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साहित्य समाचार

नार्वे से साहित्य समाचार 

 

अन्तर्राष्ट्रीय मेले में शरद आलोक ने पुस्तकों पर हस्ताक्षर किये

चित्र में बायें से बेन्ते म्योल्लेर, नार्वे के विदेशमन्त्री थूरब्योर्न जागलान्द हाथ मे पुस्तक लिए, सुरेशचन्द्र शुक्ल "शरद आलोक” और लोकसभा सदस्य ब्रित हिल्देन्ग

ओसलो 27  जुलाई 2001 अन्तर्राष्ट्रीय मेले में इण्डो नार्विजन इनफारम्एशन एन्ड कल्चरल फोरम और स्पाइल प्रकाशन ने कलाकार इंगेर मारिये लिल्लेएंगने की कलाकृतियों की एक प्रदर्शनी लगाई जिसमें सुपरिचित लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल ”शरद आलोक” ने अपनी नार्वेजीय कविता संग्रह ”फ्रेम्मेद फ्यूग्लेर” अनजान पंछी पर हस्ताक्षर किये। प्श्चिमी देशों में पुस्तक बिक्री के समय लेखक द्वारा हस्ताक्षर की हुई पुस्तक का महत्व अधिक बढ़ जाता है।  
 

यहां पुस्तकों को अभी भी टीवी , वीडियो ने प्रभावित नहीं किया है। पाठक और खरीदार को लेखक से रूबरू होने का अवसर मिलता है।  नार्वे में प्रति व्यक्ति एक से अधिक अखबार पढ़ता है। जन्मदिन, विवाह तथा अन्य अवसरों पर पुस्तकें  उपहार में देने का प्रचलन है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुसार नार्वे विश्व का सबसे योग्य देश है। शरद आलोक की हस्ताक्षरयुक्त पुस्तक खरीदने वालों में  नार्वे के विदेशमन्त्री और लेबर पार्टी के अथ्यक्ष थूरब्योर्न यागलान्द, संसद सदस्य ब्रित हिल्देंग, ओस्लो लेबर पार्टी के अथ्यक्ष ब्योर्गउल्फ फ्रोइन और अनेक गणमान्य व्यक्ति थे। 

नार्वे में हिन्दी, उर्दू पुस्तकों पर चर्चा 

ओसलो स्थित ग्रौनल्योका पुस्तकालय में फाल्क साहित्यिक संस्था के तत्वाधान में नार्वे में बसे भारतीय लेखकों  सुरेशचन्द्र शुक्ल  ”शरद आलोक ” और हरचरण चावला की पुस्तकों पर चर्चा हुई।

इन्दरजीत पाल ने कहा, ”किताब की चर्चा करने के पहले मैने यह पुस्तक तीन अन्य लोगों से पढ़वाकर उनके विचार जाने ताकि लेखक से मित्रता समीक्षा में बाधा न बने।” शरद आलोक के सातवें काव्य संग्रह ”नीड़ में फँसे पंख” हिन्दी की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए इन्दरजीत पाल ने आगे  कहा कि भाई शरद आलोक ने समाज के उन पहलुओं पर लिखा जो अब इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं। विश्व में जहाँ भी कोई त्रासदी घटी चाहे युगोस्लाविया में युद्ध हो, बालकन देशों की स्थापना हो,  रूस में प्रजातन्त्र की वापसी की कठिनाइयां हों, विदेशों मे रहने वाले प्रवासियों की समस्यायें हों जैसे रेसिजम,  बड़े नगरों की स्थिति हो या भारत व गरीब देशों के गांव हों  सभी विषयों पर बेबाक और ईमानदारी से लेखक ने लिखा है। बाल मजदूरों को देवदूत कहकर सम्बोधित करना,  कमजोर वर्ग और निर्धनों को सम्मानित भावना से उनकी समस्याओं की तरफ  ध्यान आकर्षित करने के अतिरिक्त इनकी कविताओं मे सरल प्रवाहमयी भाषा, अनेक नयी नयी उक्तियाँ जगह जगह बिखरी पड़ी हैं।उन्होंने कविताओं के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये। मुझे अनेक कविताओं मे प्रगतिवाद और नयी कविता की सशक्त प्रस्तुति लगी। एक बात इस समय और कहना चाहूंगा कि नार्वे में कुछ प्रवासी उर्दू लेखकों ने इनकी आलोचना इनकी हर जगह उपस्थिति को लेकर की थी जो इनकी कविताओं की विविधता के रूप में आज बहुत सफल साबित हो रही हैं। जिस गोष्ठी में लेखक न भी उपस्थित हो,  इनकी रचनाओं का जिक्र आ ही जाता है।

 

 

 

 

चित्र में बायें से इन्दरजीत पाल, शरद आलोक, खालिद सलीमी और हरचरण चावला

हरचरण चावला के कहानी संग्रह ”घोड़े का कर्ब” (उर्दू ) पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए उर्दू के शायर मुजफ्फर मुमत़ाज ने उनकी कहानियों को दिलचस्प और भाषा को सरल और प्रभावशाली बताया। उन्होंने पुस्तक में अनेकों स्थान पर शायराना अन्दाज में प्रस्तुत अनेक पंक्तियों को पढ़कर सुनाया और कहा कि 'घोड़े का कर्ब ' कहानी इस संग्रह में सर्वोत्तम है।

हरचरण चावला की संस्मरणों की एक पुस्तक ”एलबम यादों की” जो पहले उर्दू में छप चुकी है और हाल ही में हिन्दी में छपी है, की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए शरद आलोक ने कहा कि यह पुस्तक चावला जी के जीवन का इतिवृत्त है।

 शरद आलोक ने आगे कहा कि आदमी को बहुत कुछ छिपाना पड़ता है इस तरह यह पुस्तक दर्पण तो नहीं बन सकी परन्तु कहानी की तरह रोचक पुस्तक, लेखक के बारे में, उसके व्यतीत की अनेक घटनाओं का दस्तावेज है जिसे लेखक  बताना चाहता है। अपनी पत्नी और माँ से न्यायपूर्ण व्यवहार करना, किसी का पक्ष न लेना,  पाकिस्तान मे बचपन की अनेक मार्मिक स्मृतियों का वर्णन पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे  कहानी पढ़ रहे हों। चावला जी वृद्ध होते हुए भी युवा हैं । उनके आशिकाना तबियत और अक्खड़ स्वभाव  ने पुस्तक की रचनाधर्मिता में उनको निखारा है। इनकी पत्नी पूर्णिमा चावला भी हिन्दी की शिक्षिका और कवियित्री थीं जो नार्वे से प्रकाशित स्पाइल में सन् 1988 से 1990 तक सम्पादक मण्डल की सदस्य रही थीं। अच्छा होता कि पुस्तक में उनकी भी चर्चा होती।

शरद आलोक ने कहा कि नार्वे में बसे बहुत से उर्दू लेखकों ने अपने धर्म की तारीफ, आत्म प्रशंसा, पश्चिमी संस्कृति की निन्दा आदि में अपनी रचनाओं को पाल पोस रहे हैं। अपने समाज की बुराइयों, दूसरे समाज की अच्छाइयों  को उजागर करने में नाकाम रहे। उन्होने आगे कहा, कि लेखक के जनाजे में कितने लोग थे इससे रचनाकार का मूल्यांकन नहीं होता वरन उसकी रचनायें कितनी सामयिक,  आलोचनात्मक और  मौलिक हैं इससे मूल्यांकन प्रभावित होता है। स्वर्गीय सईद अन्जुम, हरचरण चावला, खालिद हुसैन, नवीद अमजद, राय भट्टी, इन्दरजीत पाल और सुरेशचन्द्र शुक्ल ”शरद आलोक” का लेखन, बेहतर है। चर्चा में हिस्सा लेने वाले प्रवासी लेखकों में खालिद सलीमी, राय भट्टी, माया भारती, आनन्द लामीछाने, नजीब नकवी, नवीद अमजद, जान दित्ता और हैदर अब्बास भी उपस्थित थे।

अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन

9 सितम्बर 2001 को इण्डो नार्विजन इनफारमेशन एन्ड कल्चरल फोरम तेरहवें अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन ओसलो स्थित बीदएल्सहूस ग्रौनलान्द 28, ओसलो  में आयोजित कर रहा है जिसमें विभिन्न भाषाओं में कवितायें संगीत आदि प्रस्तुत किया जायेगा। इस अवसर पर नार्वे में रहने वाले युवा तबलावादक जय शंकर को अद्वितीय प्रतिभा पुरस्कार एक नार्वेजीय लेखक अथवा कलाकार को सांस्कृतिक पुरस्कार और दो राजनेताओं  लोकसभा सदस्यों मारित नीबाक और एरिक सूलहाइम को राजनीति में सराहनीय कार्य के लिए पुरस्कृत किया जायेगा।

माया भारती

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