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श्रद्धांजलि-

पिछले एक महीने के भीतर दो साहित्यकार इस संसार में नहीं रहे। २४ अगस्त २००८ की रात हैदराबाद नगर के सुप्रसिद्ध कवि, समीक्षक, पत्रकार एवं चित्रकार पुरुषोत्तम प्रशांत तथा २० सितंबर २००८ की रात प्रभा खेतान का देहांत हो गया। २७ की शाम गायक महेन्द्र कपूर भी हमारे बीच नहीं रहे। तीनो रचनाकारों को अभिव्यक्ति परिवार की श्रद्धांजलि।

कवि पुरुषोत्तम प्रशांत
हैदराबाद नगर के सुप्रसिद्ध कवि, समीक्षक, पत्रकार एवं चित्रकार पुरुषोत्तम प्रशांत का ब्रेन हैमरेज से २४ अगस्त २००८ की रात को निधन हो गया। उस्मानिया अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। ५५ वर्षीय प्रशांत जी अपने पीछे पत्नी, एक पुत्र व दो पुत्रियाँ छोड़ गए हैं। उनके निधन का समाचार मिलते ही नगरद्वय के साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। वे काव्य पत्रिका 'मध्यांतर' के संपादक थे तथा सिखवाल समाज की पत्रिका 'जय ऋष्य शृंग' से भी जुड़े हुए थे। पुरुषोत्तम प्रशांत एक प्रतिभाशाली चित्रकार भी थे। उन्होंने कई वर्ष तक दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की साहित्यिक मासिक पत्रिका 'पूर्णकुम्भ' के आवरण का चित्रांकन किया था जिसे देश भर में सराहा गया था।
प्रभा खेतान
१ नवंबर १९४२ को जन्मी प्रभा खेतान दर्शनशास्त्र से एमए और ज्यां पाल सा‌र्त्र के अस्तित्ववाद पर पीएचडी के लिए जानी जाती थीं। कविता, कहानी, उपन्यास और आत्मकथा के साथ अपने विशिष्ट अनुवादों के लिए हमेशा उनकी सराहना हुई। अपरिचित उजाले, कृष्णधर्मा मैं, छिन्नमस्ता, पीली आंधी उनकी अमर कृतियाँ हैं। दो लघु उपन्यास 'शब्दों का मसीहा सा‌र्त्र', 'बाजार के बीच: बाजार के खिलाफ' सहित कई चिंतन पुस्तकें, तीन संपादित पुस्तकें, आत्मकथा 'अन्या से अनन्या' और 'द सेकेंड सेक्स' के अनुवाद के लिए वे काफी चर्चित रहीं। उन्होंने कई दक्षिण अफ़्रीक़ी कविताओं का अनुवाद भी किया। उन्हें साहित्यिक योगदान के लिए महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार व बिहारी पुरस्कार से सम्मानित किया था। प्रभा खेतान विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ी थीं।
महेन्द्र कपूर
देश प्रेम के गीतों से अपनी अलग छाप छोड़ने वाले प्रख्यात पार्श्व गायक महेन्द्र कपूर का आज शाम मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह ७४ साल के थे। १९६८ में उपकार के बहुचर्चित गीत मेरे देश की धरती सोना उगले के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का पुरस्कार मिला था। इस महत्वपूर्ण सम्मान के अलावा उन्हें १९६३ में गुमराह के गीत चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। बाद में एक बार फिर १९६७ में हमराज के नीले गगन के तले के लिए भी उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। उनके जीवन का तीसरा फिल्म फेयर पुरस्कार रोटी कपड़ा और मकान के नहीं नहीं और नहीं के लिए १९७४ में मिला। बाद में उन्हें पद्मश्री और महाराष्ट्र सरकार के लता मंगेशकर सम्मान से नवाज़ा गया। उन्होंने हिंदी फ़िल्मों के अलावा दादा कोंडके की मराठी फ़िल्मों में भी आवाज दी। दादा कोंडके की फ़िल्मों के अलावा भी उन्होंने कई मराठी फ़िल्मों में पार्श्व गायन किया।

२९ अगस्त २००८

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