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रचना प्रसंग

नवगीत परिसंवाद-२०१२ में पढ़ा गया शोध-पत्र

मध्य प्रदेश का गीत परिदृश्य
-दिवाकर वर्मा


 विधाता के सृष्टि सृजन तथा मनुष्य के शब्द बोध के साथ ही गीत मनुष्य का चिर सखा बन गया। गीत की उद्भावना मानव मन में अन्तर्निहित रागात्मकता से होती है, यह एक सर्वविदित तथ्य है, जब भी गहन अनुभूति में पगा कोई भाव, व्यक्ति के मन प्राण को उद्वेलित करता है, अन्तरतम में एक लय के रूप में प्रस्फुरित होता है। इस लय की गूँज अनगूँज ही गीत संज्ञा से अभिहित होती है। संगीत के निर्वहन की दृष्टि से इसका एक विशिष्ट प्रारूप होता है। लय की यह गूँज कभी पर्वोत्सव की राग रंगमयी वेला में तो कभी श्रम करते श्रमिकों, खेत में हल चलाते कृषकों और भोर के समय चक्की पर अनाज पीसती महिलाओं की तल्लीनता में अनुगुंजित होती है।

जिस मनोदशा में यह लय की गूँज गीत बनकर प्रकट होती है, उस मनोदशा को मनीषियों नेमनोलय नाम दिया हैं यह मनोलय ही गीत की वास्तविक ऊर्जा है। इस प्रकारमनोलय गीत का प्राण तत्व है, जो हृदय में अवस्थित है। इसीलिए गीत का उद्गम हृदय स्वीकारा गया है। जैसे गीत का केन्द्र स्थान हृदय है, उसी प्रकार हमारे देश का हृदय मध्य प्रदेश है। यही कारण है कि गीत मध्य प्रदेश में साहित्य की महत्वपूर्ण पायदान पर रहा है। केवल साहित्य के सभी स्तरों पर गीत की अनवरत सक्रियता बनी रही है, अपितु इसका समाज जीवन में विशिष्ट स्थान बना रहा है। गीत सृजन, गीत संग्रह प्रकाशन, पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन, समीक्षा (आलोचना) और गीत केन्द्रित विमर्श एवं रचनापाठ के कार्यक्रम गीत यात्रा को मंजिल की ओर आगे ही आगे बढ़ाते रहे हैं। इस आलेख में हम इन्हीं विभिन्न कोणों से इस विषय का अध्ययन करेंगे। इस अध्ययन में मैंने अविभाजित मध्य प्रदेश (अर्थात वर्तमान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) को एक इकाई मानकर विचार किया है।

यह एक सुविदित तथ्य है कि छायावाद काल गीत की दृष्टि से उत्कर्ष का समय था। गीत कविता उस समय अपनी श्रेष्ठता के चरम पर थी। भाषा और शिल्प की दृष्टि से गीत वैभव पर था। मध्य प्रदेश इस बात के लिए गौरव की अनुभूति कर सकता है कि गीत के स्वर्णिम कालखण्ड अर्थात छायावाद के प्रवर्तक स्व. मुकुटधर पाण्डेय थे। उनके अग्रज स्व. लोचन प्रसाद पाण्डेय कवि होने के साथ-साथ पुरातत्वविद भी थे। रायगढ़ जिले के एक अनाम गाँव बालपुर को छायावाद का उद्गम स्थल होने का गौरव प्राप्त है। प्रसंगवश मैं यहाँ यह उल्लेख करना समीचीन समझता हूँ कि छायावाद काल में केवल गगन बिहारी अथवा आत्मपरक वायवी प्रकृति की कविताएँ ही नहीं रची गयीं, अपितु राष्ट्रीय जागरण के श्रेष्ठ गीत भी सिरजे गये, जिनका हमारे देश के स्वातंत्र्य समर में अमूल्य योगदान रहा वैसे भी कविता जीवन की समग्रता की अभिव्यक्ति है, इसलिए मैं ‘छायावाद’ को गाली नहीं मानता। छायावाद के अतिरक्ति छायावादोत्तर काल के प्रमुख स्तम्भ स्व. रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ और स्व. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के गीत काव्य का साक्षी भी मध्य प्रदेश है। उसी कालखण्ड में छायावादेतर कथ्य के साथ अनेक गीतकवियों-कवयित्रियों ने अपनी गीति प्रतिभा से मध्य प्रदेश को संस्कारित किया ।

जिनके प्रसिद्ध गीत ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी’ ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और बाद में भी आबालवृद्ध सभी की जबान पर नटराज नर्तन करता रहा, ऐसी स्व. सुभद्रा कुमारी चौहान जबलपुर की थीं। स्व. भवानी प्रसाद तिवारी, स्व. नम्रदा प्रसाद खरे (दोनों जबलपुर) और स्व. ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी (सागर) भी गीत का अलख जगा रहे थे स्व. तोरण देवी शुक्ल ‘लली’, स्व. हीरा देवी चतुर्वेदी आदि महिला कवयित्रियाँ, ‘गीत फरोश’ के नाम से विख्यात स्व. भवानी प्रसाद मिश्र (नरसिंहपुर) जैसे सहचरों के साथ गीत को प्रतिष्ठित कर रही थीं। इन्हीं के साथ खण्डवा के स्व. माखन लाल चतुर्वेदी (पुष्प की अभिलाषा) और शाजापुर के स्व. बालकुष्ण शर्मा नवीन (कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ...) आदि राष्ट्रीय गीतों के रचयिताओं का यहाँ स्मरण करना अत्यन्त प्रासंगिक होगा।

साठ के दशक में गीत ने करवट बदली और देश काल-परिस्थित के दृष्टिगत अपने कलेवर को एक नया रूपाकार दिया। न केवल कथ्य की दृष्टि से, अपितु शिल्प की दृष्टि से भी उसने नवता को अपनाया इस करवट को नवगीत संज्ञा से अभिहित किया गया। महाप्राण निराला ने छन्द को मुक्त करने का आह्वान किया (ध्यातव्य है कि उनका ‘मुक्त छन्द’ छन्द से मुक्ति नहीं था, अपितु स्वयं ही एक छन्द था) तथा लय आद्धृत छन्दों के साथ गीति रचनाएँ स्वयं भी कीं। इसीलिए हमारे रचना समय के समस्त गीतकार / नवगीतकार निराला जी को ही नवगीत के प्रवर्तक के रूप में स्वीकारते हैं इस प्रकार अब यह गीत यात्रा नवगीत के रूप में आगे बढ़ने लगी। नवगीत ने कथ्य के रूप में जीवन में व्याप्त विसंगतियों, सामाजिक विषमताओं, राजनीतिक विद्रूपताओं आदि को अपने कथ्य का प्रमुख विषय बनाया। यद्यपि प्रेम और प्रकृति भी गीत से अछूते नही रहे। हाँ, ऐसे गीतों में भी शिल्प का वैशिष्ट्य अपनी पृथक पहचान छोड़ता था। मांसलता से रचे बसे प्रेम और शृंगार के स्थान पर प्रेम की उदात्तता के दर्शन नवगीत में होते थे। बिम्बात्मकता, संश्लिष्टता, और लय आधारित छंद विधान उसकी विशिष्टता थी।

आज तक भी गीत, नवगीत की विशिष्टताओं के साथ जीवन और जगत को उसकी समग्रता में अभिव्यक्त कर रहा है यहाँ तक कि परम्परागत छन्दों में गीत रचने वाले गीतकार भी उन्हीं विशिष्टताओं को अपने गीतों में स्थान दे रहे हैं। इस प्रकार के गीत/नवगीत रचने वाले गीत कवियों का नामोल्लेख करना आवश्यक है। परन्तु उससे पहले स्मृतिशेष हो चुके गीतकारों का पुण्य स्मरण करना मैं अपना धर्म समझता हूँ। स्व. वीरेन्द्र मिश्र अपने रचना समय के अत्यन्त प्रातिम नवगीतकार थे। जीवन की कोमल अनुभूतियों के चितेरे आनन्द मिश्र जहाँ एक ओर थे, वहीं कविता में जीवन का खुरदुरापन तथा कहन में व्यंग्य की पैनी धार लिये स्व. मुकुट बिहारी सरोज तर्जनी दिखा रहे थे। और मनमोहन अंबर अपने मधुर गीतों से मोह रहे थे (ये सभी ग्वालियर के थे)। शिवपुरी में स्व. रामकुमार चतुर्वेदी चंचल अपने वीररस के गीतों से समाज में अद्भुत ऊर्जा का संचार कर रहे थे, ग्वालियर में स्व. श्यामा सलिल अपने नवगीतों में समकालीन यथार्थ को अभिव्यंजित कर रही थीं। भोपाल में स्व. राजेन्द्र अनुरागी (आज देखो मुल्क सारा लाम पर है/जो जहाँ पर है वतन में काम पर है) राष्ट्र का आह्वान कर रहे थे और स्व. नईम अपने रचना काल के खुरदरे यथार्थ को सांस्कृतिक प्रतीकों और बिम्बों से समृद्ध नवगीत रच रहे थे। छत्तीसगढ़ के प्रकृति-चितेरे स्व. नारायण लाल परमार (कांकेर), स्व. भगवान स्वरूप ‘सरस’ जिनके नवगीतों में बिम्ब अपनी अदभुत छटा बिखेरते थे और स्व. मुस्तफा हुसैन ‘मुस्फिक’ (दोनों रायपुर) ने इस गीत यात्रा को अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाया। सागर के कवि/राजनेता स्व. शिवकुमार श्रीवास्तव गीत कथ्य और शिल्प की दृष्टि से अतयन्त उत्कृष्ट थे।

भोपाल, मध्य प्रदेश की राजधानी है और संस्कृति का बहुत बड़ा केन्द्र भी हैं। राजधानी बनने के बाद यहाँ साहित्यिक गतिविधियों में पर्याप्त तेजी आयी। यहाँ के अनेक गीतकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायी और ख्याति प्राप्त की। सर्वश्री मयंक श्रीवास्तव, जहीर कुरेशी, यतीन्द्र नाथ राही, कुंवर किशोर टण्डन, दिवाकर वर्मा, डॉ. रामवल्लभ आचार्य, राघवेन्द्र तिवारी, दिनेश प्रभात, शिवकुमार अर्चन, रामअधीर, नरेन्द्र दीपक, विनोद रायसरा, जंगबहादुर श्रीवास्तव, डॉ. हुकुमपाल सिंह विकल, डॉ. ब्रह्मजीत गौतम और निर्मला जोशी महत्वपूर्ण गीतकवि है। श्री महेश श्रीवास्तव के मध्यप्रदेश के प्रयाण गीत को राज्य शासन ने राज्य गीत का गौरव प्रदान किया है विदिशा में जगदीश श्रीवास्तव और युजल श्रीवास्तव के साथ-साथ वासौदा में कृष्णश्री अत्यन्त उल्लेखनीय नाम हैं जो समकालीन सरोकारों को अपने गीतों में बड़े सलीके से अभिव्यंजित कर रहे हैं।

ग्वालियर सम्भाग पहले से ही गीत औरगीतकारों की दृष्टि से समृद्ध रहा है। वहाँ की गीत परम्परा अत्यन्त गौरवशालिनी है जो आज तक भी अक्षुण्ण है। प्रो. विद्यानन्दन राजीव (शिवपुरी), डॉ. परशुराम शुक्ल ‘बिरही’ (शिवपुरी), भगवती प्रसाद कुलश्रेष्ठ और सूर्य प्रकाश सक्सेना (मुरेना), डॉ. श्याम बिहारी श्रीवास्तव और रामस्वरूप स्वरूप (सेंवढ़ा/दतिया), महेश अनद्य, महेन्द्र भटनागर, राजकुमारी रश्मि ब्रजेश चन्द्र श्रीवास्तव, मुरारीलाल गुप्त ‘गीतेश’, रामप्रकाश अनुरागी, पृथ्वीराज दुआ और दामोदर शर्मा (सभी ग्वालियर) ग्वालियर सम्भाग के प्रमुख गीतकवि हैं।

इन्दौर-उज्जैन सम्भाग भी सदैव से गीत विधा के निष्णात सर्जकों के गढ़ रहे हैं। यहाँ के अनेक गीतकारों/ नवगीतकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर गीत की ध्वजा को फहराया है। सर्वश्री अशोक ‘आनन्द’, इशाक अश्क, अशोक गीते, डॉ. श्रीरामपरिहार चन्द्रसेन विराट, बालकवि वैरागी, ओम प्रभाकर, देवव्रत जोशी, जयकुमार जलज, प्रेमशंकर रघुवंशी और वीरेन्द्र निर्झर श्रेष्ठ गीतों का सृजन कर रहे हैं।

जबलपुर-सागर सतना क्षेत्र गीत नवगीत सृजन में आज अग्रसर की भूमिका में हैं अनेक महतवपूर्ण कवि श्रेष्ठ गीत नवगीत रच रहे हैं कुछ नाम तो बहुत बड़े हैं, जिनके गीत समाज को प्रभावित करते रहे हैं। अनूप अशोक, डॉ. हरीश निगम, ऋषिवंश (सतना), राम सेंगर, देवेन्द्री कुमार पाठक (कटनी), विदुल भाई पटेल, निर्मल चन्द जैन, डॉ. धर्मसिंह (सागर), डॉ. श्याम सुन्दर दुबे (दमोह) आदि अत्यन्त उल्लेखनीय नाम हैं इसी प्रकार होशंगाबाद और छिंदबाड़ा में गीत-नवगीत की दृष्टि से श्रेष्ठ लेखन हो रहा है। श्रीकृष्ण शर्मा (जुन्नारदेव), विनोद निगम, डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र और गिरिमोहन गुरु (होशंगाबाद) आदि अनवरत रूप से गीत सृजन में संलग्न हैं

वरिष्ठ गीतकारों के मध्य यह न केवल चिन्तन अपितु चिन्ता का विषय ही रहा है कि युवा वर्ग गीत के साथ नहीं जुड़ रहा है। किन्तु मध्य प्रदेश में उतनी निराशाजनक स्थिति भी नहीं हैं अनेक युवा, गीत/नवगीत की रचना करने में संलग्न हैं चित्रांश वाघमारे (भोपाल) जो मात्र १८-१९ वर्ष के हैं अत्यन्त उत्कृष्ट गीतों का सृजन कर रहे हैं। कथ्य, शिल्प, छन्द, बिम्ब-विधान आदि सभी कोणों से उनके गीत रेखांकित करने योग्य हैं। उनके अतिरिक्त डॉ. अजय पाठक (विलासपुर), रामकिशोर दाहिया, राजा अवस्थी, आनन्द तिवारी और अरुणा दुबे (कटनी), डॉ. शरद सिंह (सागर), मधु शुक्ला, मनोज जैन मधुर, दीपक शुक्ल, धर्मेन्द्र सिंह सोलंकी (भोपाल), वर्षा रश्मि (ग्वालियर), डॉ. मुकेश अनुरागी (शिवपुरी), तथा ब्रजेश द्विवेदी ‘अमन’, रोहित रुसिया तथा नितिन जैन (छिंदवाड़ा) आदि कुछ तरुणों के नाम हैं, जिन पर गीत जगत भविष्य के लिए भरोसा कर सकता है।

छत्तीसगढ़ के कुछ नामों का मैं यहाँ पृथक से उल्लेख करना चाहता हूँ। जैसा कि पूर्व में उल्लेख हुआ है कि छायावाद की प्रवर्तक भूमि छत्तीसगढ़ ही है। यहाँ गीत/नवगीत की एक गौरवशाली परम्परा रही है। सर्वश्री अनिरुद्ध नीरज (अम्बिकापुर), डॉ. गोविन्द ‘अमृत’ (विलासपुर), मोहन भारतीय (भिलाई), त्रिभुवन पाण्डेय (धमतरी), शंकर सक्सेना (राजनांदगांव) आदि उत्कृष्ट  गीतकार/नवगीतकार अपनी रचनाधर्मिता से क्षेत्र का गौरव बढ़ा रहे हैं।

गीत-सृजन के ग्राफ को मापने के लिए प्रकाशित गीत संग्रह और साहित्यिक पत्रिकाएँ मापक का कार्य करती हैं गीतों और गीतकारों के मूल्यांकन के लिए भी ये ही उपकरण मानक के रूप में उपस्थित रहते हैं। विगतः पांच वर्षों में शताधिक गीत संग्रह प्रकाशित हुए हैं और अनेक समवेत संकलन भी प्रकाश में आए हैं कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत करना समीचीन होगा। संग्रह और गीतकार अथवा समवेत संकलन और सम्पादक को नामों का मैं यहाँ उल्लेख करना चाहूँगा। भोपाल से ही चार समवेत संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, जिनका परिचय इस प्रकार है- भोपाल दशक (सं. विनोद तिवारी), सप्तराग (सं. शिव कुमार अर्चन), गीत अष्टक-१, गीत अष्टक-२ (सं. कमलकान्त सक्सेना)। व्यक्तिगत संग्रहों के नाम और विवरण इस प्रकार है।

‘उंगलियाँ उठती रहें’ (मयंक श्रीवास्तव, ‘और उलझाते गए जाल में’ और ‘सूर्य के वंशज सुनो (दिवाकर वर्मा), ‘स्याही से लिखी जाती नहीं’ (विनोद रायसेन), ‘एक बूँद हम’ (मनोज जैन मधुर), ‘ऊँट चल रहा है’ और ‘जिरह फिर कभी होगी’ (राम सेंगर), ‘एक नदी कोलाहल’, ‘बोल मेरे मौन’, ‘अंधेरा बढ़ रहा है’ और ‘एक अक्षर और’ (श्री कृष्ण शर्मा), ‘गीतों में डूबा मन’ (मोहन भारतीय), ‘और सोच में तुम...’ (नरेन्द्र दीपक), ‘अंजुरी भर हरसिंगार’ (यतीन्द्रनाथ ‘राही’), ‘झनन झकास’ और कनबतिया’ (महेश अनघ), ‘हिरण सुगन्धों के’ (आचार्य भगवत दुबे), ‘हिरना खोजे जल’ (विद्यानन्दन राजीव), ‘सुधियों के आर-पार’ (अजय पाठक), ‘अल्पना अंगार पर’ (रामकिशोर दाहिया), ‘जिस जगह यह नाव है’ (राजा अवस्थी), ‘ऋतुयें जो आदमी के भीतर हैं’ (श्याम सुन्दर दुबे), ‘गीत प्यार के’ (रामप्रकाश अनुरागी), ‘उसी हाट के हम व्यापारी’ (रामस्वरूप ‘स्वरूप’), ‘रेत बँधे पानी’ (डॉ. श्याम बिहारी श्रीवास्तव) आदि कुछ उदाहरण हैं इस प्रकार यह स्पष्ट है कि गीत संग्रह और गीत संकलन प्रकाशन के मोर्चे पर प्रदेश में पर्याप्त सक्रियता है।

साहित्यिक पत्रिकाएँ सद्यः रचित रचनाओ को पाठकों के माध्यम से समाज तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं इसके अतिरिक्त ये पत्रिकाएँ ही रचनाकार को विधागत जानकारियों, प्रवृत्तियों, धाराओं आदि के विषय में अद्यतन रखने में अपेक्षित भूमिका का निर्वहन करती हैं। मध्य प्रदेश इस दृष्टि से भी अत्यन्त उर्वर प्रदेश रहा हैं। भोपाल, इन्दौर, ग्वालियर, जबलपुर, रायपुर, बिलासपुर आदि स्थानों से अनेक साहित्यिक पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं शासकीय, अर्धशासकीय और अशासकीय स्तर पर प्रकाशित होने वाली ये पत्रिकायें साहित्यिक परिवेश को निश्चित ही प्रभावित करती हैं राजधानी होने से यह स्वाभाविक ही है कि सर्वाधिक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भोपाल से होता है। वैसे तो पत्र-पत्रिकाओं की संख्या बहुत अधिक है, किन्तु यहाँ मैं उन्हीं पत्रिकाओं का उल्लेख करूँगा जो सामान्यतः छन्द और विशेषतः गीत/नवगीत की पक्षधर हैं मैंने गीतकारों का उल्लेख करते हुए सर्वप्रथम स्मृतिशेष गीतकारों का स्मरण किया, यहाँ भी मैं ऐसा ही करूँगा। मैं सर्वप्रथम नामोल्लेख करते हुए स्मरण कर रहा हूँ ‘प्रेस मेन’ का, जिसने अपनी अल्प-कालावधि में राष्ट्रीय हिन्दी काव्य जगत को न केवल प्रभावित किया अपितु चमत्कृत कर दिया। मयंक श्रीवास्तव के साहित्य सम्पादकत्व और समीर श्रीवास्तव के कार्यकारी सम्पादकत्व में प्रकाशित हुए साप्ताहिक साहित्यिक पत्र ने अनेक बिछुड़े हुए गीतकारों को पुनः परस्पर मिला दिया। अनेक विचारोत्तेजक परिचर्चा और संवाद आयोजित किए। ‘गीत को गीत ही रहने दो’ ऐसा ही एक महत्वपूर्ण संवाद था, जिसमें देशभर के लगभग सभी गीतकारों/नवगीतकारों ने सहभागिता की। भोपाल से राम अधीर के सम्पादकत्व में प्रकाशित ‘संकल्प रथ’ विशुद्ध छन्दधर्मी पत्रिका है। इसी क्रम में सतना से डॉ. इसाक अश्क के सम्पादन में प्रकाशित ‘समांतर’ और खण्डवा से डॉ. श्रीराम परिहार के सम्पादन में प्रकाशित ‘अक्षत’ का उल्लेख किया जा सकता है।

बिलासपुर से डॉ. अजय पाठक के सम्पादन में ‘नये पाठक’, ग्वालियर से महेश अनघ की ‘पृथ्वी और पर्यावरण’ भोपाल से युगांश मालवीय और सजल मालवीय के सम्पादन में ‘शिवम पूर्णा’ भी विशुद्ध छन्दधर्मी पत्रिकाएँ हैं जो गीत को विशिष्ट स्थान देती हैं। स्व. कमलकान्त सक्सेना की ‘साहित्य सागर’ ने भी छन्द और गीत की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया हैं शिवपुरी से डॉ. महेन्द्र अग्रवाल के सम्पादन में ‘नई गजल’, ग्वालियर से डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य की पत्रिका ‘लोक मंगल’, भोपाल से ही स्व. विनोद तिवारी द्वारा स्थापित और अनुपम तिवारी के सम्पादन में प्रकाशित ‘शिवम’ छन्द और गीत के लिए महत्वपूर्ण कार्य सम्पादन कर रही हैं। भोपाल से ही नरेन्द्र दीपक के सम्पादन में ‘अन्तरा’ का प्रकाशन हो रहा है, जो छन्द, गीत और गीतकारों को लेकर महत्वपूर्ण अंक निकालती रही हैं देवास से प्रकाशित ‘अर्वाते कलम’ इकबाल बशर के सम्पादन में छन्द की दृष्टि से स्तरीय कार्य कर रही है।

ग्वालियर से मुरारी लाल गुप्त ‘गीतेश’ के सम्पादन में प्रकाशित अखिल भारतीय साहित्य परिषद की मुख्य पत्रिका ‘साहित्य परिक्रमा’ भी न केवल हिन्दी साहित्य जगत में प्रत्युत हिन्दी इतर क्षेत्रों में भी छन्द की अलख जगा रही है। भोपाल से ही प्रकाशित पत्रिका ‘अक्षर शिल्पी’ में डॉ. विजय शिरढोलकर के सम्पादन में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया है। दिवाकर वर्मा के अतिथि सम्पादन में प्रकाशित ‘गीत विशेषांक’ मील का पत्थर सिद्ध हुआ है। एक स्वागत योग्य हर्ष का समाचार है कि मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘साक्षात्कार’ न केवल गीत निरन्तर प्रकाशित कर रही है, अपितु गीत विषयक आलेख और अनेक गीतकारों के साक्षात्कार भी प्रकाशित किये हैं, जिनमें देवव्रत जोशी, मयंक श्रीवास्तव और दिवाकर वर्मा उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार प्रदेश की दो अन्य प्रमुख पत्रिकाएँ हिन्दी भवन भोपाल की ‘अक्षरा’ और मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति इन्दौर की ‘वीणा’ तथा मध्यभारतीय हिन्दी साहित्य सभा की पत्रिका ‘इंगित’ अपनी अपनी भूमिकाओं का निर्वहन कर रही हैं।

गीत आलोचना की दृष्टि से मैं कह सकता हूँ कि स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। पूर्णकालिक गीत आलोचकों की नगण्यता है। सम्भवतः हरदा के प्रेमशंकर रघुवंशी, होशंगाबाद के डॉ. कृष्ण गोपाल मिश्र, भोपाल की डॉ. आरती दुबे और डॉ. प्रेम कुमारी कटियार का ही उल्लेख किया जा सकता है। किन्तु कुछ सम्पादक और गीतकार इस दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। उन्होंने पर्याप्त मात्रा में अनवतरत रूप से समीक्षा कर्म किया है। सम्पादक/समीक्षकों में राम अधीर, डॉ. श्रीराम परिहार, महेश अनद्य, डॉ. अजय पाठक, मुरारीलाल गुप्त ‘गीतेश’ का नाम लिया जा सकता है। वरेण्य गीतकार-सम्पादक रामअधीर ने सम्भवतः सर्वाधिक समीक्षाएँ की हैं। इसी प्रकार गीतकार समीक्षकों में प्रथम नाम पर दिवाकर वर्मा का उल्लेख किया जा सकता है जिन्होंने सर्वाधिक और लम्बी -लम्बी समीक्षाएँ लिखी हैं उन्होंने इसके साथ-साथ गीत-विमर्श की दृष्टि से भी लगभग दो दर्जन वैचारिक आलेख लिखे हैं अन्य गीतकारों ने भी अपनी-अपनी सीमाओं के अन्तर्गत समीक्षाकर्म किया है। प्रो. विद्यानन्दन राजीव, डॉ. श्याम सुन्दर दुबे, श्रीकृष्ण शर्मा, मयंक श्रीवास्तव, अनिरुद्ध नीरव, आचार्य भगवत दुबे, डॉ. शरद सिंह, डॉ. ब्रह्मजीत गौतम, डॉ. हुकुमपाल सिंह विकल, जंगबहादुर श्रीवास्तव, राघवेन्द्र तिवारी, मनोज जैन ‘मधुर’, मधु शुक्ला, शिवकुमार अर्चन, दिनेश प्रभात आदि समय-समय पर समीक्षा धर्म निभाते रहे हैं।

विविधवर्णी विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रम जहाँ एक ओर साहित्य को समाज से जोड़ते हैं और रची जाने वाली रचनाओं को समाज तक सम्प्रेषित करने की महती भूमिका का निर्वहन करते हैं, वहीं दूसरी ओर साहित्य जगत में व्याप्त निसंगत स्थितियों का समापन कर साहित्यिक पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। इन कार्यक्रमों में विभिन्न विधाओं के रचनाकारों को परस्पर विचार विमर्श के साथ-साथ जानकारी सूचना और ज्ञान के आदान-प्रदान का अवसर भी प्राप्त होता है। सक्रिय रचनाकार अपनी-अपनी विधाओं में पनप रही विविध प्रवृत्तियों, धाराओं और साथ ही आवश्यक प्रगति-सूचनाओं से भी अवगत होते हैं। एक समय ऐसा आ गया था कि गीत को केन्द्र से हटाने के दुष्प्रयास में ऐसे कार्यक्रम आयोजित किया जाना नगण्य हो गया था। किन्तु, अब परिदृष्य बदला है और विगत कुछ वर्षों में ऐसे अनेक कार्यक्रम गीत को केन्द्र में रखकर आयोजित हुए हैं। इस विषय में यहाँ यह बताने में हर्ष के साथ गौरव की अनुभूति हो रही है कि मध्य प्रदेश ने इस दृष्टि से पर्याप्त प्रगति की है। भोपाल, गवालियर, शिवपुरी, विलासपुर और इन्दौर में कुछ बड़े तथास्तरीय कार्यक्रम आयोजित किये हैं ‘साहित्य सागर’ (स्व. कमलकान्त सक्सेना) के द्वारा पिछले वर्ष आयोजित ‘नटवर सम्मान’ शिवपुरी में डॉ. महेन्द्र अग्रवाल द्वारा आयोजित ‘गीत सम्मान’ विलासपुर में आयोजित दो दिवसीय ‘गीत विमर्श’ जो डॉ. विनय पाठक और डॉ. अजय पाठक के प्रयासों से हुआ।

ग्वालियर में ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव के प्रयासों से आयोजित वृहद कार्यक्रम, भोपाल में मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला में गीत विमर्श, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा इन्दौर में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम में एक सत्र गीत हेतु आवंटित किया गया आदि कुछ ऐसे आयोजन थे, जिन्होने साहित्य जगत में एक हलचल पैदा की। निराला सृजनपीठ (मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद) द्वारा भारत भवन में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला ‘छन्दप्रसंग’ अद्भुत है। निराला सृजन पीठ ने महाप्राण निराला और छन्द तथा गीत को लेकर विमर्श एवं रचनापाठ के अनेक कार्यक्रम दतिया, मुरेना, उज्जैन जैसे अंचलों में आयोजित किये हैं इस प्रकार कार्यक्रमों की दृष्टि से मध्य प्रदेश में निरन्तर सक्रियता बनी हुई है। समग्रतः मध्य प्रदेश का गीत परिदृश्य उत्साहजनक है अधिसंख्य गीतकारों की सृजन-सक्रियता बनी हुई है। गीत/नवगीत से युवा पीढ़ी के जुड़ने का क्रम प्रारम्भ हो गया है यद्यपि यह गति धीमी है, किन्तु स्थिति निराशाजनक नहीं है। गीतकारों द्वारा किये गये सृजन का यथाशक्य प्रकाशन हो रहा है। पत्र-पत्रिकाएँ अपने कर्म का निर्वहन और धर्म का पालन उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से कर रही हैं आलोचना के मोर्चे पर यद्यपि अपेक्षित प्रगति नहीं है, किन्तु निराशा का कोई कारण भी नहीं है। गीत विमर्श और गीत-पाठ के कार्यक्रम न केवल नगरों और महानगरों में हो रहे हैं, अपितु सुदूर अंचलों में भी इन कार्यक्रमों को ले जाया जा रहा है। इन सब गतिविधियों की सक्रियता का ही यह सुफल है कि मध्यप्रदेश के विभिन्न विद्यालयीन पाठ्यक्रमों में गीत को प्रवेश मिला है। हम आश्वस्त हो सकते हैं कि गीत/नवगीत का भविष्य निश्चित ही उज्जवल है।

 

१८ फरवरी २०१३

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