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56–साहित्य समाचार

 कुसुम अंसल के उपन्यास 'तापसी' के अंग्रेज़ी संस्करण ' दि विडो ऑफ़ वृंदावन' का लंदन में विमोचन

नेहरू केन्द्र लंदन एवं कथा यू .के . ने संयुक्त रूप से प्रसिद्ध उपन्यासकार कुसुम अंसल के नवीनतम उपन्यास तापसी के अंग्रेज़ी में अनूदित संस्करण दि विडो ऑफ़ वृंदावन के विमोचन का कार्यक्रम आयोजित किया। 

 उपन्यास का विमोचन नेहरू केन्द्र के निदेशक एवं जाने माने साहित्यकार पवन के . वर्मा के हाथों हुआ। 

बाएं से अनिल शर्मा, तितक्षा शाह, गौतम सचदेव, कुसुम अंसल, पवन के .वर्मा, तेजेन्द्र शर्मा

इस अवसर पर बोलते हुए श्री वर्मा ने कुसुम अंसल को इस बोल्ड विषय पर उपन्यास लिखने के लिए बधाई दी। भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री अनिल शर्मा ने अपने लिखित पर्चे में कहा कि तापसी में कुसुम अंसल ने एक ऐसा परिवेश प्रस्तुत किया है जिसमें धर्म को आधार बना कर कमज़ोर एवं साधनहीन विधवाओं और परित्यक्ताओं का अवर्णनीय शोषण किया जा रहा है। इन विधवाओं की मौन तपस्या हमें स्मरण करवाती है कि हर युग में एक राम मोहन राय की आवश्यकता है। कुसुम अंसल की लेखनी में वर्णन भी है और विचार भी, चिन्तन और दर्शन है तो संवेदना भी है। धर्म के प्रति आस्था है परन्तु धर्म के नाम पर शोषण करने वालों के प्रति कलम में आग भी है।

कथाकार एवं कथा यू .के . के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए अपनी छोटी छोटी टिप्पणियों में कहा कि इस उपन्यास के माध्यम से कुसुम अंसल ने भगवान के अस्तित्व पर कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं। "भगवान आखिर हर समय अपना नाम ही क्यों सुनना चाहता है" हमारे तीर्थस्थलों में उपस्थित बाहरी और भीतरी सड़ांध, विधवाओं पर शारीरिक, मानसिक और आर्थिक अत्याचार, विधवाश्रमों के संचालकों की पुलिस और अंडरवर्ल्ड के तत्वों के साथ सांठगांठ सभी पर लेखिका की नज़र है। कुसुम अंसल की भाषा कवितामई है और उपन्यास में उनका शोध कार्य स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।

अध्यक्ष पद से बोलते हुए डा गौतम सचदेव ने कहा, "तापसी समाज के धार्मिक पाखण्ड और शोषण रूपी कोढ़ की एक ऐसी करूण गाथा है जिसका आंचल आंसुओं से भीगा हुआ है। इसमें भगवान की लीलाभूमि में उसके भक्तों द्वारा रचित नरक के साक्षात दर्शन तो किए ही जा सकते हैं, साथ ही उनके उस घृणित स्वार्थ को भी देखा जा सकता है जो हितैषी बन कर दूसरों की जान तक लेने में भी संकोच नहीं करता।"

लेखिका से उपस्थित श्रोताओं ने बहुत से प्रश्न किये जिनके सधे हुए जवाब कुसुम अंसल ने बहुत सहजता से दिए। उन्होंने बताया कि किस प्रकार उन्होंने कभी नंगे पांव, तो कभी रिक्शा पर कभी पैदल अपनी शोध सामग्री जुटाने कि लिए वृंदावन के चक्कर लगाए। आश्रमों के संचालक उन्हें हिकारत की निगाह से देखते थे तो विधवाएं डरी डरी रहती थीं और उनसे बात करने से घबराती थीं।उन्होंने बताया कि उनका अगला उपन्यास प्रवासी भारतीयों को ले कर है।

बर्मिंघम से पधारी कवियत्री तितिक्षा शाह ने कुसुम अंसल के उपन्यास का सरस पाठ किया जिसे श्रोताओं ने पूरे दिल से सराहा।

अन्य लोगों के अतिरिक्त कार्यक्रम में शामिल थे लार्ड एवं लेडी जी .के .नून, डा . महाराज गुरू कुमारी, रेणुका वर्मा, कैलाश बुधवार, मीरा कौशिक, उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, रमेश मुरादाबादी, डा . के . के . श्रीवास्तव, मंजी पटेल वेखारिया, सरोज शर्मा़ नीरव प्रधान, दीप्ति शर्मा, अरूण कुमार, और गीतांजलि बर्मिंघम से डा . कृष्ण कुमार, चित्रा कुमार, अनुराधा शर्मा, एवं स्वर्ण तलवाड़।

— नैना शर्मा, लंदन से

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