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37B–साहित्य समाचार

अभिव्यक्ति टीम यू के में (2)

यूके की सुप्रसिद्ध कथा लेखिका, कवियित्री व प्रवासी हिंदी प्रचार सम्मान से सम्मानित उषा राजे सक्सेना ने स्वागत भाषण पढ़ा व अतिथियों से वक्ताओं का परिचय कराया। इस अवसर पर मोहन राणा, शैल अग्रवाल व पूर्णिमा वर्मन ने अपने–अपने संग्रह के विषय में अपने–अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किये। विशिष्ट वक्तव्यों में मोहन राणा के कविता संग्रह पर श्री अनिल शर्मा ने, शैल अग्रवाल की पुस्तकों पर श्री दाऊ जी गुप्त ने व पूर्णिमा वर्मन के कविता संग्रह पर शैल अग्रवाल ने अपने विचार प्रस्तुत किये।

पूर्णिमा वर्मन ने अपने संकलन के बारे में बोलते हुए कहा, " ‘वक्त के साथ’ समय की दौड़ का दस्तावेज़ नहीं है। 

चित्र में बाएं सेःकार्यक्रम के संचालक भारतेन्दु विमल, 'वक्त के साथ' पर अपने विचार प्रस्तुत करती शैल अग्रवाल, अध्यक्ष डा श्याम सिंह शशि, मुख्य अतिथि पी सी हलदर और अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन

इसमें समय के साथ चलने का कोई दावा भी नहीं है लेकिन इस संग्रह की कविताएँ मेरे जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों की सहयात्री हैं।" विशिष्ट समीक्षकों में पूर्णिमा वर्मन के कविता संग्रह पर बोलते हुए अभिव्यिंक्त की लोकप्रिय स्तंभ लेखिका कथाकार व कवियित्री शैल अग्रवाल ने कहा कि इस संकलन की कविताएं कल्पना की धनी कवि व सुरूचिपूर्ण चित्रकार से हमारा परिचय कराती हैं। ये यथार्थ के कैनवस पर कल्पना के रंगों से बहुत ही सजीव चित्र उकेरती हैं और इनकी बयानगी में ऐसी गंभीरता भरी विविधता है जो सहज सरल भाषा में अपनी बात कह कर मन को छू जाती है। 

मोहन राणा की पुस्तक के विषय में बोलते हुए अनिल शर्मा ने कहा कि मोहन राणा की कविताएं सच को खोजती यात्रा के समान हैं पर यह सच मात्र आध्यात्मिक सच नहीं है बल्कि समाज और यथार्थ से ओतप्रोत सच है। अपनी रचना प्रक्रिया के विषय मे कवि ने कहा कि कविता अपने जन्म, विन्यास, भाषा और प्रकृति को स्वयं तय करती है।

शैल अग्रवाल के कविता संग्रह समिधा तथा कथा संग्रह ध्रुवतारा के विषय में बोलते हुए डा दाऊ जी गुप्त ने कहा कि शैल जी गद्य व पद्य दोनो विधाओं में समान अधिकार रखती हैं। उनके लेखन का कैनवस अत्यंत विस्तृत है एवं सुखान्त व दुखान्त दोनों प्रकार की रचनाओं के माध्यम से वे इन दोनों पुस्तकों में अपनी अभिव्यक्ति व अपनी बात को पाठकों तक पहुंचाने में सफल हुयी हैं।

इस अवसर पर अश्विन गांधी और पूर्णिमा वर्मन ने अभिव्यक्ति जालपत्रिका द्वारा आयोजित कथा महोत्सव 2002 में तैयार किये गए जाल संकलन ‘वतन से दूर’ में प्रकाशित यूरोप के सात कथाकारों की कहानियों के लिये डा गौतम सचदेव, श्री तेजेन्द्र शर्मा, 

चित्र में बाएं से पहली :अभिव्यक्ति कथा महोत्सव 2002 'वतन से दूर' के लिये स्मृति चिह्न प्राप्त करती लंदन की लेखिका उषा राजे सक्सेना

श्रीमती उषा राजे सक्सेना, श्रीमती उषा वर्मा, श्री पद्मेश गुप्त, श्रीमती शैल अग्रवाल व श्री सुरेश चंद्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ को स्मृति चिह्न प्रदान किये। लंदन के तेजेन्द्र शर्मा व नार्वे के सुरेश चंद्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ अपनी व्यस्तताओं के कारण उपस्थित नहीं हो सके थे।

कार्यक्रम में बी बी सी हिंदी सेवा के पूर्व अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार, केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव, यू के हिंदी समिति की उपाध्यक्ष एवं नेहरू केन्द्र लंदन की कार्यक्रम अधिकारी श्रीमती दिव्या माथुर, गीतांजलि समुदाय बर्मिंघम के अध्यक्ष डॉ कृष्ण कुमार, कृति यू के के अध्यक्ष डॉ नरेन्द्र अग्रवाल एवं ब्रिटेन के विख्यात संगीतकार श्री पद्माकर 

मिश्र के अतिरिक्त श्री व श्रीमती सब्बू, श्रीमती चित्रा कुमार, श्री दयाल शर्मा, श्री वेद मोहला, श्री कविजग खरबंदा तथा लंदन के अनेक गणमान्य नागरिक एवं साहित्यकार उपस्थित थे।

इस आयोजन के पूर्व 27 जून को बर्मिंघम में भी यू के हिंदी समिति के तत्वाधान में कथा यू के एवं कृति यू के द्वारा अगले दिन लोकार्पित की जाने वाली पुस्तकों पर एक परिचर्चा एवं कंप्यूटर में हिंदी विषय पर व्याख्यान व कार्यशाला हैलीफैक्स यूनिवर्सिटी के परिसर में आयोजित की गयी जिसमें कैनेडा, यू ए ई व भारत से पधारे सभी विशिष्ट अतिथियों, चारों पुस्तकों के रचनाकारों व बर्मिंघम के हिंदी प्रेमियों ने भाग लिया।

कार्यक्रम का आनंद लेते साहित्य प्रेमियों का एक दृश्य

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