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प्रकृति और पर्यावरण

 

चमगादड़ हमारा मित्र है
-शमशेर अहमद खान



वैज्ञानिकों के अनुसार इस धरा पर ऐसा कोई जीव नहीं है, जो प्राकृतिक श्रृंखला में अपनी भूमिका न निभाता हो। जैविक विकास में हर जीव की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, किंतु जबसे मानव प्राणी का बौद्धिक विकास अन्य प्राणियों की तुलना में तीव्र गति से हुआ है तथा मानव ने अपनी बौद्धिकता की सर्वोच्चता से ग्रह के अन्य प्राणियों पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया है; तबसे उसने अन्य जीवों का विनाश अपनी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए करना प्रारंभ कर दिया। जिसकी परिणति यह है कि हम प्रतिदिन जाने-अनजाने अनेक जीवों को इस ग्रह से लुप्त करते जा रहे हैं। अब प्रश्न उठता है, क्या हमें किसी भी जीव को विलुप्त करने का अधिकार है? यह एक ज्वलंत समस्या है, जिसका समाधान हमें निष्पक्षता से ढूँढ़ना है।

पाश्चात्य देशों की तुलना में हमारे समाज में अंधविश्वास की जड़ें काफी गहराई तक समायी हुई हैं, जिसके कारण अज्ञानतावश हम स्वयं ही नुकसान उठाते हैं। कहा जाता है, चीन में एक बार व्यापक पैमाने पर साँपों का वध किया गया और जिसका परिणाम यह हुआ कि उस वर्ष चीन की कृषि की फसल का एक बड़ा हिस्सा चूहे हड़प कर गये।

प्रकृति की विशिष्ट रचना

इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि प्रकृति में हर जीवन का अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर करता है। प्रकृति अपना संतुलन स्वयं बनाती है इसलिए प्रकृति की सत्ता स्वीकार कर लेने में कोई हर्ज नहीं है तथा प्राकृतिक श्रृंखला में अपने हित के लिए अवरोध पैदा करना अक्षम्य अपराध है। प्रकृति में हर जीव की अपनी विशेषता है। ऐसे ही जीवों में चमगादड़ प्रकृति की विशिष्ट रचना है। चमगादड़ पक्षियों की भाँति उड़ता है, इसलिए लोगों में यह भ्रम है कि यह पक्षी समुदाय का प्राणी है, किंतु वास्तव में चमगादड़ किरोप्टेरा गण का ऐसा स्तनपायी जंतु है, जो उड़ने में पूरी तरह सक्षम है। इसका शरीर चूहों की भाँति बालों से ढका रहता है और स्तनपाइयों की भाँति बच्चे जनता है तथा शिशु की माँ इसे दुग्धपान कराती है। चमगादड़ निशाचर प्राणी है, जो अपना आहार रात्रि में लेता है। यह दिन में अँधेरे, सीलनभरे स्थानों में रहना पसंद करता है। यह आलसी प्राणी है, इसलिए यह चौबीस घंटों में लगभग उन्नीस घंटे सोकर बिताता है।

चमगादड़ दो प्रकार के होते हैं-

फल-फूल आदि खाने वाले चमगादड़ों को मेगा किरोप्टेरा तथा कीट भक्षी चमगादड़ों को माइक्रो किरोप्टेरा कहते हैं।

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मेगा किरोप्टेरा चमगादड़ों का आकार बड़ा होता है। इसकी प्रथम अंगुली अँगूठे पर पंजा बना होता है। ये पंजे इन्हें वृक्षों की शाखाओं और टहनियों पर चढ़ने में मदद देते हैं, जहाँ से वे अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इनकी आँखें काफी बड़ी और चेहरे कुत्ते-जैसे होते हैं, इसलिए इन्हें ‘उड़ने वाली लोमड़ी’ भी कहते हैं।
ये चमगादड़ वृक्षों, वनस्पतियों की वंश वृद्धि करने में सहायक होते हैं और उनको दुर्गम क्षेत्रों में फैलाने की भूमिका अदा करते हैं, इसलिए पर्यावरण संतुलन एवं संरक्षण में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
 

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माइक्रो किरोप्टेरा के चेहरे भिन्न-भिन्न होते हैं। यह मेगा किरोप्टेरा से छोटा होता है। इसकी अँगुलियों पर पंजे नहीं होते।

आकार और बनावट-

मेगा किरोप्टेरा तथा माइक्रो किरोप्टेरा दोनों ही प्रकार के चमगादड़ों का शरीर चूहे की भाँति होता है। उनके कान उठे हुए और दाँत तेज और नुकीले होते हैं। उनके डैने चमड़ी की झिल्लियाँ होती हैं और डैने शरीर का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। चमगादड़ की दृष्टि कमजोर होती है, फिर भी वे रात में उड़ते और अपना शिकार करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार चमगादड़ शक्तिशाली तीव्र ध्वनि तरंगें पैदा करते हैं और उन ध्वनि तरंगों को उनके डैनों द्वारा पुनर्ग्रहण की क्षमता होती है।

हमारे यहाँ चमगादड़ को अशुभ और वर्जित जंतु माना गया है। लोगों की धारणा है कि ये खतरनाक और आक्रामक होते हैं, जबकि वास्तव में यह अंधविश्वास ही है। चमगादड़ मानव-मित्र है। माइक्रो किरोप्टेरा कीट-पतंगों को खाता है। चमगादड़ फूलों के परागण, पौधों के रोपण आदि में जहाँ हमारी सहायता करते हैं, वहीं हानिकारक कीटों-पतंगों, चूहों आदि को नियंत्रित करने में हमारी सहायता करते हैं। विश्व में केवल दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय वनों में ‘वैंपायर’ नामक चमगादड़ को छोड़कर शेष सभी प्रजातियों के चमगादड़ मानव जाति के लिए निरापद और उनके मित्र हैं।

पराध्वनि छोड़ता है

चमगादड़ घृणित जीव नहीं है। यह मानव मित्र है। यह अनेक प्रकार से मानव की सेवा करता है। सह-अस्तित्व की भावना के आधार पर इनको उचित अधिकार मिलना चाहिए। ये मानव बस्तियों से दूर अँधेरी गुफाओं, खंडहरों आदि में रहते हैं। इसका संरक्षण आवश्यक है।

इन्हें पालतू नहीं बनाया जा सकता क्योंकि ये अपने सहज गुण के अनुसार पराध्वनि पैदा करते हैं जिससे सिर-दर्द हो जाता है तथा इनके द्वारा छोड़े गए पराध्वनि से घर के रेडियो, टी,वी, या टेलीफोन में हलका-सा व्यवधान आ जाता है। यही कारण है कि ये स्वतः मानव बस्तियों से दूर रहते हैं और रात्रि में अपना भोजन तलाशते हैं।

चमगादड़ को अब शुभंकर के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए। इसने जहाँ सहज रूप में मानव कल्याण हेतु अपना स्वभाव विकसित किया है, वहीं इसकी शरीर रचना का अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने रडार प्रणाली का विकास किया। चमगादड़ यद्यपि किसी देवी-देवता का वाहन नहीं है, फिर भी यह कल्याणकारी जीव है, इसलिए मिथक को तोड़कर इस जीव के प्रति दयाभाव विकसित किया जाना ही चाहिए।

२७ अक्तूबर २०१४

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