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48–साहित्य समाचार

रावी पार का रचना संसार

स शाम रावी दरिया का पानी सरहदें पार करके मुंबई के अरब महासागर से आ मिला था और अपने साथ बहा ले आया था लाहौर की सोंधी सोंधी मिट्टी की गंध, वहां की बोली की मिठास, अनारकली बाज़ार की रौनक, वहां की तहजीब, मौसिकी, अदब, वहां की सियासत की बातें और वहां की जनता के सुख दुख के अनगिनत किस्से, जो सांझे थे और हैरानी की बात, ठीक हमारे अपने दुखों की तरह ही थे। उन्हें सुन कर हमारी आंखों में वैसे ही पानी भर आया था जैसे अपने किसी करीबी के दुख दर्द सुन कर हमारी आंखें भर आती हैं। उस शाम दोनों देशों के बीच की सारी भौगोलिक सीमाएं मिट चलीं थीं। उस शाम बह रही थी एक ऐसी बयार जिसमें बेशक दोनों तरफ आपसी रंजिशों की शिकायतें तो थीं लेकिन और ज्यादा मेल जोल बढ़ाने, आदान प्रदान करने, देने और लेने तथा मिल बांट कर रहने, खाने और कुछ कर दिखाने का सांझा जज़्बा भी लगातार जोर मार रहा था।

मौका था पाकिस्तान के लाहौर से पधारीं बोल्ड एंड ब्यूटीफुल अफसाना निगार नीलम बशीर से एक अनौपचारिक मुलाकात का। लगभग तीन घंटे चली इस गोष्ठी में दोनों तरफ से ढ़ेरों सवाल पूछे गये, स्थितियों का जायज़ा लिया गया, और फिर से मिल बैठने के वादे किये गये। इस अवसर पर भारत पाक के बीच लेखकीय संबंधों और सांस्कृतिक आदान प्रदान पर खुल कर चर्चा हुई। नीलम बशीर ने कहा कि उन्हें बिल्कुल भी ऐसा नहीं लग रहा कि वे किसी गैर जगह पर हैं। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में भारत का संगीत, यहां की फिल्में, टीवी सीरियल खूब सुने और देखे जाते हैं। शाहरूख खान और माधुरी दीक्षित उनके उतने ही अपने हैं जितने हिन्दुस्तानियों के। उनका ख्याल था कि फिल्म एक ऐसा जरिया है जिससे दूसरी तरफ के लोगों के बारे में, उनकी जिंदगी की बारे में उन्हें पूरी खबर मिलती रहती है। 

उन्होंने माना कि पाकिस्तान में भी कट्टर पंथियों को पसंद नहीं किया जाता। लेकिन बस भी नहीं चल पाता। उनके लेखक के बारे में पूछे जाने पर नीलम जी ने कहा कि उनकी कहानियां जिस तरह की होती हैं, वे वहां आम लेखक नहीं लिखते। पत्रकार फिरोज अशरफ के इस सवाल पर कि वहां मध्यम वर्ग पिस रहा है लेकिन लोकतंत्र की बहाली के लिए कुछ नहीं करता, नीलम जी ने तुर्शी से जवाब दिया कि पाकिस्तान में लोकतंत्र एक सिरे से ही फेल हो गया है। बार बार वे ही लुटेरे लोकतंत्र में चुन कर आ जाते हैं और फिर जम कर जनता को लूटते हैं। जो खास लोग चुन कर आते हैं वे सामंती लोग होते हैं और उनके पास जनता को खरीद सकने लायक ताकत और पूंजी होती है। इनका विरोध आम आदमी नहीं कर पाता क्योंकि उसके पास कोई जरिया नहीं होता। लोकतंत्र से, उनके अनुसार, हमें कोई फायदा नहीं होता। अब तो इसकी आरजू ही नहीं रह गयी है। हालात बेहद खराब हैं वहां। बेशुमार महंगाई है। सबसे महंगी बिजली है। सिर्फ रात को एक कमरे में ए सी चलाने का बिल आठ हजार रूपये आता है। आम आदमी सौ रूपये में ढंग से खाना नहीं खा सकता।

दिल्ली से पधारे पत्रकार रवीन्द्र त्रिपाठी ने जब इंटर कल्चर के सन्दर्भ में कहा कि पाकिस्तान में कौन से हिन्दी या इंडियन लेखक पढ़े जाते हैं तो नीलम जी ने बताया कि वहां सिर्फ वे ही राइटर्स पढ़े जा सकते हैं जो उर्दू में वहां पहुंचते हैं। उन्होंने इस सिलसिले में गुलज़ार, खुशवंत सिंह, बेदी, जोगिन्दर पाल वगैरह के नाम गिनाये। प्रेमचंद को तो उन्होंने स्कूली क्लासों में पढ़ा था। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए फिरोज अशरफ ने कहा कि ये तो भई हिन्दुस्तानी संस्थानों का काम है कि यहीं से हिन्दी और दूसरी भाषाओं की रचनाएं उर्दू में अनूदित हों और वहां तक पहुंचें। सूरज प्रकाश ने इसके जवाब में कहा कि हम तक पाकिस्तान का अमूमन सारा लिटरेचर हिन्दी पत्रिकाओं के उर्दू अंकों के जरिये और जोधपुर से श्री हसन जमाल द्वारा संपादित शेष रिसाले के जरिये पहुंच जाता है। इसके पीछे भारतीयों की ही कोशिश होती है। दिक्कत यही है कि उर्दूभाषियों तक हमारी रचनाएं पहुंचें, इसकी कोशिश भी हमें ही करनी होगी। कथा लेखिका संतोष श्रीवास्तव के अनुसार भारत में तो सभी भाषाएं एक समान हैं लेकिन नीलम जी सिर्फ उर्दू की ही बात कर रही हैं। ऐसा क्यों। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि उनकी मादरी जबान पंजाबी हैं लेकिन वे पंजाबी भाषा में पूरी जिंदगी गुजार लेने के बावजूद पंजाबी लिख पढ़ नहीं सकतीं। उन्हीं की तरह पाकिस्तान के ज्यादातर उर्दू लेखक पंजाबी भाषी हैं। इसके अलावा इस बात को भी याद रखने की ज़रूरत है कि पाकिस्तान में साक्षरता बहुत कम है। साक्षरता औरतों में तो और भी कम है। सच तो ये है कि पढ़ाना लिखाना सरकारों की प्रायरिटी में ही नहीं आता। फिर भी करने वाले लोग काम करते ही रहते हैं। हां, आम आदमी तक उसकी पहुंच नहीं हो पाती।

इस सवाल के जवाब में कि पाकिस्तान में लिखने वाले क्या लिख रहे हैं, और वे खुद क्या लिख रही हैं, तो नीलम जी ने कहा कि जो चीजें और लोग नहीं लिख रहे, वे वही लिख रही हैं। हर तरफ तरफ तो कहानियां बिखरी पड़ी हैं। कहानियां तलाशने कहीं जाना नहीं पड़ता। एक अजीब बात नीलम जी ने बतायी कि पाकिस्तान में औरतें मर्दों की बनिस्बत ज्यादा लिख रही हैं। मर्द इस लाइन में पीछे रह गये हैं।

श्री रवीन्द्र त्रिपाठी के ये पूछने पर कि वहां औरतों का दौर कैसा चल रहा है, नीलम जी ने जवाब दिया कि हमें जो लिखना हैं, हम लिखते हैं। कोई हमारा हाथ पकड़ कर रोकने वाला नहीं हैं। बेशक वहां औरतों के संगठन नहीं हैं। इसकी वजह शायद साक्षरता की कमी भी हो सकती है। लेकिन अच्छी चीज को अच्छा कहने वाले वहां मौजूद हैं।

प्रसिद्ध संगीतकार और गायक शेखर सेन ने इस बात पर एतराज किया कि जब साक्षरता कम होती है तो चाहे वह किसी भी जुबान की बात हो, उसी वक्त सबसे अच्छा साहित्य रचा जाता है। उदाहरण सामने हैं। प्रेमचंद, टैगोर, बंकिम चंद्र। उन्होंने इस बात पर भी दुख व्यक्त किया कि पाकिस्तान के सारे गायकों को यहां सिर आंखों पर बिठाया जाता है लेकिन पाकिस्तान में कभी भी किसी भारतीय गायक को नहीं बुलाया जाता। इस पर नीलम जी ने जोरदार आवाज में कहा कि पाकिस्तान में आप लोगों के दिलों पर राज करते हैं। सरकारें चाहें या न चाहें। आपका मुल्क और आपकी सरकारें संगीत और कलाओं की कद्र करना जानती हैं। जबकि पाकिस्तान में सरकारें खुद पाकिस्तान की कलाओं की परवाह नहीं करतीं तो दूसरे मुल्कों की तो बात ही और है। उन्होंने इस बात का विश्वास दिलाया कि वहां हर शख्स बड़े शौक से भारतीय संगीत सुनता है और जगजीत सिंह के लिए तो लोग जान तक देने को तैयार हैं।

बातचीत के दौर को थोड़ा विराम देने के लिए नीलम जी ने अपनी एक मार्मिक कहानी सुनायी जिसके पात्र संयोग से हिन्दू थे। कहानी सुन कर सबकी आंखें नम हो आयीं। उन्होंने अपनी दिलकश आवाज में फैज़ साहब की एक नज्म भी सुनायी। शेखर सेन जी ने पाकिस्तानी शायरा ज़इरा निगाह की सीता पर लिखी नज्म सुनायी। हस्तीमल हस्ती और देव मणि पांडेय ने भी एक एक गज़ल सुना कर माहौल को संगीतमय बना दिया।

इस कार्यक्रम के सूत्र संचालक थे कथाकार सूरज प्रकाश। बैनर था कथा यूके का तथा मेजबान थे युवा कवयित्री कविता गुप्ता और उनके सौम्य और मृदु भाषी दिनेश गुप्ता। इस मौके पर मुंबई और दूसरे शहरों से आयी साहित्य, पत्रकारिता और फिल्मों से जुड़ी नामचीन हस्तियां वहां मौजूद थीं। फिल्मकार राजेन्द्र गुप्ता, संगीतकार शेखर सेन, फिल्मकार अतुल तिवारी और कवयित्री पत्नी कुनिका, लखनऊ से पधारे प्रोफेसर दीक्षित, कवयित्री वंदना मिश्रा, पत्रकार ललिता अस्थाना, कहानीकार विभा रानी, संतोष श्रीवास्तव, प्रमिला वर्मा, पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज, गज़लकार हस्तीमल हस्ती, देव मणि पांडेय, और दूसरे शहरों से पधारे कई अन्य मेहमान। वहां पर मौजूद सभी लोगों ने इस बात को स्वीकार किया कि मुंबई में अरसे बाद इस तरह की सार्थक बातचीत वाली गोष्ठी हुई है।

— मधु

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