिव के पसन्द आठ फूलों में से एक है। जिसे पूजा में शिव को अर्जित किया जाता है।

    इस वृक्ष के चारों ओर महिलायें नृत्य करते हुये इसे पैर से ठोकर मारें तो यह खिल जाता है। एक कहावत है कि, इस तरह के वृक्ष में दिव्य आत्मायें रहती हैं। इसके वृक्ष का उपयोग तेल, साबुन,जहाज और नाव,रेल्वे स्लीपर, प्लाई जंगले अलमारियाँ, सजावटी समान आदि बनाया जाता है। यह एक अच्छा छायादार वृक्ष होता है। जो वनीकरण में प्रयोग होता है। इसको वात, पित, डायरिया, मूत्र रोगों आदि में प्रयोग किया जाता है।

५ कटहरी चंपा

  • 'कटहरी चम्पा को हरी चंपा भी कहते हैं। इसका पौधा चंपा की अन्य जातियों से भिन्न होता है लेकिन इसका फूल चंपा की कुछ प्रजातियों से मिलता जुलता है।

    इसका पेड़ झाड़ी जैसा, तीन से लेकर पाँच मीटर तक ऊँचा होता है। पत्तियाँ सरल तथा चमकीली हरी होती हैं। फूल अर्धवृत्ताकार डंठल पर लगते हैं। ये डंठल अन्य वृक्षों की डालियों के ऊपर चढ़ने में उपयोगी होते हैं। शुरू में फूल हरे होते हैं, परंतु बाद में इनका रंग हलका पीला हो जाता है। इन फूलों से पर्याप्त सुगंध निकलती है, जो पके कटहल के गंध जैसी होती है। इससे इनका पता पेड़ पर आसानी से लग जाता है।

उपयोगिता-

  • १. कृषि में उपयोगः-
    चम्पा के वृक्ष को पुनः- जंगल को हरा भरा करने के लिये लगाया जाता है। वृक्ष में भूमि में नत्रजन इक्ट्ठा करने की क्षमता होती है। वृक्ष की जड़ों में कृषि के लिये उपयोगी फफूँद पाई जाती है। वृक्ष मृदा सुधार के लिऐ उपयोगी है। वृक्ष के आस-पास के पी.एच. मान में बढोत्तरी, मृदा कार्बन तथा उपलब्ध फास्फोरस बढ़ाने में सहायक होता है। पत्तियों को रेशम के कीटों के भोजन के लिये उपयोग किया जाता है। पत्तियों का रस धान में रोग पैदा करने वाली फफूँद (पाईरिकोलेरिया ओराइजी) के प्रति विषाक्त तथा अन्य जीवाणुओं के प्रति -जैविक होता है।
     

  • २. औषधि में उपयोगः-
    छाल और पत्तियों का उपयोग बच्चा पैदा होने के बाद होने वाले ज्वर को दूर करने वाली औषधि के रूप में किया जाता है। म्याँमार में फूलों का उपयोग कुष्ठ रोग में और पत्तियों का उपयोग पैर दर्द के लिये किया जाता है। पुरूषों की ताकत और ऊर्जा के लिए इसके फूलों से औषधि बनाई जाती है। पीले चम्पा के फूल कुष्ठ रोग में उपयोग होते हैं। इसकी बूदें रक्त में मौजूद कीटाणुओं को नष्ट कर देती हैं।

जलवायु-

भारतीय मूल उत्पत्ति स्थान है, लेकिन अन्य उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश में इसको लगाया जाता है। चम्पा का वृक्ष ३५-४० सी अधिकतम और ३-१० सी कम तापमान वाले स्थानों में सफलता पूर्वक उगाया जाता है। समुद्र तल से ६००-२००० मीटर ऊँचाई वाले स्थानों में चम्पा के लिए नम, गहरी और उपजाऊ मिट्टी उपयुक्त होती है। यह वृक्ष आर्द्र वातावरण में २५०-१५०० मी० समुद्र की ऊँचाई पर उगाया जा सकता है। चम्पा से बनी दवाएँ खून में मौजूद कीटाणुओं को नष्ट कर देती हैं।

प्रसारण-

बीज द्वारा बीजों का जमाव बहुत कम होता है, बीजो को फफूँद नाशक कीटनाशकों से उपचारित करके छाया वाले स्थानों में वोना चाहिए तथा उगाने के बाद इसको आवश्यक जगह लगा सकते हैं। इसका प्रसारण पौधो के वानस्पतिक भागों से किया जाता है।

प्रबन्धन-

बीज द्वारा लगाया गया वृक्ष ८-१० वर्षो में फूल उत्पन्न करने लगते हैं तथा वानस्पतिक रूप से लगाये गये वृक्ष पर २-३ सालों में फूल आ जाते हैं। वृक्षों को ३ - ३ मी. की दूरी पर लगाते हैं।

१ जुलाई २०१३

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