मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


5

साहित्य समाचार

लंदन में अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान एवं पद्मानंद साहित्य समारोह सफलता पूर्वक सम्पन्न

कथा यू•के• द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान एवं पद्मानंद साहित्य समारोह में विशेष रूप से भारत से पधारे केन्द्रीय श्रम मंत्री श्री सत्यनारायण जतिया ने कहा,"हिन्दी केवल विदेश में बसे भारतीयों को एक सूत्र में पिरोने के लिये ही आवश्यक नहीं हैं,  वास्तव में भारतीय संस्कृति को विश्व भर में फैलाने के लिये हिन्दी का प्रचार प्रसार अति आवश्यक है।  दर्शकों से खचाखच भरे नेहरू केन्द्र में श्री जतिया ने कथा यू•के• के द्वारा प्रकाशित कहानी संग्रह कथा–लन्दन का विमोचन भी किया।  जाने माने कथाकार सूरज प्रकाश द्वारा संपादित इस कथा संग्रह में युनाइटेड किंगडम में बसे हिन्दी लेखकों की दस कहानियां संग्रहीत है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश राज्य के विधान सभा अध्यक्ष व जाने माने कवि श्री केशरी नाथ त्रिपाठी ने की।  उपस्थित सुधीजनों में शामिल थे भारतीय उच्चायोग के समन्वय मंत्री श्री पी .सी . हलदर, हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री अनिल शर्मा , केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के डा . सत्येंद्र श्रीवास्तव, पंजाबी कवि श्री रत्न सिंह, जानी मानी साहित्यकार सुश्री अचला शर्मा  श्री ओंकार नाथ श्रीवास्तव, श्रीमती कीर्ति चौधरी, श्री मोहन राणा, डा . महेन्द्र वर्मा, श्री कैलाश बुधवार, पुरवाई के संपादक पद्मेश गुप्त, श्रीमती उषा राजे सक्सेना, श्री राजे सक्सेना, गज़लकार सोहन राही, उषा वर्मा, ममता गुप्ता, कृष्ण कांत टण्डन, अतुल प्रभाकर, इन्दु शेखर, व रूपा झा, बरमिंघम से शैल अग्रवाल एवं तितिक्षा शाह, रगकर्मी चांद शर्मा एवं कवि श्री रमेश पटेल।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री गिरीश कारनाड के अनुसार 'केवल साहित्य ही में अपने देश काल और युग की सीमाओं से पार जाने की शक्ति होती है।  आज भी हमारे लिए अगर हजारों साल पहले लिखा गया साहित्य प्रासंगिक है तो इसका कारण सिर्फ यही है कि उसमें इतनी नैतिक शक्ति थी, एक तरह की जिद थी और एक तरह का कल्याणकारी आग्रह था। और यही साहित्य की सार्थकता है।"

भारतीय उच्चायोग के समन्वय मंत्री श्री पी .सी . हलदर ने कार्यक्रम की स्मारिका का विमोचन करते हुये कथा को इस आयोजन के लिये बधाई दी और आश्वासन दिया कि भविष्य में कथा द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के लिये भारतीय उच्चायोग सभी प्रकार से सहायता जुटायेगा।

कथाकार संजीव को उनके उपन्यास जंगल जहां शुरू होता है के लिये अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान प्रदान करते हुये गिरीश कारनाड ने कहा कि "संजीव जी पिछले 20 वर्षों से लगातार किसी साहित्यिक खेमेबाजी से दूर और छल कपट से अपने आपको बचाये हुए एकांत साधक की तरह साहित्य सृजन में जुटे हैं।  उन्होंने कहानियां, उपन्यास और बाल साहित्य जैसी सभी विधाओं में खूब लिखा है।  वे मानवीय सरोकार के रचनाकार है और इन्सान की बेहतरी के लिए ही उनकी कलम समर्पित है।"

जब कि सुश्री दिव्या माथुर के बारे में बोलते हुये कारनाड ने बताया कि वे लंदन में अरसें से हिन्दी में महत्वपूर्ण काम कर रही हैं।  कहानी कविता, संस्मरण, रेखा चित्र सभी विधाओं में वे लिखती है।  उनका साहित्य केवल भारतीय समाज का साहित्य नहीं है।  उनकी रचनाओं में उनकी कर्मस्थली इंगलैंड भी है और उनके सुख दुख के साथी अंग्रेज और अंग्रेजी समाज भी है।

कथाकार अचला शर्मा ने संजीव के उपन्यास जंगल जहां शुरू होता है पर वक्तव्य देते हुये कहा, "संजीव ने एक सवाल उठाया है जनतंत्र में बड़ा कौन है – जन या तंत्र।  

'जंगल जहां शुरू होता है', इस सवाल का जवाब है।  यह जंगल व्यवस्था का है, यह जंगल तंत्र का है।  इस तंत्र का तोड़ना इसलिये असंभव है क्योंकि धर्म, समाज, जाति, राजनीति, प्रशासन हर जगह पर एक डाकू बैठा है।" 

सम्मान स्वीकार करते हुये कथाकार संजीव ने कहा कि "अगणित नरक कुण्डों से जूझ कर रचा गया लेखन वही नहीं होता जो उटकृष्ट स्वादों और सुगन्धों के इन्द्रीय बोध से आता है।  इतिहास में जो अट नहीं पाता, मीडिया की सुरसा जिसे  उदरस्थ नहीं कर पाती हम वही लिखते हैं और रचते हैं। प्रचार के अभाव में इस बाजारवाद के चलते बहुत कुछ उत्कृष्ठ गुम हो जाता है।  वैसे लिखने के लिये तो बहुत कुछ है पर इस संदर्भ में समस्या यह है कि लोगों तक वह पहुंचे कैसे।  खत है सारा जमाना, पता कौन है।  हम सभी अपना अपना ब्रह्माण्ड लेकर पते ढूंढने निकले हैं।"

दिव्या माथुर के कथा संग्रह आक्रोश पर टिप्पणी करते हुये अनिल शर्मा ने कहा, "दिव्या माथुर की पुस्तक आक्रोश पुरूष वर्ग के दंभ, अहं और रूढ़िवादी दृष्टि को तोड़ती है; महिलाओं के स्वाभिमान और आत्मविश्वास को नई धार देती है और समाज में नई चेतना का संचार करती है। आक्रोश नए युग की भारतीय मूल की महिलाओं का और यू .के . में हिन्दी साहित्य का सच्चा प्रतिनिधि दस्तावेज है।"

पद्मानंद साहित्य सम्मान प्राप्त करते हुये दिव्या माथुर ने लगभग शिकायत करते हुये कहा, "एक कचोट अवश्य गहरा गई है कि कोई नन्हीं से मान्यता कहीं अपने देश से मिली होती।"

मेरी कामना है कि अंग्रेजी में लिख रहे लेखकों जितना सम्मान अन्य भाषाओं के लेखकों को भी मिले  . . . . कोई अंग्रेज या विदेशी यदि हिन्दी या कोई अन्य भारतीय भाषा बोल लेता है तो उसे सम्मान और ईनाम से लाद दिया जाता है।  अंग्रेजों से अच्छी अंग्रेजी जानने पर किसी भारतीय को कोई घास तक नहीं डालता।  एक सशक्त वर्ग (अंग्रेजी) जब कमजोर वर्ग पर हावी हो, तो संवाद कैसे संभव है?"

कार्यक्रम की शुरूआत में कथा यू .के . के सचिव एवं जाने माने कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने कथा का परिचय देते हुये सम्माननीय अतिथियों का स्वागत किया।  उन्होंने एअर इण्डिया (मुख्य प्रायोजक), सिल्वरलिंक रेल्वे व कोबरा बीयर को कार्यक्रम में सहायता के लिये धन्यवाद दिया।  16 वर्षीय वरूण वर्मा ने संस्कृत में सरस्वती वंदना की।  श्री सत्यनारायण जतिया ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।  तितिक्षा शाह ने दिव्या माथुर का परिचय पढ़ा जब कि नैना शर्मा ने संजीव का परिचय श्रोताओं से करवाया।  कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहा कृष्ण कांत टण्डन एवं हिना बख्शी द्वारा दिव्या माथुर की कहानी दिशा की नाटकीय प्रस्तुति।  हॉल में उपस्थित सभी दर्शकों ने इस नाट्य प्रस्तुति की भूरि भूरि सराहना की।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से प्रशिक्षित जानी मानी रेडियो कलाकार ममता गुप्ता ने संजीव के उपन्यास के एक अंश का भावपूर्ण पाठ किया।  पुरवाई के संपादक श्री पद्मेश गुप्त ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।  कार्यक्रम का कुशल एवं सुरूचिपूर्ण संचालन किया अंजुमन टेलिविजन के सलमान आसिफ ने।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री केशरी नाथ त्रिपाठी ने कथा संस्था को अंग्रेजी के इस गढ़ लन्दन में हिन्दी साहित्यिक सम्मानों की स्थापना के लिये बधाई देते हुये संजीव एवं दिव्या माथुर को उत्कृष्ट साहित्य की रचना के लिये बधाई दी।  उनके अनुसार, "हम सब शहरों में रहने वाले लोग एक प्रकार के बाग में रहते हैं, और जब मानवीय संबंधों में उष्मा और आत्मीयता समाप्त हो जाती है वही से जंगल शुरू होता जाता है।  साहित्य का कार्य व्यक्ति की उस मानवीय प्रवृत्ति को संवर्धित करना है।"

— लंदन से नैना शर्मा  

आगे —  
 
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।